Saturday, March 31, 2012

Irresponsible Indian Media

I am an ardent fan and follower of the media and their reporting. The recent reporting on the differences on personal matters of the General Singh of the Army and the Defense Ministry, shows that media want to gain popularity, TRP, Viewership etc. at the cost of the image of the General, GOI and the India as a nation.

Why can't all this be left alone? The General for his individual grievance has every right to go the Court of Law (he did go)and has to accept the legal verdict (he did accept). Trying to sensational reporting on this first and then on bigger issues like the routine secret letter the General wrote to the Prime Minister, as part of his duty; and linking this and other issues like him revealing the 'graft offer' made to him; is highly deplorable.

These people think of their identity and TRP before the nation and individuals! Certainly the officers of the Defense and the civil service need to be left alone in the dutiful acts and personal grievances redressing.

And the General and the Defense officer must be debating all this too...'bloody media'

Friday, March 30, 2012

अवतार (on farewel day of Avtar Chauhan..fellow friend in the Civil Service -seaprating from the Service today)

शांत मन और हरदिल अज़ीज़
अवतार जीते हर पल ज़िन्दगी
अजब की शान जीने में बहुत
हो निभाते खूब तुम पर बन्दगी
रंगीन है बहुत पोशाक फिर भी
हर कदम है तुम्हारी सादगी
हो मुबारक तुमको अब सदा
दूसरी पारी में ये नई ज़िन्दगी
मिलते रहें अब नए अवतार में
बाँट लें खुशियाँ हमारी ज़िन्दगी

तनाव

तनाव से गायब नूर चेहरे का
बहुत कुछ बताने सा लगता है
हँसती खेलती इस ज़िन्दगी में
मानो एक ग्रहण लग जाता है
जीवन असाध्य दुष्कर सा बन
जीवन पर ही क्रोध आ जाता है
लेकिन सामंजस्य में आते ही
फिर चेहरे में नूर आ जाता है
कारण अकारण बढ़ते जाते हैं
शिकायतों का दौर आ जाता है
आरोप के सामने आते ही बस
प्रत्यारोप को ही मन करता है
एक झूठे दर्प के चलते मानो
उभय पक्ष घमासान चाहता है
फिर समझदारी के दौर से बस
चेहरे का नूर लौट ही आता है
बातों बातों में अपनी बुद्धि पर
हँस लेने का मन भी करता है
हर बार की तरह अगली बार
न दोहराने का मन करता है
लेकिन फिर कोई छोटा प्रसंग
विवेक पर भारी पड़ जाता है
अमूमन फिर वही सामंजस्य से
फिर चेहरे का नूर लौट आता है

Wednesday, March 28, 2012

पदचाप

उसकी पदचाप लगती थी
अक्सर मुझे हर आहट
इसी के साथ मचलती थीं
कितनी मनमोहक उमंगें
पर हर बार, हर बार की तरह
नैराश्य भाव भी आने लगता था
उसके न आने के कारण
किन्तु कहते हैं बड़ी चीज है
कायम होना उम्मीदों का
मैं हर बार आशावान रहा
तभी कायम रख पाया था
पदचाप सुनने की उम्मीद
वो तो आ नहीं पाए थे
पर उम्मीद हमेशा साथ थी

Monday, March 26, 2012

फिर भी

उससे कोई मुलाक़ात भी तो न थी ऐसी
फिर भी मिलने का एक ख्याल आया था
उसकी आँखों में जाने क्या बात थी ऐसी
देखते ही मोहब्बत का सैलाब आया था
उसके एक इनक़ार का असर था ऐसा
मोहब्बत में फिर भी ठहराव आया था
उसकी नज़रों में खो जाने सी बात ऐसी
पहचान में मोहब्बत का नाम आया था
प्रीत की बात उनकी नहीं थी कोई ऐसी
फिर भी मोहब्बत का ख्याल आया था

नया ख्याल

शायद मेरे दिल में नया ख्याल आया है
तभी सब कुछ नया नया नज़र आया है
किसी अनदेखे अनजाने का सरमाया है
मेरे वज़ूद को जाने किसने भरमाया है
मेरा दिमाग कशमकश में रह गया है
किसी हसीन ख्याल में सिमट गया है
मेरा मन शायद कहीं दूर निकल गया है
न जाने कौन से समंदर में बह गया है
अब तक ऐसा कभी नज़र नहीं आया है
शयद मेरे मन में नया ख्याल आया है

Sunday, March 25, 2012

Whispers

I had fallen for the voice
That whispered in my ear
Assuring me the wonderful
Pleasant and joyous to be
The long journey of life
Path full of lovely roses
The wonderful companions
The renewed enthusiasms
The caring people around
Showering love, affection
I still hear such voices
With some varied resonance
The pitch in new intensity
But I still look for best
Retaining my enthusiasm
When I observe around me
Most things were abundant
Only I faltered in noticing
I am trying to make up for
My follies I take care of
I still love the whispers!

Saturday, March 24, 2012

Daring

I want to say nothing in words to you
Yet, I am trying to tell you something
I sure didn’t hide anything from you
I am expecting you not hide anything
How you respond I leave it all to you
In return, I sure would be expecting
The value of trust that I gave to you
Reciprocation of that is I am looking
The selfless love that I did give to you
I am sure dying to get a similar thing
My every moment had thought of you
I am raring you to be so remembering
I had always tried myself to give you
I too am daring to be your everything

Darkness?

When the enlightenment is attained
Darkness too has a role lend support
For the very simple reason so obvious
Since it was the very stepping stone
On which the enlightenment worked
The effect is important so is the cause
Sounds weird but giving it a thought
Makes understandable for everyone
And the very path of the enlightenment
That is then revered by the one and all
I say to thee everything has a role too
Be it the darkness that just sans light
Not voluntarily but for reasons obvious
And manifests that lights being awaited
That’s going to be around here for sure

Wednesday, March 21, 2012

किंचित

सब जन से था सोचा मैंने मैं
रहा इधर था एक परिचित
लोगों की मैं अब क्या कह दूँ
रहा स्वयं से ही मैं अपरिचित
मेरा मन जान न पाया मुझको
मेरा परिचय रहा अपरिचित
मेरे कुछ भाव भी रहे कभी हैं
मुझसे ही एक यहाँ अपरिचित
व्याकुल या खिन्न नहीं पर मैं
बस आश्चर्यचकित मैं किंचित
सम विषम बना जग शून्य बना
खुद की मैं थाह न पाया किंचित

Tuesday, March 20, 2012

साँसों का संगीत

मेरी ही साँसों के शोर में इधर
खो गया अब भीतर का मौन
जिससे मेरा था नाता ही ऐसा
मानो साँस से भी कुछ अधिक
जीवन की विवशता के चलते
ज़रूरी था साँस लेना भी यहाँ
बस दिल के तार एक एक कर
उलझ गए थे साँसों के जाल में
अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं
बस साँसों में संगीत तलाशने का
इन्हीं में जीवन का गीत है शायद
मुझे यह भी मान लेना ही पड़ेगा
मेरा मौन भी संगीत की लय को
अपना ही पूरक बना लेगा शायद

हरदिल अज़ीज़

हमें एहसास है इस बात का
आसमाँ में उड़ना नसीब नहीं
फिर भी हमारी ओर से कभी
कोशिशों में कोई कमी नहीं
हमारे कोशिशों के दायरे पर
ज़मीन से कभी दूर रहे नहीं
तुम कल्पनाओं में रमे रहो
हम ज़िन्दगी के ही करीब हैं
तुम्हें वो अफ़साने मुबारक़
हमें तो हकीक़तें अज़ीज़ हैं
तुम्हारी नज़र में हमने माना
हम तो महज़ कोई नाचीज हैं
हमें अपनी नज़र से लगता है
मेरा या हरदिल अज़ीज़ नहीं

साकी

सोचता हूँ कि वो साकी कहाँ से लाऊं
जो कभी मुझसे भी तो मिला दे मुझे
अब वो प्याला मैं कहाँ से लेकर आऊं
जो बिन पिलाए ही एहसास कराए मुझे
बिन पिए ही नशे की भी चाहत है मुझे
कुछ ऐसी ही मिली है कोई रहमत मुझे
मुझे तो बस नशा सा है जानने का मुझे
ज़िन्दगी जीने का ये तरीक़ा भाता है मुझे
मालूम है मुझे कि मेरा साकी मुझमें ही है
इसी के नशे से ही दुनियाँ भाती है मुझे
रोज़ एक नए आयाम से लवरेज हुई मानो
ज़िन्दगी की स्वच्छ बोतल दिखाती है मुझे

Monday, March 19, 2012

दर्द का व्यापार

वो भी करना चाहता था व्यापार
सोच करूँ एक विचित्र व्यव्हार
उसे एक लत सी हो गई थी तब
चाहा था कुछ समाज का उद्धार
बिना सोचे कर दिया उसने बस
औरों का दर्द खरीदने का व्यापार
उसका अंदाज़ एकदम निराला था
खुद से उसे कोई था नहीं सरोकार
खरीदने को उसके पास सद्भाव था
जो बेचने वाले को नहीं था मंज़ूर
उसका एकाकी संघर्ष रहा जारी
चुप थे सब प्रबुद्ध जन व अख़बार
लोग कौतूहलवश साथ होने लगे
उसका बढ़ रहा था फिर व्यापार
दर्द बेचने वाले थे अब खिलाफ
उनका घट रहा था सब व्यापार
उन्होंने सौदा करना चाहा उससे
मगर वो नहीं था सौदे को तैयार
अगले दिन अकाल मौत की खबर
मुस्तैदी से छाप रहे थे सब अख़बार

यही

कल की सोच से आज को क्या
आज की सोच कल बदलेगी ही
कल आज और कल के कारण
हमारी सोच तो विकृत होगी ही
जाने अब की कब सोचेंगे हम
अब हर हाल गुजर जाएगी ही
आज और अब की आसान सी
कल भूल कल की भी फिक्र ही
बनेगी आसानी का सबब यहाँ
अब हम तो बस समझेंगे यही
तुम्हारे सब दिन संवर जायेंगे
अगर तुम भी सोचोगे बस यही

Saturday, March 17, 2012

भूल

अपनी ही कहानी कहते कहते
हम अपने आप को ही भूल गए
तुम्हें ये कहानी सुनाते सुनाते
हम तुमको इधर बस भूल गए
जाने किस किस याद में हम
दिल का तराना तक भूल गए
साथ साथ चलते रहकर भी हम
दो कदम साथ चलने भूल गए
सावन में भी बरसात का पता
जेठ की दुपहरी धूप भूल गए
रेत में डाले पानी की तरह हम
पानी की निशानी तक भूल गए
अब बची ही क्या थी उम्र हमारी
इसीलिए हम ज़माना ही भूल गए

Thursday, March 15, 2012

खरीददार

कई थे खरीददार और मुरीद यहाँ
अच्छी बात अब बिकती नहीं है
बेचने वालों की कमी न थी कोई
अब कोई यहाँ कुछ बेचता नहीं है
अब कोई खरीददार नहीं है यहाँ
इसलिए कोई भी कीमत नहीं है
मुफ्त लेना लोगों को पसंद नहीं
इसलिए कुछ भी मिलता नहीं है
ईमान के सिवा बेचने खरीदने का
लोगों को वक़्त मिलता ही नहीं है

Tuesday, March 13, 2012

My Random couplet/s -5

दामन के दाग को कैसे छुपा लोगे चेहरे की मुस्कराहट से
लोग भी खूब समझते हैं तुमको यहाँ चेहरे की बनावट से
How will you hide stains from worn cloths by smile on face
People well understand you through your facial expressions

पहली नज़र में तो कुछ नहीं कहूँगा मैं; दूसरा मौक़ा मिलेगा ये भी तो कठिन है
कोई पूर्वाग्रह नहीं रखता हूँ इसीलिए मैं; कोई राय बना पाना मेरे लिए कठिन है
I can't say at the first sight; getting second chance is also difficult
I keep my prejudices away; so making an opinion for me is difficult

उन्हीं की बात उन्हीं की तमन्ना उन्हीं की ज़ुबानी
हमने मानी सारी फिर भी कहते हैं मेरी नहीं सुनी

तुम्हारे कहने सुनने से तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है?
शायद तुम्हें ये भी इल्म नहीं हमें बहुत पड़ता है!



मुझसे तुम मेरी मुस्कराहट का सबब मत पूछो यारो
ऐसा न हो की मैं भी भूल जाऊं मुस्कुराना तुम्हारी तरह
Don't ask me the reason of my smile friends
I fear that I may stop smiling like you all

तेरे अल्फाज़ की चुभन से बढ़ के
नुकीले काँटों में क्या चुभन होगी
मेरे इस जलते दिल की हालत पे
क्या किसी को कोई जलन होगी


वो मित्र बनकर शत्रुता रखते चले
जिन्हें शत्रु समझा वो मित्र निकले
जीवन व्यव्हार यूँ ही चलता चले
मित्रवत शत्रु से शत्रुवत मित्र भले
Those I thought were my friends they kept enmity
Those I viewed enemies turned out to be friends
Let the human behavior continue like this always
Venomous friends are better than friendly enemies


महकती सी शाम में तुम्हारा इंतजार
हसीन तो है पर बेक़रारी भी है शुमार
अब आ भी जाओ अचानक कहीं से
कुछ भी कह दो कर लेंगे हम इक़रार

अब कोई पैगाम मिले या न भी मिले कोई फर्क नहीं पड़ता
हमें मिलने की आस अब भी है उन्हें बताना भी नहीं पड़ता

उनकी जुल्फों से बढ़कर भी कई और हुनर हैं उनके
आयेंगे नज़र तुमको जब सर हो जायेंगे गंजे उनके


बहुत सख्त जान हैं ये सियासी लोग जाने कितने रंग दिखा जाते हैं
जब भी सोचो कि अब ये वापस नहीं होंगे फिर नए रूप में आ जाते हैं

ज़माने की हवा का रुख न देखो संजीदगी से
इनका रुख तो कभी भी और बदल सकता है
अपनी तसल्ली से देखा करो तुम ज़माने को
अपना मशवरा भी जब चाहे बदल सकता है


दो पल न मिले चैन तुम्हें जाने क्यों
है फिक्र तुम्हें शायद दुनियाँ भर की
अब जद्दोजेहद छोड़ो दुनियाँ भर की
हमें तो रहने दो दुनियाँ में सादगी की

तलाश ज़ारी है कभी इस पार कभी उस पार
गुमशुदा क्या मालूम मिलें किसी मोड़ पर
हम तो क्या हमारी रूह भी करेगी इंतजार
वो फूल ही रख दें कभी शायद मेरी कब्र पर
The search is continuing all over around
Who knows lost ones will meet one day
Not just me my soul will also wait for this
May be a wreath she offers on my grave


खुदा ने रख दी थी शर्तें कई खुदाई हमें दे देने को
हमने इंसानियत गवारा की बस गुजर करने को
God had put conditions to make me God-like
I had accepted being human to make a living

तेरी रहनुमाई के झांसे में रहने से क्या फ़ायदा
हमें तो वक़्त के ही रहनुमा होने का भरोसा है
What is big use of the mirage of your patronage
I shall rather look to the times to be my saviour

बात बस आज की होती तो नज़रंदाज़ कर देता मैं
उम्र भर की बात है इससे कैसे किनारा कर लूं मैं
If it was a matter of one day I could have ignored
It is a matter of lifetime how would I have ignored

आज फिर खूब मुस्कुरा से रहे थे वो छुप छुप कर
ज़रूर किसी नई रंजिश को दिल में बसाया होगा
जानते हैं वो फूस के ढेर पर बसती है दुनियां मेरी
बड़ी किसी आतिश का इंतजाम खूब किया होगा

ज़िन्दगी जब भी लगने लगी कोई उबासी सी
महकने लगती है फिर से कोई याद ताज़ा सी
Whenever life looks like a yawning moment
Some reminiscence brings a fresh fragrance

समंदर का हिस्सा समझ रहे थे जिसे हम पानी देख कर
पानी की लहर की वापसी के साथ वो रेत का ढेर निकला
Looking at the water what I thought was the part of an ocean
That had turned out actually to be a mere heap of sand around

अरमान मचलते रह गए हवा कुछ ऐसी बही
यही अगर मुक़द्दर है तय मेरा तो यही सही
Aspiration kept waiting happenings were such
If it was destined to be so shall I must cherish


मुझे मेरे 'अपने आप' से न जुदा कर देखो तुम
मुझे सिर्फ जिंदा रहने का नहीं जीने का शौक़ है
Don't look at me by separating 'me' from me
I have always liked to live and not just survive

दोस्ती का सबब है ज़िन्दगी तो आजमानी भी पड़ेगी
रस्म-ए-अदावत है ये ज़िन्दगी तो निभानी भी पड़ेगी
If life is a reason of friendship it has to be tried out
If life is a customary animosity it has to be lived out

अनकही पहेली

बचपन से उसे जीना बहुत पसन्द था
आकाँक्षाओं की फेहरिश्त लम्बी ही थी
जीवन की उथल पुथल में फँसकर भी
मनोबल की दशा बहुत अच्छी ही थी
किसी अनकही पहेली के उत्तर ढूंढते
उसकी ज़िन्दगी की सांझ ढल गई थी
उसके लिए जीवन कल भी पहेली था
जीने की चाहत आज भी पहेली ही थी
उसे दिन और उजालों से प्यार सा था
अब काली रात लम्बी लगने लगी थी
उसने फिर भी उत्साह बनाए रखा था
उसे तो बस अब सुबह की प्रतीक्षा थी

Sunday, March 11, 2012

Just Like Brain

The other day I came to know
Brain does not have any pain
Making us aware all our pains
I thought the brain would pain
It should have such a system
But it is not so I thought again
Perhaps it is a good example
For us all to bear in us the pain
We can be others’ watchdogs
Making them know their pain
For us just leave it aside to heel
Realizing the existence of pain
Yet have no indulgence of mind
Just like our own beautiful brain

Everywhere!

When I looked for you around
You weren’t around anywhere
I was a bit desperate with that
Not finding you then with me
I wondered about what to do
The loneliness caught up then
Realization too was in tandem
That you were in my thoughts
I found you in my dreams too
You were around all moments
I felt you like in my soul around
I could visualize your presence
Whenever my eyelid were down
I had always thought us together
In all my moments of wilderness
You may not have been around
Yet you were everywhere there

Saturday, March 10, 2012

किताब

हम तुम कोई कहानी के पात्र नहीं
हम तो स्वयं ही वो कहानीकार हैं
लिखते हैं एक कहानी की किताब
हर पल रोज़ नए नए दृष्टान्तों से
जाने अनजाने शब्दों के प्रयोग से
अपनी ही तरह के कार्यकलापों से
कुछ कहे व अप्रकट मनोभावों से
ज़िन्दगी की किताब हमारी ही है
किसी और की लिखी कतई नहीं
इसका आदि तो हमारे वश न था
किन्तु यहाँ उपसंहार हम लिखेंगे
हमें ये अहसास करना ही होगा
हम इसकी पराकाष्ठा ख़ूब लिखेंगे

Friday, March 9, 2012

पहचान

तुझे ठहरे हुए क़दमों की आहट से पहचान लेते हैं
बिन कहे भी तेरे हम ज़ज्बात सभी जान लेते हैं
हम तो गुलशन की तरह ही खड़े हैं तेरी राहों में
तेरे आने के मौसम का पता हर बार जान लेते हैं
उफनती हुई कोई दरिया सी लगे जब कभी बहने
तेरे बहने से मिली कोई भी सजा हम जान लेते हैं
जब भी देखूँ मैं तेरी लाज भरी पलकें लगीं झुकने
इनके झुकने की अदा से हम बस पहचान लेते हैं
कभी गर्मियों के मौसम में गर्मी की करें ख्वाहिश
सावन के महीने भी वारिश की फरियाद करते हैं

Myself Themselves

People have problems with me
They want to see me look gloomy
Just like they look themselves
They want me to stop thinking
About me, myself and my likes
Just as they try with themselves
They hate smiles I bear on face
They see it as 'red rag to bull'
Just what they seldom do to them
They dislike that I like most things
They want me to criticize mostly
As they are in the habit of doing
They want me to run after things
At whatever cost it may come
One thing they practice themselves
I laugh at them with just a smile
Without intent of changing myself
Just as I also do always to myself

Thursday, March 8, 2012

तपिश

इतनी सी तमन्ना काफी थी मेरे लिए
वो बस किसी तरह समझ पाते मुझे
न वो समझ पाए न हम समझा पाए
बस तमन्ना तमन्ना ही रह गई थी
सर्दी की धूप को गर्मी की लू समझे
पर तपिश तो इसकी आनंददायी थी
देखें कब सावन का मौसम आयेगा
बरसात तो तभी से लगने लगी थी
जिसे हम बस मौसमी हवा समझे
वही तो वसंत बहार की बयार थी
हम ही उस सुरभि को न जान पाए
हवाओं में तो खुशबू बिखरी पड़ी थी

Monday, March 5, 2012

इस होली में

ऐसा कुछ रंग जमे इस होली में
कुछ भी बेढंग न हो इस होली में
रंग में भंग न होगा इस होली में
भंग का रंग चढ़ेगा इस होली में
भंग की तरंग रहेगी इस होली में
हुड़दंग के संग होंगे इस होली में
दूर नहीं संग रहेंगे इस होली में
हमजोली संग पियें इस होली में
संग अंग नृत्य करें इस होली में
अंग से अंग लगेंगे इस होली में
होवें सबरंग यहाँ इस होली में
कोई भी बेरंग न हो इस होली में

कान्हा

कान्हा मुझे बड़ा क्रोध है तुम पर
यूँ इठला के बोली थी राधा गोरी
अब मुझे प्यार आया है तुम पर
कान्हा ने फिर यूँ चुटकी ले डारी
चलो हटो झूठे हो तुम तो बहुत
कुछ लजा के बोली राधा गोरी
कभी बांसुरी बजा गोपियों को
कभी तुम्हारी झूठी बातें सारी
जाने किस किस को सौतन कहूँ
मेरी तो दुनियाँ ही सौतन सारी
पर मेरी दुनियाँ तुम्हीं हो राधा
बोल कान्हा ने मारी पिचकारी
भीगी राधा मन ही में थी सोचती
कान्हा से ही मेरी दुनियाँ न्यारी
कान्हा मंद मुस्कान से सोचते
आज फिर बन गई राधा प्यारी

Sunday, March 4, 2012

जहाँ से चले थे वहीँ/ Back to Square One

तेरी याद ही काफ़ी थी तुझे भुलाने के लिए
अब ये ज़ज्बात न जाने कहाँ से हैं आ गए
हमने सोचा था कि अब संभल चुके हैं हम
लगता है फिर जहाँ से चले थे वहीँ आ गए
Your reminiscences were enough to forget you
I don't know from where new emotions appeared
Was under impression of having been stabilized
Looks like back to the square one I've reached

Friday, March 2, 2012

श्याम संग होरी

आज मैं श्याम संग खेलूं न होरी
कौन संग रचाए रास है श्यामा
जाने कहाँ कहाँ खेले वह होरी
है वृन्दावन कभी मथुरा नगरी
कभी है गोकुल की राधा गोरी
आज मैं श्याम संग खेलूं न होरी
अब मैं न लजाऊँ न शरमाऊँ
मैं रखूंगी अब मोरी चुनरी कोरी
घर से न जाने की सोच रही थी
आके श्याम बस मारी पिचकारी
कैसे न खेलूं मैं श्याम संग होरी

गुनहगार

आँखों से हटा के देखो सभी चश्मे तुम अपने
नज़र के धोखे से तुम्हें बचाना चाहता हूँ मैं
तुम्हें यकीन नहीं न सही पर हकीकत है ये
जो हूँ वो दिखता कम पर हाँ यही तो हूँ मैं
मेरे सपने हो न हो शायद मेरे अपने ही सही
बस तेरी ही तरह किसी का ख्वाबगाह हूँ मैं
कभी तेरा कभी अपना कभी और का हूँ मैं
जाने अनज़ाने हम सभी का गुनहगार हूँ मैं
मुझे किनारों मैं रहने का नहीं है कोई शौक़
अपने ही लिए जीवन का ख़ुद मझधार हूँ मैं

Thursday, March 1, 2012

स्वभाव

वही अब विषदन्त बना डरा रहा था मुझे
जिसे विषहीन समझ दूध पिलाया था मैंने
निरीह सा रेंगकर चला आता था मेरे पास
स्वभाव उसका अब पहचान लिया है मैंने
क्या हुआ विषहीन हो या विषदन्त कोई हो
ज़हरीले साँपों को भी पिलाना चाहा है मैंने
इनके क्रोध से मुझे फर्क नहीं पड़ता है अब
फुंफकारते इंसानों को जो माफ़ किया मैंने
मुझे तो ख़ुशी इस बात की ही रहेगी हमेशा
अपना ये स्वभाव कभी छोड़ा नहीं है मैंने