Friday, January 31, 2014

अज़ीब बात

है ना अज़ीब बात!
मैंने जाना था जिसे
चेहरा एक
कोई जाना पहचाना
और जाना था उसे
अपना ही अपना
अपने ही क़रीब
मानो हमेशा से
मेरा चिर-परिचित
दूर था जब तक मुझ से
मगर नज़दीक़ से
बिलकुल उलट था सब
निकला कोई अक्स
एक अज़नबी का

Wednesday, January 29, 2014

अनायास ही

फिर यहाँ मेरे पास
हवा का झोंका आया
सर्द एहसास की
दे गया सिहरन सी
फिर भी यूँ
गुदगुदा सा गया
बालों से मेरे ही
मेरे ही चेहरे को
मैं बरबस ही
सँभालने लगी
बालों को अपने
फिर छू कर
मेरे हाथ गालों से
करा गए एहसास
तुम्हारे हाथों का
मानो यादों थीं
चली आईं अनायास ही
कोई बिस्मृत सी

Tuesday, January 28, 2014

सवाल नए-पुराने

नहीं! ये सपना नहीं था
नींद में भी सुनाई दी थी
आवाज़ कोई पहचानी सी
फिर खुली थी नींद मेरी
आँखें अलसाई सी थीं
कोई धीमी आहट सी थी
मैंने देखा था चुपके से
मेरे दरवाज़े पर शायद
चाँदनी दस्तक दे रही थी
दरवाज़ा खुलते ही बस
हर ओर बिखर गई थी
नींद से हक़ीक़त तक
सब रोशन कर गई थी
फिर भी न जाने क्यों
कई सवाल नए-पुराने
मेरे जेहन में ले आई थीं

Translucence of Mind

The Moon is grounded
And is in front of me
I can see it from here
Sitting on tree-house
Clouds being umbrella
Saving from dew drops
A bit of it is drowned
In the water of lake
Overlooks surrounding
And the coconut palms
Causing thus a mirage
Somewhere in thoughts
And deep visualization
As a consequence then
A feast to the eyes
Be it temporary thing
Or translucence of mind

Wednesday, January 22, 2014

अजीबोग़रीब

सब खिले-खिले से रंग हैं यहाँ
फिर भी ये शहर उदास सा है
ज़िन्दगी के प्रश्नों में उलझा
हर कोई यहाँ बदहवास सा है
हर शख्स के चेहरे से झलकता
एक अजीबोग़रीब तनाव सा है
जो न मिल पाता कभी उसका
शायद अब भी इंतज़ार सा है
अपनी हैसियत से कुछ ज्यादा
पाने का सब को खुमार सा है
गुजर गए वो खुशहाली के पल
जिनका ख़याल बेशुमार सा है
उन खोये हुए पलों का अब भी
मनों में बसा एक आकार सा है
कुछ उलझ गए मसलों का भी
सुलझने का आग़ाज़ बाक़ी सा है
अंधेरों के बीच छुपे उजालों का
अब भी बाक़ी यहाँ इंतज़ार सा है

Saturday, January 18, 2014

तुम्हीं कहो

अब तुम्हीं कहो
धूप कहाँ मिलेगी
इस घनी बारिश में
सूरज को पकड़ लाता
मेरे वश में होता अगर
लेकिन क्या करूँ मैं
मेरी तो बस सीमायें हैं
नन्हीं चींटी की तरह
बेवज़ह कोशिश करना
असंभव को उठा लेने की
कोई रास्ता नहीं है यहाँ
धैर्य बना रखने के सिवा
शायद कल धूप निकले
मेरा भी बस अनुमान है
बिलकुल तुम्हारी तरह
अब तुम्हीं कहो

Tuesday, January 14, 2014

बस अपना काम

तुम शायद सोच रहे थे
मैं आसमान छूना चाहता हूँ
या उसे झुकाना चाहता हूँ
तुमने कोशिश नहीं की
शायद ये जानने की
मेरे ये झुके हुए हाथ
बहुत थक गए थे
काम के बोझ से ये
एक ही अवस्था में झुके
बदलाव माँग रहे थे
मैं इन्हें उठाना चाहता हूँ
वो भी बस अपने लिए
फिर भी आश्वस्त हूँ
तुम्हें उम्मीद है मुझसे
कि मैं आसमान छूना
और झुकाना जानता हूँ
मैं तो ज़मीन पर खड़ा
बस अपना काम जानता हूँ

Saturday, January 11, 2014

आधे-अधूरे

अधूरी आशाएँ
अधूरी चाहतें
अधूरी ख्वाहिशें
अधूरा वज़ूद
आधी ज़िन्दगी
फिर भी
रास्ते अब यहाँ
आधे से आगे हैं
ज़ज्बा पूरा है
हौसले बाक़ी हैं
भरोसा पूरा है
जितने भी दिन हैं
अब भी पूरे हैं
हम आधे-अधूरे नहीं
बिलकुल पूरे हैं

Friday, January 10, 2014

Added Delight

I know I like to suck on you
For that sweet tasty nectar
But as a returning gesture
I always carry your pollen
To make sure your clan grows
And offers the exotic food
To all those species like me
Who would also help out you
Attracted by colors or looks
That you offer to all those
Like me as an added delight
What on Earth can be a better
Symbiotic ways like me and you


Saturday, January 4, 2014

नज़ाक़त

सदियों से चली ये बात थी
ये दुनिया सर झुकाती थी
तुम्हारी नज़ाक़त के सामने
तुम्हारी मग़रूर नज़ाक़त
बन गई थी एक इम्तहान
तुम्हारे ही सब्र का शायद
शिक़स्त भी डरने लगी है
तुम्हारे हौसलों से रुबरु हो
अब हक़ीक़तों के सामने
फिर भी बनाये रखना तुम
सहेज कर नज़ाक़त को
इसकी भी अपनी जगह है
जैसे मुस्कुराहट के मायने