Monday, December 28, 2015

हो नया साल खुशियों का So be the Happy New Year

नई पहल हो नई उमंगें
नया जोश जीवन का
खुशियों की हों यूँ बरसातें
ज्यों सब का आँगन महका
अपना भी कुछ जग का भी
हो भला ये इरादा सबका
रहे प्रेम हम सब में जैसा
सागर धरती और गगन का
मनचाही खुशियाँ ले आये
हो नया साल खुशियों का
May there be new enthusiasm
New zeal towards living
Happiness raining around
Spreads fragrance all over
Some to self some of World
Welfare everyone's motto
Our bonding and love be
Like Ocean, Earth and Skies
May all get desired joys
So be the Happy New Year


Friday, December 25, 2015

बंदगी के नुस्खे

वो करते रहें नफ़रत तो कर के देखें
किसी शोलों से भरे ज़लज़ले की तरह
हम क्यों भटकें भला राह से अपनी
वो रहें अपनी तरह हम अपनी तरह
हम नहीं छोड़ेंगे रास्ता कभी अपना
किसी मोहब्बत के गुमाश्ते की तरह
हमें आता है यूँ इंतज़ार करना ज़रूर
किसी ज़िन्दगी के फलसफे की तरह
ग़ौर से देखो हम नज़र आयेंगे तुम्हें
कोई बंदगी के नए नुस्खे की तरह

Open Minds

Wherever the minds are kept open
Common become all your concerns
Isolated any are not the instance
Everything gets viewed in balance
Problems of others are realized
Nothing is taken as personalized
Things do look in almost harmony
Forgotten are bitter moments any
Kindness brings about the sympathy
Envy thus converts in to empathy
Life sounds in a rhythmic pattern
Problems are taken as a concern
Living becomes story of life's ways
Shocks and gains accepted always
Them becomes us in perspective
Their becomes our and respective
Don't view your role in life a self cult
Keeping minds open not so difficult



Bright

Nothing is universal here
It depends how you reach
Each one sees differently
There may be bright spots
There is sunshine they say
Beneath all the dark clouds
Albeit you can not proceed
Towards the sunshine beyond
Nothing could brighten up
When the darkness prevails

Monday, December 14, 2015

ये रूठना हारेगा

खामोशियों में शिकायत भरी है
जो कहते नहीं हैं अब ज़ुबान से
मालूम है हमें वो रूठे हैं हम से
अब नहीं होगा कुछ मनुहार से
कितनी भी सफाईयाँ दे दें हम
बच न पायेंगे शायद तकरार से
कोशिश में लगे हैं हर तरह हम
आसान कहाँ मनाना प्यार से
रूठना तो हमें भी खूब आता है
अब तो डर लगता है इज़हार से
बस इसी इंतज़ार में बैठे हैं हम
ये रूठना हारेगा ज़रूर प्यार से

Sunday, December 13, 2015

गीत मीठा सा

कौन कली कब खिल गई कौन यहाँ पड़ा बेहोश है
उम्र के रहते ही ज़िन्दगी को आज़माना चाहता हूँ
बंद दरवाज़ों में सिमटी रात आज तक खामोश है
खामोशियों में उसकी मैं हर अदा देखना चाहता हूँ
चाँद दस्तक तो देता है आज भी दहलीज पर मेरी
लेकिन इरादे क्या हैं उसके ये समझना चाहता हूँ
बेवज़ह भटकते रहे हैं मैं भी और मेरे अरमान भी
अब सुकून का कोई आशियाँ मैं बनाना चाहता हूँ
भागती-फिरती दुनियाँ का मैं एक तलबगार सा
चार पल बस आराम के मैं भी बिताना चाहता हूँ
पंछियों के सुरों में कैसी मिठास ये बिखरी पड़ी है
कोई गीत मीठा सा इधर मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

Saturday, December 12, 2015

अँधेरे

अब भी अंधेरों से शायद डरते हैं
तभी हम उजालों की राह ताकते है
रात अब यहाँ अँधेरी नहीं होती हैं
उजले दिन भी घुप्प अँधेरे होते हैं
दिन-रात यहाँ फिक्र की बातें तो हैं
इंसान, इंसान की फिक्र से डरते हैं
दिल अब सब तरफ खो से गए हैं
सीनों में यहाँ पत्थर से धड़कते हैं
दिन के हारे लोग परेशान रहते हैं
रात फिर अपनी क़िस्मत पे रोते हैं
ज़मीन भी कहने से गुरेज़ करती हैं
कि अब भी यहाँ इंसान कहीं रहते हैं

Wednesday, December 9, 2015

समझ लेना

हरेक को है हक़ अपनी बात रखने का
हर बात पर अपनी बात न समझ लेना
रौशनी की वज़ह और भी हो सकती है
हर रात दीवाली की रात न समझ लेना
हुजूम लोगों यहाँ का बनता ही रहता है
जुलूस को अपनी बारात न समझ लेना
तुमको भी मिला हुआ है बहुत कुछ यहाँ
सिर्फ औरों की ही इफ़रात न समझ लेना
अँधेरे तो कभी-कभी दिन में भी दिखते हैं
कहीं दिन को आधी रात न समझ लेना
जो तुम्हारा है उस पर औरों का भी हक़ है
सब कुछ अपनी सौगात न समझ लेना
अमल करोगे तो सुधर जायेगी ज़िन्दगी
कहीं कोरे ही ये ज़ज़्बात न समझ लेना