बहुत किया इंतजार कि वो आये शायद
अब भी राह देखते हैं कि वो आयें शायद
उनके आने से कुछ तो बदलेगा शायद
पर तक़दीर में जो है वही होगा शायद
I am waiting for so long for that arrival
Continued awaiting for that moment to come
May be that arrival will change few things
But what is in destiny so shall have to come
Saturday, December 31, 2011
Friday, December 30, 2011
नया साल
उसके आने के इंतजार की इन्तहा है अब
इसको रुखसत कर देने का समय है अब
खुशियों का हिसाब किताब भी होगा अब
आने वाली खुशियों का इंतजार भी है अब
एक और साल बीत गया ज़िन्दगी का अब
एक और नया साल फिर आने वाला है अब
जो सब नहीं पाया या नहीं कर पाए हैं अब
उस सब को ही पा लेने की कोशिश है अब
हमारी हर दुआ हर शख्स के लिए है अब
ख़ुशियाँ पाने को हर वक़्त सबका है अब
इसको रुखसत कर देने का समय है अब
खुशियों का हिसाब किताब भी होगा अब
आने वाली खुशियों का इंतजार भी है अब
एक और साल बीत गया ज़िन्दगी का अब
एक और नया साल फिर आने वाला है अब
जो सब नहीं पाया या नहीं कर पाए हैं अब
उस सब को ही पा लेने की कोशिश है अब
हमारी हर दुआ हर शख्स के लिए है अब
ख़ुशियाँ पाने को हर वक़्त सबका है अब
Thursday, December 29, 2011
Anna Hazare and Team Should Stay Away from Politics
People like Anna Hazare in India have great social role to play in the society. He should have taken credit for successfully convincing the Parliamentarians for a strong Lokpal(Ombudsman)!
A good beginning was stalled yesterday by politicians, by not passing the Bill in the Upper House. And yes, Anna and his team should not be taking political sides and strides..no wonder there were fewer supporters in protests this week with them! Albeit, they have very important role to play!Saintly people like Anna do not well understand the media and politicians gimmickry; and games they play for vested interests. Team Anna should also try to understand that there was a party in power who for the first time was willing to pass the bill and open to future amendments and improvements. It served the cause no purpose by Congress bashing and spitting venom against them at public meetings! Net result was the Lokpal bill is not passed:(
People like Anna are few icons of ethics, morality and service motives in the society. We support the cause of rooting out graft and corruption and the people's power.
Long live Anna and stay away from politics!
A good beginning was stalled yesterday by politicians, by not passing the Bill in the Upper House. And yes, Anna and his team should not be taking political sides and strides..no wonder there were fewer supporters in protests this week with them! Albeit, they have very important role to play!Saintly people like Anna do not well understand the media and politicians gimmickry; and games they play for vested interests. Team Anna should also try to understand that there was a party in power who for the first time was willing to pass the bill and open to future amendments and improvements. It served the cause no purpose by Congress bashing and spitting venom against them at public meetings! Net result was the Lokpal bill is not passed:(
People like Anna are few icons of ethics, morality and service motives in the society. We support the cause of rooting out graft and corruption and the people's power.
Long live Anna and stay away from politics!
new year/Old Year
हर साल की तरह उन्हें फिर वही जिज्ञासा थी
वो पूछते थे हमसे कि नया साल कब आयेगा
कुछ नहीं बदलने वाला हमें मालूम था फिर भी
हमने कहा जब पुराना वाला पुराना हो जायेगा
His curiosity was same as always
To know when new year will arrive
I knew nothing was going to change
Yet replied when one becomes old!
वो पूछते थे हमसे कि नया साल कब आयेगा
कुछ नहीं बदलने वाला हमें मालूम था फिर भी
हमने कहा जब पुराना वाला पुराना हो जायेगा
His curiosity was same as always
To know when new year will arrive
I knew nothing was going to change
Yet replied when one becomes old!
Wednesday, December 28, 2011
लोग
सत्य तो सदैव कटु रहा है
मीठा पुआ क्यों समझें लोग
सत्य की गलत व्याख्या से
असत्य की वकालत कर लोग
सार्वभौम प्रभुसत्ता के नाम
व्यवस्थाओं की दुहाई देकर
भ्रामक दुष्प्रचार करते हुए
जन आंदोलनों की उपेक्षा कर
अपने देश में लोकशाही को
लुल्ल-पुंज से करते से लोग
इन सब के बीच संघर्षरत
जीवट वाले भी हैं कई लोग
नैतिक आचरण प्रयोग कर
आत्म बल दिखाते हुए लोग
मीठा पुआ क्यों समझें लोग
सत्य की गलत व्याख्या से
असत्य की वकालत कर लोग
सार्वभौम प्रभुसत्ता के नाम
व्यवस्थाओं की दुहाई देकर
भ्रामक दुष्प्रचार करते हुए
जन आंदोलनों की उपेक्षा कर
अपने देश में लोकशाही को
लुल्ल-पुंज से करते से लोग
इन सब के बीच संघर्षरत
जीवट वाले भी हैं कई लोग
नैतिक आचरण प्रयोग कर
आत्म बल दिखाते हुए लोग
Tuesday, December 27, 2011
पराकाष्ठा
समय और जीवन दोनों ही
अपरिहार्य और गतिमान हैं
दोनों की भविष्यवाणी करना
हमारी क्रियाक्षमता से बाहर है
अपरिमित और असाध्य को
मापने का प्रयास भर ही है
इनकी विवेचना व सम्भावना
अनुमान लगाना मात्र ही है
इनके गतिशीलता के आयाम
इन्हीं के बस अपने से ही हैं
इन्हें वश में करने के प्रयास
अवश्यमेव बेमानी से ही हैं
इनकी पराकाष्ठा भी केवल
इन्हीं के तर्क पर चलती है
अपरिहार्य और गतिमान हैं
दोनों की भविष्यवाणी करना
हमारी क्रियाक्षमता से बाहर है
अपरिमित और असाध्य को
मापने का प्रयास भर ही है
इनकी विवेचना व सम्भावना
अनुमान लगाना मात्र ही है
इनके गतिशीलता के आयाम
इन्हीं के बस अपने से ही हैं
इन्हें वश में करने के प्रयास
अवश्यमेव बेमानी से ही हैं
इनकी पराकाष्ठा भी केवल
इन्हीं के तर्क पर चलती है
Monday, December 26, 2011
दोस्ती
वक़्त की तो हमसे हो चुकी है दोस्ती
वक़्त का क्या वो तो कट ही जायेगा
अब वो हमसे अक्सर पूछता रहता है
ज़माना अब कितनी तरक्की करेगा
ये पुरानी बातें अब सब मिट जाएँगी
या इनका एहसास भर ही रह जायगा
क्या कह सकते ही इत्मीनान से तुम
कि ये सब कुछ तुम्हारे बाद भी रहेगा
रोज़ की तरह ही नई राह चल दिए हो
ये नया रास्ता न जाने किधर जायेगा
हमने कह दिया वक़्त को बेवाकी से
तुम्हारे भरोसे ही सब चलता जायेगा
वक़्त का क्या वो तो कट ही जायेगा
अब वो हमसे अक्सर पूछता रहता है
ज़माना अब कितनी तरक्की करेगा
ये पुरानी बातें अब सब मिट जाएँगी
या इनका एहसास भर ही रह जायगा
क्या कह सकते ही इत्मीनान से तुम
कि ये सब कुछ तुम्हारे बाद भी रहेगा
रोज़ की तरह ही नई राह चल दिए हो
ये नया रास्ता न जाने किधर जायेगा
हमने कह दिया वक़्त को बेवाकी से
तुम्हारे भरोसे ही सब चलता जायेगा
Saturday, December 24, 2011
डोर
बड़े नाज़ुक से होते हैं रिश्ते
पर बड़ी लम्बी है डोर इनकी
डोर के एक छोर पर हम हैं
कोई हमारी थामी जगह है
कई लोग इसके आस पास हैं
कुछ दूर से नज़ारा करते हैं
कई इशारा सा भी करते हैं
हमें अपने पास बुलाने के लिए
कुछ दूर होना भी चाहते हैं
हमसे नाराज़ से या मनाते से
हमें बताने समझाने के लिए
कुछ भी कहना चाहे कोई
पर डोर तो बस अपने हाथ है
पर बड़ी लम्बी है डोर इनकी
डोर के एक छोर पर हम हैं
कोई हमारी थामी जगह है
कई लोग इसके आस पास हैं
कुछ दूर से नज़ारा करते हैं
कई इशारा सा भी करते हैं
हमें अपने पास बुलाने के लिए
कुछ दूर होना भी चाहते हैं
हमसे नाराज़ से या मनाते से
हमें बताने समझाने के लिए
कुछ भी कहना चाहे कोई
पर डोर तो बस अपने हाथ है
Friday, December 23, 2011
Merry X-mas and Happy New Year
While wishing you all the Merry X-mas and season's greetings; I feel like reminding us that the Jesus always fought for the 'truth' and left a legacy of people willing to sacrifice their everything for the welfare of others and truth!
The virtuousness is the nerve center of the teaching of Jesus and his sacrifice for the cause of humanity and spirituality! Lets not distort our thinking by getting away from the spirit and practice of ethics and virtuousness in our lives! Kudos Jesus and Merry Christmas to All.
May we live and practice the sentiments in the year 2012 and ever after! Amen!
The virtuousness is the nerve center of the teaching of Jesus and his sacrifice for the cause of humanity and spirituality! Lets not distort our thinking by getting away from the spirit and practice of ethics and virtuousness in our lives! Kudos Jesus and Merry Christmas to All.
May we live and practice the sentiments in the year 2012 and ever after! Amen!
Tuesday, December 20, 2011
गुनहगार/Culprits
तुमने सोचा होगा कि छोटे से दिल में तो बस
हम और सिर्फ हमारे खैख्वाह ही बसा करते हैं
अब तुमने जाना होगा इतनी मुद्दत के बाद कि
दिल की इस बस्ती में कई गुनहगार भी रहते हैं
You always thought that in your tiny heart
It just me and my well-wishers are living
Now after so long you would have realized
Dwellings of heart also had culprits sheltered
हम और सिर्फ हमारे खैख्वाह ही बसा करते हैं
अब तुमने जाना होगा इतनी मुद्दत के बाद कि
दिल की इस बस्ती में कई गुनहगार भी रहते हैं
You always thought that in your tiny heart
It just me and my well-wishers are living
Now after so long you would have realized
Dwellings of heart also had culprits sheltered
Sunday, December 18, 2011
जलन
कई तरह के फ़सादों और
भ्रष्टाचार की आग से जलते
समस्याओं से घिरे देश की
छवि धूमिल होने लगी है
अब इस जलन की तीव्रता
असीमित सी होने लगी है
अब कोई रुई के फाहे से
इसका उपचार शायद अब
कतई भी संभव नहीं है
शल्य चिकित्सा एकमात्र
सम्भावना सी रह गई है
अब तलाश है किसी भी
स्वीकरणीय चिकित्सक की
वही अब यहाँ शायद कोई
आख़िरी उम्मीद रह गई है
भ्रष्टाचार की आग से जलते
समस्याओं से घिरे देश की
छवि धूमिल होने लगी है
अब इस जलन की तीव्रता
असीमित सी होने लगी है
अब कोई रुई के फाहे से
इसका उपचार शायद अब
कतई भी संभव नहीं है
शल्य चिकित्सा एकमात्र
सम्भावना सी रह गई है
अब तलाश है किसी भी
स्वीकरणीय चिकित्सक की
वही अब यहाँ शायद कोई
आख़िरी उम्मीद रह गई है
Saturday, December 17, 2011
मेरे आँगन
कितनी धूल सी उड़ रही थी
वातावरण दूषित करती थी
उस रोज़ मिलकर दोनों ही
धूसरित करती मेरे आँगन
फिर किसी नवजात की
बिलखती किलकारी सी
वर्षा की बूँदें आ गई थीं
अकस्मात् ही मेरे आँगन
सब कुछ धुला धुला सा
सब घर द्वार व पेड़ पौधे
नए लगने लगे मेरे आँगन
मेरे अंतर्मन में भी शायद
किसी बूँदों की फुहार से
सब नया व ताज़ा लगेगा
एक रोज़ मेरे मन आँगन
वातावरण दूषित करती थी
उस रोज़ मिलकर दोनों ही
धूसरित करती मेरे आँगन
फिर किसी नवजात की
बिलखती किलकारी सी
वर्षा की बूँदें आ गई थीं
अकस्मात् ही मेरे आँगन
सब कुछ धुला धुला सा
सब घर द्वार व पेड़ पौधे
नए लगने लगे मेरे आँगन
मेरे अंतर्मन में भी शायद
किसी बूँदों की फुहार से
सब नया व ताज़ा लगेगा
एक रोज़ मेरे मन आँगन
शीशे सा दिल/hearts of glass
शीशे सा दिल अगर वाकई जो होता शीशे का
उसके आर पार दिखाई देना लाजमी न होता?
बचपन का सा प्यार अगर फिर से कभी होता
कुछ पाने का अंदाज़ ओ ख़याल अलग होता
If the hearts were actually made of glasses
They would be transparent to see through
If love of childhood days could come back
Considerations in thoughts would change!
उसके आर पार दिखाई देना लाजमी न होता?
बचपन का सा प्यार अगर फिर से कभी होता
कुछ पाने का अंदाज़ ओ ख़याल अलग होता
If the hearts were actually made of glasses
They would be transparent to see through
If love of childhood days could come back
Considerations in thoughts would change!
Tuesday, December 13, 2011
Travel
Life comes in a mixed bag
Happiness one of the traits
The shocks and misfortune
Momentary or temporary
There are no better ways
Than accepting as they are
All whirlwinds of our lives
Shall mallow down for sure
Like those receding tides
Leaving mark and lessons
And the thought for you
To derive positives from
Travel with journey of life
Anyways you never arrive!
Happiness one of the traits
The shocks and misfortune
Momentary or temporary
There are no better ways
Than accepting as they are
All whirlwinds of our lives
Shall mallow down for sure
Like those receding tides
Leaving mark and lessons
And the thought for you
To derive positives from
Travel with journey of life
Anyways you never arrive!
Sunday, December 11, 2011
नए आशियाने
उनको ज्यों खबर हो गई अब हमारे जाने की
राह पकड़ ली उन्होंने किसी और ठिकाने की
वो जो थकते नहीं थे कभी भी गुफ्तगू करते
हमसे मिलना और ख़ूबसूरत उस फ़साने की
आज उनको नहीं है फुर्सत ही हमें मिलने की
शायद होगी मशरूफियत नए आशियाने की
हम अब भी इंतजार मैं है उनसे रूबरू होकर
हसरत लिए उनको चन्द नए शेर सुनाने की
ताज्ज़ुब नहीं सुनकर उनके बदल जाने की
उनको क्या कहें ये तो फितरत है ज़माने की
राह पकड़ ली उन्होंने किसी और ठिकाने की
वो जो थकते नहीं थे कभी भी गुफ्तगू करते
हमसे मिलना और ख़ूबसूरत उस फ़साने की
आज उनको नहीं है फुर्सत ही हमें मिलने की
शायद होगी मशरूफियत नए आशियाने की
हम अब भी इंतजार मैं है उनसे रूबरू होकर
हसरत लिए उनको चन्द नए शेर सुनाने की
ताज्ज़ुब नहीं सुनकर उनके बदल जाने की
उनको क्या कहें ये तो फितरत है ज़माने की
Saturday, December 10, 2011
नई दहलीज़ new doorsteps
माना कि उम्रदराज़ तो हो चले हैं अब
पर उम्र के गुजरने का पता भी न चला
कब इस नई दहलीज़ पर आ गए हम
बस्तियाँ उजड़ने का पता भी न चला
The age has caught up with with time
But passing of age was never realized
I have arrived at these new doorsteps
Habitat turned remnants never realized
पर उम्र के गुजरने का पता भी न चला
कब इस नई दहलीज़ पर आ गए हम
बस्तियाँ उजड़ने का पता भी न चला
The age has caught up with with time
But passing of age was never realized
I have arrived at these new doorsteps
Habitat turned remnants never realized
Withdrawal
Having done the job so lengthy
The withdrawal isn’t very easy
It gives a weird feeling sometime
Having reached at the end of time
And nowhere now to reach out
A feeling of being empty and out
The sequence coming to memory
The warmth, also people unsavory
People, places and all their ways
Angles and those darkish rays
The nostalgia and few questions
Achievements and limitations
End also gives way to beginning
Of a new task or new happening
The feelings are always mixed
Yet; as if everything for all fixed
And the now questions new scope
Tomorrow bringing the new hope
The withdrawal isn’t very easy
It gives a weird feeling sometime
Having reached at the end of time
And nowhere now to reach out
A feeling of being empty and out
The sequence coming to memory
The warmth, also people unsavory
People, places and all their ways
Angles and those darkish rays
The nostalgia and few questions
Achievements and limitations
End also gives way to beginning
Of a new task or new happening
The feelings are always mixed
Yet; as if everything for all fixed
And the now questions new scope
Tomorrow bringing the new hope
Smile
She was looking at him
The guy seemed stressed
Looking at frowning face
She couldn’t resist a smile
He looked curiously at her
And asked if anything funny
She again smiled and replied
Yes! It was rather a bit funny
I was stressed the other day
Thought I was the unlucky one
Now when I see many people
I think I am luckier than many
So, I smiled looking at you
You too can observe this
But you must smile first
After a deep breath he smiled
Having done the comparison
He too couldn’t resist smile
A smile changed his life
His attitude changed too!
The guy seemed stressed
Looking at frowning face
She couldn’t resist a smile
He looked curiously at her
And asked if anything funny
She again smiled and replied
Yes! It was rather a bit funny
I was stressed the other day
Thought I was the unlucky one
Now when I see many people
I think I am luckier than many
So, I smiled looking at you
You too can observe this
But you must smile first
After a deep breath he smiled
Having done the comparison
He too couldn’t resist smile
A smile changed his life
His attitude changed too!
Friday, December 9, 2011
इतिहास
कहने को बहुत कुछ है मेरे पास
पर सुनने को नहीं है कोई पास
जब थे लोग कभी सुनने वाले भी
कहने को कुछ नहीं था मेरे पास
अब बस इन्तजार उस दिन का
कहा सुनने वाले होंगे कभी पास
मैं भी कोशिश करूँगा सुनने की
अगर कहने को है तुम्हारे पास
वक़्त निक़ल गया कुछ गम नहीं
ज़िन्दगी है ये नहीं कोई इतिहास
जो चाहा वो मिला हो या न सही
यहाँ हर किसी की है एक आस
पर सुनने को नहीं है कोई पास
जब थे लोग कभी सुनने वाले भी
कहने को कुछ नहीं था मेरे पास
अब बस इन्तजार उस दिन का
कहा सुनने वाले होंगे कभी पास
मैं भी कोशिश करूँगा सुनने की
अगर कहने को है तुम्हारे पास
वक़्त निक़ल गया कुछ गम नहीं
ज़िन्दगी है ये नहीं कोई इतिहास
जो चाहा वो मिला हो या न सही
यहाँ हर किसी की है एक आस
वर्तमान
ज़िन्दगी की बातें निराली हैं
जो है वही बस कम लगता है
वर्तमान में विगत की छाया में
मन अक्सर भटकता रहता है
वक़्त आगे ज़रूर बढ़ जाता है
पर विगत में झांकता रहता है
तब और में कई फर्क का बोध
अक्सर यहाँ कराता रहता है
फिर भी विगत सिर्फ याद है
वर्तमान ही तो अब सत्य है
जो है वही बस कम लगता है
वर्तमान में विगत की छाया में
मन अक्सर भटकता रहता है
वक़्त आगे ज़रूर बढ़ जाता है
पर विगत में झांकता रहता है
तब और में कई फर्क का बोध
अक्सर यहाँ कराता रहता है
फिर भी विगत सिर्फ याद है
वर्तमान ही तो अब सत्य है
परेशानियाँ
ख़ुशनुमा अंदाज़ में ज़िन्दगी तब यूँ चल रही थी
मानो शहर भी की ख़ुशी मेरी झोली में आ गई थी
फिर अचानक वक़्त ने उधर करवट बदल ली थी
परेशानी के वक़्त कुछ बात समझ न आती थी
उस दिन लगा कि मानो ज़िन्दगी ही थम गई थी
फिर पता भी नहीं चला कब वो आगे बढ़ गई थी
परेशानियाँ आईं तो ज़रूर मगर निक़ल गई थीं
वक़्त के साथ घावों पर मरहम भी लगा चुकी थीं
परेशानी भी अब सफ़र की ही साथी लगती थी
ख़ुशी भी इन्हीं की पीठ पर सवार सी लगती थी
मानो शहर भी की ख़ुशी मेरी झोली में आ गई थी
फिर अचानक वक़्त ने उधर करवट बदल ली थी
परेशानी के वक़्त कुछ बात समझ न आती थी
उस दिन लगा कि मानो ज़िन्दगी ही थम गई थी
फिर पता भी नहीं चला कब वो आगे बढ़ गई थी
परेशानियाँ आईं तो ज़रूर मगर निक़ल गई थीं
वक़्त के साथ घावों पर मरहम भी लगा चुकी थीं
परेशानी भी अब सफ़र की ही साथी लगती थी
ख़ुशी भी इन्हीं की पीठ पर सवार सी लगती थी
Thursday, December 8, 2011
स्वागत
स्वागत है ऐ बिटिया तुम्हारे आने का मेरे द्वार
तुम नव ऋतु की नव कली सदृश बन आई हो
मेरी प्यासी पथराई सी आँखों में नव ज्योति सी
सूखे से तरुवर में तुम ऐसी हरियाली लाई हो
मेरे उद्गार नए शब्द बन पड़े उमड़ अब कितने
तुम तन मन में कैसा नव जीवन मेरे लाई हो
हर पल हर ध्वनि तेरी कितनी है प्रिय मुझको
मैं संभालूँगा ये सब जो उल्लास हर्ष ले आई हो
तुम नव ऋतु की नव कली सदृश बन आई हो
मेरी प्यासी पथराई सी आँखों में नव ज्योति सी
सूखे से तरुवर में तुम ऐसी हरियाली लाई हो
मेरे उद्गार नए शब्द बन पड़े उमड़ अब कितने
तुम तन मन में कैसा नव जीवन मेरे लाई हो
हर पल हर ध्वनि तेरी कितनी है प्रिय मुझको
मैं संभालूँगा ये सब जो उल्लास हर्ष ले आई हो
Wednesday, December 7, 2011
दर्द से रिश्ते
अब कैसे संभालें दिल को हम
दिन रात वो पल याद आते हैं
कितना ही भुलाना चाहें हम
वो बस यादों में आ जाते हैं
जब उनके ख्याल आ जाते हैं
हम खुद को ही भूला करते हैं
जब रातों की नींद नहीं आती
तो हम करवट बदला करते हैं
देख फलक की ओर कहीं हम
बिखरे से तारे गिनते रहते हैं
हमदर्द नहीं हमदम भी कहाँ
हम इस दर्द से रिश्ते रखते हैं
दिन रात वो पल याद आते हैं
कितना ही भुलाना चाहें हम
वो बस यादों में आ जाते हैं
जब उनके ख्याल आ जाते हैं
हम खुद को ही भूला करते हैं
जब रातों की नींद नहीं आती
तो हम करवट बदला करते हैं
देख फलक की ओर कहीं हम
बिखरे से तारे गिनते रहते हैं
हमदर्द नहीं हमदम भी कहाँ
हम इस दर्द से रिश्ते रखते हैं
परवाह/Care
किस किस की करें परवाह यहाँ
हर कोई गैर मुतमईन है हमसे
अमल करें किस किस की सलाह
हर कोई सीख देना चाहता है हमें
who all should I care about
Each one dissatisfied with me
Who all shall I follow about
Each one wants to teach me!
हर कोई गैर मुतमईन है हमसे
अमल करें किस किस की सलाह
हर कोई सीख देना चाहता है हमें
who all should I care about
Each one dissatisfied with me
Who all shall I follow about
Each one wants to teach me!
Tuesday, December 6, 2011
लेखा जोखा
मुझे तरस आ रहा है तुम पर!
तुम उपहास के प्रतीक से बन
क्यों इतने बिस्मय से देखते हो?
कहीं अधिक मिला है तुमको
जितना किया उसकी तुलना में
जो नहीं मिल पाया है तुमको
उस पर आज इतना रंज क्यों है?
इतनी सामान्य बात तो समझो
तुम कर सकते थे अवश्य ही
पर जो नहीं किया तुमने तब
यह उसका ही तो लेखा जोखा है!
तुम उपहास के प्रतीक से बन
क्यों इतने बिस्मय से देखते हो?
कहीं अधिक मिला है तुमको
जितना किया उसकी तुलना में
जो नहीं मिल पाया है तुमको
उस पर आज इतना रंज क्यों है?
इतनी सामान्य बात तो समझो
तुम कर सकते थे अवश्य ही
पर जो नहीं किया तुमने तब
यह उसका ही तो लेखा जोखा है!
Smile of the Time
It is sure possible to witness
As innumerable examples already
The struggle of some people
And with the smile of the time
Those who are condemned today
Can make a difference tomorrow
Only with their perseverance
And zeal to do a favorite act
Of surprising all the people
With their indomitable spirit
And the rare achievement shown
Today's people shall regret then
Tomorrow's shall be proud of
Yet the zeal shall be thirsty
Of achieving further heights
And above all surprising self
As innumerable examples already
The struggle of some people
And with the smile of the time
Those who are condemned today
Can make a difference tomorrow
Only with their perseverance
And zeal to do a favorite act
Of surprising all the people
With their indomitable spirit
And the rare achievement shown
Today's people shall regret then
Tomorrow's shall be proud of
Yet the zeal shall be thirsty
Of achieving further heights
And above all surprising self
Monday, December 5, 2011
दरख़्त
उसको न मालूम क्या हुआ
अजीब सी बातें करने लगा
बोला मुझसे वो दरख़्त भले
जो किसी ने लगाये थे कभी
उनकी हिफाज़त भी ख़ूब की
वो तो कोई फलदार भी नहीं हैं
पतझड़ से आँगन तक गन्दा है
पतझड़ की भी आलोचना नहीं
कर्तव्य समझ बस झाड़ू फेरा
बदले में उनने सिर्फ छाया दी
मैंने संतान की हिफाज़त की
पेड़ से कहीं ज्यादा की थी
बदले में बस क्षणिक ख़ुशी थी
ज़रूरत के वक़्त वहां मेरे लिए
कहीं कोई भी जगह नहीं थी
दरख्त की अपनी जगह तो थी
अजीब सी बातें करने लगा
बोला मुझसे वो दरख़्त भले
जो किसी ने लगाये थे कभी
उनकी हिफाज़त भी ख़ूब की
वो तो कोई फलदार भी नहीं हैं
पतझड़ से आँगन तक गन्दा है
पतझड़ की भी आलोचना नहीं
कर्तव्य समझ बस झाड़ू फेरा
बदले में उनने सिर्फ छाया दी
मैंने संतान की हिफाज़त की
पेड़ से कहीं ज्यादा की थी
बदले में बस क्षणिक ख़ुशी थी
ज़रूरत के वक़्त वहां मेरे लिए
कहीं कोई भी जगह नहीं थी
दरख्त की अपनी जगह तो थी
इत्तेहाद/Unity
इत्तेहाद की तो हद हो गई थी उस रोज़
सभी ने जान बूझकर थी शिरक़त की
जब सियासी वजहों से हुई खिलाफत
इखलाक़ बिगाड़ को दुरुस्त करने की
That day it crossed the limit of unity
Then tried joining together everyone
The opposition for political reason
To the efforts to fix the corruption
सभी ने जान बूझकर थी शिरक़त की
जब सियासी वजहों से हुई खिलाफत
इखलाक़ बिगाड़ को दुरुस्त करने की
That day it crossed the limit of unity
Then tried joining together everyone
The opposition for political reason
To the efforts to fix the corruption
Sunday, December 4, 2011
बेफुर्सती
कोई क्यों यहाँ इतनी बेफुर्सती में मरा करे
औरों की तरह ही बस फुर्सत में जिया करे
हक़ीक़त से दुनियां के दस्तूर को देखा करे
ये जीने का सबब है इससे सबक लिया करे
No one should live with time paucity
Like all others around live in leisurely
Look at the realities of this life around
This essence of living has lessons sound
औरों की तरह ही बस फुर्सत में जिया करे
हक़ीक़त से दुनियां के दस्तूर को देखा करे
ये जीने का सबब है इससे सबक लिया करे
No one should live with time paucity
Like all others around live in leisurely
Look at the realities of this life around
This essence of living has lessons sound
Distinction
Being distinct is rewarding
In whatever ways you can
The very first ray of the Sun
Shines more than later ones
Brightens surroundings more
Compared with the day’s sun
‘Cause it deals with darkness
And that makes a difference
Just like the last rays in dusk
Get overpowered by darkness
We care about more for sure
For those make the difference
Shine by making the difference
In whatever ways you can
The very first ray of the Sun
Shines more than later ones
Brightens surroundings more
Compared with the day’s sun
‘Cause it deals with darkness
And that makes a difference
Just like the last rays in dusk
Get overpowered by darkness
We care about more for sure
For those make the difference
Shine by making the difference
सुलह
तुम्हारे न चाहते भी हर बार की तरह
अपना मत प्रकट कर दिया था हमने
ज़रा दूसरे के नज़रिए से भी देख लो
अपना हक समझ कर कहा था हमने
बस एक बात ही सही कहा मान लो
हमारे हालत से सोचो कहा था हमने
क्यों हो गए थे इतने बेचैन अचानक
ऐसा भी क्या कुछ मांग लिया हमने
तुम ज़माने भर के तनाव ले आये
जिन्हें जाने कितनी बार देखा हमने
हमें तो लगा था फिर भी बिलकुल
सुलह पर अहसान किया था हमने
अपना मत प्रकट कर दिया था हमने
ज़रा दूसरे के नज़रिए से भी देख लो
अपना हक समझ कर कहा था हमने
बस एक बात ही सही कहा मान लो
हमारे हालत से सोचो कहा था हमने
क्यों हो गए थे इतने बेचैन अचानक
ऐसा भी क्या कुछ मांग लिया हमने
तुम ज़माने भर के तनाव ले आये
जिन्हें जाने कितनी बार देखा हमने
हमें तो लगा था फिर भी बिलकुल
सुलह पर अहसान किया था हमने
Saturday, December 3, 2011
अन्तिम कविता
जानता था कविता कितनी नापसंद हमें वो
फिर भी सुनाने का मौक़ा नहीं चूकता था वो
मौक़ा कितना संजीदा था ये जानता था वो
अपने आखिरी वक़्त में मुस्कुरा रहा था वो
जाते जाते भी एक कविता सुना गया था वो
हमको तो जीते ही मार डालना चाहता था वो
और ये आख़िरी ज़ुल्म भी ढाता रहा था वो
अपनी अन्तिम साँस तक सुनाता रहा था वो
सोचा था मर के तो शायद छोड़ेगा पीछा वो
बार हर बार कविता बन याद आता रहा था वो
:)))))))
फिर भी सुनाने का मौक़ा नहीं चूकता था वो
मौक़ा कितना संजीदा था ये जानता था वो
अपने आखिरी वक़्त में मुस्कुरा रहा था वो
जाते जाते भी एक कविता सुना गया था वो
हमको तो जीते ही मार डालना चाहता था वो
और ये आख़िरी ज़ुल्म भी ढाता रहा था वो
अपनी अन्तिम साँस तक सुनाता रहा था वो
सोचा था मर के तो शायद छोड़ेगा पीछा वो
बार हर बार कविता बन याद आता रहा था वो
:)))))))
दूरियाँ
कभी ये दूरियाँ उदास कर देती हैं
फिर यूँ प्रतीत होता हम तो वहीँ हैं
स्मृति पटल पर कोई दूरियां नहीं
स्मरण में तो आज भी सब वही है
दूरियाँ महज़ एक अहसास भर है
लेकिन मन घूमता आज भी वहीँ है
जिस साज से सुनाई देता था संगीत
ज़िन्दगी का साज आज भी वही है
महकती यादें स्पंदन और भावनाएं
उनका एहसास आज भी वही है
लेकिन मन के इस दावानल में
अंतर्मन का द्वन्द आज भी वही है
फिर यूँ प्रतीत होता हम तो वहीँ हैं
स्मृति पटल पर कोई दूरियां नहीं
स्मरण में तो आज भी सब वही है
दूरियाँ महज़ एक अहसास भर है
लेकिन मन घूमता आज भी वहीँ है
जिस साज से सुनाई देता था संगीत
ज़िन्दगी का साज आज भी वही है
महकती यादें स्पंदन और भावनाएं
उनका एहसास आज भी वही है
लेकिन मन के इस दावानल में
अंतर्मन का द्वन्द आज भी वही है
Friday, December 2, 2011
ग़लत
बात तब भी बस वहीँ थी
आज भी वहीँ अटक गई
बिना जाने सुने ही तुमने
सोचा ज्यों सब समझ गई
तुम न भी चाहो बूझना
इस अनबूझी पहेली को
हमारे ये ज़ज्बात ज़रूर
तुम्हें आभास तो कराएँगे
हम अपनी जगह सही थे
तुम्हारी समझ अलग थी
तुम्हारी सोच ग़लत थी
आज भी वहीँ अटक गई
बिना जाने सुने ही तुमने
सोचा ज्यों सब समझ गई
तुम न भी चाहो बूझना
इस अनबूझी पहेली को
हमारे ये ज़ज्बात ज़रूर
तुम्हें आभास तो कराएँगे
हम अपनी जगह सही थे
तुम्हारी समझ अलग थी
तुम्हारी सोच ग़लत थी
Unanswered
Many at times unheard
At times unsubstantiated
Yet it’s a pleasure for us
To listen to and concentrate
On the rhythmic patterns
Of the unknown voices
It’s not understandable
Yet sounds music to ears
Like the people chanting
With the devotional music
Feelings of some divinity
Experienced without words
Unintended unanswered
At times unsubstantiated
Yet it’s a pleasure for us
To listen to and concentrate
On the rhythmic patterns
Of the unknown voices
It’s not understandable
Yet sounds music to ears
Like the people chanting
With the devotional music
Feelings of some divinity
Experienced without words
Unintended unanswered
बाहर
मेरा सराहा जाना उनकी बर्दाश्त से बाहर था
उनकी नज़र में ये कुछ हद से बाहर सा था
उनका ये समझना मेरी समझ से बाहर था
दोनों को समझना मानो हकीकत से बाहर था
उनकी नज़र में ये कुछ हद से बाहर सा था
उनका ये समझना मेरी समझ से बाहर था
दोनों को समझना मानो हकीकत से बाहर था
Wednesday, November 30, 2011
उलझनें /Complications
न जाने कितने अरमां हैं न जाने कितनी उलझनें हैं
कभी हम सही तो कभी हमारे साथ ज़माना आता है
हम अब भी यहाँ कुछ चुनिंदा वज़हों से ही जी रहे हैं
कुछ और आये न आये हमें साथ निभाना आता है
With a numerous ambitions and complications
Sometimes me or sometimes world accompanies
We are yet living with a few select reasons
If nothing else I know to be good companions
कभी हम सही तो कभी हमारे साथ ज़माना आता है
हम अब भी यहाँ कुछ चुनिंदा वज़हों से ही जी रहे हैं
कुछ और आये न आये हमें साथ निभाना आता है
With a numerous ambitions and complications
Sometimes me or sometimes world accompanies
We are yet living with a few select reasons
If nothing else I know to be good companions
आज/Today
कल तुम्हें होगा फख्र कि तुमने मोहब्बत की हमसे
आज तो बस तुम्हें इसी एक एहसास की ज़रूरत है
Tomorrow you shall be proud that you loved me
Today you might just have need to realize this
आज तो बस तुम्हें इसी एक एहसास की ज़रूरत है
Tomorrow you shall be proud that you loved me
Today you might just have need to realize this
Tuesday, November 29, 2011
हालत/State
अब उनसे क्या कहें अपनी हालत का सबब
जब हम खुद ही दावे से भी कह नहीं सकते
अगर होगा हुनर तो वो खुद पहचान जायेंगे
हम अपनी जुबान से तो कुछ कह नहीं सकते
How do I narrate the state I am in
When I am not sure myself of this
If he has the talent will find out
It's impossible for me to narrate
जब हम खुद ही दावे से भी कह नहीं सकते
अगर होगा हुनर तो वो खुद पहचान जायेंगे
हम अपनी जुबान से तो कुछ कह नहीं सकते
How do I narrate the state I am in
When I am not sure myself of this
If he has the talent will find out
It's impossible for me to narrate
Submerged
In search of comforts
And the select companions
She lost out the deal
Of seeking happiness
Now in retrospect
She kept wondering
If this all was any worth
Then with a feeble smile
Her face had glowed up
She got what she went after
Yet the essence got submerged
Between the choices she made
Those were unpredictable anyways
There is no better way now
But to remain contented
With whatever was the course
And all her achievements
There was no denial then
Life has its own logic and course!
And the select companions
She lost out the deal
Of seeking happiness
Now in retrospect
She kept wondering
If this all was any worth
Then with a feeble smile
Her face had glowed up
She got what she went after
Yet the essence got submerged
Between the choices she made
Those were unpredictable anyways
There is no better way now
But to remain contented
With whatever was the course
And all her achievements
There was no denial then
Life has its own logic and course!
ज़िन्दगी
बड़ी अज़ीब ओ ग़रीब होती है ये ज़िन्दगी
मुझे हर रंग में फिर भी भाती थी ज़िन्दगी
कभी कहीं कभी कहीं छकाती थी ज़िन्दगी
फिर भी रोज़ नए पाठ पढ़ाती थी ज़िन्दगी
छोटी छोटी बातों पर चहकती थी ज़िन्दगी
बड़ी बड़ी बातों से हमें सताती थी ज़िन्दगी
रोज़ नए नए तरीकों से डराती थी ज़िन्दगी
फिर भी मुझसे कभी नहीं रूठी थी ज़िन्दगी
मुझे उदास देख हँसाना चाहती थी ज़िन्दगी
मुझे हँसाने चली थी पर रुला गई ज़िन्दगी
मुझे हर रंग में फिर भी भाती थी ज़िन्दगी
कभी कहीं कभी कहीं छकाती थी ज़िन्दगी
फिर भी रोज़ नए पाठ पढ़ाती थी ज़िन्दगी
छोटी छोटी बातों पर चहकती थी ज़िन्दगी
बड़ी बड़ी बातों से हमें सताती थी ज़िन्दगी
रोज़ नए नए तरीकों से डराती थी ज़िन्दगी
फिर भी मुझसे कभी नहीं रूठी थी ज़िन्दगी
मुझे उदास देख हँसाना चाहती थी ज़िन्दगी
मुझे हँसाने चली थी पर रुला गई ज़िन्दगी
दामन
अमन चैन अब तारीख़ बन चुके
ये बात करने वाले परेशान हैं सारे
कौन कौन किसका है खिदमतदार
एक चौमिसरा से लगते हैं ये सारे
बेख़ौफ़ घूमते हैं खौफ के रहनुमा
हैं बड़े खौफज़दा बाशिंदे यहाँ सारे
अब किसके दर जा करें शिक़ायत
दागदार हो गए हैं यहाँ दामन सारे
Peace and serenity are now history
Those talking of this are worried
Who is serving whose interest here
This all sounds more like a quartet
Those patronizing terror move freely
The inhabitants are all terrorized
To whom shall we go and seek help
Everyone's apron here are speckled
ये बात करने वाले परेशान हैं सारे
कौन कौन किसका है खिदमतदार
एक चौमिसरा से लगते हैं ये सारे
बेख़ौफ़ घूमते हैं खौफ के रहनुमा
हैं बड़े खौफज़दा बाशिंदे यहाँ सारे
अब किसके दर जा करें शिक़ायत
दागदार हो गए हैं यहाँ दामन सारे
Peace and serenity are now history
Those talking of this are worried
Who is serving whose interest here
This all sounds more like a quartet
Those patronizing terror move freely
The inhabitants are all terrorized
To whom shall we go and seek help
Everyone's apron here are speckled
Monday, November 28, 2011
Yet..
अरमान सब खो चुके बस एक महक बाक़ी है
उजाले के इंतज़ार में हैं रात अभी भी बाक़ी है
Aspirations are lost yet their fragrances remain
Awaiting the lights yet the darkness still around
उजाले के इंतज़ार में हैं रात अभी भी बाक़ी है
Aspirations are lost yet their fragrances remain
Awaiting the lights yet the darkness still around
Sunday, November 27, 2011
व्यथित
कितना व्याकुल अब मनुज यहाँ
जीवन पथ के ऊँचे अरमान लिए
चेहरे की सब रंगत उड़ी उड़ी सी
हर पल चिंता का सा भाव लिए
मस्तिष्क है तनाव से भरा हुआ
तन में जग भर का क्लेश लिए
ईर्ष्यालु बना है व्यक्तित्व सदा
मन में मन भर का बोझ लिए
बड़े का भान जतलाता है पर
छोटा सा व्यथित ह्रदय लिए
जीवन पथ के ऊँचे अरमान लिए
चेहरे की सब रंगत उड़ी उड़ी सी
हर पल चिंता का सा भाव लिए
मस्तिष्क है तनाव से भरा हुआ
तन में जग भर का क्लेश लिए
ईर्ष्यालु बना है व्यक्तित्व सदा
मन में मन भर का बोझ लिए
बड़े का भान जतलाता है पर
छोटा सा व्यथित ह्रदय लिए
Friday, November 25, 2011
दूरियाँ
दूरियाँ महज़ एक अहसास भर है
लेकिन मन घूमता आज भी वहीँ है
जिस साज से सुनाई देता था संगीत
ज़िन्दगी का साज आज भी वही है
लेकिन मन घूमता आज भी वहीँ है
जिस साज से सुनाई देता था संगीत
ज़िन्दगी का साज आज भी वही है
Open Book
हमसे छुपाने की कोशिश में सिर्फ़ वक़्त बर्बाद होगा
हम तो तुम्हारी नज़रों की भाषा से ही समझ जाते हैं
हमसे मत पूछो हमको छुपाने की आदत नहीं कोई
हम वो ख़ुली क़िताब हैं जिसे सब लोग पढ़ सकते हैं
Don't waste time in hiding things from me
I can understand the language of the eyes
Don't ask questions for I never hide things
I am that open book that any one can read!
हम तो तुम्हारी नज़रों की भाषा से ही समझ जाते हैं
हमसे मत पूछो हमको छुपाने की आदत नहीं कोई
हम वो ख़ुली क़िताब हैं जिसे सब लोग पढ़ सकते हैं
Don't waste time in hiding things from me
I can understand the language of the eyes
Don't ask questions for I never hide things
I am that open book that any one can read!
Thursday, November 24, 2011
Twinkle
Look at stars they look beautiful
Everyone admires their twinkling
Many wish they could reach them
But their height and the distance
Make it inaccessible unreachable
Yet they can be admired, emulated
Making good things make twinkle
What sure are within our outreach
Making the others admire us too
All within our will and convictions
Everyone admires their twinkling
Many wish they could reach them
But their height and the distance
Make it inaccessible unreachable
Yet they can be admired, emulated
Making good things make twinkle
What sure are within our outreach
Making the others admire us too
All within our will and convictions
Monday, November 21, 2011
परिवर्तन
तुम्हारे व्यव्हार से उलट सही
सराहने का तुम्हारा शुक्रिया
वह भी अप्रत्याशित रूप में
किन्तु मुझे आभास तो है
तुम व तुम्हारे मन्तव्य का
वैसे भी यह झलक रहा है
तुम्हारे शरीर की भाषा में
तुम्हारा यह उत्परिवर्तन
भविष्य का संकेत दे रहा है
तुम्हारे विगत से मिलता
मैं तथापि आशावान रहूँगा
तुम्हारी सोच में परिवर्तन को
सराहने का तुम्हारा शुक्रिया
वह भी अप्रत्याशित रूप में
किन्तु मुझे आभास तो है
तुम व तुम्हारे मन्तव्य का
वैसे भी यह झलक रहा है
तुम्हारे शरीर की भाषा में
तुम्हारा यह उत्परिवर्तन
भविष्य का संकेत दे रहा है
तुम्हारे विगत से मिलता
मैं तथापि आशावान रहूँगा
तुम्हारी सोच में परिवर्तन को
Sunday, November 20, 2011
हँस रहा था... laughing..
तुम्हें लगा होगा शायद कि मैं तुम पर हँस रहा था
मैं तो तुम पर नहीं मैं बस ज़माने पर हँस रहा था
मुझे हँसता देखकर ज़माना मुझ पर हँस रहा था
पर मैं अपने आप पर नहीं फ़साने पर हँस रहा था
You may have felt that I was laughing at you
But I was just having a laugh at whole World
Witnessing laughter World was laughing at me
Not at myself I was laughing at what happened
~Udaya
मैं तो तुम पर नहीं मैं बस ज़माने पर हँस रहा था
मुझे हँसता देखकर ज़माना मुझ पर हँस रहा था
पर मैं अपने आप पर नहीं फ़साने पर हँस रहा था
You may have felt that I was laughing at you
But I was just having a laugh at whole World
Witnessing laughter World was laughing at me
Not at myself I was laughing at what happened
~Udaya
Saturday, November 19, 2011
हद की इन्तहा
भूलने को लोग कहते हैं उनको, कैसी ये जिद हो गई
भला कैसे भुला दें उनको; उनकी आदत सी जो हो गई
मैं चलता चला गया था वहीँ; बेवजह बेकाम ही हर गली
राह में सौ रंजो गम थे मेरी; अब उन्हीं की आदत हो गई
हर लम्हा भटका मेरे साथ; जाने कब सुबह से शाम हो गई
चाँद भी अब था खलने लगा; अंधेरों की आदत जो हो गई
चाहे गुजरूँ कभी भी कहीं; मेरी यादें जेहन से मिटती नहीं
बार बार याद आता है मंज़र, अब तो हद की इन्तहा हो गई
भला कैसे भुला दें उनको; उनकी आदत सी जो हो गई
मैं चलता चला गया था वहीँ; बेवजह बेकाम ही हर गली
राह में सौ रंजो गम थे मेरी; अब उन्हीं की आदत हो गई
हर लम्हा भटका मेरे साथ; जाने कब सुबह से शाम हो गई
चाँद भी अब था खलने लगा; अंधेरों की आदत जो हो गई
चाहे गुजरूँ कभी भी कहीं; मेरी यादें जेहन से मिटती नहीं
बार बार याद आता है मंज़र, अब तो हद की इन्तहा हो गई
Friday, November 18, 2011
Intents
महंगाई के ज़माने में सस्ती बिकती है इंसानियत
फिर भी लोग ये कहते हैं की अच्छी नहीं है नीयत
In this era of rising prices humanity is sold cheap
Yet we complain good intents are difficult to keep!
फिर भी लोग ये कहते हैं की अच्छी नहीं है नीयत
In this era of rising prices humanity is sold cheap
Yet we complain good intents are difficult to keep!
मक़सद/Purpose
उसकी रवानगी से पहले कुछ वक़्त नहीं मिल पाया था
वक़्त की रवानगी से पहले मक़सद नहीं मिल पाया था
ये मक़सद जब आने लगा था इधर समझ में कुछ कुछ
उसके पूरा होने का तब कोई मतलब नहीं मिल पाया था
Before her exit time was difficult to find
At the end of the time purpose wasn't around
By the time that purpose I could understand
Meaning to fulfilling purpose I couldn't find
वक़्त की रवानगी से पहले मक़सद नहीं मिल पाया था
ये मक़सद जब आने लगा था इधर समझ में कुछ कुछ
उसके पूरा होने का तब कोई मतलब नहीं मिल पाया था
Before her exit time was difficult to find
At the end of the time purpose wasn't around
By the time that purpose I could understand
Meaning to fulfilling purpose I couldn't find
Wednesday, November 16, 2011
उधेड़ बुन
मैं उसकी सुनूँ या दिल की कहूँ
मैं खुद ही कह दूँ या चुप ही रहूँ
जी कहता है की अब कह भी दूँ
पर मन नहीं मानता क्या करूँ
कब तक इस उधेड़ बुन में रहूँ
कभी मैं सोचता हूँ कुछ न सोचूं
मगर सोचे बगैर ही कैसे रह लूँ
कैसी कशमकश में फँस गया हूँ
पर इतना मैं ज़रूर कह सकता हूँ
एक हसीं दास्तान से जूझ रहा हूँ
सोचता हूँ किस्मत पर छोड़ दूँ
अब इसी पर बस सब्र कर लेता हूँ
मैं खुद ही कह दूँ या चुप ही रहूँ
जी कहता है की अब कह भी दूँ
पर मन नहीं मानता क्या करूँ
कब तक इस उधेड़ बुन में रहूँ
कभी मैं सोचता हूँ कुछ न सोचूं
मगर सोचे बगैर ही कैसे रह लूँ
कैसी कशमकश में फँस गया हूँ
पर इतना मैं ज़रूर कह सकता हूँ
एक हसीं दास्तान से जूझ रहा हूँ
सोचता हूँ किस्मत पर छोड़ दूँ
अब इसी पर बस सब्र कर लेता हूँ
Tuesday, November 15, 2011
my random couplets
हम तो ज़िन्दगी की उलझनों में कुछ इस तरह उलझ गए
ज़िन्दगी हमको भूल गई है और हम ज़िन्दगी को भूल गए
I got entangled so much with the complications of life
That the life has forgotten me and I have forgotten life
यूँ तो हर याद वक़्त का कभी साथ नहीं छोड़ती
मग़र कुछ यादें ऐसी जो अक़्सर अकेला छोड़तीं
Generally all remembrances do remain with the times
But some remembrances often leave alone with times
कब से तेरे रुखसार की बड़ी तारीफ़ें सुनी थीं हमने
आज सीरत और सूरत का फ़र्क़ जान लिया हमने
For long I had heard about your beautiful face
Now I do know the contrasts in reality and face
कभी कभी बहुत अफ़सोस होता है हमें ज़िन्दगी पर
ख़त्म होगी एक दिन जब हम इसे छोड़ के चल देंगे
Sometimes I feel sympathetic towards life
It will be over when I move away from this
तेरी बेवफाई से जीने का सबब मिल गया हमको
वरना हम तो बस जीने की उम्मीद ही खो चुके थे
It is your betrayal that gave me the zeal to live
Otherwise some how I had lost all hopes to live
बस वही एक बात उनकी हमको भा गई
जो लाख कोशिश के बाद समझ न आई
Just that one thing I liked about you the most
That I couldn't understand with all my efforts
बेशक़ तुम्हारा मुस्कुराना तो ज़रूर क़ातिलाना था
मगर हमारे जिस्म में ख़ून का क़तरा ही कहाँ था
For sure your smile was of murderous kind
But there wasn't a drop of blood in my body
खुशहाल हैं गम और बदहाल हैं खुशियाँ
क्यों हमने बना डाली है ऐसी अब दुनियाँ
Happy are the woes and joys in bad shape
Why have we made our World in such shape
जिन्हें तुम धडकनें समझ रहे हो; सुगबुगाहट है मेरे दिल की
जिन्हें तुम हिमाक़त समझ रहे हो; मोहब्बत है मेरे दिल की
What you think is beating; is undercurrent of my heart
What you think that I dare, manifests love of my heart
हमें मझधार से नहीं किनारों से डर लगता है
बस कुछ न कर पाने की बात से डर लगता है
आज सिर्फ़ अपनी बातें कहो चाहे सही हमारे ही लिए
कल कई आयेंगे हमारी बातें सुनने समझने के लिए
today you please talk about only yourself
unending tomorrows will come for our talks
अपनी ही नज़र में हम नाहक बेवकूफ़ निकले
ज़िन्दगी जीने के और भी कई तरीक़े निकले
किसी की आशनाई से हमें क्या है सरोकार
हमें तो बस अपनी रहनुमाई का है इन्तज़ार
Why do I care about someone's concubinage
I am just awaiting around my own guidance
उनकी आँखों से छलकती शराब का क्या करूँ
पीना तो छोड़ दिया पर इस नशे का क्या करूँ
जिस किसी ने सामंजस्य बना लिया ये संसार उसी का
वरना यहाँ है हर कोई बेगाना और कोई नहीं किसी का
Those who can develop the rapport this World belongs to them
Otherwise each one here is alien and no one belongs to anyone
चार दिन मांगे थे उधार सोचा था सुकून से जी लेंगे
मगर अब सुकून को हमसे दूर रहने आदत हो गई
I had tried to borrow four days to live in peace
But peace became habitual of living without me
कुछ तो बात है जो यूँ खफा खफा से लगते हो
काहे का अफ़सोस है जो खिंचे खिंचे लगते हो
There is something that makes you dejected
What is the regret for being such indifferent!
जब से हमें इधर किसी बात की आदत न रही
तभी से आदत हमारी अपनी होकर रहने लगी
Ever since the habits are under my control
They started behaving like my own habits!
हमने की दोस्ती उनसे जिन्हें हमारी दोस्ती पर शक़ था
हमें गिला नहीं उनसे ये तो उनके दोस्त होने का हक़ था
I had made friend who had doubted the friendship
Yet had no regrets it was his/her right of friendship!
मिजाज़ आपका गर्म सही बातों में तो गर्मी कम कर सकते हो
मौसम में बड़ी ठंडक सही दिलों में तो गर्मजोशी रख सकते हो
Aside from heat of temperament conversations ca be cool
Warmth in heart is possible so what if the weather is cool!
इन्सानों में इंसानियत तो यहाँ सभी देखना चाहते हैं
हम वो हैं जो हैवानों में भी इंसानियत देखना चाहते हैं
Everyone wants to see humanity among the humans
I for one want to see humanity among the evils ones
कागज़ की क़श्ती में बैठ लोग समन्दर का रुख करते हैं
हमें यहीं रहने दो हम खुद को हर ज़गह अच्छे लगते हैं
Sitting on the boats of paper people head towards the oceans
Leave me behind I like myself everywhere with my own means
तेरे जाने के बाद अब मुझे कुछ सुकूँ आया
ऐ तूफ़ान क्यों तूने इतना कोहराम मचाया
After your passing away I feel some comfort
O typhoon! why such a disaster you brought
ज़िन्दगी हमको भूल गई है और हम ज़िन्दगी को भूल गए
I got entangled so much with the complications of life
That the life has forgotten me and I have forgotten life
यूँ तो हर याद वक़्त का कभी साथ नहीं छोड़ती
मग़र कुछ यादें ऐसी जो अक़्सर अकेला छोड़तीं
Generally all remembrances do remain with the times
But some remembrances often leave alone with times
कब से तेरे रुखसार की बड़ी तारीफ़ें सुनी थीं हमने
आज सीरत और सूरत का फ़र्क़ जान लिया हमने
For long I had heard about your beautiful face
Now I do know the contrasts in reality and face
कभी कभी बहुत अफ़सोस होता है हमें ज़िन्दगी पर
ख़त्म होगी एक दिन जब हम इसे छोड़ के चल देंगे
Sometimes I feel sympathetic towards life
It will be over when I move away from this
तेरी बेवफाई से जीने का सबब मिल गया हमको
वरना हम तो बस जीने की उम्मीद ही खो चुके थे
It is your betrayal that gave me the zeal to live
Otherwise some how I had lost all hopes to live
बस वही एक बात उनकी हमको भा गई
जो लाख कोशिश के बाद समझ न आई
Just that one thing I liked about you the most
That I couldn't understand with all my efforts
बेशक़ तुम्हारा मुस्कुराना तो ज़रूर क़ातिलाना था
मगर हमारे जिस्म में ख़ून का क़तरा ही कहाँ था
For sure your smile was of murderous kind
But there wasn't a drop of blood in my body
खुशहाल हैं गम और बदहाल हैं खुशियाँ
क्यों हमने बना डाली है ऐसी अब दुनियाँ
Happy are the woes and joys in bad shape
Why have we made our World in such shape
जिन्हें तुम धडकनें समझ रहे हो; सुगबुगाहट है मेरे दिल की
जिन्हें तुम हिमाक़त समझ रहे हो; मोहब्बत है मेरे दिल की
What you think is beating; is undercurrent of my heart
What you think that I dare, manifests love of my heart
हमें मझधार से नहीं किनारों से डर लगता है
बस कुछ न कर पाने की बात से डर लगता है
आज सिर्फ़ अपनी बातें कहो चाहे सही हमारे ही लिए
कल कई आयेंगे हमारी बातें सुनने समझने के लिए
today you please talk about only yourself
unending tomorrows will come for our talks
अपनी ही नज़र में हम नाहक बेवकूफ़ निकले
ज़िन्दगी जीने के और भी कई तरीक़े निकले
किसी की आशनाई से हमें क्या है सरोकार
हमें तो बस अपनी रहनुमाई का है इन्तज़ार
Why do I care about someone's concubinage
I am just awaiting around my own guidance
उनकी आँखों से छलकती शराब का क्या करूँ
पीना तो छोड़ दिया पर इस नशे का क्या करूँ
जिस किसी ने सामंजस्य बना लिया ये संसार उसी का
वरना यहाँ है हर कोई बेगाना और कोई नहीं किसी का
Those who can develop the rapport this World belongs to them
Otherwise each one here is alien and no one belongs to anyone
चार दिन मांगे थे उधार सोचा था सुकून से जी लेंगे
मगर अब सुकून को हमसे दूर रहने आदत हो गई
I had tried to borrow four days to live in peace
But peace became habitual of living without me
कुछ तो बात है जो यूँ खफा खफा से लगते हो
काहे का अफ़सोस है जो खिंचे खिंचे लगते हो
There is something that makes you dejected
What is the regret for being such indifferent!
जब से हमें इधर किसी बात की आदत न रही
तभी से आदत हमारी अपनी होकर रहने लगी
Ever since the habits are under my control
They started behaving like my own habits!
हमने की दोस्ती उनसे जिन्हें हमारी दोस्ती पर शक़ था
हमें गिला नहीं उनसे ये तो उनके दोस्त होने का हक़ था
I had made friend who had doubted the friendship
Yet had no regrets it was his/her right of friendship!
मिजाज़ आपका गर्म सही बातों में तो गर्मी कम कर सकते हो
मौसम में बड़ी ठंडक सही दिलों में तो गर्मजोशी रख सकते हो
Aside from heat of temperament conversations ca be cool
Warmth in heart is possible so what if the weather is cool!
इन्सानों में इंसानियत तो यहाँ सभी देखना चाहते हैं
हम वो हैं जो हैवानों में भी इंसानियत देखना चाहते हैं
Everyone wants to see humanity among the humans
I for one want to see humanity among the evils ones
कागज़ की क़श्ती में बैठ लोग समन्दर का रुख करते हैं
हमें यहीं रहने दो हम खुद को हर ज़गह अच्छे लगते हैं
Sitting on the boats of paper people head towards the oceans
Leave me behind I like myself everywhere with my own means
तेरे जाने के बाद अब मुझे कुछ सुकूँ आया
ऐ तूफ़ान क्यों तूने इतना कोहराम मचाया
After your passing away I feel some comfort
O typhoon! why such a disaster you brought
Saturday, November 12, 2011
बहुत कुछ
बहुत कुछ कहना चाहा था हम दोनों ने उस रोज़
न उनकी न हमारी ही ज़ुबां से लफ्ज़ निकल सके
वो बस देखते रहे थे हमें जाते चश्म-ए-पुरनम से
हम पलट के देखने की हिम्मत तक न जुटा सके
न उनकी न हमारी ही ज़ुबां से लफ्ज़ निकल सके
वो बस देखते रहे थे हमें जाते चश्म-ए-पुरनम से
हम पलट के देखने की हिम्मत तक न जुटा सके
Thursday, November 10, 2011
कुछ और ही
कभी आकर अपने ही ख्यालों में
देखोगे अगर मेरी ही तरफ तुम
अपनी ही नहीं मेरी नज़र से कभी
हम तब कुछ और ही आएंगे नज़र
और होगा अपना अंदाज़ भी जुदा
तुम बच नहीं पाओगे उस रोज़ फिर
अपनी ही मुस्कराहट के असर से
हम तो अक्सर इसी फितरत से
और ऐसे ही आलम के चलते बस
बचते नहीं तुम्हारी मुस्कराहट से
देखोगे अगर मेरी ही तरफ तुम
अपनी ही नहीं मेरी नज़र से कभी
हम तब कुछ और ही आएंगे नज़र
और होगा अपना अंदाज़ भी जुदा
तुम बच नहीं पाओगे उस रोज़ फिर
अपनी ही मुस्कराहट के असर से
हम तो अक्सर इसी फितरत से
और ऐसे ही आलम के चलते बस
बचते नहीं तुम्हारी मुस्कराहट से
Wednesday, November 9, 2011
छुपे हुए
जब कुछ नहीं आता समझ में हमारे अक्सर
हम उनकी उन बिंदास आँखों को देख लेते हैं
हमें क्या लेना उनके उत्तरों की तलाश से कभी
उन कई सवालों के जो नज़रों में ही छुपे हुए हैं
हम उनकी उन बिंदास आँखों को देख लेते हैं
हमें क्या लेना उनके उत्तरों की तलाश से कभी
उन कई सवालों के जो नज़रों में ही छुपे हुए हैं
Tuesday, November 8, 2011
जाल
वो पिलायेंगे तो पी लेंगे हम भी आज लबों से उनके
वो चाहेंगे तो जी लेंगे आज हम भी अंदाज़ में उनके
बहक गए हम बहक जाने दो आज ख्याल में उनके
अब हम भी तैयार हैं आज फँसने को जाल में उनके
वो चाहेंगे तो जी लेंगे आज हम भी अंदाज़ में उनके
बहक गए हम बहक जाने दो आज ख्याल में उनके
अब हम भी तैयार हैं आज फँसने को जाल में उनके
Germane
Don’t make me imagine again
I will think of the worst in vain
I wanted to get rid of this pain
I can’t bear this all over again
I don’t want anything regain
To you it might sound insane
Yet difficult for me to explain
Nothing irrelevant to contain
Wanted to shed the germane
Everything that proved a bane
Forgotten all that is mundane
Contented with my life alone
Don’t try entering my terrain
Whatever may be offer again
I’m happy and nothing to gain
Monday, November 7, 2011
प्रसंगवश
मैंने तो बस प्रसंगवश कहा था
तुमने इसे मंतव्य समझ लिया
हालाँकि मैंने मर्यादा बनाये रखी
तुमने इसे हिमाकत समझ लिया
मैं किसी सन्दर्भ में कह रहा था
तुमने इसे व्यव्हार समझ लिया
उस पल लगा तुमने समझा था
तुमने इसे कोफ़्त समझ लिया
विनम्रता से कुछ कहना चाहा था
तुमने विरोध ही समझ लिया था
हमने बस अपना समझ कहा था
तुमने तो पराया ही समझ लिया
बात बड़ी साधारण सी कही थी
तुमने असाधारण समझ लिया
ज़वाब
अब मैं चलना चाहता हूँ
पहले की तरह ही
लेकिन असमर्थ हूँ
पैरों ने ज़वाब दे दिया है
मैं भी अपने लिए कुछ पल
सब सुविधाओं के साथ
रहना चाहता हूँ
लेकिन बैंक ने कल ही
खाता शून्य पहुँचने का
ज़वाब दे दिया है
मैं अपने बच्चों से ही
मदद माँगना चाहता हूँ
महंगाई को कारण बता
उन्होंने ज़वाब दे दिया है
अब मैं नए सिरे से
ज़िन्दगी में बढ़ना चाहता हूँ
लेकिन उम्र व शरीर दोनों ने
ज़वाब दे दिया है!
पहले की तरह ही
लेकिन असमर्थ हूँ
पैरों ने ज़वाब दे दिया है
मैं भी अपने लिए कुछ पल
सब सुविधाओं के साथ
रहना चाहता हूँ
लेकिन बैंक ने कल ही
खाता शून्य पहुँचने का
ज़वाब दे दिया है
मैं अपने बच्चों से ही
मदद माँगना चाहता हूँ
महंगाई को कारण बता
उन्होंने ज़वाब दे दिया है
अब मैं नए सिरे से
ज़िन्दगी में बढ़ना चाहता हूँ
लेकिन उम्र व शरीर दोनों ने
ज़वाब दे दिया है!
Greece!
It pains me a lot to observe the developments and economic crisis in Greece! Of all places Greece! A country known for the historic civilization, thinkers, philosophers and wise people!The globalization can bring the countries with short-term vision, on the brink of bankruptcy and economic crisis; as we have seen in Greece.There will be bailout for sure; but the fundamental economic development and policies must bolster the countries to have sustainable national economy; by the side of the integration with the globalized economy.
There are no magic wands available to have such policies; yet the medium to long term policies of political economy must address the unforeseen concerns and provide for tackling of the worst case scenario. The fall back options and Plan-B must have the alternative solutions to the sudden shocks in the economy and harmony.
I do hope that the problems will be sorted out soon; else, it may have the demonstration and multiplier effects!
There are no magic wands available to have such policies; yet the medium to long term policies of political economy must address the unforeseen concerns and provide for tackling of the worst case scenario. The fall back options and Plan-B must have the alternative solutions to the sudden shocks in the economy and harmony.
I do hope that the problems will be sorted out soon; else, it may have the demonstration and multiplier effects!
Sunday, November 6, 2011
सपनों में
अपने सपनों में देखा था जिनको सपनों में ही पाया है
खुली आँख से देखा जग कुछ और हक़ीक़त लाया है
फिर भी लेकिन आँखों में क्यों उनका ही सरमाया है
दोष सभी सपनों का था शायद उनने ही भरमाया है
खुली आँख से देखा जग कुछ और हक़ीक़त लाया है
फिर भी लेकिन आँखों में क्यों उनका ही सरमाया है
दोष सभी सपनों का था शायद उनने ही भरमाया है
अधूरे
मुझको रोको न आज मुझको टोको न आज
जाने क्यों आज दिल मेरा मेरे बस में नहीं
थोड़ी नादान सी कुछ परेशान सी हसरतें
आज जाने क्योंकर कहीं भी ठहरती नहीं
आज रहने दो अधूरे सारे सवाल आपके
आज दूँ कोई मैं ज़वाब कुछ ज़रूरी नहीं
तुम ही सोचो तुम्हारी मंजिलों का पता
कभी लौट के भी मैं आऊँ ये ज़रूरी नहीं
जाने क्यों आज दिल मेरा मेरे बस में नहीं
थोड़ी नादान सी कुछ परेशान सी हसरतें
आज जाने क्योंकर कहीं भी ठहरती नहीं
आज रहने दो अधूरे सारे सवाल आपके
आज दूँ कोई मैं ज़वाब कुछ ज़रूरी नहीं
तुम ही सोचो तुम्हारी मंजिलों का पता
कभी लौट के भी मैं आऊँ ये ज़रूरी नहीं
हवा
ऐ हवा तू भूले से भी मेरे पास मत आना
मुझको तो हवा के झोंकों से चोट लगती है
अगर कभी तेरे झोंकों से महकती ख़ुशबू
मानो कोई बेबसी सी मुझे कचोट लेती है
महके महके से भी तेरे हों अगर अंदाज़
कोई भूली हुई शाम की सोच सी लगती है
गर्म हो या सर्द हो कोई भी मौसम इनका
ज़िन्दगी से ये तो सब नमी खसोट लेती है
कैसी तन्हाई कितनी बेख़ुदी का आलम है
सारे फुर्सत के पल भी ये बस समेट लेती है
After
अक्सर एहसास सा होता है किसी के जाने के बाद
कहीं कुछ कमी रह ही गई थी जानने के भी बाद
लोग रूह को सुकून मिलने की करते हैं दुआ भी
अपने वादे, अपने फ़र्ज़ सब बिसरा देने के बाद
We often realize the follies after someone left them
Recognizing all the shortcomings knowingly of them
People pray to God for the Soul to be rested peace
After forgetting of the promises and duties by them
कहीं कुछ कमी रह ही गई थी जानने के भी बाद
लोग रूह को सुकून मिलने की करते हैं दुआ भी
अपने वादे, अपने फ़र्ज़ सब बिसरा देने के बाद
We often realize the follies after someone left them
Recognizing all the shortcomings knowingly of them
People pray to God for the Soul to be rested peace
After forgetting of the promises and duties by them
Saturday, November 5, 2011
Peace
अब कैसे पाओगे सुकून इन हालात में
फिर वही कोलाहल सा है आस पास
कैसा यह कोहराम मचा रखा है इधर
हर कोई शामिल है आम हो या ख़ास
How can you ever be at peace
With so much of noise around
Everyone responsible for this
Both commoner and privileged
फिर वही कोलाहल सा है आस पास
कैसा यह कोहराम मचा रखा है इधर
हर कोई शामिल है आम हो या ख़ास
How can you ever be at peace
With so much of noise around
Everyone responsible for this
Both commoner and privileged
राय
सभी ने उसे आम आदमी मान
उसकी राय महत्वपूर्ण समझी थी
सरकारी आँकड़ों की मोहताज़
अर्थव्यवस्था के मानदंड मानो
उसके अस्तित्व का मज़ाक़ उड़ाते
लोगों ने पूछा था उससे भी
क्या ख़याल है जनाब आपका?
पेट्रोल के दाम जो बढ़े उस पर!
उसने एक नज़र भर देखकर
लम्बी साँस ले चुप्पी भर ली थी
उन्हें शायद एहसास तक न था
कहीं बड़ी थीं उसकी समस्याएं
सिर्फ पेट्रोल के बढ़े दाम से
वह सोचता ज़रूर था किन्तु
उसके लिए तो हर प्रश्न ही
एक मिथ्या आचरण मात्र था
उसे जीने के लिए हर पल ही
हर ओर संघर्ष ही करना था
उसकी राय महत्वपूर्ण समझी थी
सरकारी आँकड़ों की मोहताज़
अर्थव्यवस्था के मानदंड मानो
उसके अस्तित्व का मज़ाक़ उड़ाते
लोगों ने पूछा था उससे भी
क्या ख़याल है जनाब आपका?
पेट्रोल के दाम जो बढ़े उस पर!
उसने एक नज़र भर देखकर
लम्बी साँस ले चुप्पी भर ली थी
उन्हें शायद एहसास तक न था
कहीं बड़ी थीं उसकी समस्याएं
सिर्फ पेट्रोल के बढ़े दाम से
वह सोचता ज़रूर था किन्तु
उसके लिए तो हर प्रश्न ही
एक मिथ्या आचरण मात्र था
उसे जीने के लिए हर पल ही
हर ओर संघर्ष ही करना था
Leitmotif
I thought it was never compulsive
Yet you tried to be the exclusive
Your behavior sure was talkative
That alone cannot be the positive
You found all people as negative
Your insinuations were abrasive
The aspirations were possessive
Histrionics were again successive
Yet my response was cooperative
Anyways I had no other motive
But was trying the ways creative
And to avoid being too narrative
Leitmotif was only being positive
Yet you tried to be the exclusive
Your behavior sure was talkative
That alone cannot be the positive
You found all people as negative
Your insinuations were abrasive
The aspirations were possessive
Histrionics were again successive
Yet my response was cooperative
Anyways I had no other motive
But was trying the ways creative
And to avoid being too narrative
Leitmotif was only being positive
Friday, November 4, 2011
Mind and Heart
Mind and heart are two weird things
Things go overboard if heart thinks
When heart bleeds the persona sinks
Most hearts are don’t rationally think
Yet life sounds in extremes if it thinks
Let the minds do the thinking for you
Allow the heart-felt emotions to blink
After all rationality is never decisive
Matters of mind rarely improve things
At times with that surrounding stinks
Rational minds too seldom pull strings
Matters of heart are a bit volatile too
It’s best to maintain balance of things
Thinking
Shall we say to ourselves now?
That it’s the time to think for all
Think that not to think too much
It’s god to give space to thoughts
Let them not induce too much
Thinking that makes no sense
Let the soul takeover the mind
Be it short term or momentary
Let the dear solace be achieved
By giving breaks to our thinking
At end it shall for sure facilitate
Better thinking, good thoughts
And of course rational thinking
Are you still thinking in phase?
That needed the same change
Awaken and try stop thinking!
That it’s the time to think for all
Think that not to think too much
It’s god to give space to thoughts
Let them not induce too much
Thinking that makes no sense
Let the soul takeover the mind
Be it short term or momentary
Let the dear solace be achieved
By giving breaks to our thinking
At end it shall for sure facilitate
Better thinking, good thoughts
And of course rational thinking
Are you still thinking in phase?
That needed the same change
Awaken and try stop thinking!
Thursday, November 3, 2011
River and Ocean
The ocean said to the river
Come join august company
Of those trying to be bigger
I am happy with my being
The river replied promptly
The ocean laughed out loud
My dear river you beware
Doesn’t matter who you are
When you join me anyways
Your identity also gets lost
Your sweet water loses taste
Only I remain here for sure
I’m not sweet yet get bigger
That’s what you believe
But deep inside me around
There is a whole ecosystem
With beautiful colors of life
Together we shall nurture it
Join me and be part of it all!
धोखा
नज़र के धोखे से खा गए थे हम धोखा
अब संभले तो सब ज़माने में है धोखा
अपनी नज़र और समझ की है बात
हमारी आदत में है शुमार खाना धोखा
वो ख़ुश हो जाते हैं अपने दिए धोखे से
नहीं जानते हम खाते जानकर धोखा
बस इन्हीं आदतों के चलते लगता है
हम देते हैं उन्हें एक क़िस्म का धोखा
मगर फर्क है उनके व हमारे धोखे में
हमारा तो बस अपने ही लिए है धोखा
अब संभले तो सब ज़माने में है धोखा
अपनी नज़र और समझ की है बात
हमारी आदत में है शुमार खाना धोखा
वो ख़ुश हो जाते हैं अपने दिए धोखे से
नहीं जानते हम खाते जानकर धोखा
बस इन्हीं आदतों के चलते लगता है
हम देते हैं उन्हें एक क़िस्म का धोखा
मगर फर्क है उनके व हमारे धोखे में
हमारा तो बस अपने ही लिए है धोखा
Wednesday, November 2, 2011
साँस और ज़िस्म
साँसों में बसाए रखा था जिनको हमने
वो अब हमें साँस तक भी लेने नहीं देते
जिनको दिल में ही बसा लिया था हमने
वो अब हमें एहसास तक होने नहीं देते
दूर बजती हुई शहनाइयों के स्वर हमें
ज़िन्दगी का आभास तक होने नहीं देते
कोई तल्ख़ से ख़याल हर रोज़ हमको
चैन से कुछ पल कभी सोने नहीं देते
हम भी ज़िद पर मगर हैं बस अड़े हुए
साँस को ज़िस्म से अलग होने नहीं देते
वो अब हमें साँस तक भी लेने नहीं देते
जिनको दिल में ही बसा लिया था हमने
वो अब हमें एहसास तक होने नहीं देते
दूर बजती हुई शहनाइयों के स्वर हमें
ज़िन्दगी का आभास तक होने नहीं देते
कोई तल्ख़ से ख़याल हर रोज़ हमको
चैन से कुछ पल कभी सोने नहीं देते
हम भी ज़िद पर मगर हैं बस अड़े हुए
साँस को ज़िस्म से अलग होने नहीं देते
नए नए
बड़ी मीठी सी कसक जो अक्सर मन कचोटती है
कभी दूर नहीं बस मेरे आस पास ही विचरती है
बस एक बात जो अब भी भुलाये नहीं भूलती है
ज़िन्दगी अब तक उन्हीं के आगे पीछे घूमती है
तनहा मन कैसा होता होगा वो ये प्रश्न पूछती है
गहन तन्हाई में भी उन्हीं की परछाई डोलती है
बिन पूछे ही बस बार- बार वही राज़ खोलती है
जब कभी सन्नाटा हो वो कुछ न कुछ बोलती है
कभी कुछ तो कभी और कुछ टटोलती रहती है
कुछ भी हो वो जीवन में नए नए रस घोलती है
ख़ामोशी
मैं इत्तेफ़ाक़न नहीं जान बूझकर रखने लगता हूँ ख़ामोशी
जब कभी भी मेरे मन में आने की कोशिश करती मायूसी
चन्द लम्हे ही क़ाफ़ी हैं बस उबार लेने को कोई भी बदहोशी
दूर करने को क़ाफ़ी है रंज के एहसास को बस एक ख़ामोशी
जब कभी भी मेरे मन में आने की कोशिश करती मायूसी
चन्द लम्हे ही क़ाफ़ी हैं बस उबार लेने को कोई भी बदहोशी
दूर करने को क़ाफ़ी है रंज के एहसास को बस एक ख़ामोशी
चार दिन
जिस्म का हर एक हिस्सा थक रहा था हर दिन
रह रह के याद आते रहे हमें वो हसरतों के दिन
लौट कर आयेंगे सोचा था कभी फ़ुर्सत के दिन
हद हुई इंतज़ार की आए न कभी वो चार दिन
रह रह के याद आते रहे हमें वो हसरतों के दिन
लौट कर आयेंगे सोचा था कभी फ़ुर्सत के दिन
हद हुई इंतज़ार की आए न कभी वो चार दिन
Tuesday, November 1, 2011
अन्दर की बात
मेरे पास भी विवरण हैं संजोये हुए
मेरे प्रयास और जो मैंने संघर्ष किए
सराहनीय कुछ भी नहीं मिला लेकिन
राजनेताओं के प्रगति के रिपोर्ताज़ सा
लिखने और कहने को बहुत कुछ है
किन्तु अन्दर की बात मुझे ज्ञात है
फिर भी जब तुलना करने लगता हूँ
थोडा बहुत आश्वस्त सा हो जाता हूँ
इस बात का होने लगता है फख्र मुझे
ईमानदारी से निभाया जो मिला मुझे
कहीं अन्दर से कम सा तो लगता है
पर ज़िन्दगी में कहाँ सब मिलता है
रहम
मेरे मौला तू बस इतना सा करम करना
मेरे रस्ते मेरी हकीकत पर नज़र रखना
जब घने सायों से गुज़रा था मेरा रास्ता
रौशनी की कमी को ज़रूर तू समझ लेना
मेरे सब हमसफ़र जो मेरे कभी संग चले
उनके हिस्से की सजा भी तू मुझको देना
मैं यक़ीनन ही तेरे फैसले की करूँगा कद्र
तू भी मेरी मुश्किलों का मुआइना करना
मांगी नहीं माफ़ी जो मैंने किसी भी वज़ह
सजा तो देना मगर थोड़ा रहम तू करना
Monday, October 31, 2011
यदा कदा
बिस्म्रित से हो गए लोग भी
याद तो आ जाते हैं यदा कदा
बिलकुल अपनी ही यादों से
गूंजने लगती है उनकी सदा
मानो कल की ही सी हो बात
कल के ही सब पल हों सर्वथा
बस समय निकल चुका हो
पर अंकित हों मन में सर्वदा
किसी रूहानी या ज़ज्बाती से
सवाल भी आ जाते यदा कदा
याद तो आ जाते हैं यदा कदा
बिलकुल अपनी ही यादों से
गूंजने लगती है उनकी सदा
मानो कल की ही सी हो बात
कल के ही सब पल हों सर्वथा
बस समय निकल चुका हो
पर अंकित हों मन में सर्वदा
किसी रूहानी या ज़ज्बाती से
सवाल भी आ जाते यदा कदा
राज की बात
उनके आने से बहुत पहले का ही था यह राज
अपने राजा तो होंगे हम भी शहँशाह न सही
सोचा था हमने भी कभी हम भी करेंगे राज
कहीं और नहीं तो किसी के दिल पर ही सही
मगर कर न पाए अपने ही दिल पर भी राज
अब सोचते हैं की दिल की मुफ़्लिसी ही सही
यूँ भी चला पाना मुश्किल ही था हमसे राज
वो राज न था न सही ये राज की बात ही सही
अपने राजा तो होंगे हम भी शहँशाह न सही
सोचा था हमने भी कभी हम भी करेंगे राज
कहीं और नहीं तो किसी के दिल पर ही सही
मगर कर न पाए अपने ही दिल पर भी राज
अब सोचते हैं की दिल की मुफ़्लिसी ही सही
यूँ भी चला पाना मुश्किल ही था हमसे राज
वो राज न था न सही ये राज की बात ही सही
Saturday, October 29, 2011
कमज़र्फ
किसी कमज़र्फ से पड़ा था पाला अपना
वरना हमारी भी थी कोई बिसात अपनी
इतनी भी तुम क्या संगदिली रखते हो
पहले ही बहुत तल्ख़ है बेदिली अपनी
Friday, October 28, 2011
नज़र से नज़र
हाँ उसकी नज़रें भी अक्सर
चुरा लेती हैं अपनी ही नज़र
जब कोई अंदाज़ ओ बयां हो
कोई मीठा सा एक सपना हो
जब आँखें शर्माती हैं नज़र से
कोई गुदगुदा सा एहसास हो
एक हसीं लम्हे की तलाश में
जब कोई ख़ुद खो सा जाता हो
या कोई ऐसी उन्मुक्त सी हँसी
कोई शरारत याद दिलाती हो
किसी गहरे दोस्त से कही कोई
अचानक ख़ास याद आ जाती हो
वो ख़ुद भी शरमाकर अक्सर
चुराते हैं अपनी नज़र से नज़र
चुरा लेती हैं अपनी ही नज़र
जब कोई अंदाज़ ओ बयां हो
कोई मीठा सा एक सपना हो
जब आँखें शर्माती हैं नज़र से
कोई गुदगुदा सा एहसास हो
एक हसीं लम्हे की तलाश में
जब कोई ख़ुद खो सा जाता हो
या कोई ऐसी उन्मुक्त सी हँसी
कोई शरारत याद दिलाती हो
किसी गहरे दोस्त से कही कोई
अचानक ख़ास याद आ जाती हो
वो ख़ुद भी शरमाकर अक्सर
चुराते हैं अपनी नज़र से नज़र
Tuesday, October 25, 2011
मेरी बात
सुन रहे थे तुम मेरी बात
अपने बंधे हाथों के साथ
शायद अनसुनी कर रहे थे
तुम जानकर ही मेरी बात
किन्तु मेरा मन साफ़ हुआ
अवसर रहते कह दी बात
अनजाने में ही हो सही पर
तुम्हारे समक्ष थी मेरी बात
शायद कभी समझ सको तुम
भविष्य में ही सही मेरी बात
फिर शायद मैं न कह पाऊं
तुमसे या मुझसे मेरी बात
Unmindful
The angels wandered why?
The people are in despair
Birds are chirping in low tone
Forests have shed greens
Water bodies are shrinking
People are experiencing
Their happiness receding
World of friendship is limiting
In this very planet Earth
That witnessed no dearth
Of all these things in the past
They then said to themselves
Machines have taken over man
And man has become machine
Family bonds have diminished
Individuals are self-centric
Living is not cooperative now
Hearts don’t decide anymore
Minds have taken over it all
Everyone plays mind games
Unmindful of consequences!
The people are in despair
Birds are chirping in low tone
Forests have shed greens
Water bodies are shrinking
People are experiencing
Their happiness receding
World of friendship is limiting
In this very planet Earth
That witnessed no dearth
Of all these things in the past
They then said to themselves
Machines have taken over man
And man has become machine
Family bonds have diminished
Individuals are self-centric
Living is not cooperative now
Hearts don’t decide anymore
Minds have taken over it all
Everyone plays mind games
Unmindful of consequences!
अटपटा सा
गा रही थी गीत कोई
आज कोयल अटपटा सा
बोल शायद आज उसके
थे नहीं कुछ दिल से निकले
थी सुरों में कुछ मायूसी सी
कंठ भी कुछ था बिह्वल सा
स्वप्नवत लगती थी धरती
आज रस सब लापता था
फिर भी कोयल गा रही थी
अपना ज़िम्मा निभा रही थी
कौन जाने इस गीत के सुर
कुछ तो छोडें कहीं सीख सी
मार्ग के पथिक भी शायद
गीत पाएँ कर्णप्रिय न सही
सुन के सम्हलें अटपटा सा
आज कोयल अटपटा सा
बोल शायद आज उसके
थे नहीं कुछ दिल से निकले
थी सुरों में कुछ मायूसी सी
कंठ भी कुछ था बिह्वल सा
स्वप्नवत लगती थी धरती
आज रस सब लापता था
फिर भी कोयल गा रही थी
अपना ज़िम्मा निभा रही थी
कौन जाने इस गीत के सुर
कुछ तो छोडें कहीं सीख सी
मार्ग के पथिक भी शायद
गीत पाएँ कर्णप्रिय न सही
सुन के सम्हलें अटपटा सा
Monday, October 24, 2011
मतवाली
घर घर होड़ लगी है कैसी
सजावटें और साज निराली
चकाचौंध रौशनी पटाखे
कैसी चमक रही दीवाली
पर आधी से ज्यादा आबादी
आधे भूखे पेट है सो ली
इन्हें न मिलती कोई होली
इनकी है न कोई दीवाली
पर दुनियां अपनी ही धुन में
गाती फिरती है मतवाली
Sunday, October 23, 2011
आज दीवाली
दूर करो सब अंधकार तुम
तन का मन का और आँगन का
हटा मैल सब मलिन मनों से तुम
कर लो स्वागत नव प्रकाश का
अपने ही जीवन में क्यों हो सोचो
बाँटो औरों को भी सब खुशहाली
तुम प्रेम, सद्भाव के दीप जलाकर
मिलकर मनाओ आज दीवाली
जगमग दीप जलें अंतर्मन में भी
अन्दर-बाहर सब आज दीवाली
तन का मन का और आँगन का
हटा मैल सब मलिन मनों से तुम
कर लो स्वागत नव प्रकाश का
अपने ही जीवन में क्यों हो सोचो
बाँटो औरों को भी सब खुशहाली
तुम प्रेम, सद्भाव के दीप जलाकर
मिलकर मनाओ आज दीवाली
जगमग दीप जलें अंतर्मन में भी
अन्दर-बाहर सब आज दीवाली
Friday, October 21, 2011
आशा की किरण
फिर कोई आशा की किरण
दस्तक सी देती मेरे द्वार पर
नवजीवन का सन्देश लाती
उगती धूप का आभास करा
दिन में सुनहरा रंग भरती
मेरे आस पास ही विचरती
मुझे जीवन का पाठ पढ़ाती
नई नई उमंगों को मचलाती
कुछ नूतन कुछ परिचित का
मिश्रित भाव मन में जगाती
संशय भी सकारात्मकता भी
फिर भी खुबसूरत बनाती मेरे
पल पल को फिर से यहाँ
मेरी एक नई आशा की किरण
दस्तक सी देती मेरे द्वार पर
नवजीवन का सन्देश लाती
उगती धूप का आभास करा
दिन में सुनहरा रंग भरती
मेरे आस पास ही विचरती
मुझे जीवन का पाठ पढ़ाती
नई नई उमंगों को मचलाती
कुछ नूतन कुछ परिचित का
मिश्रित भाव मन में जगाती
संशय भी सकारात्मकता भी
फिर भी खुबसूरत बनाती मेरे
पल पल को फिर से यहाँ
मेरी एक नई आशा की किरण
Tuesday, October 18, 2011
जानबूझकर
हम भुला लेते जिसे तुम्हारी नादानी समझकर
तुम वही करते रहे हमारी कमजोरी समझकर
हम अब भी उसे बस भुला ही देंगे जानबूझकर
इसी को तुममें और हममें एक फर्क समझकर
तुम वही करते रहे हमारी कमजोरी समझकर
हम अब भी उसे बस भुला ही देंगे जानबूझकर
इसी को तुममें और हममें एक फर्क समझकर
Monday, October 17, 2011
छोटी सी बात
छोटी सी तो थी बात बस; चन्द अल्फाज़ में ही कह दी
ख़त्म थे अल्फाज़ तो क्या; बात अब बाक़ी ही कब थी
रात कटती गई थी बस इधर; आँखों ही आँखों में सारी
चैन की नींद सोते कहाँ से; रात अब बाक़ी ही कब थी
ख़त्म थे अल्फाज़ तो क्या; बात अब बाक़ी ही कब थी
रात कटती गई थी बस इधर; आँखों ही आँखों में सारी
चैन की नींद सोते कहाँ से; रात अब बाक़ी ही कब थी
Wednesday, October 12, 2011
ज़र्ज़र
तिनका तिनका चुन चुन कर
बनाया था आशियाना हमने
हवाओं के झोंके; तपती धूप
बारिश के पानी में भीगे पर
कोई परवाह नहीं की हमने
न मालूम किस किस शत्रु से
बचा कर रखा तुमको हमने
शुरू से तुम्हारे छुटपन तक
दाना तक डाल मुख में तुम्हारे
मैंने तुम्हें जीवन के रंगों से
करवाया था सब परिचित
और तुम! उड़ चले दूर कहीं
पंख निक़लते ही तुम्हारे
मैंने भी इस ज़र्ज़र घोंसले को
त्याग ही दिया था लेकिन
फिर वही याद यहाँ ले आई
सुखी रहो! तुम्हारे नये देश!
बनाया था आशियाना हमने
हवाओं के झोंके; तपती धूप
बारिश के पानी में भीगे पर
कोई परवाह नहीं की हमने
न मालूम किस किस शत्रु से
बचा कर रखा तुमको हमने
शुरू से तुम्हारे छुटपन तक
दाना तक डाल मुख में तुम्हारे
मैंने तुम्हें जीवन के रंगों से
करवाया था सब परिचित
और तुम! उड़ चले दूर कहीं
पंख निक़लते ही तुम्हारे
मैंने भी इस ज़र्ज़र घोंसले को
त्याग ही दिया था लेकिन
फिर वही याद यहाँ ले आई
सुखी रहो! तुम्हारे नये देश!
नज़ारे
हमने सोचा था ग़मों को आंसुओं में बहा देंगे
टुकड़े टुकड़े में ही सही यूँ ज़िन्दगी जी लेंगे
बड़े सुकून से इनसे हट के नज़ारे कर लेंगे
जी भर के जब हम आसमाँ की ओर देखेंगे
टुकड़े टुकड़े में ही सही यूँ ज़िन्दगी जी लेंगे
बड़े सुकून से इनसे हट के नज़ारे कर लेंगे
जी भर के जब हम आसमाँ की ओर देखेंगे
Tuesday, October 11, 2011
ख्वाहिश
बड़ी ख्वाहिश थी कि तुम हमारे साथ साथ चलो
चाहे थोड़ी दूर ही सही हम तुम संग संग तो चलें
मगर हमारी ये हसरत ही बाक़ी रह गई आखिर
तुम हमारे ज़नाजे के संग चले भी तो क्या चले
चाहे थोड़ी दूर ही सही हम तुम संग संग तो चलें
मगर हमारी ये हसरत ही बाक़ी रह गई आखिर
तुम हमारे ज़नाजे के संग चले भी तो क्या चले
Monday, October 10, 2011
यथार्थ का यथार्थ
यथार्थ का यथार्थ
औपचारिकता का बोझ ढोते वह
न मालूम कब से तलाश रही थी
सुकून से जीने के अपने दो पल
यथार्थ से अब वह कुढ़ने लगी थी
उसकी नज़रें मानो तलाश में थीं
यथार्थ को अपेक्षित में देखने की
अपेक्षित और यथार्थ का अंतर
औपचारिकताओं में सिमटा था
अब यही अंतर पाटने के लिए ही
उसने प्रयास शुरू कर दिया था
पर यथार्थ का यथार्थ अलग था
इसलिए कर लिया समझौता
उसने अब बस यथार्थ के साथ
औपचारिकता का बोझ ढोते वह
न मालूम कब से तलाश रही थी
सुकून से जीने के अपने दो पल
यथार्थ से अब वह कुढ़ने लगी थी
उसकी नज़रें मानो तलाश में थीं
यथार्थ को अपेक्षित में देखने की
अपेक्षित और यथार्थ का अंतर
औपचारिकताओं में सिमटा था
अब यही अंतर पाटने के लिए ही
उसने प्रयास शुरू कर दिया था
पर यथार्थ का यथार्थ अलग था
इसलिए कर लिया समझौता
उसने अब बस यथार्थ के साथ
Stance
Hurrah! Said the Satan
Smelling victory around
In the very Planet Earth
Eluding peace around
Making them all martyrs
Millions of the terrorists
Satan had then faltered!
Not counting goodness
And numbers around
Of all the good people
The followers of Satan
In the very Planet Earth
They sure outnumbered
Gave hopes of goodness
Not just a mere chance
But stance of reassurance!
Sunday, October 9, 2011
दीदार
बात एक बस दीदार की नहीं उम्र भर साथ की है
वक़्त की आँधियों में भी मोहब्बत संवर जाएगी
रफ़्तार चाहे धीमी भी रहे तो भी हमें गम नहीं है
ज़िन्दगी का क्या है वो तो बस गुज़र ही जाएगी
वक़्त की आँधियों में भी मोहब्बत संवर जाएगी
रफ़्तार चाहे धीमी भी रहे तो भी हमें गम नहीं है
ज़िन्दगी का क्या है वो तो बस गुज़र ही जाएगी
Saturday, October 8, 2011
चंचल
खोई खोई आँखों में हैं; मीठे मीठे सपने
प्यारे प्यारे लगते हैं; हर पल अपने
कैसी अनोखी है ये; क्या रुत छाई
बादलों के देश भी; लगते हैं अपने
कभी बल खाके; ज़ुल्फ़ उड़ी जाती
कभी लहरा के ये; उड़ता है आँचल
कभी रुक जाते हैं; ये सारे पल पल
साँस हुई मध्यम; दिल हुआ पागल
दिन हुए अपने; ख्वाब भी हैं अपने
जाने कौन कौन देश; मन चला जाए
कैसे कैसे सपने ये, मन बुने जाए
उनके ख्यालों से ये, मन मुस्कुराए
जैसे कोई पास से; मुझे छुए जाए
कोई एहसास देता; सारे कुछ अपने
मुझे मदहोश करते; चंचल ये सपने
उजागर
सूरज के उदय होते ही देखो तो
रात के अंधियारे हैं कहाँ खो गए
कितने लोगों के हैं तुम देख लो
कई राज इधर उजागर हो गए
लगता है फिर शाम आयेगी यहाँ
कई लोग कई कारण बेसब्र हो गए
दिन भर के शोर के पल फिर सब
रात की तनहाइयों में हैं खो गए
कितने साथी इस रात के हैं पर
फिर भी कई लोग तनहा हो गए
सितारों का नज़ारा करते करते ही
चाँद को ही सब कोई बिसरा गए
Friday, October 7, 2011
Unassuming
Most things do come back to you
The echoes of the words spoken
The hits and trials in your own life
The reverberation of their sound
The benefits and punishments of
Your deeds defining your karma
Unpredictable and apprehensive
Flow and the course of your lives
Through beaten or unbeaten path
All the mystical ways of the living
Making it two way phenomenon
Those who give or pass on things
Sure receive them from unknown
The cycle of giving and receiving
As the most unassuming surprises
Wednesday, October 5, 2011
जय हो!
बड़ा विचित्र है ये जीवन क्रम
और निराले यहाँ के लोग भी
कितने विचित्र इनके रंग प्रसंग
कई तरह के इनके प्रारब्ध भी
प्रकृति के परिवेश में है बसी
निरंतरता व्यस्त पलों में भी
जलचर, नभचर और उभयचर
कृमि, पादप और वनस्पति भी
एक से दीखते हैं सबके क्रम
उनके समान जीवन संघर्ष भी
कभी निराशा में आशा की तलाश
अनायास प्रसन्नता के पल भी
इन सभी विसंगतियों के साथ
जय हो! जीवन की फिर भी
Tuesday, October 4, 2011
Dream Sequence
Yes! Mundane it might sound
Precious it was for me and you
The life like a dream sequence
The life I have spent with you
I could spend many more lives
In my those memories with you
Cherishing moments of my joy
In those days of togetherness
I would try never draw parallels
I would never complain to you
You made my life so beautiful
Short time but happy plentiful
To make life beautiful for you
Be assured I shall pray for you
Monday, October 3, 2011
आते जाते
ऐसी तो धरती प्यासी कभी न थी
कहाँ गए अब वो सब जल प्रपात
सूने आँगन में था जो रंग बिखेरता
पर धूमिल सा क्यों है अब ये प्रभात
बंद कमरों में भी होती है प्रायः क्यों
आज भी चांदनी और तारों की बात
मालूम होकर भी अब प्रतीक्षा क्यों है
भूल गए जब लोग यहाँ हैं तात-मात
मलिन मनों के गहरे दागों को अब
कैसे धो डालोगे तुम इस किस हाथ
बड़ी अनूठी है क्यों ये जग की चर्चा
आते जाते पल की भर है ये ज़मात
Saturday, October 1, 2011
बिंदास रहने का
बिंदास रहने का
कोई भी टेंशन लाइफ में
कैसी भी मुश्किल लाइफ में
बिंदास रहने का
बिंदास में उल्हास; सारी दुनियाँ नाचे तेरे साथ
टेंशन में खल्लास; कोई न तेरे पास आने का
सोच ले बस ये बच्चू तू; जीने का या मरने का
बिंदास रहने का
वाइफ ने कर दी मुश्किल लाइफ, छोड़ परे
ऑफिस में है बौस ख़राब; भूल जा प्यारे
दिल पे मत ले प्यारे, उदास नहीं रहने का
बिंदास रहने का
जो नौकरी नहीं तो, कुछ और बस तू कर ले
गर्ल फ्रेंड या दोस्त नहीं; पोइट्री तू कुछ लिख ले
और कहीं नहीं तो, फेस बुक में ढूँढने का
बिंदास रहने का
कुछ सपने भी तू देख; क्या मस्त लगने का
लाइफ में लेकिन तुम; हकीकत में रहने का
आँखों में नींद नहीं तो, कुछ भी पढने का
बिंदास रहने का
कोई भी टेंशन लाइफ में
कैसी भी मुश्किल लाइफ में
बिंदास रहने का
बिंदास में उल्हास; सारी दुनियाँ नाचे तेरे साथ
टेंशन में खल्लास; कोई न तेरे पास आने का
सोच ले बस ये बच्चू तू; जीने का या मरने का
बिंदास रहने का
वाइफ ने कर दी मुश्किल लाइफ, छोड़ परे
ऑफिस में है बौस ख़राब; भूल जा प्यारे
दिल पे मत ले प्यारे, उदास नहीं रहने का
बिंदास रहने का
जो नौकरी नहीं तो, कुछ और बस तू कर ले
गर्ल फ्रेंड या दोस्त नहीं; पोइट्री तू कुछ लिख ले
और कहीं नहीं तो, फेस बुक में ढूँढने का
बिंदास रहने का
कुछ सपने भी तू देख; क्या मस्त लगने का
लाइफ में लेकिन तुम; हकीकत में रहने का
आँखों में नींद नहीं तो, कुछ भी पढने का
बिंदास रहने का
Monday, September 26, 2011
और कितने!
हम करते रहे कोशिश एक के बाद एक
आशाएं पर धूमिल होती रही फ़सानों से
अब न मालूम कब तक गुज़ारना होगा
और कितने नए नए से इम्तिहानों से
आशाएं पर धूमिल होती रही फ़सानों से
अब न मालूम कब तक गुज़ारना होगा
और कितने नए नए से इम्तिहानों से
Touching the Hearts
I went up to touch the sky
Then I found that it too far
I went to see depth of ocean
I found it too deep to reach
I wanted to catch the winds
And found them too slippery
I went to scale high peaks
But they were a hard climb
I wanted to catch the time
Oops!It was also so difficult
I went to touch the hearts
It was so simple to make it
And without my expectation
I got the reciprocation too
So many touching my heart
Sunday, September 25, 2011
वही पुरानी
उस तेज़ बारिश में भी
जाना ज़रूरी ही था उसे
पानी जो भर लाना था
फिर कुछ छोटी मोटी
खरीददारी भी बाकी थी
शाम के भोजन का प्रबंध
बस सीधे चल पड़ी थी वह
बिना कोई छतरी लिए ही
तेज़ बारिश में भीगती भीगती
आ गई थी वह ठिठुरती सी
पकौड़े मिलने में देर से खिन्न
उसका पति कुढ़ सा रहा था
देशी शराब पीते पीते ही
सब के भोजन के बाद अब
कुछ बचा हुआ भोजन था
उसके हिस्से यही आया था
बुखार सर्दी से कांपते वह
सोने चली थी वह ज्यों ही
अब पति उसके तन से खेल
अपनी प्यास बुझा सो गया
बुखार बढ़ने लगा था अब
दवा पानी की फ़िक्र छोड़
सुबह सब काम कैसे करेगी
वह अब इसी चिंता में थी
काम सबको था पर किसी को
उसकी फ़िक्र कतई नहीं थी
Monday, September 19, 2011
Not Sure!
I was indeed not at all sure
What life had in store for me
What I had looked in for my life
Life perhaps was also not sure
Me and life made a compromise
We shall not bother each other
We take any course on the offer
Our ways may be different; yet
Our approach could be similar
We like what is given anyways
We compliment, not complain
Like each other as companion
We can walk along wherever
Our paths too, we are not sure!
Sunday, September 18, 2011
विगत एहसास
लगता है फिर जम के बरसेंगे बादल आज
फिर बहेगी बयार भी वर्षा की नमी के साथ
बारिश की बूँदों से टपकेगा एक नया संगीत
भीगे भीगे मौसम में फिर कोई गुनगुनाएगा
एक बेहद रूमानी संगीतमय सुरीला सा गीत
कोई राग किसी की यादों में फिर ले जायेगा
पँछी छुपेंगे किसी डाली के बीच बने कोटर में
लोग खिडकियों से झांकेंगे भीगते मंज़र को
किसी गुदगुदाते मीठे विगत एहसास के साथ
वही मस्त अल्हड़पन से महकती यादों के साथ
कौन कहता है ये सिर्फ सावन का नज़ारा है!
Saturday, September 17, 2011
नीयत
हमें उम्मीद है कि वो बदल सकते हैं दुनियाँ
उन्हें मालूम हो या न हो उनकी क़ाबिलियत
ख़ुशी होगी हमें वो करें आबाद सब की दुनियाँ
उन्हें बस एक ठीक रखनी होगी उनकी नीयत
उन्हें मालूम हो या न हो उनकी क़ाबिलियत
ख़ुशी होगी हमें वो करें आबाद सब की दुनियाँ
उन्हें बस एक ठीक रखनी होगी उनकी नीयत
Friday, September 16, 2011
तसल्ली
सोचते ही रह गए थे हम वक़्त निक़ल गया
अब लगता है कि शायद कह ही दिया होता
जो शुरू ही न हुआ उसका सोचते हैं अंज़ाम
कह कर तो बस एक बार हमने देखा होता
कह अगर देते हम अपनी ही ओर से सही
क्या मालूम अंज़ाम कुछ और हुआ होता
कोशिश की होती तो ही होता मालूम हमें
नहीं मालूम हमें इक़रार होता या न होता
उनकी न भी ज़रूर क़बूल ही हुई होती हमें
तसल्ली होती चाहे इनक़ार ही हुआ होता
अब लगता है कि शायद कह ही दिया होता
जो शुरू ही न हुआ उसका सोचते हैं अंज़ाम
कह कर तो बस एक बार हमने देखा होता
कह अगर देते हम अपनी ही ओर से सही
क्या मालूम अंज़ाम कुछ और हुआ होता
कोशिश की होती तो ही होता मालूम हमें
नहीं मालूम हमें इक़रार होता या न होता
उनकी न भी ज़रूर क़बूल ही हुई होती हमें
तसल्ली होती चाहे इनक़ार ही हुआ होता
Thursday, September 15, 2011
कल की ही सी बात
आज क्या होगा नया ये सोचते देखते निकल गया आज
एक बार फिर हो चली है आज की ही बात कल की भी
कल होगा तो एक नया दिन ज़रूर पर इत्तला रहे ये भी
अब क्या मालूम कल की ही सी बात होगी कल की भी
एक बार फिर हो चली है आज की ही बात कल की भी
कल होगा तो एक नया दिन ज़रूर पर इत्तला रहे ये भी
अब क्या मालूम कल की ही सी बात होगी कल की भी
Wednesday, September 14, 2011
मोल तोल
हमें जो करना भी पड़ा इंतज़ार तो कोई गिला नहीं
तुमसे हमें किसी बात का मिला भी कोई सिला नहीं
फिर भी हम अपने हाल में ही रहते हैं खुश अक्सर
हमने मोल तोल नहीं किया कि कुछ मिला या नहीं
तुमसे हमें किसी बात का मिला भी कोई सिला नहीं
फिर भी हम अपने हाल में ही रहते हैं खुश अक्सर
हमने मोल तोल नहीं किया कि कुछ मिला या नहीं
Monday, September 12, 2011
ज़िन्दगी
कितनी भी दूर से नज़ारा कर लूं मैं
पर मेरे कितने करीब है ये ज़िन्दगी
सब कुछ सह लेते है इसकी ख़ातिर
है कैसा ये हसीन ज़ज्बात ज़िन्दगी
रोज़ नये नए रंगों में इठलाती सी है
क्या ख़ूबसूरत एहसास है ज़िन्दगी
कब किस करवट बैठे ये मालूम नहीं
चलते रहते भी ठहरी सी है ज़िन्दगी
इस गुज़रते वक़्त के चलते भी मानो
एक थमा हुआ सा वक़्त है ज़िन्दगी
पाने खोने के सिलसिले के बीच भी
कुछ पास होने का एहसास ज़िन्दगी
पर मेरे कितने करीब है ये ज़िन्दगी
सब कुछ सह लेते है इसकी ख़ातिर
है कैसा ये हसीन ज़ज्बात ज़िन्दगी
रोज़ नये नए रंगों में इठलाती सी है
क्या ख़ूबसूरत एहसास है ज़िन्दगी
कब किस करवट बैठे ये मालूम नहीं
चलते रहते भी ठहरी सी है ज़िन्दगी
इस गुज़रते वक़्त के चलते भी मानो
एक थमा हुआ सा वक़्त है ज़िन्दगी
पाने खोने के सिलसिले के बीच भी
कुछ पास होने का एहसास ज़िन्दगी
क्या कहते हो
बहती थीं नदियाँ दूध की ज़रूर शायद
मैंने माना क्यों कि ये भी तुम कहते हो
मैंने तो दूध में पानी की देखी हैं नदियाँ
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
सोने की चिड़िया था कभी ये मेरा देश
औरों के साथ तुम भी तो ये कहते हो
तुम्हें इसे चिड़िया बना उड़ाते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
रही होगी इज्ज़त महिलाओं की कभी
अपनी लिखी किताबों में तुम कहते हो
मैंने तो इसे रोज़ सरेआम लुटते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
मैं भी हूँ क़ायल सभ्यता का तुम्हारी
इतिहास में कुछ ख़ास ज़िक्र सा पढ़ा है
मैंने तो तुम्हारी असभ्यता ही देखी है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
मैंने माना क्यों कि ये भी तुम कहते हो
मैंने तो दूध में पानी की देखी हैं नदियाँ
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
सोने की चिड़िया था कभी ये मेरा देश
औरों के साथ तुम भी तो ये कहते हो
तुम्हें इसे चिड़िया बना उड़ाते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
रही होगी इज्ज़त महिलाओं की कभी
अपनी लिखी किताबों में तुम कहते हो
मैंने तो इसे रोज़ सरेआम लुटते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
मैं भी हूँ क़ायल सभ्यता का तुम्हारी
इतिहास में कुछ ख़ास ज़िक्र सा पढ़ा है
मैंने तो तुम्हारी असभ्यता ही देखी है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
Sunday, September 11, 2011
Saturday, September 10, 2011
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी को मनाना तो सीखा नहीं हमने
फिर भी बस कुछ अच्छे से ही गुज़र गई
हम तो थे चलते ही रहे ज़िन्दगी के साथ
कभी रूठी थी ज़िन्दगी तो कभी मान गई
फिर भी बस कुछ अच्छे से ही गुज़र गई
हम तो थे चलते ही रहे ज़िन्दगी के साथ
कभी रूठी थी ज़िन्दगी तो कभी मान गई
Friday, September 9, 2011
मेहरबान
मेरे मेहरबान मुझे जीने दे सुकून से
अपनी रहमत अब कहीं और कर तू
रात को दिन व दिन को रात न कर
इतनी बड़ी इनायत मुझपे न कर तू
क्यों दिखता है हाहाकार ही सदा अब
मुझे ऐसे उजाले से तो मत डरा तू
मुझे तो बस इस अँधेरे में ही रहने दे
अब कहीं और ये उजाला कर ले तू
या उन अँधेरे के गलियारों में करते
सारे काम गलत बंद करा दे अब तू
उजले वस्त्र पहन करते जो अपराध
उनके कुकर्म उजाले में ले आना तू
फिर चाहे तो जी भर के कर देना
मेरे आस पास भी ख़ूब उजाला तू
अपनी रहमत अब कहीं और कर तू
रात को दिन व दिन को रात न कर
इतनी बड़ी इनायत मुझपे न कर तू
क्यों दिखता है हाहाकार ही सदा अब
मुझे ऐसे उजाले से तो मत डरा तू
मुझे तो बस इस अँधेरे में ही रहने दे
अब कहीं और ये उजाला कर ले तू
या उन अँधेरे के गलियारों में करते
सारे काम गलत बंद करा दे अब तू
उजले वस्त्र पहन करते जो अपराध
उनके कुकर्म उजाले में ले आना तू
फिर चाहे तो जी भर के कर देना
मेरे आस पास भी ख़ूब उजाला तू
Wednesday, September 7, 2011
आत्मा की शांति
मेरा तुम्हारा नाता बस
इसी जहान तक का है
यूँ भी इसके बाद कुछ नहीं
ये आभास है मुझको
मेरे जाने के बाद भी क्या
रखोगे तुम याद मुझको
या 'आत्मा की शांति ' चाहकर
बस भूल जाओगे मुझको
मैं तो चला ही जाऊंगा
तुम्हें ख़ुशी की दुआएँ देकर
खुशियाँ मिलने पर भी तुम
शायद भूल जाओगे मुझको
मेरी आत्मा शांत हो जाएगी
मेरे जाने से पहले ही जब
तुम भूल जाओगे मुझको
इसी जहान तक का है
यूँ भी इसके बाद कुछ नहीं
ये आभास है मुझको
मेरे जाने के बाद भी क्या
रखोगे तुम याद मुझको
या 'आत्मा की शांति ' चाहकर
बस भूल जाओगे मुझको
मैं तो चला ही जाऊंगा
तुम्हें ख़ुशी की दुआएँ देकर
खुशियाँ मिलने पर भी तुम
शायद भूल जाओगे मुझको
मेरी आत्मा शांत हो जाएगी
मेरे जाने से पहले ही जब
तुम भूल जाओगे मुझको
ग़लत
वो तरफ़दारी कर रहे थे हमारी
हमने इसे बस हक़ीक़त समझा
वो तो बड़ी दूर की सोच रहे थे
हमने इसे उनकी इनायत समझा
बाद में वो इससे पलट भी गए
हमने इसे उनकी मज़बूरी समझा
हम उनकी बड़ी ही कद्र करते थे
उनने ये हमारी कमजोरी समझा
हम फिर भी देते रहे थे इज्ज़त
उनने इसे हमारी ज़रूरत समझा
हम जान कर अनजान बने रहे
उन्होंने इसे भी नादानी समझा
जो कुछ भी समझ पाए हों वो
उन्होंने हमें कभी नहीं समझा
हमने इसे बस हक़ीक़त समझा
वो तो बड़ी दूर की सोच रहे थे
हमने इसे उनकी इनायत समझा
बाद में वो इससे पलट भी गए
हमने इसे उनकी मज़बूरी समझा
हम उनकी बड़ी ही कद्र करते थे
उनने ये हमारी कमजोरी समझा
हम फिर भी देते रहे थे इज्ज़त
उनने इसे हमारी ज़रूरत समझा
हम जान कर अनजान बने रहे
उन्होंने इसे भी नादानी समझा
जो कुछ भी समझ पाए हों वो
उन्होंने हमें कभी नहीं समझा
Monday, September 5, 2011
रुस्वाइयाँ
कभी खुशियाँ कभी मायूसी है यहाँ
मैं अकेला नहीं है पूरी दुनियां मेरी
हर रोज़ ही नए लोग मिलते यहाँ
सच में कितनी बड़ी ये दुनियां मेरी
हर शख्स मुसाफिर की तरह आता है
एक सराय सी इस ज़िन्दगी में मेरी
कैसा कोलाहल है चारों ओर फिर भी
हर तरफ बिखरी हैं ख़ामोशियाँ मेरी
मेरे चाहे अनचाहे भी सफ़र करती
गुज़रते पल सी कटती ज़िन्दगी मेरी
लगता है अब भी वो वक़्त आयेगा
कभी तो होंगी रुख्सत रुस्वाइयाँ मेरी
मैं अकेला नहीं है पूरी दुनियां मेरी
हर रोज़ ही नए लोग मिलते यहाँ
सच में कितनी बड़ी ये दुनियां मेरी
हर शख्स मुसाफिर की तरह आता है
एक सराय सी इस ज़िन्दगी में मेरी
कैसा कोलाहल है चारों ओर फिर भी
हर तरफ बिखरी हैं ख़ामोशियाँ मेरी
मेरे चाहे अनचाहे भी सफ़र करती
गुज़रते पल सी कटती ज़िन्दगी मेरी
लगता है अब भी वो वक़्त आयेगा
कभी तो होंगी रुख्सत रुस्वाइयाँ मेरी
तनहाइयाँ
कितना सुकून होगा मिलेंगी मुझसे
कभी मेरी भी अपनी ही तनहाइयाँ
मेरी ही बातें मेरी ही रातें होंगी सारी
क्या खूब होंगी वो मेरी तनहाइयाँ
अब मगर बस अलग लगने लगी हैं
न मालूम क्यों ये हमारी तनहाइयाँ
किस किस का जिक्र करने लगी हैं
सोचा था सिर्फ मेरी होंगी तनहाइयाँ
मुझे कई तरह से मुझसे कर रही दूर
चाहे जितनी भी पास हों तनहाइयाँ
कभी कहीं दूर से कभी नजदीक से
मुझे डराने लगती हैं उफ़ ये तनहाइयाँ
अब नहीं गंवारा हैं मुझे कहीं भी ये
बस बहुत देख लीं मैंने ये तनहाइयाँ
कभी मेरी भी अपनी ही तनहाइयाँ
मेरी ही बातें मेरी ही रातें होंगी सारी
क्या खूब होंगी वो मेरी तनहाइयाँ
अब मगर बस अलग लगने लगी हैं
न मालूम क्यों ये हमारी तनहाइयाँ
किस किस का जिक्र करने लगी हैं
सोचा था सिर्फ मेरी होंगी तनहाइयाँ
मुझे कई तरह से मुझसे कर रही दूर
चाहे जितनी भी पास हों तनहाइयाँ
कभी कहीं दूर से कभी नजदीक से
मुझे डराने लगती हैं उफ़ ये तनहाइयाँ
अब नहीं गंवारा हैं मुझे कहीं भी ये
बस बहुत देख लीं मैंने ये तनहाइयाँ
Depressing Moments
I shall have to try and overpower
My depressing moments around
In my pitch dark and lonely nights
Instigated by baseless accusations
Of my very own and loved ones
Enhanced by deep silence around
And this huge storm in my mind
I know it might yet be temporary
Soul-mates perceiving me hate-mate
Difficult to understand in the ultimate
I console myself to my very best way
Overpowering thought remain in sway
In my moments of this lonely soul
Yet I do continue to overpower all!
My depressing moments around
In my pitch dark and lonely nights
Instigated by baseless accusations
Of my very own and loved ones
Enhanced by deep silence around
And this huge storm in my mind
I know it might yet be temporary
Soul-mates perceiving me hate-mate
Difficult to understand in the ultimate
I console myself to my very best way
Overpowering thought remain in sway
In my moments of this lonely soul
Yet I do continue to overpower all!
Friday, September 2, 2011
Collectively
They say life is a momentary illusion
No doubt, to say they have a reason
But it's full of tremendous moments
Living these moments is living the life
Make your moments happy enjoyable
Help others make it similar for them
Make yourself, other people dutiful
For you, for them and for the World!
Smile for whatever happiness around
Collective or individual it may sound
We all are living in a fragile existence
Yet life does have for us all an essence
Lonely existence and efforts crumble
Collective efforts multiply and double
Together you sure can make it happen
Life for everyone sounding beautiful
Life starts smiling at you and around
Gives reasons for happiness plentiful
No doubt, to say they have a reason
But it's full of tremendous moments
Living these moments is living the life
Make your moments happy enjoyable
Help others make it similar for them
Make yourself, other people dutiful
For you, for them and for the World!
Smile for whatever happiness around
Collective or individual it may sound
We all are living in a fragile existence
Yet life does have for us all an essence
Lonely existence and efforts crumble
Collective efforts multiply and double
Together you sure can make it happen
Life for everyone sounding beautiful
Life starts smiling at you and around
Gives reasons for happiness plentiful
Thursday, September 1, 2011
साहिल
आहें भरने से कुछ न होगा हासिल
आहें भरना छोड़ सब होगा कामिल
आवाज़ देने से नहीं मिलता है साहिल
मझधार में हौसलों से मिलेगा साहिल
आहें भरना छोड़ सब होगा कामिल
आवाज़ देने से नहीं मिलता है साहिल
मझधार में हौसलों से मिलेगा साहिल
दर्द में ही
तुम्हें लगता होगा की बहुत दर्द देती है ज़िन्दगी
पर मुझे ये लगता है दर्द में ही छुपी है ज़िन्दगी
एहसास दर्द का जिस किसी शख्स को होने लगे
उसी ने जाना है कि खुशियों से भरी है ज़िन्दगी
पर मुझे ये लगता है दर्द में ही छुपी है ज़िन्दगी
एहसास दर्द का जिस किसी शख्स को होने लगे
उसी ने जाना है कि खुशियों से भरी है ज़िन्दगी
Wednesday, August 31, 2011
दिल के जाँबाज़ों से
क्यों दे रहे हो दस्तक सी इन खुले दरवाज़ों को
क्या हुआ हासिल जो बंद थे उन दरवाज़ों से
कितनी ख़ामोशी है इधर कुछ बेक़रारी भी
कह भी डालो डरते हो क्यों अल्फाजों से
हर लफ्ज़ की भी अपनी एक ख़ामोशी है
क्या हुआ जो गुज़र रहे हैं कई आवाज़ों से
इतनी ज़ल्दी भी क्या है जो मैं ही कुछ कहूँ
मैं भी तो ज़रा समझ लूँ मेरे ही लफ़्ज़ों से
तुम भी ज़रा बहकने तो दो इन ज़ज्बातों को
ज़रा सीखेंगे कुछ तो लफ़्ज़ों के जालसाज़ों से
उम्र गुज़रेगी मगर तुम न कभी समझ पाओगे
कैसे जीतोगे फरेब से तुम दिल के जाँबाज़ों से
क्या हुआ हासिल जो बंद थे उन दरवाज़ों से
कितनी ख़ामोशी है इधर कुछ बेक़रारी भी
कह भी डालो डरते हो क्यों अल्फाजों से
हर लफ्ज़ की भी अपनी एक ख़ामोशी है
क्या हुआ जो गुज़र रहे हैं कई आवाज़ों से
इतनी ज़ल्दी भी क्या है जो मैं ही कुछ कहूँ
मैं भी तो ज़रा समझ लूँ मेरे ही लफ़्ज़ों से
तुम भी ज़रा बहकने तो दो इन ज़ज्बातों को
ज़रा सीखेंगे कुछ तो लफ़्ज़ों के जालसाज़ों से
उम्र गुज़रेगी मगर तुम न कभी समझ पाओगे
कैसे जीतोगे फरेब से तुम दिल के जाँबाज़ों से
Tuesday, August 30, 2011
मुक़म्मल
अब याद नहीं फरियाद नहीं कोई अब मेरी
खोया सो खोया था पाया है इत्मीनान मगर
इतनी चाहत के बाद भी पाया नहीं तुमको
तुम्हारे बिना भी हम चलो यहाँ कर लेंगे गुजर
हम भी चल देंगे अनज़ान किन्हीं राहों पर
वक़्त चलता ही रहे या फिर वो जाए ठहर
आशना था दिल हमारा ज़रूर यहाँ लेकिन
सच है कि आशनाई क़बूल न हो पाई इधर
बस यही लगने लगी हक़ीक़त ज़माने की जब
है चैन मुक़म्मल अब हमको कोई भी पहर
खोया सो खोया था पाया है इत्मीनान मगर
इतनी चाहत के बाद भी पाया नहीं तुमको
तुम्हारे बिना भी हम चलो यहाँ कर लेंगे गुजर
हम भी चल देंगे अनज़ान किन्हीं राहों पर
वक़्त चलता ही रहे या फिर वो जाए ठहर
आशना था दिल हमारा ज़रूर यहाँ लेकिन
सच है कि आशनाई क़बूल न हो पाई इधर
बस यही लगने लगी हक़ीक़त ज़माने की जब
है चैन मुक़म्मल अब हमको कोई भी पहर
भस्मीभूत
मेरे पास आज भी संजोई हैं
वो सारी ही भावनाएं मेरी
कई कारणवश इनको यहाँ
मैंने सम्भाल कर रखा है
बड़ी मेहनत और उत्साह से
मूल रूप में न भी हो पायें
फलीभूत होंगी और रूप में
ऐसा भी न हो पाया तो भी
ज़रूर संभाले रखूँगा इनको
मेरे ही जीवन की कोई एक
मेरे लिए मेरी ही धरोहर
अब ये भी हो पाएंगी सिर्फ
मेरे ही साथ भस्मीभूत
वो सारी ही भावनाएं मेरी
कई कारणवश इनको यहाँ
मैंने सम्भाल कर रखा है
बड़ी मेहनत और उत्साह से
मूल रूप में न भी हो पायें
फलीभूत होंगी और रूप में
ऐसा भी न हो पाया तो भी
ज़रूर संभाले रखूँगा इनको
मेरे ही जीवन की कोई एक
मेरे लिए मेरी ही धरोहर
अब ये भी हो पाएंगी सिर्फ
मेरे ही साथ भस्मीभूत
Monday, August 29, 2011
New Nepal under new PM
Ever since the fall of monarchy in Nepal, the sounds and sentiments of a New Nepal have been reverberating in, around Nepal and in the minds of overseas Nepaliese and their well wishers.
The political cycle has come full circle now (the Maoists led Government having been installed once again; albeit with the different face! Dr. Baburam Bhattarai; whom I always considerd as the prospective formidable Prime Minister, is now elected the 35th PM of Nepal. Not just me, most people felt that he would be the dream PM for Nepal. He is the liberal and polite face of the Party and commands respect within and outside his Party.
I'm not too sure about the timing of his taking over (for being the dream PM; as he has to take all major political parties and interest groups along to make the Constitution happen, peace efforts to conclude, spearhead the economic and social prosperity of the people; and before that to get the Assembly term extended. He will always be shor tof the magic numbers of majority, for any constitutional matter; and that will test his leadership qualities, statesmanship and endeavours!
I am sure he has the capability to sail through all these issues and lead the country to prosperity and lasting peace; for a long time. Amen!
The political cycle has come full circle now (the Maoists led Government having been installed once again; albeit with the different face! Dr. Baburam Bhattarai; whom I always considerd as the prospective formidable Prime Minister, is now elected the 35th PM of Nepal. Not just me, most people felt that he would be the dream PM for Nepal. He is the liberal and polite face of the Party and commands respect within and outside his Party.
I'm not too sure about the timing of his taking over (for being the dream PM; as he has to take all major political parties and interest groups along to make the Constitution happen, peace efforts to conclude, spearhead the economic and social prosperity of the people; and before that to get the Assembly term extended. He will always be shor tof the magic numbers of majority, for any constitutional matter; and that will test his leadership qualities, statesmanship and endeavours!
I am sure he has the capability to sail through all these issues and lead the country to prosperity and lasting peace; for a long time. Amen!
आवाज़ें
आवाज़ें
कभी पास तो कभी बहुत दूर से आती हुई
कभी दीवारों से टकरा के आती है आवाज़ें
बन्द दरवाज़ों के पीछे से भी आती है आवाज़ें
अब किस किस को कहें कि कम करें आवाज़ें
कभी धीमी कभी माध्यम तो कभी तेज़ हैं
जाने किस किस लय से आती हैं आवाज़ें
अनचाहे अनसुने भी अक्सर इनका है क्रम
कभी भी आहट सी करती हुई हैं ये आवाज़ें
ख़ामोशी का बस चीरती हुई सी है ये सीना
कितनी कर्कश होती हैं कभी कभी ये आवाज़ें
मुझको बुलाती सी हैं जाने किस मक़सद से
बिलकुल अनजानी अनकही सी ये आवाज़ें
कभी पास तो कभी बहुत दूर से आती हुई
कभी दीवारों से टकरा के आती है आवाज़ें
बन्द दरवाज़ों के पीछे से भी आती है आवाज़ें
अब किस किस को कहें कि कम करें आवाज़ें
कभी धीमी कभी माध्यम तो कभी तेज़ हैं
जाने किस किस लय से आती हैं आवाज़ें
अनचाहे अनसुने भी अक्सर इनका है क्रम
कभी भी आहट सी करती हुई हैं ये आवाज़ें
ख़ामोशी का बस चीरती हुई सी है ये सीना
कितनी कर्कश होती हैं कभी कभी ये आवाज़ें
मुझको बुलाती सी हैं जाने किस मक़सद से
बिलकुल अनजानी अनकही सी ये आवाज़ें
वास्ता
आज कुछ कल कुछ और है; रोज़ एक नया ही है सिलसिला
मन में कुछ है कहते हैं कुछ और; जहाँ मुड़ गए वहीँ है रास्ता
निभाना तो सबको नहीं आता; फिर क्यों तुमको इतना गिला
ऐसे में बस और क्या कहें; कहाँ की दोस्ती कहाँ का है वास्ता!
मन में कुछ है कहते हैं कुछ और; जहाँ मुड़ गए वहीँ है रास्ता
निभाना तो सबको नहीं आता; फिर क्यों तुमको इतना गिला
ऐसे में बस और क्या कहें; कहाँ की दोस्ती कहाँ का है वास्ता!
Sunday, August 28, 2011
हस्ब ए मामूल
लगती है ज़िन्दगी ख़ूबसूरत एक बार फिर
शुक्रिया आपका आपने समझा हमें कामिल
एक लम्बी सी इस गहरी ख़ामोशी के बाद
हमें भी लगा है कि हम हैं किसी काबिल
आपने भी निभाया है जब साथ फिर हमारा
तो अब हम भी करेंगे कोशिश मुश्तकिल
बुलंद ही रहेंगे हौसले हमारे हर रोज़ अब
चाहे कितनी भी हों या कोई भी आये मुश्किल
झेलेंगे अब सभी रंज ओ गम भी देख लेना
बेशक़ हम रहेंगे ज़रूर इधर हस्ब ए मामूल
शुक्रिया आपका आपने समझा हमें कामिल
एक लम्बी सी इस गहरी ख़ामोशी के बाद
हमें भी लगा है कि हम हैं किसी काबिल
आपने भी निभाया है जब साथ फिर हमारा
तो अब हम भी करेंगे कोशिश मुश्तकिल
बुलंद ही रहेंगे हौसले हमारे हर रोज़ अब
चाहे कितनी भी हों या कोई भी आये मुश्किल
झेलेंगे अब सभी रंज ओ गम भी देख लेना
बेशक़ हम रहेंगे ज़रूर इधर हस्ब ए मामूल
Saturday, August 27, 2011
दुराव
नाउम्मीद नहीं फिर भी ख़ौफ़ खाते हैं
हमने ये पल पहले भी कई देखे हैं
उनकी बातों का मतलब वो ही जानें
हम नासमझ नहीं खूब समझते हैं
कैसे कटेगी कोई भी फ़सल उनकी
तिनके-तिनके का हिसाब रखते हैं
उनके अंजुमन में क्या है वही जानें
हमसे कब कोई इत्तफ़ाक़ रखते हैं
उनकी फ़ितरत का नहीं भरोसा हमें
फूँक फूँक कर हर कदम बढ़ाते हैं
वो हमसे हर एक बात दूर रखते हैं
हम भी बस अब यही दुराव रखते हैं
हमने ये पल पहले भी कई देखे हैं
उनकी बातों का मतलब वो ही जानें
हम नासमझ नहीं खूब समझते हैं
कैसे कटेगी कोई भी फ़सल उनकी
तिनके-तिनके का हिसाब रखते हैं
उनके अंजुमन में क्या है वही जानें
हमसे कब कोई इत्तफ़ाक़ रखते हैं
उनकी फ़ितरत का नहीं भरोसा हमें
फूँक फूँक कर हर कदम बढ़ाते हैं
वो हमसे हर एक बात दूर रखते हैं
हम भी बस अब यही दुराव रखते हैं
The Beginning
It’s the beginning that’s more important
Improvements and mends will come by
As you succeed, people will join issues
The paths may not exactly be the same
The destination may still be looking far
As will you take the steps in your walks
So shall the newer paths might emerge
Strengthening shall then be bolstered
The matching of ideas and designs too
Ironing of the wrinkles in the process
Players of the systems in their places
Results that might be the prime focus
The oversight, reward and punishment
And many more steps needed to sustain
Yet, the beginning is most important!
Improvements and mends will come by
As you succeed, people will join issues
The paths may not exactly be the same
The destination may still be looking far
As will you take the steps in your walks
So shall the newer paths might emerge
Strengthening shall then be bolstered
The matching of ideas and designs too
Ironing of the wrinkles in the process
Players of the systems in their places
Results that might be the prime focus
The oversight, reward and punishment
And many more steps needed to sustain
Yet, the beginning is most important!
Friday, August 26, 2011
उम्मीद मेरी
उम्मीद मेरी पूछने लगी है मुझसे; अब वो सुबह कब आयेगी
मुझे भी तुम्हारे इन सपनों को; वह सच होता जब दिखाएगी
कितना इंतजार होगा करना; जब सपनों में सच सजाएगी
कहें ऐसा तो नहीं होगा कहीं; मुझे ही तुम्हारे आगे झुठलाएगी
मुझे भी तुम्हारे इन सपनों को; वह सच होता जब दिखाएगी
कितना इंतजार होगा करना; जब सपनों में सच सजाएगी
कहें ऐसा तो नहीं होगा कहीं; मुझे ही तुम्हारे आगे झुठलाएगी
मुसल्लिल
थक गए हम दुनियां के हुज़ूम में चलते
सांस फूलने लगी है अब दो क़दम भी चलते
थक गई है बयार भी मुसल्लिल बहते बहते
थक गए हैं जो मुसाफिर खाना ख़राब रहते
रास्ते थक गए हैं सबको राह बताते बताते
रात भी थक चुकी सुबह का इंतजार करते
दिन-रात थक चुके एक दूसरे को तलाशते
थक गया आसमान सबकी ख़ैर करते करते
राही थके नहीं हैं मगर मंजिल तलाश करते
पा ही लेंगे कभी तो कोशिश के अपनी चलते
सांस फूलने लगी है अब दो क़दम भी चलते
थक गई है बयार भी मुसल्लिल बहते बहते
थक गए हैं जो मुसाफिर खाना ख़राब रहते
रास्ते थक गए हैं सबको राह बताते बताते
रात भी थक चुकी सुबह का इंतजार करते
दिन-रात थक चुके एक दूसरे को तलाशते
थक गया आसमान सबकी ख़ैर करते करते
राही थके नहीं हैं मगर मंजिल तलाश करते
पा ही लेंगे कभी तो कोशिश के अपनी चलते
Thursday, August 25, 2011
अनसुनी
अपने दिल का हर कोना ही बंद कर लिया था जब उन ने
हमने जुबान से भी काम लेते कह डाला उनके कानों में
अनसुनी जो फिर भी की थी उन ने; हमने मान लिया
शायद नहीं था कोई भी दम हमारे उन अफ़सानों में
हमने जुबान से भी काम लेते कह डाला उनके कानों में
अनसुनी जो फिर भी की थी उन ने; हमने मान लिया
शायद नहीं था कोई भी दम हमारे उन अफ़सानों में
Wednesday, August 24, 2011
दूर दूर
चमकती थी सी मेरी किस्मत; अब जाने क्यों बदलने लगी है
मेरे दिल की धड़कन कहने लगी है; वो अब मुझसे दूर होने लगी है
हर तरफ बस गम के सायों ने; घेर लिया है अब मुझको
बहार भी अब है यहाँ; गम के ही गीत गुनगुनाने लगी है
न हो अगर यक़ीं उसको पर; शायद कोई और मना ले उसको
वरना अब तो मेरी चलते चलते; साँस ही रुकने से लगी है
कैसे मैं उसे अब समझाऊँ; किस तरह से उसे बतलाऊँ
कि मुझे लगने लगा है ये; ज़िन्दगी मुझसे बिछुड़ने लगी है
मेरे दिल की धड़कन कहने लगी है; वो अब मुझसे दूर होने लगी है
हर तरफ बस गम के सायों ने; घेर लिया है अब मुझको
बहार भी अब है यहाँ; गम के ही गीत गुनगुनाने लगी है
न हो अगर यक़ीं उसको पर; शायद कोई और मना ले उसको
वरना अब तो मेरी चलते चलते; साँस ही रुकने से लगी है
कैसे मैं उसे अब समझाऊँ; किस तरह से उसे बतलाऊँ
कि मुझे लगने लगा है ये; ज़िन्दगी मुझसे बिछुड़ने लगी है
Monday, August 22, 2011
फिर एक और बार सही
एक बार फिर से चलेगी बात; वतन में मेरे अब वकीलों की
जो ताउम्र बस लड़ते रहे हैं; मुक़द्दमे सब बस जीत की खातिर
चलो हम कर भी लेंगे यकीन; फिर एक और बार सही उनका
जो बेचते रहे हैं ज़मीर और ईमान, बस चन्द पैसों की खातिर
जो ताउम्र बस लड़ते रहे हैं; मुक़द्दमे सब बस जीत की खातिर
चलो हम कर भी लेंगे यकीन; फिर एक और बार सही उनका
जो बेचते रहे हैं ज़मीर और ईमान, बस चन्द पैसों की खातिर
कलियुग के 'कान्हा'
बना बहाने खूब सताया कई तरह
भोली भली थी जनता तब याद करो
बहुत मटकियाँ फोड़ी तुमने लोगों की
तुम तनिक लाज शर्म अब तो करो
अब बहुत खा लिया है माखन चोरी का
कलियुग के 'कान्हा' अब बस भी करो
आज न सही कल आओगे पकड़ में
चाहे जितने भी कैसे तुम रूप धरो
लोकपाल बस आता होगा तुम्हें देखने
अब कैसा भी स्वरुप ये ध्यान करो
सरकारी हो, अन्ना का, या मिला जुला
डरना तुम बस अब ही से शुरू करो
भोली भली थी जनता तब याद करो
बहुत मटकियाँ फोड़ी तुमने लोगों की
तुम तनिक लाज शर्म अब तो करो
अब बहुत खा लिया है माखन चोरी का
कलियुग के 'कान्हा' अब बस भी करो
आज न सही कल आओगे पकड़ में
चाहे जितने भी कैसे तुम रूप धरो
लोकपाल बस आता होगा तुम्हें देखने
अब कैसा भी स्वरुप ये ध्यान करो
सरकारी हो, अन्ना का, या मिला जुला
डरना तुम बस अब ही से शुरू करो
कैसा भी हो
क़तरा क़तरा करके बनाया है
खुशियों का एक समंदर मैंने
कैसे कह दूं तुम्हारे कहने से
कुछ भी नहीं यहाँ पाया मैंने
तालाब में दीखता समंदर मुझे
इसी को समझा विशाल मैंने
उफनते हुए दरिया या सागर
परिमाण मात्र समझे हैं मैंने
जो कुछ भी हुआ हासिल है
ज़रूरत से अधिक समझा मैंने
कुछ भी हो कैसा भी हो मेरा
खुशियों का संसार संजोया मैंने
खुशियों का एक समंदर मैंने
कैसे कह दूं तुम्हारे कहने से
कुछ भी नहीं यहाँ पाया मैंने
तालाब में दीखता समंदर मुझे
इसी को समझा विशाल मैंने
उफनते हुए दरिया या सागर
परिमाण मात्र समझे हैं मैंने
जो कुछ भी हुआ हासिल है
ज़रूरत से अधिक समझा मैंने
कुछ भी हो कैसा भी हो मेरा
खुशियों का संसार संजोया मैंने
Saturday, August 20, 2011
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए- दुष्यन्त कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
Time About
I can’t wait any longer now
Time is running away for me
It’s not matter of impatience
I want your definite answers
Dilly-dally won’t work for me
You have taken your time long
Tell me which side you belong
Tell me the timelines proposed
Else let me have you exposed
Stop playing around with words
Nuances and the sensitivities
Niceties and the technicalities
I held my breath and patience
It’s time now for your response
I don’t seek undermine anything
Don’t undermine me as nothing
Time is running away for me
It’s not matter of impatience
I want your definite answers
Dilly-dally won’t work for me
You have taken your time long
Tell me which side you belong
Tell me the timelines proposed
Else let me have you exposed
Stop playing around with words
Nuances and the sensitivities
Niceties and the technicalities
I held my breath and patience
It’s time now for your response
I don’t seek undermine anything
Don’t undermine me as nothing
Friday, August 19, 2011
अपना
छुपा लिया अपनी अपनी हँसी के पीछे मैंने
अपने सारे दर्द और परेशानियों को सभी
ये काबिलियत है मेरी कोई कमजोरी नहीं
ज़िन्दगी को ही अपना बना लिया था मैंने
अपने सारे दर्द और परेशानियों को सभी
ये काबिलियत है मेरी कोई कमजोरी नहीं
ज़िन्दगी को ही अपना बना लिया था मैंने
Take me
I wanna go wherever; you take me
I can feel the love; in places somewhere
Dunno why my heart is down there
Take me to the skies, I wanna fly
Searching for my destiny, my love
Wherever it is; please take me
I lost my peace; lookin for destination
But I’m happy, lookin round
Ocean of love in my heart; coming around
I can smell the beauty of love
Intoxicating smell is around me
I can feel the love; in places somewhere
Dunno why my heart is down there
Take me to the skies, I wanna fly
Searching for my destiny, my love
Wherever it is; please take me
I lost my peace; lookin for destination
But I’m happy, lookin round
Ocean of love in my heart; coming around
I can smell the beauty of love
Intoxicating smell is around me
सिफारिश
हर पल की मेरी यहाँ बेबसी को देख सुन कर
ज़िन्दगी हर रोज़ मुझसे गुज़ारिश करती रही
बिन पूछे खुद ही बस बार बार ये कहती रही
जी ले अपने लिए भी ये सिफारिश करती रही
ज़िन्दगी हर रोज़ मुझसे गुज़ारिश करती रही
बिन पूछे खुद ही बस बार बार ये कहती रही
जी ले अपने लिए भी ये सिफारिश करती रही
Thursday, August 18, 2011
दोषी
आज देश में बिगुल है बजा
अब आओ भष्टाचार है मिटाना
जोश होश से सभी हैं कहते
लोकपाल जन -जन का लाना
अब त्रस्त हो चुके सभी भ्रष्ट से
फिर भी लगभग सभी भ्रष्ट से
अब अपने भीतर भी खंगोलकर
अपरिमित भ्रष्टाचार हटाना है
सात जनम को धन संग्रह से
अब नहीं चाहते बालक ऐसे
अब तो ये सोच बदलनी होगी
ये प्रथा नई अब करनी होगी
थोड़ी सह लोगे जो तुम पीड़ा
हट जाए दूर भ्रष्टाचार का कीड़ा
कहो न हम कुछ ऐसे देंगे लेंगे
नैतिक होकर ही गुज़र कर लेंगे
है कहाँ जेब लंगोट कफन में
जेब बसी पर सबके मन में
सब कुछ जग में छोड़ोगे तुम
कहाँ ये जेब भर जाओगे तुम
व्यापारी, शिक्षक या डाक्टर
ठेकेदार कर्मचारी भी मिलकर
सब मिल खाते दीमक जैसे
सदाचार बचाओगे तुम कैसे
नेता और अभिनेता ही क्यों
निज लाभ के खातिर हम सब
करते रहे इसकी पालन पोषी
मैं भी दोषी हूँ तुम भी हो दोषी
अब आओ भष्टाचार है मिटाना
जोश होश से सभी हैं कहते
लोकपाल जन -जन का लाना
अब त्रस्त हो चुके सभी भ्रष्ट से
फिर भी लगभग सभी भ्रष्ट से
अब अपने भीतर भी खंगोलकर
अपरिमित भ्रष्टाचार हटाना है
सात जनम को धन संग्रह से
अब नहीं चाहते बालक ऐसे
अब तो ये सोच बदलनी होगी
ये प्रथा नई अब करनी होगी
थोड़ी सह लोगे जो तुम पीड़ा
हट जाए दूर भ्रष्टाचार का कीड़ा
कहो न हम कुछ ऐसे देंगे लेंगे
नैतिक होकर ही गुज़र कर लेंगे
है कहाँ जेब लंगोट कफन में
जेब बसी पर सबके मन में
सब कुछ जग में छोड़ोगे तुम
कहाँ ये जेब भर जाओगे तुम
व्यापारी, शिक्षक या डाक्टर
ठेकेदार कर्मचारी भी मिलकर
सब मिल खाते दीमक जैसे
सदाचार बचाओगे तुम कैसे
नेता और अभिनेता ही क्यों
निज लाभ के खातिर हम सब
करते रहे इसकी पालन पोषी
मैं भी दोषी हूँ तुम भी हो दोषी
Parliament and Civil Society
In the democratic systems, law making power is with the Parliament;no doubts on that! But the law makers have to gause the pulse of the people and use the popular sentiments expressed through the civil society; as a feed back and resource for law making.
Times have changed and so has the Westminster System inherent old notions, that must adapt to the new World! Ideally, the Parliament and the Civil Sociey should complement each other and strengthen the democratic sentiments,systems. There is no conflict of interests here; both are representatives of the people.
It is good to have the bills suggested by the Civil Society and Parliament taking them up as the Private Memeber Bill or Civil Society Bill for discussion or adoption. Many at time the stanign Committees of the Parliement seek the views and suggestion of the general public openly, through the advertisement in the media. Where is the conflict?
Conflict arises when the arrogance of the ruling parties or the Parliamentarians heightens to the level of monopolistics views; bolstered by the growing influence of the civil society outside the Parliament. This state comes (like in India now)due to ineffictiveness and proven inaction by the Parliament to deal with burning issues like transparent systems, eradication of grat/corruption, inclusive development and so on..the long lists.
We need to have a serious and open minded debate on how to dove-tail the vies of the Civil Society and Parliment! Amen!
Times have changed and so has the Westminster System inherent old notions, that must adapt to the new World! Ideally, the Parliament and the Civil Sociey should complement each other and strengthen the democratic sentiments,systems. There is no conflict of interests here; both are representatives of the people.
It is good to have the bills suggested by the Civil Society and Parliament taking them up as the Private Memeber Bill or Civil Society Bill for discussion or adoption. Many at time the stanign Committees of the Parliement seek the views and suggestion of the general public openly, through the advertisement in the media. Where is the conflict?
Conflict arises when the arrogance of the ruling parties or the Parliamentarians heightens to the level of monopolistics views; bolstered by the growing influence of the civil society outside the Parliament. This state comes (like in India now)due to ineffictiveness and proven inaction by the Parliament to deal with burning issues like transparent systems, eradication of grat/corruption, inclusive development and so on..the long lists.
We need to have a serious and open minded debate on how to dove-tail the vies of the Civil Society and Parliment! Amen!
Wednesday, August 17, 2011
महिलाओं में थायराइड की समस्या
महिलाओं में थायराइड की समस्या
.by प्रतिभा वाजपेयी
भारत की अधिकांश महिलाएं अनेक कारणों से अपनी शारीरिक परेशानियों को दबाए रखती हैं और न ही किसी को बताती अथवा डाक्टरी जांच उपचार कराती हैं। उनके इस व्यवहार के कारण शरीर की परेशानियां अनेक अन्य बीमारियों को जन्मने और पनपने का अवसर दे देती है।
थायराइड भी उनमें से एक है जो मेटाबालिज्म/चयापचय से जुडी बीमारी है। इसमें थायराइड हार्मोन का स्राव असंतुलित हो जाता है जिससे शरीर की समस्त भीतरी कार्यप्रणालियां अव्यवस्थित हो जाती हैं। भारत में चार करोड़ से अधिक थायराइड के मरीज हैं। इनमें से नब्बे प्रतिशत यह नहीं जानते कि उन्हें थायराइड की बीमारी है जिसके कारण उन्हें तरह-तरह की शारीरिक परेशानियां हो रही हैं।
थायराइड की समस्या पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कई गुना अधिक हैं। स्थिति यह है कि हर दस थायराइड मरीजों में से आठ महिलाएं ही होती हैं। इन महिलाओं को मोटापा, तनाव, अवसाद, बांझपन, कोलेस्ट्राल, आस्टियोपोरोसिस आदि जैसी परेशानियां होती हैं पर ये महिलाएं यह नहीं जानती कि उनकी इस परेशानी के पीछे थायराइड की बीमारी है।
थायराइड क्या है?
थायराइड शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड है जो तितली के आकार का होता है एवं गले में स्थित है। इसमें से थायराइड हार्मोन का स्राव होता है जो हमारे मेटाबालिज्म की दर को संतुलित करता है।
थायराइड हार्मोन के असंतुलन अर्थात कम ज्यादा स्राव होने से रोजमर्रा से जुड़ी अनेक शारीरिक परेशानियां होती हैं किंतु पीड़ित इसे सामान्य परेशानी मान झेलता रहता है। खून की थायराइड जांच कराने पर ही यह स्पष्ट होता है। महिलाओं को अपने शारीरिक बनावट व हार्मोनल कारणों से थायराइड की बीमारी व परेशानी ज्यादा होती है। यह थायराइड भी दो प्रकार का होता है, पहला हाइपोथायराइड एवं दूसरा हायपरथायराइड।
हाइपोथायराइड -
इस बीमारी में थायराइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता जिससे शरीर में आवश्यकता के अनुसार टी.थ्री व टी. फोर हार्मोन नहीं पहुंच पाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन में अचानक वृद्घि हो जाती है। रोजाना की गतिविधियों में रूचि कम हो जाती है। इन्हें ठंड बहुत महसूस होती है। कब्ज होने लगता है। आंखें सूज जाती हैं।
मासिक चक्र अनियमित हो जाता है। त्वचा सूखी व बाल बेजान होकर झड़ने लगते हैं। सुस्ती महसूस होती है। पैरों में सूजन व ऐंठन की शिकायत होती है। इनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी तनाव व अवसाद से घिर जाते हैं और बात-बात में भावुक हो जाते हैं। जोड़ों में पानी भर जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में दिक्कत होती है। मांसपेशियों में भी पानी भर जाता है जिससे चलते-फिरते हल्का दर्द पूरे शरीर में होता है। चेहरा सूज जाता है। आवाज रूखी व भारी हो जाती है। यह रोग ३० से ६० वर्ष की महिलाओं को होता है।
हायपरथायराइड -
इसमें थायराइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है और टी थ्री, टी फोर हार्मोन अधिक मात्रा में निकलकर रक्त में घुलनशील हो जाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक कम हो जाता है। अत्यधिक पसीना आता है। ये रोगी गर्मी सहन नहीं कर पाते। इनकी भूख में वृद्घि होती है। ये दुबले नजर आते हैं। मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। निराशा हावी हो जाती है।
हाथ कांपते हैं और आंखें उनींदी रहती हैं। आंखें बाहर आ जाएंगी, ऐसा लगता है। धड़कन बढ़ जाती है। इन्हें नींद नहीं आती। दस्त होता है। प्रजनन प्रभावित होता है। मासिक रक्तस्राव ज्यादा एवं अनियमित हो जाता है। गर्भपात के मामले सामने आते हैं। हायपर थायराइड बीस साल की महिलाओं को ज्यादा होता है।
जांच व उपचार -
थायराइड के दोनों प्रकार में रक्त की जांच पहले की जाती है। रक्त में टी थ्री, टी फोर एवं टी एस एच लेवल में सक्रिय हार्मोन्स का लेवल जांच किया जाता है। जांच निष्कर्ष के अनुसार डाक्टर उपचार बताते हैं। विवाह के उपरांत एवं गर्भावस्था में महिलाएं थायराइड की जांच जरूर कराएं। इससे गर्भवती एवं गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की दिक्क्त नहीं आएगी। नब्बे प्रतिशत रोगियों को उम्र भर दवा खानी पड़ती है, किंतु पहले चरण में उपचार करा लेने से महिलाओं के शेष जीवन की दिनचर्या आसान हो जाती है। मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है।
ऐसे मरीज तनाव से बचें एवं हाइपोथायराइड है तो आयोडीन की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ से जीवन भर बचें। थायराइड की बीमारी पुरूषों व बच्चों को भी होती है। यह वंशानुगत होने वाली बीमारियों में से एक है।
अध्ययन के मुताबिक जलीय वनस्पति में पाए जाने वाले क्लोरोफिल, फाइटोबिलीप्रोटीन और जेंथोफिल्स उपापचय को ठीक रखने में काफी हद तक मददगार होते हैं। यही नहीं इस वनस्पति में मौजूद माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे नाइट्रेट, फास्फेट व सेलीसिलिक एसिड भी उपापचय की प्रक्रिया को दुरुस्त रखते हैं।
हालांकि इसके कई इलाज मौजूद हैं लेकिन शोधकर्ताओं ने जलीय वनस्पति [फाइटोप्लेंकटन] को थायराइड की समस्या दूर करने में कारगर बताया है।
शोधकर्ताओं की राय में उपापचय की दर को सही बनाए रखने के लिए गोजी बेरी का जूस भी काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा विटामिन ए व सी की उचित मात्रा का लिया जाना हाइपोथायराडिज्म में कारगर साबित होता है।
.
.by प्रतिभा वाजपेयी
भारत की अधिकांश महिलाएं अनेक कारणों से अपनी शारीरिक परेशानियों को दबाए रखती हैं और न ही किसी को बताती अथवा डाक्टरी जांच उपचार कराती हैं। उनके इस व्यवहार के कारण शरीर की परेशानियां अनेक अन्य बीमारियों को जन्मने और पनपने का अवसर दे देती है।
थायराइड भी उनमें से एक है जो मेटाबालिज्म/चयापचय से जुडी बीमारी है। इसमें थायराइड हार्मोन का स्राव असंतुलित हो जाता है जिससे शरीर की समस्त भीतरी कार्यप्रणालियां अव्यवस्थित हो जाती हैं। भारत में चार करोड़ से अधिक थायराइड के मरीज हैं। इनमें से नब्बे प्रतिशत यह नहीं जानते कि उन्हें थायराइड की बीमारी है जिसके कारण उन्हें तरह-तरह की शारीरिक परेशानियां हो रही हैं।
थायराइड की समस्या पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कई गुना अधिक हैं। स्थिति यह है कि हर दस थायराइड मरीजों में से आठ महिलाएं ही होती हैं। इन महिलाओं को मोटापा, तनाव, अवसाद, बांझपन, कोलेस्ट्राल, आस्टियोपोरोसिस आदि जैसी परेशानियां होती हैं पर ये महिलाएं यह नहीं जानती कि उनकी इस परेशानी के पीछे थायराइड की बीमारी है।
थायराइड क्या है?
थायराइड शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड है जो तितली के आकार का होता है एवं गले में स्थित है। इसमें से थायराइड हार्मोन का स्राव होता है जो हमारे मेटाबालिज्म की दर को संतुलित करता है।
थायराइड हार्मोन के असंतुलन अर्थात कम ज्यादा स्राव होने से रोजमर्रा से जुड़ी अनेक शारीरिक परेशानियां होती हैं किंतु पीड़ित इसे सामान्य परेशानी मान झेलता रहता है। खून की थायराइड जांच कराने पर ही यह स्पष्ट होता है। महिलाओं को अपने शारीरिक बनावट व हार्मोनल कारणों से थायराइड की बीमारी व परेशानी ज्यादा होती है। यह थायराइड भी दो प्रकार का होता है, पहला हाइपोथायराइड एवं दूसरा हायपरथायराइड।
हाइपोथायराइड -
इस बीमारी में थायराइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता जिससे शरीर में आवश्यकता के अनुसार टी.थ्री व टी. फोर हार्मोन नहीं पहुंच पाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन में अचानक वृद्घि हो जाती है। रोजाना की गतिविधियों में रूचि कम हो जाती है। इन्हें ठंड बहुत महसूस होती है। कब्ज होने लगता है। आंखें सूज जाती हैं।
मासिक चक्र अनियमित हो जाता है। त्वचा सूखी व बाल बेजान होकर झड़ने लगते हैं। सुस्ती महसूस होती है। पैरों में सूजन व ऐंठन की शिकायत होती है। इनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी तनाव व अवसाद से घिर जाते हैं और बात-बात में भावुक हो जाते हैं। जोड़ों में पानी भर जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में दिक्कत होती है। मांसपेशियों में भी पानी भर जाता है जिससे चलते-फिरते हल्का दर्द पूरे शरीर में होता है। चेहरा सूज जाता है। आवाज रूखी व भारी हो जाती है। यह रोग ३० से ६० वर्ष की महिलाओं को होता है।
हायपरथायराइड -
इसमें थायराइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है और टी थ्री, टी फोर हार्मोन अधिक मात्रा में निकलकर रक्त में घुलनशील हो जाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक कम हो जाता है। अत्यधिक पसीना आता है। ये रोगी गर्मी सहन नहीं कर पाते। इनकी भूख में वृद्घि होती है। ये दुबले नजर आते हैं। मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। निराशा हावी हो जाती है।
हाथ कांपते हैं और आंखें उनींदी रहती हैं। आंखें बाहर आ जाएंगी, ऐसा लगता है। धड़कन बढ़ जाती है। इन्हें नींद नहीं आती। दस्त होता है। प्रजनन प्रभावित होता है। मासिक रक्तस्राव ज्यादा एवं अनियमित हो जाता है। गर्भपात के मामले सामने आते हैं। हायपर थायराइड बीस साल की महिलाओं को ज्यादा होता है।
जांच व उपचार -
थायराइड के दोनों प्रकार में रक्त की जांच पहले की जाती है। रक्त में टी थ्री, टी फोर एवं टी एस एच लेवल में सक्रिय हार्मोन्स का लेवल जांच किया जाता है। जांच निष्कर्ष के अनुसार डाक्टर उपचार बताते हैं। विवाह के उपरांत एवं गर्भावस्था में महिलाएं थायराइड की जांच जरूर कराएं। इससे गर्भवती एवं गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की दिक्क्त नहीं आएगी। नब्बे प्रतिशत रोगियों को उम्र भर दवा खानी पड़ती है, किंतु पहले चरण में उपचार करा लेने से महिलाओं के शेष जीवन की दिनचर्या आसान हो जाती है। मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है।
ऐसे मरीज तनाव से बचें एवं हाइपोथायराइड है तो आयोडीन की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ से जीवन भर बचें। थायराइड की बीमारी पुरूषों व बच्चों को भी होती है। यह वंशानुगत होने वाली बीमारियों में से एक है।
अध्ययन के मुताबिक जलीय वनस्पति में पाए जाने वाले क्लोरोफिल, फाइटोबिलीप्रोटीन और जेंथोफिल्स उपापचय को ठीक रखने में काफी हद तक मददगार होते हैं। यही नहीं इस वनस्पति में मौजूद माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे नाइट्रेट, फास्फेट व सेलीसिलिक एसिड भी उपापचय की प्रक्रिया को दुरुस्त रखते हैं।
हालांकि इसके कई इलाज मौजूद हैं लेकिन शोधकर्ताओं ने जलीय वनस्पति [फाइटोप्लेंकटन] को थायराइड की समस्या दूर करने में कारगर बताया है।
शोधकर्ताओं की राय में उपापचय की दर को सही बनाए रखने के लिए गोजी बेरी का जूस भी काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा विटामिन ए व सी की उचित मात्रा का लिया जाना हाइपोथायराडिज्म में कारगर साबित होता है।
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वादा-ए-वफ़ा
हमें गुरूर था कभी कि वो साथ हैं अपने
वक़्त निकला तो वो चल दिए रस्ते अपने
जिनकी खातिर लड़ पड़े थे ज़माने से
वो आखिर निकले बस एक अदना से
हमें तो नाज़ था उनकी हर एक बात पर
अब नहीं एतबार उनका किसी भी बात पर
हमने तो महफूज़ रखा है अपनी सोच को
उनका रस्ता बदल गया और सोच को
हम फख्र करते रहेंगे इस ईमानदारी पर
उन्हें भी रश्क होगा कभी इस खुद्दारी पर
हमें कोई गम नहीं कि वो बेवफा निकले
फिर भी चाहेंगे कि वो वादा-ए-वफ़ा निकले
वक़्त निकला तो वो चल दिए रस्ते अपने
जिनकी खातिर लड़ पड़े थे ज़माने से
वो आखिर निकले बस एक अदना से
हमें तो नाज़ था उनकी हर एक बात पर
अब नहीं एतबार उनका किसी भी बात पर
हमने तो महफूज़ रखा है अपनी सोच को
उनका रस्ता बदल गया और सोच को
हम फख्र करते रहेंगे इस ईमानदारी पर
उन्हें भी रश्क होगा कभी इस खुद्दारी पर
हमें कोई गम नहीं कि वो बेवफा निकले
फिर भी चाहेंगे कि वो वादा-ए-वफ़ा निकले
Tuesday, August 16, 2011
Anna Hazare
In the modern times people like Anna are an extinct species! In spite of sinister remarks and arrogance of some of the ruling coalition loud mouths, Anna commands the majority support. His unprecedented arrest anguished even the die-hard supporters of the UPA Government in India.
Anna is well meaning, simple, committed and reverend member of the civil society. He means no harm but has proven antecedents of leading and guiding the low-cost and simple development model for the rural folks. His simplicity and commitment has touched the hearts of people of all ages in India and abroad! People have now started saying that they are proud to be wintnessing the Anna days! True to the Gandhian principles, he propagates the 'non-violence' and non-violent methods of ferlessly protesting against the corrupt, corruption and corrupt practices and systems.
Anna has nothing to prove any more; but the policy makers and people have to learn from him much more! Ana Kudos to you!We are proud to be your contemporaries!
Anna is well meaning, simple, committed and reverend member of the civil society. He means no harm but has proven antecedents of leading and guiding the low-cost and simple development model for the rural folks. His simplicity and commitment has touched the hearts of people of all ages in India and abroad! People have now started saying that they are proud to be wintnessing the Anna days! True to the Gandhian principles, he propagates the 'non-violence' and non-violent methods of ferlessly protesting against the corrupt, corruption and corrupt practices and systems.
Anna has nothing to prove any more; but the policy makers and people have to learn from him much more! Ana Kudos to you!We are proud to be your contemporaries!
Friday, August 12, 2011
raksha bandha ~courtesy Pratibimb Barthwal:)
~ रक्षा बंधन ~
देव - दानवो के युद्ध मे जब दानव हावी थे
इंद्राणी ने इन्द्र को तब पवित्र धागा बांधा था
इस धागे की शक्ति से इन्द्र ने विजय पायी थी
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
विष्णु ने जब राजा बलि से संसार मांग लिया था
बलि की भक्ति ने विष्णु को तब अपने संग रोका था
लक्ष्मी ने बांध इसे बलि को विष्णु को तब पाया था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
शिशुपाल का वध जब कृष्ण ने किया था
कृष्ण की तर्जनी से बहता खून का रेला था
द्रौपदी ने चीर बांध कृष्ण के खून को रोका था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
रानी कर्णवती ने हुमायूँ को यह राखी भेजी थी
हुमायूँ ने फिर बहादुरशाह के संग की लड़ाई थी
सिकंदर की भार्या ने भी पुरू को राखी भेजी थी
इस धागे ने ही तब सिकंदर की जान बचाई थी
केवल बहन भाई के रिश्ते का धोतक नही है
केवल लेन देन का रिश्ता इसकी सोच नही है
एक दूजे की रक्षा करने का यह मज़बूत धागा है
स्नेह और समर्पण का यह धागा तो बस गवाह है
ब्राह्मण इसे यजमान को बांध आपति से बचाता है
सीमा पर सैनिकों का भी ये धागा मनोबल बढ़ाता है
मित्रो मे भी यह धागा स्नेह और विश्वास जगाता है
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह शुभ पल आता है
सभी पाठको को रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामनायें!!!
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
देव - दानवो के युद्ध मे जब दानव हावी थे
इंद्राणी ने इन्द्र को तब पवित्र धागा बांधा था
इस धागे की शक्ति से इन्द्र ने विजय पायी थी
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
विष्णु ने जब राजा बलि से संसार मांग लिया था
बलि की भक्ति ने विष्णु को तब अपने संग रोका था
लक्ष्मी ने बांध इसे बलि को विष्णु को तब पाया था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
शिशुपाल का वध जब कृष्ण ने किया था
कृष्ण की तर्जनी से बहता खून का रेला था
द्रौपदी ने चीर बांध कृष्ण के खून को रोका था
श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पल आया था
रानी कर्णवती ने हुमायूँ को यह राखी भेजी थी
हुमायूँ ने फिर बहादुरशाह के संग की लड़ाई थी
सिकंदर की भार्या ने भी पुरू को राखी भेजी थी
इस धागे ने ही तब सिकंदर की जान बचाई थी
केवल बहन भाई के रिश्ते का धोतक नही है
केवल लेन देन का रिश्ता इसकी सोच नही है
एक दूजे की रक्षा करने का यह मज़बूत धागा है
स्नेह और समर्पण का यह धागा तो बस गवाह है
ब्राह्मण इसे यजमान को बांध आपति से बचाता है
सीमा पर सैनिकों का भी ये धागा मनोबल बढ़ाता है
मित्रो मे भी यह धागा स्नेह और विश्वास जगाता है
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह शुभ पल आता है
सभी पाठको को रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामनायें!!!
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
Genuine Reasons
The adorable part of people
Might mislead some times
The reality may be different
Their inner self may be other
Different could be attitude
Spoken words not be true
Appearance be deceptive
Gestures and body language
Could just be the illusions
Intents may be mismatching
With what you had thought
The enthusiasm on purpose
Looks may be mischievous
But why get in to all this?
Retain your aptitude well
Follow your own attitude
Do grant concessions too
Margin for circumstances
Also any genuine reasons
You must be the genuine
That’s what matters for you
Might mislead some times
The reality may be different
Their inner self may be other
Different could be attitude
Spoken words not be true
Appearance be deceptive
Gestures and body language
Could just be the illusions
Intents may be mismatching
With what you had thought
The enthusiasm on purpose
Looks may be mischievous
But why get in to all this?
Retain your aptitude well
Follow your own attitude
Do grant concessions too
Margin for circumstances
Also any genuine reasons
You must be the genuine
That’s what matters for you
Thursday, August 11, 2011
जुस्तज़ू
आज हवाओं में भीनी भीनी ख़ुशबू है
होने वाली पूरी शायद मेरी जुस्तजू है
आसमान भी आज मेरा गवाह बन रहा है
कितने खिलते हुए नीले रंग में दीख रहा है
बादलों के गुच्छों में बैठ कर नीचे सी आती
परियों की भी लगता बस यही आरजू है
मेरे आस पास बहती कैसी मंद पवन है
मौसम भी आज इधर ऐसा मनभावन है
न मालूम कौन है देता क्या आमंत्रण है
कुछ भी हो चलता रहे यही सिलसिला
अब बस यही मेरी आरज़ू जुस्तज़ू भी है
Tuesday, August 9, 2011
मुल्क जल रहा है
बचा लो इसे ये मुल्क जल रहा है
देखो कहीं जाति से, कहीं धर्म से
सत्कर्म छोड़ दुष्कर्म से कैसा
ये रोज़, हर रोज़ जल रहा है
भ्रष्ट शासक भ्रष्ट लोगों की भीड़ में
बस भ्रष्ट ही आचार पल रहा है
कहीं भूख से कहीं शोषकों से
त्रस्त जन बस हाथ मल रहा है
हर तरफ हाहाकार है मचा यहाँ
आज है और न कोई कल रहा है
परिवार की और जेब की बस
जुगत में हर कोई विकल रहा है
भूल सब बस अपनी खातिर सही
बचा लो इसे ये मुल्क जल रहा है
देखो कहीं जाति से, कहीं धर्म से
सत्कर्म छोड़ दुष्कर्म से कैसा
ये रोज़, हर रोज़ जल रहा है
भ्रष्ट शासक भ्रष्ट लोगों की भीड़ में
बस भ्रष्ट ही आचार पल रहा है
कहीं भूख से कहीं शोषकों से
त्रस्त जन बस हाथ मल रहा है
हर तरफ हाहाकार है मचा यहाँ
आज है और न कोई कल रहा है
परिवार की और जेब की बस
जुगत में हर कोई विकल रहा है
भूल सब बस अपनी खातिर सही
बचा लो इसे ये मुल्क जल रहा है
दीदार-ए- यार
ज़माना गुजरा कोई पैगाम मिले सही
ये दिल आज भी गुल-ए-गुलज़ार तो है
न उनने कभी या न हमने ही कहा हो
लफ़्ज़ों में बयाँ न हो सही इकरार तो है
दिन गुज़रे रातें भी गुजरी तसव्वुर में
मुलाक़ात न हों न सही इंतजार तो है
वो अपने शहर में हम अपनी डगर हैं
पास नहीं हम दूर सही पर प्यार तो है
नींद न हो न सही ख्वाब भी न सही
मेरी बंद आँखों में दीदार-ए- यार तो है
BREATH YOURSELF HEALTHY
The nose has a left and a right side; we use both to inhale and exhale.
Actually they are different; you would be able to feel the difference.
The right side represents the sun, left side represents the moon.
During a headache, try to close your right nose
and use your left nose to breathe.
In about five minutes, your headache will go?
If you feel tired, just reverse, close your left nose and breathe through your right nose.
After a while, you will feel your mind is refreshed.
Right side belongs to 'hot', so it gets heated up easily, left side belongs to 'cold'.
Most females breathe with their left noses,
so they get "cooled off" faster.
Most of the guys breathe with their right noses,
they get worked up.
Do you notice the moment we wake up,
which side breathes faster?
Left or right? ?
If left is faster,
you will feel tired.
So, close your left nose and
use your right nose for breathing,
you will get refreshed quickly.
This can be taught to kids, but it is
more effective when practiced by adults.
My friend used to have bad headaches and
was always visiting the doctor.
There was this period when she suffered
headache literally every night, unable to study.
She took painkillers, did not work.
She decided to try out the breathing therapy here: closed her right nose and breathed through her left nose.
In less than a week, her headaches were gone!
She continued the exercise for one month.
This alternative natural therapy without medication is something that she has experienced.
So, why not give it a try, yourself? It does not cost anything. You may have seen similar process in Yoga.
Actually they are different; you would be able to feel the difference.
The right side represents the sun, left side represents the moon.
During a headache, try to close your right nose
and use your left nose to breathe.
In about five minutes, your headache will go?
If you feel tired, just reverse, close your left nose and breathe through your right nose.
After a while, you will feel your mind is refreshed.
Right side belongs to 'hot', so it gets heated up easily, left side belongs to 'cold'.
Most females breathe with their left noses,
so they get "cooled off" faster.
Most of the guys breathe with their right noses,
they get worked up.
Do you notice the moment we wake up,
which side breathes faster?
Left or right? ?
If left is faster,
you will feel tired.
So, close your left nose and
use your right nose for breathing,
you will get refreshed quickly.
This can be taught to kids, but it is
more effective when practiced by adults.
My friend used to have bad headaches and
was always visiting the doctor.
There was this period when she suffered
headache literally every night, unable to study.
She took painkillers, did not work.
She decided to try out the breathing therapy here: closed her right nose and breathed through her left nose.
In less than a week, her headaches were gone!
She continued the exercise for one month.
This alternative natural therapy without medication is something that she has experienced.
So, why not give it a try, yourself? It does not cost anything. You may have seen similar process in Yoga.
Saturday, August 6, 2011
बहुत देर
पांचवीं तक पहुँचते पहुँचते
फीस को भी पैसे न बचे थे
माँ-बाप ने और पढ़ना चाहा
फिर विवश थे इस बात से
अब बेटे को भी तो पढ़ाना है
इसका क्या ये तो लड़की है!
अंतिम संस्कार तो वही करेगा
उसका विवाह कर दिया गया था
कई वर्ष बाद आयाम बदले
पुत्र ने नाता तोड़ा माँ-बाप से
माँ-बाप फटे हाल हो गए थे
बेटी अपने प्रयास व संघर्ष से
सफल गृहस्थी चला रही थी
बेटी ही अब अपनी ख़ुशी से
माँ-बाप का भी सहारा थी
किन्तु माँ-बाप को अब लगा
उनसे ही गलती हो गई थी
मगर अब बहुत देर हो गई थी
फीस को भी पैसे न बचे थे
माँ-बाप ने और पढ़ना चाहा
फिर विवश थे इस बात से
अब बेटे को भी तो पढ़ाना है
इसका क्या ये तो लड़की है!
अंतिम संस्कार तो वही करेगा
उसका विवाह कर दिया गया था
कई वर्ष बाद आयाम बदले
पुत्र ने नाता तोड़ा माँ-बाप से
माँ-बाप फटे हाल हो गए थे
बेटी अपने प्रयास व संघर्ष से
सफल गृहस्थी चला रही थी
बेटी ही अब अपनी ख़ुशी से
माँ-बाप का भी सहारा थी
किन्तु माँ-बाप को अब लगा
उनसे ही गलती हो गई थी
मगर अब बहुत देर हो गई थी
Friday, August 5, 2011
वो ही वो
दिन भर जिनको बिसरा चुके थे
रात भर फिर वही ख्याल आते रहे
जिस जिस को भूल जाना चाहा
बस वो ही वो थे याद आते रहे
रात भर फिर वही ख्याल आते रहे
जिस जिस को भूल जाना चाहा
बस वो ही वो थे याद आते रहे
Thursday, August 4, 2011
दिल से देखो
जो मिले नसीब समझ ले लो
यही तो हर सरकार समझती है
नेताओं को ही राज करने दो
इसमें जनता कहाँ खपती है
राजतन्त्र, अर्थतंत्र की समझ
कहाँ कब हरएक को होती है
कौन कहता है जनता रोती है
रोने की फुर्सत कहाँ होती है
महंगाई कहाँ बढ़ी कहते हो
यहाँ तो उम्र भी बड़ी सस्ती है
दिल से देखो आँखों का क्या
हर ओर तरक्की ही तरक्की है
यही तो हर सरकार समझती है
नेताओं को ही राज करने दो
इसमें जनता कहाँ खपती है
राजतन्त्र, अर्थतंत्र की समझ
कहाँ कब हरएक को होती है
कौन कहता है जनता रोती है
रोने की फुर्सत कहाँ होती है
महंगाई कहाँ बढ़ी कहते हो
यहाँ तो उम्र भी बड़ी सस्ती है
दिल से देखो आँखों का क्या
हर ओर तरक्की ही तरक्की है
Wednesday, August 3, 2011
Monday, August 1, 2011
Extra Dose
I challenge and dare thoughts
Try trouble or overpower me
They may unsettle or de-settle
Momentarily my mind or emotions
I will bounce back rejuvenated
With the extra zeal and energy
All I will have to do may be
To understand them rationally
And to control them or evict
As they were allowed to reside
By no one else but only myself
So shall I deal with them all
Whenever they give extra dose
Try trouble or overpower me
They may unsettle or de-settle
Momentarily my mind or emotions
I will bounce back rejuvenated
With the extra zeal and energy
All I will have to do may be
To understand them rationally
And to control them or evict
As they were allowed to reside
By no one else but only myself
So shall I deal with them all
Whenever they give extra dose
दस्तूर
उसकी नज़रों में थी एक अजीब सी कशिश
उसके चेहरे की रंगत बदलती रहती थी
किसी ख्याल के चलते ही शायद वो
ज़माने के दस्तूर को समझने लगी थी
उसके चेहरे की रंगत बदलती रहती थी
किसी ख्याल के चलते ही शायद वो
ज़माने के दस्तूर को समझने लगी थी
Friday, July 29, 2011
Glimpses of Hope
The glimpses of hope
Knocking at my door
At times unseen and
Unheard, unnoticed
I take them whenever
Supplement my gains
Gaps in my ambitions
And for contentment
In my achievements
They oblige me always
Making my path of life
Bright and enlightened
If everything in despair
Hope gives reassurance
Knocking at my door
At times unseen and
Unheard, unnoticed
I take them whenever
Supplement my gains
Gaps in my ambitions
And for contentment
In my achievements
They oblige me always
Making my path of life
Bright and enlightened
If everything in despair
Hope gives reassurance
Tuesday, July 26, 2011
सिंहासन खाली करो ...कविवर दिनकर
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता?हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"
मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता;गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।-
कविवर दिनकर जी...!!
(26जनवरी,1950ई.)
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता?हां,मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाडे-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चुस रहे
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली।
जनता?हां,लंबी - बडी जीभ की वही कसम,
"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"
"सो ठीक,मगर,आखिर,इस पर जनमत क्या है?"
'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"
मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह,समय में ताव कहां?
वह जिधर चाहती,काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता;गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई,जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं।
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।-
कविवर दिनकर जी...!!
(26जनवरी,1950ई.)
Saturday, July 23, 2011
ऐसे आ जाना
तुम अचानक फिर आना
बिना कोई भी खबर किए
वही मदमस्त हँसी के खूब
ठहाकों से भरे अंदाज़ लिए
तुम्हारी खनकती चूड़ियों की
चिर-परिचित आवाज़ लिए
वो पायल छमछमाती हुई
वही मधुर सा संगीत लिए
मेरी हसरतों में भी कसर
आज न रह जाए कोई बाकी
तुम बस ऐसे छा जाना मेरी
नज़रों में बस जाने के लिए
तुम हर रंग में चली आना
सब रस मेरे घर-द्वार लिए
बिना कोई भी खबर किए
वही मदमस्त हँसी के खूब
ठहाकों से भरे अंदाज़ लिए
तुम्हारी खनकती चूड़ियों की
चिर-परिचित आवाज़ लिए
वो पायल छमछमाती हुई
वही मधुर सा संगीत लिए
मेरी हसरतों में भी कसर
आज न रह जाए कोई बाकी
तुम बस ऐसे छा जाना मेरी
नज़रों में बस जाने के लिए
तुम हर रंग में चली आना
सब रस मेरे घर-द्वार लिए
Thursday, July 21, 2011
उस्ताद शायर 'अकील नोमानी' जी की ग़ज़ल
महाज़े जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है
ख़ुशी ग़म से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हंसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है
मैं जिन लोगों से खुद को मुख्तलिफ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है
ख़ुशी ग़म से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हंसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है
मैं जिन लोगों से खुद को मुख्तलिफ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
Wednesday, July 20, 2011
क़ुदरत
तुम्हारे सब्ज़ रंगों से सजी
बिखराती मुस्कुराहटों में
ज़िन्दगी का आगाज़ है
तुम्हारी नेमतों में परोसे
बेशुमार मनभावन रंगों में
जीने का हर एक अंदाज़ है
बिखरती सी ज़िन्दगी का
तुमसे मिलकर गीत सा बन
कैसी मीठी सी आवाज़ है
शायद तभी सभी लोग यहाँ
इसे ही क़ुदरत कहते हैं
ये ही अनोखे अल्फाज़ हैं
बिखराती मुस्कुराहटों में
ज़िन्दगी का आगाज़ है
तुम्हारी नेमतों में परोसे
बेशुमार मनभावन रंगों में
जीने का हर एक अंदाज़ है
बिखरती सी ज़िन्दगी का
तुमसे मिलकर गीत सा बन
कैसी मीठी सी आवाज़ है
शायद तभी सभी लोग यहाँ
इसे ही क़ुदरत कहते हैं
ये ही अनोखे अल्फाज़ हैं
विवेचना
तुम्हारे उद्गारों की कड़वाहट
मुझे मायूस सा कर देती है
फिर भी मुझे इसमें तुम्हारा
मात्र व्यक्तित्व दोष दीखता है
उलाहने देकर प्रतिक्रिया में
तुम्हें फिर विवेचना की आदत है
मुझे विवेचना से क्या काम है
मंतव्य की समझ ही पर्याप्त है
तुम्हें अधिकार सोच का है
मेरा प्रयास बस समझ से है
मुझे मायूस सा कर देती है
फिर भी मुझे इसमें तुम्हारा
मात्र व्यक्तित्व दोष दीखता है
उलाहने देकर प्रतिक्रिया में
तुम्हें फिर विवेचना की आदत है
मुझे विवेचना से क्या काम है
मंतव्य की समझ ही पर्याप्त है
तुम्हें अधिकार सोच का है
मेरा प्रयास बस समझ से है
Tuesday, July 19, 2011
Common Man
Surviving in the rat race of
Each one looking for profits
At his expense, any ways
Anytime whatever means
Living with the politicians
With caricature like looks
Animated intents and aims
The unending rosy dreams
Coping with the inefficient
Arrogant public servants
Most with lose morals and
Very low levels of integrity
Whatever may be the way
The levels of ethics around
The ‘Worship the billionaires’
Being a motto of the society
Untold yet explicit exploitation
Hovers round the Common Man
Each one looking for profits
At his expense, any ways
Anytime whatever means
Living with the politicians
With caricature like looks
Animated intents and aims
The unending rosy dreams
Coping with the inefficient
Arrogant public servants
Most with lose morals and
Very low levels of integrity
Whatever may be the way
The levels of ethics around
The ‘Worship the billionaires’
Being a motto of the society
Untold yet explicit exploitation
Hovers round the Common Man
Sunday, July 17, 2011
नायाब
तुम मेरे ख़्वाबों को हक़ीक़त मत बनने देना
मुझे डर है कि हक़ीक़त में कहीं वो टूट जाएँगे
लाख बिखरे हुए ही सही नायाब से मेरे ख़्वाब
बस ये किसी रोज़ ख़ुद -ब- ख़ुद सिमट जाएँगे
मुझे डर है कि हक़ीक़त में कहीं वो टूट जाएँगे
लाख बिखरे हुए ही सही नायाब से मेरे ख़्वाब
बस ये किसी रोज़ ख़ुद -ब- ख़ुद सिमट जाएँगे
तुम्हारा
तुम्हारे संसर्ग में मुझे कभी यहाँ
मेरा ही घर बार दिखाई देता था
ज़माने भर की तमाम नेमतों का
मानो सारा भंडार दिखाई देता था
तुम्हारी आँखों में आज भी बस
मुझे सब संसार दिखाई देता है
मेरी सिसकती सी ज़िन्दगी में
तुम्हारा ही प्यार दिखाई देता है
तुमने नहीं कहा एक बार भी
फिर भी मुझे हर बार दिखता है
निःशब्द बने होने पर भी मुझे
शब्दों का अम्बार दिखाई देता है
मेरा ही घर बार दिखाई देता था
ज़माने भर की तमाम नेमतों का
मानो सारा भंडार दिखाई देता था
तुम्हारी आँखों में आज भी बस
मुझे सब संसार दिखाई देता है
मेरी सिसकती सी ज़िन्दगी में
तुम्हारा ही प्यार दिखाई देता है
तुमने नहीं कहा एक बार भी
फिर भी मुझे हर बार दिखता है
निःशब्द बने होने पर भी मुझे
शब्दों का अम्बार दिखाई देता है
Saturday, July 16, 2011
"दिनकर"
है कौन विघ्न ऐसा जग में ,
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है ,
पत्थर पानी बन जाता है ।
- रामधारी सिंह "दिनकर"-
टिक सके आदमी के मग में ?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है ,
पत्थर पानी बन जाता है ।
- रामधारी सिंह "दिनकर"-
HOW TO SURVIVE A HEART ATTACK WHEN ALONE
HOW TO SURVIVE A HEART ATTACK WHEN ALONE
Since many people are alone when they suffer a heart
attack, without help,the person whose heart is beating
improperly and who begins to feel faint, has only
about 10 seconds left before losing consciousness.
However,these victims can help themselves by coughing
repeatedly and very vigorously. A deep breath should
be taken before each cough, and the cough must be deep
and prolonged, as when producing sputum from deep
inside the chest.
A breath and a cough must be repeated about every two
seconds without let-up until help arrives, or until
the heart is felt to be beating normally again.
Deep breaths get oxygen into the lungs and coughing
movements squeeze the heart and keep the blood
circulating. The squeezing pressure on the heart also
helps it regain normal rhythm. In this way, heart
attack victims can get to a hospital. Tell as many
other people as possible about this. It could save
their lives!!
Since many people are alone when they suffer a heart
attack, without help,the person whose heart is beating
improperly and who begins to feel faint, has only
about 10 seconds left before losing consciousness.
However,these victims can help themselves by coughing
repeatedly and very vigorously. A deep breath should
be taken before each cough, and the cough must be deep
and prolonged, as when producing sputum from deep
inside the chest.
A breath and a cough must be repeated about every two
seconds without let-up until help arrives, or until
the heart is felt to be beating normally again.
Deep breaths get oxygen into the lungs and coughing
movements squeeze the heart and keep the blood
circulating. The squeezing pressure on the heart also
helps it regain normal rhythm. In this way, heart
attack victims can get to a hospital. Tell as many
other people as possible about this. It could save
their lives!!
Notes..
I thought I had understood life
And started loving living with too
My understanding proved deficit
More when I want to derive ‘profit’
Life continued to give me moments
Of the mixed bag full of wonderful
Yet, often the jittery moments too
May be trying to test my essence
Of living it with my understanding
I take the sum total of the lessons
The life keeps giving me untiringly
Like a good student in the school
Following the teachers’ instructions
With a zeal to learn more and more
Taking notes of the lessons taught
Unassuming with devout curiosity!
And started loving living with too
My understanding proved deficit
More when I want to derive ‘profit’
Life continued to give me moments
Of the mixed bag full of wonderful
Yet, often the jittery moments too
May be trying to test my essence
Of living it with my understanding
I take the sum total of the lessons
The life keeps giving me untiringly
Like a good student in the school
Following the teachers’ instructions
With a zeal to learn more and more
Taking notes of the lessons taught
Unassuming with devout curiosity!
PUSH!
When all goes wrong....PUSH...!!
When u wish for something...PUSH...!!
When people don't understand u...PUSH..!!
When u wish for love....PUSH..!!
P -RAY....U -NTIL....S -OMETHING..... H -APPENS....!!!
When u wish for something...PUSH...!!
When people don't understand u...PUSH..!!
When u wish for love....PUSH..!!
P -RAY....U -NTIL....S -OMETHING..... H -APPENS....!!!
Friday, July 15, 2011
बंद मुट्ठी
उम्मीदें मेरी बंधी हुई हैं
किसी की बंद मुट्ठी में
क्या खूब सहारा है हमें
हसरतों में उम्मीद का
हमारा वज़ूद कायम है
दोनों की ही शिरक़त में
दोनों ही दिलासा देती हैं
ढूंढें जिस किसी हाल में
यही मेरा आसरा भी है
तसल्ली भी मुझे इसी में
इसीलिए खुश हूँ मैं
मुट्ठी के बंद रहने में
किसी की बंद मुट्ठी में
क्या खूब सहारा है हमें
हसरतों में उम्मीद का
हमारा वज़ूद कायम है
दोनों की ही शिरक़त में
दोनों ही दिलासा देती हैं
ढूंढें जिस किसी हाल में
यही मेरा आसरा भी है
तसल्ली भी मुझे इसी में
इसीलिए खुश हूँ मैं
मुट्ठी के बंद रहने में
Thursday, July 14, 2011
Interesting..Vedic rituals lower contamination..???
Vedic rituals lower water, soil contamination: Scientists
New Delhi: The initial findings of a scientific study carried out during the Vedic ritual in Kerala show that the ancient Sanskrit chants, rites and smoke from the sacred fire accelerate germination of seeds in the vicinity and lower the level of microbe contamination in water and ambient soil, scientists said Thursday.
The ritual of "Athirathram" was held in Panjal village in Thrissur district of Kerala April 4-15.
The scientists researching the impact of the ritual on environment said the fire laced with herbs, wood, milk and the juice of Soma plant, the earliest known intoxicant, acted as a natural purifier. The Soma plant grows in abundance in the Western Ghats bordering Kerala.
A team of scientists said in a statement that "the studies showed encouraging results on the environment".
The statement by the Varthathe Trust, the organisers of the ritual, said: "There was preliminary evidence that the yagya (ritual) had a positive impact on the germination of the seeds".
The scientists led by V.P.N. Nampoori, former director of the International School of Photonics, Cochin University of Science and Technology (CUSAT), had planted three types of seeds - cowpea, green gram and Bengal gram - around the venue of the ritual.
"The results showed that the growth was accelerated in the case of seeds on the western side of the altar in comparison to other sides. The effect was very clear in the case of Bengal gram which grew 2,000 times faster than the plants on the eastern, northern and southern side," Nampoori said.
Microbial analysis carried out at distances between 500 metres to 1.5 km of the location of the ritual to count the bacterial colonies before and after the ritual found that "ambient air and water was purer with low microbial count compared to normal circumstances".
An analysis on the dimensions of temperature from the flames of the "great ball of fire" generated by the Vedic priests using a slow ritual sequence of chants and sporadic offerings of milk, "soma rasa" and clarified butter into a pot holding the sacred fire found the fire ball had a "particular wavelength with unusually high activity similar to what was observed in typical laser beams at about 3,870 degrees centigrade".
The fire study was conducted by experts from the Indian Institute of Astrophysics in Bangalore.
Kerala-based Vedic scholar M. Krishnakumar said: "The scientific study was a pioneering endeavour to explore the effects of the ritual on people, environment and atmosphere."
Source: IANS
New Delhi: The initial findings of a scientific study carried out during the Vedic ritual in Kerala show that the ancient Sanskrit chants, rites and smoke from the sacred fire accelerate germination of seeds in the vicinity and lower the level of microbe contamination in water and ambient soil, scientists said Thursday.
The ritual of "Athirathram" was held in Panjal village in Thrissur district of Kerala April 4-15.
The scientists researching the impact of the ritual on environment said the fire laced with herbs, wood, milk and the juice of Soma plant, the earliest known intoxicant, acted as a natural purifier. The Soma plant grows in abundance in the Western Ghats bordering Kerala.
A team of scientists said in a statement that "the studies showed encouraging results on the environment".
The statement by the Varthathe Trust, the organisers of the ritual, said: "There was preliminary evidence that the yagya (ritual) had a positive impact on the germination of the seeds".
The scientists led by V.P.N. Nampoori, former director of the International School of Photonics, Cochin University of Science and Technology (CUSAT), had planted three types of seeds - cowpea, green gram and Bengal gram - around the venue of the ritual.
"The results showed that the growth was accelerated in the case of seeds on the western side of the altar in comparison to other sides. The effect was very clear in the case of Bengal gram which grew 2,000 times faster than the plants on the eastern, northern and southern side," Nampoori said.
Microbial analysis carried out at distances between 500 metres to 1.5 km of the location of the ritual to count the bacterial colonies before and after the ritual found that "ambient air and water was purer with low microbial count compared to normal circumstances".
An analysis on the dimensions of temperature from the flames of the "great ball of fire" generated by the Vedic priests using a slow ritual sequence of chants and sporadic offerings of milk, "soma rasa" and clarified butter into a pot holding the sacred fire found the fire ball had a "particular wavelength with unusually high activity similar to what was observed in typical laser beams at about 3,870 degrees centigrade".
The fire study was conducted by experts from the Indian Institute of Astrophysics in Bangalore.
Kerala-based Vedic scholar M. Krishnakumar said: "The scientific study was a pioneering endeavour to explore the effects of the ritual on people, environment and atmosphere."
Source: IANS
आतंकवाद
आतंकवाद के वीभत्स चित्र
परिचायक हैं आतंकियों
और उनके आकाओं की
घिनौनी मानसिकता के
उनके तथाकथित स्वार्थ के
इसके प्रतिकार स्वरुप
हमें रहेगा इंतजार उस पल का
जब पाले बदल जायेंगे
हमेशा की तरह ही
उनके गुनाहों की सजा
स्वतः ही मिल जाएगी उन्हें
फ़िलहाल हसरत है हमारी
अपराधियों को सजा हो
वो आकाओं के नाम बता दें
परिचायक हैं आतंकियों
और उनके आकाओं की
घिनौनी मानसिकता के
उनके तथाकथित स्वार्थ के
इसके प्रतिकार स्वरुप
हमें रहेगा इंतजार उस पल का
जब पाले बदल जायेंगे
हमेशा की तरह ही
उनके गुनाहों की सजा
स्वतः ही मिल जाएगी उन्हें
फ़िलहाल हसरत है हमारी
अपराधियों को सजा हो
वो आकाओं के नाम बता दें
Sunday, July 10, 2011
आँखों की मुस्कराहट
उनकी आँखें भी अक्सर
मुस्कुराने सी लगती हैं
कभी खुद को कभी मुझको
बस आज़माने सी लगती हैं
कभी ख़ुशी में और कभी
कुछ समझाने सी लगती हैं
कभी अपने ही ख्यालों में
वो इतराने सी लगती हैं
कभी कोई जानी पहचानी
शरारत सी करने लगती हैं
कभी छुपाती हुई सी कोई
कुछ परेशानी सी लगती हैं
कभी रूहानी कभी रूमानी
कभी अनजानी सी लगती हैं
मुस्कुराने सी लगती हैं
कभी खुद को कभी मुझको
बस आज़माने सी लगती हैं
कभी ख़ुशी में और कभी
कुछ समझाने सी लगती हैं
कभी अपने ही ख्यालों में
वो इतराने सी लगती हैं
कभी कोई जानी पहचानी
शरारत सी करने लगती हैं
कभी छुपाती हुई सी कोई
कुछ परेशानी सी लगती हैं
कभी रूहानी कभी रूमानी
कभी अनजानी सी लगती हैं
Friday, July 8, 2011
उधार
नाक़ाम सही पर काबिले गौर है
की तो थी हमने भी थी कोशिश
मुक़ाम तक न भी लाए तो क्या
तबीयत आज भी हो रही है खुश
कि वो गुलशन हुआ था गुलज़ार
हमें आज फख्र है इस बात का
हमारा भी वक़्त आया था कभी
वक़्त की याद तो ओझल हो चुकी
बस अब एक एहसास ही बाकी है
कुछ और हो न हो ये भी है सही
कोई तो उधार अभी तक बाक़ी है
की तो थी हमने भी थी कोशिश
मुक़ाम तक न भी लाए तो क्या
तबीयत आज भी हो रही है खुश
कि वो गुलशन हुआ था गुलज़ार
हमें आज फख्र है इस बात का
हमारा भी वक़्त आया था कभी
वक़्त की याद तो ओझल हो चुकी
बस अब एक एहसास ही बाकी है
कुछ और हो न हो ये भी है सही
कोई तो उधार अभी तक बाक़ी है
Wednesday, July 6, 2011
उलझनें
उलझनें उलझनों में फंसती रहीं
ज़िन्दगी की ख्वाहिशें बढ़ती रहीं
कोशिशों की कोशिशें होती रहीं
वक़्त की भी करवटें बदलती रहीं
आहटें भी बस आहटें करती रहीं
हर ज़गह थे हम मगर थे तुम नहीं
किसकी जानिब कौन है हर कहीं
जानते थे और इल्म भी कोई नहीं
हमकदम हमराह भी थे हर कहीं
रूह को पर चैन तक आया नहीं
ज़िन्दगी की ख्वाहिशें बढ़ती रहीं
कोशिशों की कोशिशें होती रहीं
वक़्त की भी करवटें बदलती रहीं
आहटें भी बस आहटें करती रहीं
हर ज़गह थे हम मगर थे तुम नहीं
किसकी जानिब कौन है हर कहीं
जानते थे और इल्म भी कोई नहीं
हमकदम हमराह भी थे हर कहीं
रूह को पर चैन तक आया नहीं
बिखरे से
कहीं किसी अनजाने
खोये से लम्हे में आज
खोये हैं मेरे ख़याल
वक़्त या तारीख़ का
अंदाज़ा नहीं मुझको
एक अज़ीब ओ ग़रीब सी
कशमकश में मानो
उलझ रहे हैं मेरे ख़याल
बेइंतहा और बेखयाल से
बिखरे से हैं मेरे ख़याल
खोये से लम्हे में आज
खोये हैं मेरे ख़याल
वक़्त या तारीख़ का
अंदाज़ा नहीं मुझको
एक अज़ीब ओ ग़रीब सी
कशमकश में मानो
उलझ रहे हैं मेरे ख़याल
बेइंतहा और बेखयाल से
बिखरे से हैं मेरे ख़याल
Monday, July 4, 2011
Attitude...
That Is Attitude…
1. Heavy rains remind us of challenges in life. Never ask for a lighter rain. Just pray for a better umbrella. That is attitude.
2. It’s not important to hold all the good cards in life. But it’s important how well you play with the cards which you hold.
3. Every problem has (n+1) solutions, where n is the number of solutions that you have tried and 1 is that you have not tried. That’s life.
4. When flood comes, fish eat ants & when flood recedes, ants eat fish. Only time matters. Just hold on, God gives opportunity to everyone!
5. One of the basic differences between God and human is, God gives, gives and forgives. But human gets, gets, gets and forgets. Be thankful in life!
6. Life is not about finding the right person, but creating the right relationship, it's not how we care in the beginning, but how much we care till ending.
7. Some people always throw stones in your path. It depends on you what you make with them, Wall or Bridge ? Remember you are the architect of your life.
8. Often when we lose all hope & think this is the end, God smiles from above and says, `Relax dear it’s just a bend. Not the end'. Have Faith and have a successful life.
9. Only two types of persons are happy in this world. 1st is Mad and 2ndis Child. Be Mad to achieve what you desire and be a Child to enjoy what you have achieved.
10. When you feel sad, to cheer up just go to the mirror and say, `Damn I am really so cute` and you will overcome your sadness. But don’t make this a habit coz liars go to hell.
1. Heavy rains remind us of challenges in life. Never ask for a lighter rain. Just pray for a better umbrella. That is attitude.
2. It’s not important to hold all the good cards in life. But it’s important how well you play with the cards which you hold.
3. Every problem has (n+1) solutions, where n is the number of solutions that you have tried and 1 is that you have not tried. That’s life.
4. When flood comes, fish eat ants & when flood recedes, ants eat fish. Only time matters. Just hold on, God gives opportunity to everyone!
5. One of the basic differences between God and human is, God gives, gives and forgives. But human gets, gets, gets and forgets. Be thankful in life!
6. Life is not about finding the right person, but creating the right relationship, it's not how we care in the beginning, but how much we care till ending.
7. Some people always throw stones in your path. It depends on you what you make with them, Wall or Bridge ? Remember you are the architect of your life.
8. Often when we lose all hope & think this is the end, God smiles from above and says, `Relax dear it’s just a bend. Not the end'. Have Faith and have a successful life.
9. Only two types of persons are happy in this world. 1st is Mad and 2ndis Child. Be Mad to achieve what you desire and be a Child to enjoy what you have achieved.
10. When you feel sad, to cheer up just go to the mirror and say, `Damn I am really so cute` and you will overcome your sadness. But don’t make this a habit coz liars go to hell.
Apprehensions
With the tremendous progress
World witnessing globalization
Came along with this were ours
Widening of the new horizons
The followings and adaptations
The exposure and assimilations
The individual and also global
Changing multifarious relations
The cross cultural celebrations
Also came with this all about
Our changing new aspirations
Flexing of the muscles by nations
Business, cut-throat competitions
Narrowed individual perceptions
Our ever growing apprehensions
World witnessing globalization
Came along with this were ours
Widening of the new horizons
The followings and adaptations
The exposure and assimilations
The individual and also global
Changing multifarious relations
The cross cultural celebrations
Also came with this all about
Our changing new aspirations
Flexing of the muscles by nations
Business, cut-throat competitions
Narrowed individual perceptions
Our ever growing apprehensions
Sunday, July 3, 2011
Stupid Reason
He was trying to test me
Perhaps without intention
I too was not like myself
Started doubting intention
We both started arguing
Both suck to our own stand
Sticking to individual line
No flexibility was shown
Both started giving instances
From the past settled already
The old wounds got exposed
Like always and every time
Bitterness grew bigger
Then silent protests sulking
Couple of days then passed
Both realizing the problem
Man-made and non-existent
Thus prevailed the reasoning
That all was for stupid reason
Perhaps without intention
I too was not like myself
Started doubting intention
We both started arguing
Both suck to our own stand
Sticking to individual line
No flexibility was shown
Both started giving instances
From the past settled already
The old wounds got exposed
Like always and every time
Bitterness grew bigger
Then silent protests sulking
Couple of days then passed
Both realizing the problem
Man-made and non-existent
Thus prevailed the reasoning
That all was for stupid reason
Lingering Desires
The untold stories
Unfound people and
Eluding achievements
We all have them
But I seldom worry
About my very own
Unfulfilled desires
I am happy always
About achievements
My zeal to achieve
Much more in my life
In my own ethical way
Without getting hasty
Achievers too have
The unfulfilled and
The unachievable but
The lingering desires
Unfound people and
Eluding achievements
We all have them
But I seldom worry
About my very own
Unfulfilled desires
I am happy always
About achievements
My zeal to achieve
Much more in my life
In my own ethical way
Without getting hasty
Achievers too have
The unfulfilled and
The unachievable but
The lingering desires
Friday, July 1, 2011
Why men store fat in bellies, women on hips
Why men store fat in bellies, women on hips
ANI, Jan 3, 2011, 12.00am IST
Tags:Obesity
Researchers claim to have answered the age-old question of why men store fat in their bellies and women store it in their hips - the fat tissue is almost completely different, genetically speaking that is.
"Given the difference in gene expression profiles, a female fat tissue won't behave anything like a male fat tissue and vice versa," Dr. Clegg said. "The notion that fat cells between males and females are alike is inconsistent with our findings."
In humans, men are more likely to carry extra weight around their guts while pre-menopausal women store it in their butts, thighs and hips.
The bad news for men is that belly, or visceral, fat has been associated with numerous obesity-related diseases including diabetes and heart disease. Women, on the other hand, are generally protected from these obesity-related disorders until menopause, when their ovarian hormone levels drop and fat storage tends to shift from their rear ends to their waists.
"Although our new findings don't explain why women begin storing fat in their bellies after menopause, the results do bring us a step closer to understanding the mechanisms behind the unwanted shift," Dr. Clegg said.
For the study, researchers used a microarray analysis to determine whether male fat cells and female fat cells were different between the waist and hips and if they were different based on gender at a genetic level.
Because the fat distribution patterns of male and female mice are similar to those of humans, the researchers used the animals to compare genes from the belly and hip fat pads of male mice, female mice and female mice whose ovaries had been removed - a condition that closely mimics human menopause. Waist and hip fat (subcutaneous fat) generally accumulates outside the muscle wall, whereas belly fat (visceral fat), a major health concern in men and postmenopausal women, develops around the internal organs.
In addition to the genetic differences among fat tissues, the researchers found that male mice that consumed a high-fat diet for 12 weeks gained more weight than female mice on the same diet. The males' fat tissue, particularly their belly fat, became highly inflamed, while the females had lower levels of genes associated with inflammation. The female mice whose ovaries had been removed, however, gained weight on the high-fat diet more like the males and deposited this fat in their bellies, also like the males.
"The fat of the female mice whose ovaries had been removed was inflamed and was starting to look like the unhealthy male fat," Dr. Clegg said. "However, estrogen replacement therapy in the mice reduced the inflammation and returned their fat distribution to that of mice with their ovaries intact."
Dr. Clegg said the results suggest that hormones made by the ovaries may be critical in determining where fat is deposited.
ANI, Jan 3, 2011, 12.00am IST
Tags:Obesity
Researchers claim to have answered the age-old question of why men store fat in their bellies and women store it in their hips - the fat tissue is almost completely different, genetically speaking that is.
"Given the difference in gene expression profiles, a female fat tissue won't behave anything like a male fat tissue and vice versa," Dr. Clegg said. "The notion that fat cells between males and females are alike is inconsistent with our findings."
In humans, men are more likely to carry extra weight around their guts while pre-menopausal women store it in their butts, thighs and hips.
The bad news for men is that belly, or visceral, fat has been associated with numerous obesity-related diseases including diabetes and heart disease. Women, on the other hand, are generally protected from these obesity-related disorders until menopause, when their ovarian hormone levels drop and fat storage tends to shift from their rear ends to their waists.
"Although our new findings don't explain why women begin storing fat in their bellies after menopause, the results do bring us a step closer to understanding the mechanisms behind the unwanted shift," Dr. Clegg said.
For the study, researchers used a microarray analysis to determine whether male fat cells and female fat cells were different between the waist and hips and if they were different based on gender at a genetic level.
Because the fat distribution patterns of male and female mice are similar to those of humans, the researchers used the animals to compare genes from the belly and hip fat pads of male mice, female mice and female mice whose ovaries had been removed - a condition that closely mimics human menopause. Waist and hip fat (subcutaneous fat) generally accumulates outside the muscle wall, whereas belly fat (visceral fat), a major health concern in men and postmenopausal women, develops around the internal organs.
In addition to the genetic differences among fat tissues, the researchers found that male mice that consumed a high-fat diet for 12 weeks gained more weight than female mice on the same diet. The males' fat tissue, particularly their belly fat, became highly inflamed, while the females had lower levels of genes associated with inflammation. The female mice whose ovaries had been removed, however, gained weight on the high-fat diet more like the males and deposited this fat in their bellies, also like the males.
"The fat of the female mice whose ovaries had been removed was inflamed and was starting to look like the unhealthy male fat," Dr. Clegg said. "However, estrogen replacement therapy in the mice reduced the inflammation and returned their fat distribution to that of mice with their ovaries intact."
Dr. Clegg said the results suggest that hormones made by the ovaries may be critical in determining where fat is deposited.
Wednesday, June 29, 2011
तलाश जारी
ये ज़िन्दगी जब तक है
मुसाफिर भी खूब होंगे
नित नए कारवाँ भी होंगे
ख़ुदी को तलाशते हुए से
हम ख़ुद पर ही यहाँ
हम हर रोज़ हँस लेंगे
लोगों की फितरत पर
कभी अपनी हसरत पर
कभी और कुछ नहीं तो
ज़माने पर ही हँस लेंगे
ख़ुद की कथनी-करनी के
बीच की दूरी पर हँस लेंगे
फिर भी तलाश जारी रहेगी
चाही-अनचाही अपनी व गैरों की
जब तक तुम और हम होंगे
मुसाफिर भी खूब होंगे
नित नए कारवाँ भी होंगे
ख़ुदी को तलाशते हुए से
हम ख़ुद पर ही यहाँ
हम हर रोज़ हँस लेंगे
लोगों की फितरत पर
कभी अपनी हसरत पर
कभी और कुछ नहीं तो
ज़माने पर ही हँस लेंगे
ख़ुद की कथनी-करनी के
बीच की दूरी पर हँस लेंगे
फिर भी तलाश जारी रहेगी
चाही-अनचाही अपनी व गैरों की
जब तक तुम और हम होंगे
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