महिलाओं में थायराइड की समस्या
.by प्रतिभा वाजपेयी
भारत की अधिकांश महिलाएं अनेक कारणों से अपनी शारीरिक परेशानियों को दबाए रखती हैं और न ही किसी को बताती अथवा डाक्टरी जांच उपचार कराती हैं। उनके इस व्यवहार के कारण शरीर की परेशानियां अनेक अन्य बीमारियों को जन्मने और पनपने का अवसर दे देती है।
थायराइड भी उनमें से एक है जो मेटाबालिज्म/चयापचय से जुडी बीमारी है। इसमें थायराइड हार्मोन का स्राव असंतुलित हो जाता है जिससे शरीर की समस्त भीतरी कार्यप्रणालियां अव्यवस्थित हो जाती हैं। भारत में चार करोड़ से अधिक थायराइड के मरीज हैं। इनमें से नब्बे प्रतिशत यह नहीं जानते कि उन्हें थायराइड की बीमारी है जिसके कारण उन्हें तरह-तरह की शारीरिक परेशानियां हो रही हैं।
थायराइड की समस्या पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कई गुना अधिक हैं। स्थिति यह है कि हर दस थायराइड मरीजों में से आठ महिलाएं ही होती हैं। इन महिलाओं को मोटापा, तनाव, अवसाद, बांझपन, कोलेस्ट्राल, आस्टियोपोरोसिस आदि जैसी परेशानियां होती हैं पर ये महिलाएं यह नहीं जानती कि उनकी इस परेशानी के पीछे थायराइड की बीमारी है।
थायराइड क्या है?
थायराइड शरीर का एक प्रमुख एंडोक्राइन ग्लैंड है जो तितली के आकार का होता है एवं गले में स्थित है। इसमें से थायराइड हार्मोन का स्राव होता है जो हमारे मेटाबालिज्म की दर को संतुलित करता है।
थायराइड हार्मोन के असंतुलन अर्थात कम ज्यादा स्राव होने से रोजमर्रा से जुड़ी अनेक शारीरिक परेशानियां होती हैं किंतु पीड़ित इसे सामान्य परेशानी मान झेलता रहता है। खून की थायराइड जांच कराने पर ही यह स्पष्ट होता है। महिलाओं को अपने शारीरिक बनावट व हार्मोनल कारणों से थायराइड की बीमारी व परेशानी ज्यादा होती है। यह थायराइड भी दो प्रकार का होता है, पहला हाइपोथायराइड एवं दूसरा हायपरथायराइड।
हाइपोथायराइड -
इस बीमारी में थायराइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता जिससे शरीर में आवश्यकता के अनुसार टी.थ्री व टी. फोर हार्मोन नहीं पहुंच पाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन में अचानक वृद्घि हो जाती है। रोजाना की गतिविधियों में रूचि कम हो जाती है। इन्हें ठंड बहुत महसूस होती है। कब्ज होने लगता है। आंखें सूज जाती हैं।
मासिक चक्र अनियमित हो जाता है। त्वचा सूखी व बाल बेजान होकर झड़ने लगते हैं। सुस्ती महसूस होती है। पैरों में सूजन व ऐंठन की शिकायत होती है। इनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगी तनाव व अवसाद से घिर जाते हैं और बात-बात में भावुक हो जाते हैं। जोड़ों में पानी भर जाता है जिससे दर्द होता है और चलने में दिक्कत होती है। मांसपेशियों में भी पानी भर जाता है जिससे चलते-फिरते हल्का दर्द पूरे शरीर में होता है। चेहरा सूज जाता है। आवाज रूखी व भारी हो जाती है। यह रोग ३० से ६० वर्ष की महिलाओं को होता है।
हायपरथायराइड -
इसमें थायराइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है और टी थ्री, टी फोर हार्मोन अधिक मात्रा में निकलकर रक्त में घुलनशील हो जाता है। इस बीमारी की स्थिति में वजन अचानक कम हो जाता है। अत्यधिक पसीना आता है। ये रोगी गर्मी सहन नहीं कर पाते। इनकी भूख में वृद्घि होती है। ये दुबले नजर आते हैं। मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। निराशा हावी हो जाती है।
हाथ कांपते हैं और आंखें उनींदी रहती हैं। आंखें बाहर आ जाएंगी, ऐसा लगता है। धड़कन बढ़ जाती है। इन्हें नींद नहीं आती। दस्त होता है। प्रजनन प्रभावित होता है। मासिक रक्तस्राव ज्यादा एवं अनियमित हो जाता है। गर्भपात के मामले सामने आते हैं। हायपर थायराइड बीस साल की महिलाओं को ज्यादा होता है।
जांच व उपचार -
थायराइड के दोनों प्रकार में रक्त की जांच पहले की जाती है। रक्त में टी थ्री, टी फोर एवं टी एस एच लेवल में सक्रिय हार्मोन्स का लेवल जांच किया जाता है। जांच निष्कर्ष के अनुसार डाक्टर उपचार बताते हैं। विवाह के उपरांत एवं गर्भावस्था में महिलाएं थायराइड की जांच जरूर कराएं। इससे गर्भवती एवं गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार की दिक्क्त नहीं आएगी। नब्बे प्रतिशत रोगियों को उम्र भर दवा खानी पड़ती है, किंतु पहले चरण में उपचार करा लेने से महिलाओं के शेष जीवन की दिनचर्या आसान हो जाती है। मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है।
ऐसे मरीज तनाव से बचें एवं हाइपोथायराइड है तो आयोडीन की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ से जीवन भर बचें। थायराइड की बीमारी पुरूषों व बच्चों को भी होती है। यह वंशानुगत होने वाली बीमारियों में से एक है।
अध्ययन के मुताबिक जलीय वनस्पति में पाए जाने वाले क्लोरोफिल, फाइटोबिलीप्रोटीन और जेंथोफिल्स उपापचय को ठीक रखने में काफी हद तक मददगार होते हैं। यही नहीं इस वनस्पति में मौजूद माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे नाइट्रेट, फास्फेट व सेलीसिलिक एसिड भी उपापचय की प्रक्रिया को दुरुस्त रखते हैं।
हालांकि इसके कई इलाज मौजूद हैं लेकिन शोधकर्ताओं ने जलीय वनस्पति [फाइटोप्लेंकटन] को थायराइड की समस्या दूर करने में कारगर बताया है।
शोधकर्ताओं की राय में उपापचय की दर को सही बनाए रखने के लिए गोजी बेरी का जूस भी काफी फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा विटामिन ए व सी की उचित मात्रा का लिया जाना हाइपोथायराडिज्म में कारगर साबित होता है।
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