Saturday, January 31, 2015

सरफिरे हम से

हम सरफिरे हैं
अपने हित, सुख
नहीं है एकमात्र
प्रयास और साधन
हमारी नज़र में
सामाजिक प्रगति के
हम समष्टिवादी हैं
हरेक का हित-साधन
वष में न सही हमारे
प्रेरक और माध्यम
हम बन सकते हैं
यक़ीन है हमको
यूँ भी हमारी नज़र में
अनेक के आगे
सिर्फ एक का विकास
गौण, अनअपेक्षित है
इसी पर सँसार टिका है
हमारे प्रयास हों
कम से कम
औरों के लिए भी
आस-पास अपने
चाहिए सँसार को
आज और ज़्यादा
सरफिरे हम से

Friday, January 30, 2015

क्या यही प्यार है

हल्का सा नशा है थोड़ा खुमार है
दिल पूछता है क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है
प्यार में भीगी सी पवन चल रही है
हौले हौले मीठी सी कोई धुन बन रही है
बेकरारी में भी क्यों ये करार है
क्या यही प्यार है
दिल की धड़कनें कुछ कह रही हैं
गीत बनने को अल्फ़ाज़ कह रहे हैं
मौसिकी का छाया ये बुखार है
क्या यही प्यार है
तन-मन मचल कर आस कर रहे हैं
अंगड़ाइयों के सिलसिले चल रहे हैं
वक़्त के बढ़ने का बड़ा इंतज़ार है
क्या यही प्यार है

Thursday, January 29, 2015

चलता है

बस एक है क्रम हर दिन का
दिन भर चल रोशन सब कर
यूँ शाम को सूरज ढलता है
चाँद भी अगर रोशन कर दे
सूरज की कोई परवाह नहीं
हो जाये यहाँ जब जो भी हो
परवाह नहीं सब चलता है
कोई कुछ कह कुछ कर ले
ऐसा ही सब कुछ मिलता है
खाना न मिले बस पीना हो
कुछ न किसी को खलता है
हर दिन सपने संघर्ष भी हैं
इनसे यहाँ जीवन चलता है

सवालों के घेरे में

चाहते है लोग
अपनी अंतर्व्यथा और
खीझ मिटाने को
औरों को रखना
सवालों के घेरे में
लेकिन वो लोग
भूल जाते हैं प्रायः
केंद्रित रहना
सवालों के दायरे में
औरों की जगह
स्वयं आ जाते हैं
सवालों के कठघरे में
और फिर
गूंजती हैं आवाज़ें
औरों की
और सब की
सवालों के कहकहों में

अनवरत

विकल्प दर विकल्प
जाल से फैलाते
सियासी लोग और दल
स्वप्नवत दीखते
लोक लुभावन नारों
और आकांक्षाओं के
पीछे भागने को
प्रतिपल तैयार
जनता के हुजूम
बदहवास सी जनता
बेहाल परेशान
अनवरत फंसती जाते
सियासी प्रपंचों के
उनकी एकरूपता के
ज़हर बुझे वादे
वीभत्स अंतर दिखाते
करनी और कथनी का
लोकतंत्र के विकारों से
लाभ उठाते
स्वार्थ सिद्धि के
समागम बनते जाते
सभी विकल्पों का
अनवरत!

Wednesday, January 28, 2015

बड़े प्यार से

हम भी जानते हैं
मालूम है उनको भी
मन के साफ़ नहीं हैं
सफ़ेद पोशाक में भी
मुस्कुराते रहते हैं
वो ख़फ़ा होकर भी
बड़े नाटकबाज हैं
हम सब समझते हैं
ये जान कर भी
बड़े प्यार से मिलते हैं
अंदर ज़हर होकर भी
क़ायदों की कसमें खाते हैं
उनको न मानकर भी
ख़ुद के क़सीदे पढ़ते हैं
सरफिरे होकर भी

Monday, January 26, 2015

बिसरा सा गीत

भूला सा मधुर गीत कोई
मेरे कानों में मंडराता
कोई पुरानी सी धुन का
हमेशा गाये जाने वाला
शब्द अब अस्पष्ट से हैं
अनाथ सा होता वो गीत
जो कभी था अमर संगीत
विलुप्त होता और जिसका
श्रेय लेने-देने वाला नहीं
कैसे संभालोगे धरोहर
प्रचलन में समाप्तप्राय
तथाकथित अमर गीत
गुनगुनाने को ही सही
मेरा बिसरा सा मधुर गीत

वाह वतन

फ़ख्र की बात है
लाखों ग़म सही
तो करोड़ों खुशियाँ हैं
हज़ार हैं मसले
लेकिन फिर भी
इत्तिहाद काफ़ी है
ख़ूब संजोकर रखा है
वतनपरस्तों ने
वाह वतनपरस्तो
वाह वतन

Tuesday, January 20, 2015

चुनावी चक्रवात

बिगुल बज चुका
अब शोर है
रणभेरियों का
क्या मालूम
कौन बचेगा
किसका घर
उजड़ जायेगा
चुनावी माहौल के
अब के नए
चुनावी चक्रवात में
फिर एक बार
उम्मीदें होंगी
आसमान की
ऊंचाइयों पर
हासिल होगा
किसको क्या
ये वक़्त बताएगा
कौन मोड़ पायेगा
जनता का फैसला
जनता के हाथों
अपनी ओर !

मिट्टी के सरमाये

कितने क़िले फ़तह कर लिए तुमने
मन में निराशा के बादल छाए क्यों हैं
दौलतें सब समेट क्या समझ पाये हो
आज भी ये मिट्टी के सरमाये क्यों हैं
So many forts won over by you
Why clouds of pessimism within
Collecting all riches of World
Why still exist capital of clay


जय स्वराज


जल स्वराज, नल स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
बल स्वराज, छल स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
'कल' स्वराज, कल स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
धन स्वराज, प्रबल स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
जन स्वराज, मन स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
मत स्वराज, बहुमत स्वराज
जय स्वराज, जय स्वराज
नेति नेति, पर है सुराज
जय स्वराज, जय स्वराज


Monday, January 19, 2015

Clean India and World स्वच्छमेव जयते

Cleanliness and hygienic surrounding is a necessity and need both, in order to live a good and civilized life! Those who don't want to clean their surroundings can choose not to make them dirty either! You don't need anyone to tell you the importance of cleanliness; unless you don't understand the difference between the humans and animals!

I have take the pledge to keep my surrounding, myself and my mind clean and good; it helps both me and the society. You too can take the similar pledge' just as a reminder and point to note for action! स्वच्छमेव जयते.. May the cleanliness be victorious! Best :)



Sunday, January 18, 2015

औरों की पीठ पर

प्रगति के युग में
बदल गई हैं सब
परिभाषायें आजकल
सरसों नहीं उगाते
अपनी हथेलियों में
अब लोग बस
चाहते हैं स्वयं
ऊपर जाना
चढ़ कर यूँ
औरों की पीठ पर
कि वह नीचे रह जाए
मैं ऊंचा उठ कर
देखते रहूँ इतराते
वहाँ से सबको

Monday, January 12, 2015

इंसान की फितरत

मछलियाँ पेड़ों पर बसेरा कर लेंगी
सारे दरिया रेत ही रेत हो जायेंगे
सातों समन्दर सब सूख जायेंगे
ज़मीन-आसमान एक हो जायेंगे
पंछी उड़ना भूल बस दौड़ने लगेंगे
हाथी शिकार कर भोजन खायेंगे
शेर घास खाकर चूहों से भी डरेंगे
संसार के सब नियम बदल जायें
पर इंसान फितरत न बदल पायेंगे

Saturday, January 10, 2015

संसार का मर्म

सब से अलग नहीं
उन जैसा ही हूँ मैं
कोई शिकायत नहीं
ऐसा भी नहीं
ज़िन्दगी में अपनी
फिर भी यहाँ
जो भी जैसा मिला
अपना लिया मैंने
पसंद-नापसंद नहीं
अपरिहार्य को समझ
शिरोधार्य कर लिया
मुस्कुराते हुए ही
समझ लिया मैंने
संसार का मर्म
खुशियों से महका
घर आँगन मेरा

Friday, January 9, 2015

पराकाष्ठा आस्था की

क्या करूँ
इस प्रश्न का
जो बस आता है
मन में मेरे बार-बार
पूछता है मुझसे
क्यों कहते तुम
आस्था के दीवानों से
जरा बता दें वे
क्यों है दुराव
मन का उनके
अपने ही व्यव्हार से
क्यों फ़र्क़ है उनकी
कथनी और करनी में
कहने को सब कहते हैं
सब का ईश्वर एक है
फिर क्यों लाते हैं
ये सारे भेदभाव
धर्म की आड़ में
विकृत समझ से
या फिर कोई खोट है
उनकी समझ में
स्वयं से पूछते क्यों नहीं
क्या है पराकाष्ठा
उनकी आस्था की !

Wednesday, January 7, 2015

नहीं बदला कुछ

प्रचार-प्रसार बड़ा है
सब कुछ बदल रहा है
क़रीब से देखता हूँ
तो ऐसा लगता है
नहीं बदला है कुछ
यहाँ आज भी
मुखौटे लगा लिए हैं
बस कुछ लोगों ने
लीपा-पोती हुई है
कई प्रकार की
पुरानी मानसिकता है
स्वभाव कहाँ बदले हैं
जाति, धर्म, वर्ग
इनके अंतर्द्वंद
और इनके संघर्ष
सब काफी कुछ वही है
निष्कर्षतः आज भी

Saturday, January 3, 2015

साँसों की भाषा

नयनों का छल हो शायद तुम मेरे
सोये जागे आ जाते सम्मुख मेरे
बस एक झलक ही देखा था तुमको
क्या मालूम होश था नहीं था मेरे
बस पलक झपकते छला तो क्या
नस-नस क्यों छाते हो यूँ तुम मेरे
मैं भोला था कुछ था निःशब्द सा
क्यों बन शब्द आते लवों पर मेरे
साँसों की भाषा नहीं समझता मैं
क्यों तरंग बन छाते साँसों में मेरे

Friday, January 2, 2015

अपना-अपना

जो भी है सब
कर्मों का लेखा-जोखा है
मत भूल जाना
इन गलियों से
तुमको भी तो है
एक रोज़ गुजर जाना
जो चाहो कर लो
कोई बोझ लिए
लेकिन मत जाना
फ़र्क़ नहीं पड़ता
हमको यूँ भी कोई
सब को है लेना-देना
अपना-अपना