Tuesday, October 30, 2012

मदमस्त वसंत

पतझड़ होगा
आयेगा फिर वसंत
नई कोंपलें निकलेंगी
घर आँगन महकेगा
नव ऋतु में विहग चहकेंगे
विहाग के स्वर भी
मन मयूर रंग जायेंगे
राग भी वासंती
सब कुछ वासन्ती होगा
हेमंत के बाद आते
शिशिर की ओट से
आयेगा मदमस्त वसंत

Sunday, October 28, 2012

इन्सान ही

इससे बढ़कर और तमन्ना क्या
अमन और सुकून की बस्ती रहे
ज़हां आबाद हो और तरक्क़ी करे
मुल्क़ के साथ अवाम भी खुश रहे
बस वही तमन्ना आज भी तो है
कि बस सुकून सदा सलामत रहे
ज़िन्दगी तो चलती रहेगी हमेशा
कोई फर्क नहीं हम रहे या न रहे
चाहे कितना भी ऊपर उठ जाए
इन्सान बस इन्सान ही बना रहे

Thursday, October 25, 2012

Storm

इन दरख्तों से पूछो तो सही तुम
हवा में कैसा बदलाव आ गया है
सोचा था बहेगी वसंत की बयार
पर ये अज़ीब सा तूफ़ान आया है
Why don't you ask the trees
What change air has brought
We thought of wind of spring
Weird storm it has turned out

Wednesday, October 24, 2012

बिस्मरणीय

जीवन में बिस्मरणीय होते हैं पल
जब अकारण ही बिगड़ जाती है बात
अपने अंतःकरण में झाँकने पर भी
कुछ समझ नहीं पाया मैं कुछ बात
न जाने क्यों सहानुभूति हुई थी मुझे
अपने ही मन में और अपने ही साथ
सनसनाती सर्द हवाओं के थपेड़े भी
मुझे सामान्य से लगे थे बीती रात
विचलित सा कर गए थे दोनों मुझे
उनका आगोश भी और उनका साथ

Monday, October 22, 2012

Motive

तुम समझ ही न पाए मेरा मक़सद
मेरा आज़माना तो बस बहाना था
चाहत की दरिया की गहराई में छुपी
तेरी आज़माइश को पहचानना था
You were unable to find my reason
Trial of mine was mere pretension
Deep beneath the river of your liking
Just to understand motive underlying

Wednesday, October 17, 2012

Heaven/ ज़न्नत

सोचा था आब-ए-हयात पी आये हैं हम
वो महज़ एक पोखर का पानी निकला
सोचा था जायेंगे तो बस ज़न्नत में हम
ये रास्ता तो महज़ दोजख़ का निकला
I thought that I had drunk the nectar
But the water of a pond it turned out
I thought if at all I will go to the Heaven
But the way to Hell alone it turned out

Monday, October 15, 2012

Side-glance

तिरछी नज़रों से तुम यूँ न देखो मुझको
हमें भी कनखियों से साफ़ दिखाई देता है
रुखसार पे तेरे तिल हैं कितने कहाँ कहाँ
हमें वो भी सब साफ़ साफ़ दिखाई देता है
Stop looking at me from those side-glance
I can see all that for sure from my asquint
One your face where all are moles around
I can also see and count them all without fail

Sunday, October 14, 2012

अब भी मेरे साथ

जाने अनजाने आज भी बस वही बात है
ज़िन्दगी में वही जानी पहचानी बात है
उनसे बिछुड़े हुए अब ज़माना हो गया है
परछाई मगर उनकी अब भी मेरे साथ है
मत समझना तुम ये महज़ इत्तफ़ाक़ है
ये तो हमारी उनकी मोहब्बत की बात है
दूरियों में भी उनकी नज़दीकी ही साथ है
तसव्वुर सही फिर भी उन्हीं का हाथ है
उन्हें हो न हो हमें हमें हर लम्हा याद है
मेरी परछाई भी शायद उनके ही साथ है

हलफ़नामा

फिर तेरे ख्याल आते गए एक के बाद एक
इसे तेरी बेवफाई कहूँ या मेरा दीवानापन
तस्वीर में भी तेरी नज़रें हैं झुकी झुकी सी
इसे मैं नज़र का अंदाज़ कहूँ या नज़रंदाज़ी
तसव्वुर में छोड़ा अक्स जाते जाते अपना
इसे मजाक समझूँ या या अदा कातिलाना
मुझसे पूछा भी नहीं तूने कि वज़ह क्या थी
इसे शुबहा कहूँ या समझूँ मैं तेरा हलफ़नामा
आज भी हर एक से पूछा मेरा पता ठिकाना
इसे तेरी बेबसी कहूँ या तेरे ही दर्द का तराना

Saturday, October 13, 2012

गुस्ताख़ी

हमने हँसी हँसी में ही वो कह डाला था
तुम्हें लगा होगा कि ये बात संज़ीदा थी
तुमने बात को बढ़ा चढ़ा के समझा था
हमें लगा था वो एक छोटी सी बात थी
तुम दिल पर ले चले बिना खास वज़ह
ये तो बस एक छोटी सी तकरार सी थी
शायद तुम भी अपनी जगह ठीक ही थे
अब ये लगा हमने क्या गुस्ताख़ी की थी

लत


सवाल ज़ेहन में था क्या यही मोहब्बत है
कोई कहता ज़ियारत तो कोई इबादत है
किसी ने समझाया ये मीठी सी शरारत है
एक शख्स ने कहा इज़हार ए शराफ़त है
हमारे लिए अपनी दोस्ती ही मोहब्बत है
शायद यही हमारी पट और यही चित है
आपसे की है दोस्ती ये हमारी क़िस्मत है
लगता है आज भी बहुत कुछ सलामत है
अब यही मोहब्बत और यही हकीकत है
हमें तो बस आपकी दोस्ती की ही लत है

Tones

अब कहाँ वो पाज़ेब की छन छन
खो गई कहीं चूड़ियों की खन खन
अब तो उनके आने खबर लाती है
बस सिर्फ एक मोबाइल की धुन
Lost are the melodious sounds of anklets
Forgotten are musical sounds of bangles
Now we get to know the news of arrivals
Only through sound of their mobile tones

Friday, October 12, 2012

Invite

कभी दूर से ही सही पैगाम तो कोई आएंगे
दिल की क्या कहें कौन भला रंज़िशें मिटा दे
दूरियों का क्या परवाज़ किस काम आएंगे
पर दिलों के फ़ासले भला कोई कैसे मिटा दे
May be some day from far off invitations will arrive
But in matters of heart who will erase the vengeance
Distances will sure be shortened by using the wings
But who on Earth will remove the distances in hearts!

So many

उन्हें मिलीं हर शख्स में कमजोरियां इतनी
जाने कहाँ से ढूंढ़ लाते हैं निकाल कर कितनी
किसी और की क्यों कर है तुम्हें परवाह इतनी
खुद में भी तो ज़रा झांक लो हैं कमियां कितनी
S/he finds weaknesses in all people so many
I don't know from where found each and any
Why care so much about the others and many
Peep in to yourself find them all over so many

Wednesday, October 10, 2012

सरमायेदार/ capitalists

एक तुम ही नहीं अकेले मेरा यक़ीन मानो
और भी कई सरमायेदार बैठे वक़्त के यहाँ
बचकाना हैं हरक़तें सारी तुम चाहे न मानो
हमेशा एक से दोस्ती की नहीं वक़्त ने यहाँ
Believe me that you are not the only one
Many other capitalists of time are around
Childish are your ways you accept or not
Time seldom made anyone permanent friend

Tuesday, October 9, 2012

ऐसा कोई

हर दर पे ढूंढा दोस्त पर ऐसा कोई मिलता नहीं
न कोई क़द्रदान मिला और है कोई आशना नहीं
हम यहाँ कोई उम्मीद से उनको देखा किए नहीं
फिर भी ये दिल ही तो है थामा मगर थमता नहीं
ये हसरतें मोम की तरह धीरे धीरे पिघलती रहीं
फिर भी किसी और का जहाँ रोशन करती रहीं
कोई जाँबाज़ किसी और की दास्ताँ सुनता नहीं
अपनी ही खातिर कभी कोई यूँ ही जाँ देता नहीं
है कोई इधर अपना नहीं पर ग़ैर भी तो कोई नहीं
हम से ही अब हैं हमारी हसरतें शिक़वा कर रहीं

Monday, October 8, 2012

Bitterness

फिर उसी तल्ख़ी से कर लो कोशिश
हज़ार बार तुम हमसे बात करने की
हर वार ख़ाली कर देंगे तुम्हारा हम
सिर्फ़ अपनी मुस्कराहट के चलते ही
Again with the same bitterness
Try thousand times talking to me
All assaults of you will go waste
Just with the very own smile of me

Doubt

अपना हक़ अदा करने का सबको हक़ है
पर उनकी नीयत पर ही हमें कुछ शक़ है
Each one has the right to work on the right
But here we have the doubt about the intent

किसने कहा?

बेवफ़ाई में भी कब थी इतनी ताक़त
जो हमारे हौसलों को जरा हिला सके
हम तो मोहब्बत की राह पर चलेंगे
किसने कहा हम मंज़िल न पा सके

Credence


I don’t lend credence to whatever I say
I had never wanted to make words prey
My utterances might sound bitter sway
But I can’t serve you only husk and hay
You may doubt my indulgence your way
I don’t want you to accept all what I say
My intention is to show you the best way
As I know them sincerely in my own way
You may disagree or agree with anyway
For your sake you need something to say

Sunday, October 7, 2012

Chameleon

वक़्त बदलते ही तुम गिरगिट की तरह रंग बदल गए
हम तुम्हारी फितरत और औकात दोनों पहचान गए
With the change of times like Chameleon you changed colors
I have now understood both the ways and real colors of yours

Thursday, October 4, 2012

Improvement


I had always ignored your weakness
I know what all the weaknesses are
Then you had chosen to ignore me
I had thought that’s the way you are
I had chosen to support you always
You thought that the way people are
I never bothered to know the ways
Of why you were like what you are
I just wanted myself to get carry on
Without trying to know who we are
You faltered but never in my opinion
Knowing well that you are human too
Trying to be better than what you are

Wednesday, October 3, 2012

कब तक/ Limit

रोज़ नए वादों के नारों के चलते पलते
नए नए लोग कहाँ ले जायेंगे मुल्क को
अब इस क़दर मूर्ख बनायेंगे कब तक
लोग ही आखिर कब तक लोगों ही को
Always prospering by assurances and raising new slogans
Newbie people will take the country to around up to where
What is the limit of this way select people will fool others
For how long can the people to their own people themselves

Monday, October 1, 2012

नर हो न निराश करो मन को - मैथिली शरण गुप्त

कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रह के निज नाम करो।

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को।

सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ!
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठ के अमरत्व विधान करो।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को।।

- मैथिली शरण गुप्त