Saturday, August 31, 2013

Well Understood / ख़ूब समझते थे

आँखों में भरी शरारत उनकी हम ख़ूब समझते थे
चुप रहते थे यूँ कि इन्हीं अदाओं पे तो हम मरते थे
कभी-कभी आँखों ही आँखों में दीदार को तरसते थे
शायद वो भी हमारी ऐसी बेक़रारी ख़ूब समझते थे
Naughtiness within his eyes I would understand
But I had kept quite for that's the way I liked
At times I would have a craving to see his face
Such restlessness perhaps he too well understood

Wednesday, August 28, 2013

Times

वक़्त के सफ़र में यहाँ वक़्त बहुत कम मिलता है
जो गुज़र गया वो वक़्त हमें फिर कब मिलता है
मौका हर बार नहीं कुछ या एक बार ही मिलता है
जो हाथ से निकल गया हो वो फिर कब मिलता है
Time is scarce in the journey of the time
The times that are gone seldom we get back
Opportunities too knock once or few times
Opportunities we lost seldom do we get back

Saturday, August 24, 2013

धन तेरी / Hail You


फिर बसंत को छू मौसम
अब अंगड़ाई लींछ यौवन
मदमस्त हे गे यो पवन
मन हेगो छ मेरो चंचल
सुवा कि फिर याद ऐगे
आंखन में छू छाई हर पल
कतु दिन देखीं भईं देखो
याद वीकि ऊंछी पल पल
फूली फूली सब डालिनामा
बांसी रूंछी गीत गेनी कोयल
यो कसी छू माया लागी
अब कसि छू यो पहल
धन तेरी बसंत ऋतू
अरु धन तेरी यौवन! (KUmaoni)
It's the Spring again
Youth taking side-postures
The wind's lusty blows
My mind is wandering
I think of beloved again
Present in my visualization
It's been long meeting her
Remembrance every moment
All branched full of flowers
Cuckoo at her melodious best
What kind of love is this
Whither initiative is this
Hail you the Spring
And you the youth!


Heart of Ocean

तुम्हें तुम्हारी तंगदिली मुबारक़
कोई बात दिल पे नहीं लेते हैं हम
पहचान लो कोई दरिया का नहीं
समन्दर सा ये दिल रखते हैं हम
You be happy with your own narrow-mindedness
I would take nothing to heart be rest assured
Not of a river but of an ocean's heart I have
It's time about for you also to have realized

Friday, August 23, 2013

बादलों की गरज़

तुम्हें शौक़ होगा तो है
बादलों की गरज़ सुनने का
तेज़ बारिश के शोर का
उफनती हुई नदियों की
लहरों के बहाव के नज़ारों का
मेरा तज़ुर्बा अलग है तुम से
मुझे डर लगता है
पहाड़ों की तबाही का
पानी के तेज़ बहाव का
पानी के सैलाब का
जो सब कुछ बहा ले जाता है
ज़िन्दगी भर का सहेज़ा
हर साल हर बार
कहीं न कहीं
किसी न किसी का

Wednesday, August 21, 2013

कतील शिफ़ाई साहेब की खूबसूरत ग़ज़ल


वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
"क़तील" जान से जाये पर इल्तजा न करे

Monday, August 19, 2013

आँसू


ख़ुद ही ख़ुद सह लेते हैं घुटन ये सब छुपा के
छलक जाते हैं आँसू जब ज़ज्बात बता देते

लोग बात बात में बहाने लगते हैं आँसू क्यों
वे सीधे दिल की ही बात क्यों नहीं बता देते

आँख नम हों तो समझने की बात है मग़र
आँसुओं की झड़ी हो कुछ भी नहीं कर पाते

आँसुओं की सच में अगर होती कोई क़द्र यहाँ
हम भी शायद सैलाब यूँ आँसुओं के बहा देते

संभाले रखना इन आँसुओं को अपने ज़रूर
अकेले में फिर भी कभी ये बड़े काम हैं आते

Loop


People spoke
So high of you
When
You had so much
To offer them
Tangible and intangible
Or be it symbolic
To handhold them
Now
They shrug
Their cold shoulders
Try finding faults with
Waiting to revere
The next person
And getting to
Loop in the cycle

Alright

When around you
Everything is alright
World smiles with you
When things are bad
Around you
Half the World
Smiles at you
That’s the time
You need to smile
Just like before
As if
Everything around you
Is or will be
Alright!

Saturday, August 17, 2013

देवभूमि के सरमाये

कुछ भी नया नहीं है
हर साल झेलते आये
बस ये आपदा बड़ी थी
तुम खुद भी देख पाए

हर हाल अपने दम पर
सदियों से जीते आये
एक आह तक नहीं की
तुमको बता न पाए

नदियाँ हों या शिखर हों
हम बस पूजते थे आये
हर ओर मंदिरों में घर में
पूजन हैं करते आये

हम देखते रह गए थे
तुम कुदरत से खेल आये
कुछ तुम तो साथ हम भी
मंज़र समझ न पाये

हम उनके दुःख में शामिल
मेहमाँ जो बन के आये
अब भी भरोसे खुद के
पर तुमको संभाल लाये

हम आपदा के बीच में भी
जीवन के गीत गाते आये
अब तुम भी संजीदगी से
दुःख दर्द समझ हो पाये

फिर आते रहना मिलने
अपने भी हैं यहाँ पराये
आंसू छिपे रहेंगे तब भी
देखो इनकी खुशियों के साये

हिम्मत भी देख लेना
हम फिर संभाल लाये
साझा हैं हमवतन हैं
ये देवभूमि के सरमाये

Thursday, August 15, 2013

Converting / तब्दील

यूँ मायूस होने से हासिल कुछ नहीं
आज कुछ न सही कल की भी बात है
हार को जीत में तब्दील कर देना भी
तहज़ीब और तरक़ीब की ही बात है
Nothing will be achieved by showing gloom
If not today it's still a matter for tomorrow
Converting defeats in to the victory as well
Is a matter of courtesy and methods flow

बागबाँ

बागबाँ की हो शिरक़त चमन में ज्यों
क़ोशिश वतन में सबकी होनी चाहिए

खून से हासिल किया पुरखों ने जिसे
अब सींचना ये गुल वतन तो चाहिए

वतन की आबरू अब भी खतरे में है
नौजवानों को अब तैयार रहना चाहिए

शहादत की न सही आराम की बस
क़ीमत तो कुछ यूँ भी चुकानी चाहिए

कल को कैसा बनाना चाहते हो तुम
आगाज़ की शिद्दत तो दिखानी चाहिए

अस्सलामें ताजदारे जर्मनी ऐ हिटलरे आजम


अस्सलामें ताजदारे जर्मनी ऐ हिटलरे आजम
( annonymous poem written during W-War II..was proscribed)
फिदा-ए-कौम शेदा-ए-वतन ऐ नैयरे आजम
सुना तो होगा तू ने एक बदवख्तों की बस्ती है
जहां जीती हुई हर चीज जीने को तरसती है
जहां का कैदखाना लीडरों से भरता जाता है
जहां पर परचमे शाही फिजां पर सनसनाता है
जहां कब्जा है सीमोजर्क चोरों का
जहां पर दौर दौरा कमबखत मक्कार गोरों का
वो बस्ती लोग जिसको हिन्दोस्तान कहते हैं
जहां बन बनके हाकिम मगरबी हैवान रहते हैं
मैं आज उन बदबख्तों का अफसाना सुनाता हूं
वतन की रूह पर चंद खून के धब्बे दिखाता हूं
हमारे मुल्क में भी पहले कुछ जांबाज रहते थे
वतन के हमदमो हमसाज रहते थे
जिन्हें चलती हुई तलवार से डरना न आता था
घरों पर बिस्तरे आराम पर मरना न आता था
गरज ये साम्राजी भेड़िया झपटा जवानों पर
गिरी बिजली हमारे खिरमनों पर आशियानों पर
लुटेरों ने हमारे दुख्तरे ईशान को लूटा
वतन की रूह को लूटा और आन को लूटा
सुना है हिटलर दुश्मने हिंदोस्ता भी है
हमारे खुश्क खिरमन के लिए बरके शयां भी है
यकीं रख हिंदियों की दुआएं साथ हैं तेरे
दिले बीमार की टूटी सदाएं साथ हैं तेरे
कसम तुझको शिकस्ते फास की ऐ नैय्यारे आजम
कसम तुझको करोड़ों लाश की ए हिटलर ऐ आजम
खबर लेने बकिंघम की जो अबकी बार तू जाना
हमारे नाम से भी एक गोला फेंकते आना
वक्त लिख रहा है कहानी एक नए मजमून की
जिसकी शुर्खी को जरूरत है तुम्हारे खून की

Tuesday, August 13, 2013

दुश्मन क़ौम के


करोड़ों अब भी ग़ुरबत में
सब उन्हीं का नाम लेते हैं
उन्हीं के नाम पर सब ही
अपना ही ईमान खोते हैं

जिन्हें देखो ज़िरह करते
बस आज़ादी नाम लेते हैं
शहर से गाँव तक लेकर
मिलकर भ्रष्टाचार करते हैं

कई नेता बड़े अफ़सर भी
अपनी ही रोटी सेंक लेते हैं
कारिंदे और बिचौलिए भी
अपने भ्रष्टाचार में लिपटे हैं

सियासत की हकीकत से
यूँ अपने ही गुल खिलाते हैं
वतन के रहनुमा बन कर
उसी में बस खेल खेलते हैं

कई रंगों में रंगकर ये सब
वतन को खूब आजमाते हैं
आज़ादी आज़ादख़याली है
इसे सब इस्तेमाल करते हैं

हमारे ही आस-पास हैं रहते
दुश्मन यही सब क़ौम के हैं
हौसले इनके बढ़ते जाते हैं
क्यों कि हम चुप से रहते हैं

अनदेखा


तुम्हें नहीं मालूम इस मासूमियत से
कितने रंग बनते बिगड़ते थे चेहरों में
मेरे सभी अल्फ़ाज़ तक थम से गए थे
ऐसा कुछ ठहराव था तुम्हारी बातों में
मेरी नज़रें तो बस अटक सी ही गई थीं
ऐसी गहराई समाई तुम्हारी आँखों में
देखते रहने का आभास तो होगा तुम्हें
हाँ अनदेखा करना तुम्हारी फितरत में
बस भुलाये से भी भूलता नहीं है अब
न जाने क्या बात थी तुम्हारे चेहरे में

Monday, August 12, 2013

Assorted Quartets

कभी दीदार के लिए तरसने की दुहाई देने वाले
आज हम से नज़र मिलाने से भी करते हैं परहेज़
हम फिर भी उम्मीद रखते हैं उनके वापस आने की
उन्हीं के लिए संज़ीदगी से रखे हैं ज़ज्बात ये सहेज़
Once who sweared by dying of a glimpse of mine
Now tries hard to avoid even eye contact with me
I still have hopes of him coming back by my side
For him lone I have kept secure all emotions of me

तुम जो चाहे करो हमने कब सरोकार रखा है
हमारे मुस्कुराने से तुम्हें मग़र ग़ुरेज़ क्यों है
तुम जो भी समझो हम इसलिए मुस्कुराते हैं
क्यों कि हमें खुश रहना बड़ा अच्छा लगता है
Whatever you may do I never expressed concerns
Bur why you have issues with my smiling methods
Whatever you may think about reason of my smiles
I bear smiles 'cause I like to experience happiness

बड़ी कुर्बानियाँ दी थीं कौम ने आज़ादी के लिए
अब हम हैं शायद मक़सद भी भूले आज़ादी का
आज़ादी कुछ इस क़दर इस्तेमाल की गई यहाँ
लोग मतलब ही भूल गए हैं इधर आज़ादी का
Great sacrifices were made by people to attain independence
And we seem to have forgotten the purpose of independence
The way we all have used here the same very independence
People seem to have forgotten the meaning of independence

हाँ आज भी याद हैं वो शबाब के दिन हमको
जब तुमने मुड़ के भी कभी देखा न था हमको
ज़ीस्त की राहों में अब भी तलाशते हैं तुमको
तुम्हारे एक दीदार की क़सक आज भी हमको
Yes I still remember those days of adolescence
When you turned to look at me not even once
On the paths of life I try finding you even today
Longing for one glimpse of yours is even today


दुनियाँदारी ले जाती है हमें इधर - उधर
कहाँ कहाँ हमारे ख़यालात गुजर आते हैं
जहाज के पंछी जब हैं तो जायेगे किधर
फिर लौटकर वही जहाज पर आ जाते हैं
Worldly things do make us all wander
Where all don't our thought squander
Like birds on the ship thoughts all are
Keep returning back to the ships here

किसी के वास्ते कब कोई होता है फ़ना यहाँ
किस्सों में तो मग़र हाँ सुना है मैंने भी ज़रूर
एक अनकही दास्ताँ है मेरे दिल में बदस्तूर
आज न सही कल मग़र बताऊंगा मैं ज़रूर
Not really people do die for someone else
I have also sure heard in tails or hearsay
An untold story is still intact in my heart
If not today I shall reveal that some day

इब्तदा तो तुमने की थी अंज़ाम तक न पहुंचा पाए
कुछ कमी तुम में थी कुछ हालात भी बदल न पाए
ग़म की कोई बात नहीं फिर भी बस तसल्ली रख लो
इस पार बैठे यहीं हैं तुम मँझधार तक तो पहुंच पाए
You did make a beginning but could't just find finishing
You had some weakness some circumstances adverse
No reasons to get saddened just be satisfied with thing
Others stayed back here unlike your midstream course

मालूम है किसी बहाने से करोगे मेरा विरोध
नहीं लेना चाहते बस हम कोई भी प्रतिशोध
एक नासूर की तरह है तुम्हारा यह प्रतिरोध
अब छोड़ दिया हैं मैंने लगाना कोई अवरोध
I'm aware by any means you will oppose
Yet I would never like to take any revenge
Like an incurable canker is your resistance
I have stopped all obstructions just repose

यूँ तुम कुछ कहोगे हम कुछ कहेंगे
न जाने हम दोनों क्या समझ लेंगे
जब भी बात होगी अधूरी ही रहेगी
कभी जब मिलोगे तभी बात होगी
This way you to say something some I will
I wonder what you understand what I will
Whenever we talk will remain incomplete
When we would meet then we talk in full

कुछ तुमने कहा कुछ हमने कहा
चलो आज हिसाब बराबर ही रहा
कुछ हमने सुना कुछ तुमने सुना
सवाल बाक़ी रहा किसने क्या गुना
You had said some I had uttered some
And the reckoning thus remained equal
I had heard some you did hear some
What was imbibed question remained

ये तो तुमको लगता है यहाँ कि
अँधेरे दूर करने शमाँ जल रही है
तुम्हारी ही लगाई आग में जल
तुम को ही फिर रौशनी दे रही है
That is what you might be thinking
To remove darkness glim is lighting
Actually burning by your own lit fire
It's making your bright surrounding

यूँ मायूस होने से हासिल कुछ नहीं
आज कुछ न सही कल की भी बात है
हार को जीत में तब्दील कर देना भी
तहज़ीब और तरक़ीब की ही बात है
Nothing will be achieved by showing gloom
If not today it's still a matter for tomorrow
Converting defeats in to the victory as well
Is a matter of courtesy and methods flow

तुम लेते रहना हर क़दम इम्तेहान
हम अपना यूँ ही सब्र बनाये रखेंगे
तुम चले जाओ चाहे किसी जहान
तुम्हें इन आँखों में ही बसाये रखेंगे
You keep testing me like this as ever
I shall maintain my patience like this
Whichever World you might leave for
I will keep and behold you in my eyes

Sunday, August 11, 2013

ab initio

I looked for advice
Allover and from many
And I then got
Responses so many
Varied and weird
Good and bad ones
Confusing me altogether
Nothing befitting for
My plan and intentions
When nothing worked
I looked for advice
Within me
My conscience
Taking a call
Of my intuition
I got my advice
We choose not to
Take it as first option
Undermining self
And get proofs of
Getting wrong
Ab initio!

Friday, August 9, 2013

Fringe Benefits

It's time about
To realize
Of good thinking
And at least
All it's unknown
Fringe benefits
That calms us all
In body and soul
Without any
Feelings of guilt
That slowly kills
The soul of people
And individuality
Getting isolated
What's good is
As commonly felt
Collectively!

ज़ीस्त की महफ़िल


है देश यहाँ है देश उधर भी
ये परिवेश है जाना पहचाना
कौन न जायेगा उस पार कहे
सवाल है बिलकुल बचकाना

ये भी सच और वो भी सच है
दुनियाँ ये है बस आना जाना
दो दिन का है सब इधर उधर
कहीं हँसना यूँ हो चाहे हो रोना

यूँ ज़ीस्त के रंगों की महफ़िल
बस हँस लो जीना हो या मरना
मर के जी लो हँस के मर लो
है कौन किसे है किसने पहचाना

ईद और तीज मुबारक़


अब यहाँ अब बारिशों के मौसम बदल रहे हैं
ईद और तीज की दुआओं के दौर चल रहे हैं
तुम तो चले गए मंज़र से अचानक लेकिन
हम अब भी तुम्हें यहाँ नए हाल सुना रहे हैं
कहीं किसी फ़लक़ के कोने तक भी शायद
तुम्हे अब भी यहाँ के ख़्वाब दिखाई दे रहे हैं
पहुँचती तो होगी हमारे अल्फ़ाज़ की ये गूंज
हम यही सोच कर तुम्हे मुबारक़ भेज रहे हैं

Thursday, August 8, 2013

कशीदाकारी

लोग अब यहाँ बेच रहे हैं
अपने ईमान के साथ साथ
मुल्क़ और इसकी हकीकत
हर रोज़ परीक्षा ले रहे हैं
हमारी सहनशीलता की
हर पल हमें आजमा रहे हैं
सब कुछ साफ़ कर सफ़ाई में
लफ़्ज़ों की कशीदाकारी से
अपने हुनर दिखा रहे हैं
हम अब भी इत्मीनान से
अपने पूरे होशो हवास में
मुस्कुराये जा रहे हैं

War and Peace


Wars never solved any issues
Peace never cam permanently
Weird are their movement too
The often move in tandem too
With the outbreak of the wars
Efforts of peace too get started
With the peace just prevailing
Seeds of wars are also sowed
Everyone here swears by peace
Yet they just threaten of wars
On the whole it’s all squared up
Both side lose in war and peace
Its bit more voluntary sometime
When we refer about the peace
So why can’t people compromise
Voluntarily like in case of peace!

Wednesday, August 7, 2013

अमन की बदहाली का दर्द


अमन की बदहाली का दर्द
कुछ इधर भी है उधर भी है

अपने अपने हिस्से की लोग
करते हैं सियासत बस यहाँ
सियासतगर्दों का ये असर
कुछ इधर भी है उधर भी है

अपनी ही बात को दोहराते
अब जान बूझ कर सब लोग
अवाम में मोहब्बत में कमी
कुछ इधर भी है उधर भी है

दिल के ज़ख्मों का दर्द अब
लाइलाज़ समझते कुछ लोग
पर मरहम मलने का इरादा
कुछ इधर भी है उधर भी है

अमन की बदहाली का दर्द
कुछ इधर भी है उधर भी है

अहले वतन

हसरतें लाख क़ोशिश कर भी दफ़न हैं
हम वो हैं जो ज़िन्दा ही ओढ़े कफ़न हैं

साँस लेते तो हैं पर बड़ी मुश्किल में हैं
ज़मीन न सही खुली हवा में दफ़न हैं

हर कोई ही किसी की ख़ातिर उलझा है
हर ओर गवाही सी देता यहाँ दफ़तन है

बस एक खुदाई क़रिश्मे की तलाश है
ज़िन्दगी जीना भी यहाँ तो औसतन है

जाने हम कितनी दास्ताँ समेटे हुए हैं
कोई और नहीं हम ही अहले वतन हैं

ख़्वाब

हर पल तेरा ही नाम तेरा ही सुरूर है
बस किसी मोड़ पर मिलना ज़रूर है
तेरे नाम से जुड़ गई हैं कितनी बातें
जाने कितने मेरे दिन कितनी रातें
अब न कहूँगा जो भी यहाँ दस्तूर है
हाँ थोडा सा तो ये दिल भी मगरूर है
सितम बेवफाई के जितने चाहे करो
बस एक बार तुम भी ठंडी आह भरो
मेरे अरमान भले रह जाएँ प्यासे ही
दुआ है तुम बने रहना अपने जैसे ही
मोहब्बत की खाई हैं इसी की क़समें
बस ज़िन्दगी यहाँ अपनी ही तुम में
ख़्वाब हो तो ख्वाबों में सही सच है
बस किसी मोड़ पर मिलना ज़रूर है

Tuesday, August 6, 2013

सरगम


देखोगे अगर तो
दिखेंगे रंग कई यहाँ
समझना चाहो तो
समझ जाओगे
नायाब नेमतें यहाँ
सुनोगे जब तो
सरगम का संगीत है
गुनगुनाओगे तो
ज़िन्दगी गीत है
कहोगे खुल के तो
सतरंगी ज़िन्दगी कहोगे
देखा जाए तो
आखिर जो कुछ भी है
यही तो है ज़िन्दगी

Sunday, August 4, 2013

तुम्हारा साथ

जब से महके
बागबाँ में फ़ूल
ये मन भी हुआ
गुलो गुलज़ार
तब से चाहा
तुम्हारा साथ
ये मन हुआ
ख़ुद से बेगाना
अब न रहा
मौसम बहार का
न ही रहा
तुम्हारा साथ
ये मन हुआ
बस बेज़ार
फिर भी
यही है तमन्ना
मौसम बदले
फिर गुल खिलें
और फिर से हो
तुम्हारा साथ!

Saturday, August 3, 2013

Durga Shakti's Case Mirrors the Growing Menace of 'Fool of Law' in Governance

I am a staunch supporter and ardent follower of the very important and decisive role of the Civil Service in any country. In the South Asia subcontinent the legacy of the British rule left very rich traditions of the Civil Service. Integrity, neutrality, honesty were the important virtues among the civil servants. The new constitutions after independence also provided scope and safeguards for retaining these core values among the civil servants.

Apart from India, almost all countries in South Asia saw erosion of these values among the civil servants and the politicians or the rulers overpowering the bureaucracy in these countries. The problem then became bad to worse and in most countries politicians have made the civil service as subservient to interests and designs of politicians.

India still has great civil service traditions left and the majority of the civil servants are sensitive, professional and neutral. However, the bureaucrat-politician nexus developed in the field; later strengthens at the provincial and national capital at times. But all this within the boundary of the tenets of good governance and civil service neutrality. Nonetheless, media has never put focus on the right people and right systems and only highlights the wrongdoings and angles of corruption stories; that has good new value for them!

The growing muscle and money power in politics has made the politicians arrogant and flouting the rule of law (and getting away with that)! This has taken a toll on the civil servants and their freedom of being responsible officers within the rule of law. In provinces like UP, Bihar, West bengal, Rajashan, Haryana, Punjab and their likes, the erosion of standards of propriety have been evident.

The net effect of the growing menace of the persecution and harassment of the good civil servants is the increase in the cases of graft, corruption, nepotism and the ever increasing fiduciary risk!

Herald Laski had said,' Let the fools contest; whichever administered well is the best government!' It's so apt in these circumstances for making a resolve by nations to strengthen the role and neutrality and integrity of the civil service.

The case of Durga Shakti Nagpal, a young IAS officer,(NOIDA in India) is a telling example of the political highhandedness and failure of rule of law. The sting bytes and arrogant disclosures of their power by the politicians have proved that the performing the tasks and living up to the reasonable responsibility entrusted on them by the government and Constitution of India. The open support and intervention by the central government and the judiciary also leaves much to be desired. In cases of such blatant exhibition of power any one should have taken suo moto cognizance on the matter.

I salute you and your commitment to duty Durga; you are the shining example of the traditions of the Indian civil service and a role model for many to emulate. Goodness prevails and evil loses always that's what we have been grown up reading aand so shall it be in your case also. Amen!

Law will takes its own course, meanwhile some people should definitely not be allowed to make 'fool of law'!

Friday, August 2, 2013

Our Ways


When the chips are down
Each one begins to frown
The matter might be small
Yet people don’t take a call
Our Life and deed sure ours
Few help needed of others
When comes to people sulk
Forget they received in bulk
As if you distantly knew me
I alone have to seek help me
I will shoulder responsibility
Albeit you lost opportunity
Of proving your personality
Lost all your respectability
Like all I can come out of it
Will bear not a grudge a bit
Bank on me in any difficulty
Find me other than majority
You chose to go your ways
I will always retain my ways