Sunday, July 31, 2016

दहलीज़

उम्र की दहलीज़ पर
सोचता हूँ मैं भी
एक अरसा गुजर गया
लोगों को देखते हुए
सीमाओं को लांघते
यहाँ अक्सर मेरी
फिर सोचता हूँ
कहीं ज़्यादा है
उम्र मुझसे शायद
मेरे घर की दहलीज़ की
जो ज़माने से देखती है
हर किसी को लांघते
खुद को सारी उम्र
तब लगता है
देखता रहूँ मैं भी
यूँ भी चेतन कम
जड़ ही ज़्यादा हूँ
शायद अब मैं भी


Saturday, July 30, 2016

खट्टा मीठा गीत

एक सफर है खट्टा मीठा गीत है
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

मंज़िलें और भी हैं यहाँ
रास्ते बिखरे पड़े हैं यहाँ
हर तरफ रफ़्तार है यहाँ
रास्तों में मंज़िलें ढूंढते रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

कोई साथी फिर बिछुड़ गया
कोई अपना बेगाना सा हो गया
ये ज़िन्दगी की हकीकत है
इसी की हद में बढ़ते रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

हर दिन नई शुरुआत है
ख़ुशी का हर कोई तलबगार है
हर लम्हा ज़िन्दगी बेशुमार है
अपनी ख़ुशी को संजोये रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

एक सफर है खट्टा मीठा गीत है
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

Friday, July 29, 2016

प्यार तुम्हारा

प्यार तुम्हारा मेरी, साँसों में बसता है
दिल की हरेक ये,धड़कन में रहता है

जब से मिला है हमको, आँखों में संजोया है
दिल में संभाले हमने, हर पल ये रखा है
कैसा एहसास मन का, दिलकश ही रहता है
और क्या मिसाल दें, रग-रग में रहता है

थोड़ा-थोड़ा पागल सा, हम को ये करता है
तन्हाई में अक्सर कोई, मुस्कुराता रहता है
बेकरार आलम में ये कैसा,चैन ले आता है
खोये-खोये लम्हों में, ये यादें संजोता है

प्यार तुम्हारा मेरी, साँसों में बसता है
दिल की हरेक ये,धड़कन में रहता है

Think but Less

Those who all think
They can think well
Should first introspect
About what they think
If they think logically
Can they be objective
Keeping aside prejudices
If no,reduce thinking
For it can be torturous
To self and others too
They can be unreasonable
Think less and be happy
Unless you are a poet
A writer or philosopher
Remember self as ordinary
Neither a saint nor preacher
Less thinking is simplest
And also to accept nuances
Of live, living, people
Be part of Worldly wisdom!



Sunday, July 24, 2016

अपनापन

क़दमों के निशान हम बनाते रहे
न जाने किस बात का भरोसा था
यूँ लगा लोग हमारे पीछे चलते हैं
पीछे मुड़ के देखा तो कोई न था
नसीहत दें हमारी फितरत नहीं
हमें ख़ुद के क़दमों का इल्म था
हम आज भी अपनी जगह पर हैं
हमें हर किसी पर भरोसा जो था
ये दस्तूर नहीं सब रास्ते वही हों
नया रास्ता तुम्हारा भी हक़ था
हमारे साथ सब का अपनापन हो
सिर्फ इस बात का एहसास था

Saturday, July 23, 2016

Opinion

In your opinion
If you say, nothing works here
I would strongly disagree
In my opinion
Things work, albeit not perfect
But you may have a point
Then, I may ask you too
Where does it work perfect?
If you say, things need improve
I would sure agree
Finally, opinions don't work
People and systems work
And question important is
Will you join to make it work
Whatever way you may
If you agree do that
I would sure agree
And respect your opinion

Friday, July 22, 2016

सुख सागर

दुखी राम यूँ दुःख में डूबे
सब जग लगता डूबा दुःख में
ढूँढें दुःख ही चाहे सुख हो
दुखी तभी ये दुखी राम हैं
सुखी राम है सुख का साथी
दुःख से नहिं घबराता है
जब दुःख हो धीरज से अपनी
नैय्या को पार लगाता है
सुख सागर सुख का सागर है
दुःख-सुख एक समझता है
दोनों में एका सा देखे
समान भाव में रहता है
अपना ही अपना ना सोच
सबके सुख-दुःख का भागी है
सुख सागर सुख का सागर है

Tuesday, July 19, 2016

transcending

Transcending your means
In the hope of few gains
Brings nothing important
But a sense of repentence
That you chose wrong path
For the greedy perceptions
For very trifle reasons
Living with more for more
When less can sound more
Requires more to understand
And not to run after World
Worldly things remain behind
Always owned, used by others
When limiting is the limit
Unlimited is understanding
Life sounds sense of living
Your thought sound amazing
The myth is decoded by you
World is no longer a mystery
And you know your own World
Without worrying about World
Transcending Worldly things!


Sunday, July 17, 2016

छोटी सोच

कल की ही बात है
ताना दिया उन्होंने
छोटी सोच वाला
मेरी दृष्टि में तो
शायद अकारण ही
फिर जाना कारण
छोटी जगह से था
धीरे-धीरे वही सब
मुरीद हो गए थे
काबिलियत के मेरी
उन्हें आश्चर्य होता
मेरे ज्ञान और बुद्धि पर
प्रवीण जो हो गया था
अब में अंग्रेजी में भी
अब वो हल्की बातें
हमारे फूहड़ मित्रो की
प्रायः भा जाती थीं
'बड़ी सोच' वालों को
हमारे बचपन के ज्ञान को
वो आज भी नया समझते
और अब समझ गए थे
मेरा स्तर और बड़ी सोच
जिससे वे अनभिज्ञ ही रहे
अपने छोटी सोच के चलते

Saturday, July 16, 2016

वक़्त की दस्तक

यहाँ हर लम्हा देता है
एक नई कोई दस्तक
कुछ आवाज़ों सहित
बाक़ी कई बेआवाज़
लोग अक्सर रहते हैं
बेपरवाह या लापरवाह
दस्तक सुन नहीं पाते
या समझ नहीं पाते
नतीजतन नाख़ुश रहते हैं
कभी खुद पर रोते हैं
या औरों की तरक़्क़ी पर
असरदार होती है
वक़्त की दस्तक
वक़्त पर समझने पर
या वक़्त पर भरोसे से
नई दस्तक की उम्मीद पर


Friday, July 15, 2016

राहत कार्य

जहाँ सिर्फ बाशिंदे रहते थे
आगन्तुक नदारद रहते
अपने भी कम आते-जाते थे
लोग हैरान थे देख कर
अचानक भीड़ हो गई थी
कई तरह के लोग थे
उनके वर्ताव, वेश-भूषा
कौतूहल सा जगा रहे थे
तहकीकात से पता चला
सभी आपदा-सहायक थे
कोई सरकारी कोई अन्य
मीडिया का भी जमावड़ा
बच्चों को उत्सव सा लगा
कई शोध से प्रेरित थे
कुछ दवाइयां और भोजन
कुछ राहत सामग्री देते
वीडिओ, फोटो और सेल्फी
मानो प्रमुख मंतव्य थे
कुछ शाम तक चले गए
अन्य दो तीन दिन बाद
स्थानीय लोगों को मिले
ढेर सारे भाषण , सलाह
अब नेता जी ने आकर
ढेरों आश्वासन देकर
रही कसर पूरी कर दी
गाँव वाले अचंभित नहीं
ये तो पहाड़ों में होता है
लोगों के जाते ही मानो
कुछ आवश्यक नहीं होता
बिजली, पानी, सड़क
फिर से हैं भी नहीं भी हैं
अख़बार वाले और मीडिया
टिपण्णी, तस्वीरों से
बयां करते हैं सब ठीक है
राहत कार्य संपन्न हुआ

Monday, July 11, 2016

नये प्रवाह

समय की गति भी
बहते पानी की तरह
एक बार जो छू लिया
फिर नहीं हाथ आता
स्पर्श का एहसास भी
बदलने सा लगता है
फिर नये प्रवाह का
अलग एहसास है
अपने पास संजोना
संभव नहीं होता है
दोनों ही गतिमान हैं
ठीक जीवन की तरह

नया कल

सिर्फ तात्कालिक ही नहीं
दीर्घकालीन नज़र रखूँगा
अवश्य एक नाता होता है
आज और कल में शायद
आज और कल सम्बद्ध हैं
कल एक नया आज होगा
आज नहीं जो कल होगा
कोई नया आगाज़ होगा
न भी हुआ किसी कारण
फिर नया कल तो होगा
आज से कल की लय में
मैं सदैव आशावान रहूँगा

Sunday, July 10, 2016

अप्रत्याशित

शरारती नज़र डाल
बिंदास अंदाज़ में
कहे थे अल्फाज़ उसने
अधखुले होंठों से
मैं एकदम अवाक् था
अप्रत्याशित से
इस रंग से उसके
शब्द बन नहीं पाये
खुले के खुले मुँह से
बाँहों में भर लिया उसने
आमंत्रण समझ कर
मेरी उस चुप्पी को
सारी ताक़त जुटाकर
धकेला जो मैंने उसको
नपुंसक का ताना देकर
पैर पटकती चल दी वो

Friday, July 8, 2016

भागीदारी

अब कार्यकर्ता नहीं
हर कोई आलोचक है
कर्म प्रधान नहीं है
मानो सब गलत हैं
हर काम में नुख्स हैं
धैर्य से कोई नाता
किसी को मंज़ूर नहीं
आलोचना की हदें हैं
खुद न करो न सही
कुछ उनको करने दें
जो काम कर रहे हैं
आज़ादी अज़ीज़ है
तो बचानी भी होगी
तरक़्क़ी पसंद है
तो आज़मानी होगी
दूसरों की मात्र नहीं
अपनी भी भागीदारी !

Wednesday, July 6, 2016

कुठाराघात

साँसारिक बातें
हावी होने लगीं
विवेक पर उसके
सभी अर्जित ज्ञान
मानो धूमिल था
ईर्ष्या के चलते
घृणा के समक्ष
नेपथ्य में रख
अन्तर्दृष्टि को
प्रबल हो चली
बदले की भावना
प्रभावित करती
अंतःकरण तक
अनभिज्ञ करती
स्वविवेक को
अपनी ही बुद्धि
अपने स्वभाव
विचार-व्यवहार
मानसिकता पर
कुठाराघात करती
परिचायक थी
एक अनवरत द्वंद की

Monday, July 4, 2016

Morale Booster

The unhappy ones those
Seldom know themselves
Know themself and limits
The happy people almost
Ignorance is double edged
At times good often bad
Individuals make groups
Its never the other way
Additive make better sense
To facilitate inclusive
Exclusive must pave way
They compliment one another
Any conflicts are temporary
Soon comes in equilibrium
Unhappiness is superimposing
Of the imagination on real
Happiness realized than found
It's positive frame of mind
Always a morale booster too!