Monday, October 31, 2011

यदा कदा

बिस्म्रित से हो गए लोग भी
याद तो आ जाते हैं यदा कदा
बिलकुल अपनी ही यादों से
गूंजने लगती है उनकी सदा
मानो कल की ही सी हो बात
कल के ही सब पल हों सर्वथा
बस समय निकल चुका हो
पर अंकित हों मन में सर्वदा
किसी रूहानी या ज़ज्बाती से
सवाल भी आ जाते यदा कदा

राज की बात

उनके आने से बहुत पहले का ही था यह राज
अपने राजा तो होंगे हम भी शहँशाह न सही
सोचा था हमने भी कभी हम भी करेंगे राज
कहीं और नहीं तो किसी के दिल पर ही सही
मगर कर न पाए अपने ही दिल पर भी राज
अब सोचते हैं की दिल की मुफ़्लिसी ही सही
यूँ भी चला पाना मुश्किल ही था हमसे राज
वो राज न था न सही ये राज की बात ही सही

Saturday, October 29, 2011

कमज़र्फ


किसी कमज़र्फ से पड़ा था पाला अपना
वरना हमारी भी थी कोई बिसात अपनी
इतनी भी तुम क्या संगदिली रखते हो
पहले ही बहुत तल्ख़ है बेदिली अपनी

Friday, October 28, 2011

नज़र से नज़र

हाँ उसकी नज़रें भी अक्सर
चुरा लेती हैं अपनी ही नज़र
जब कोई अंदाज़ ओ बयां हो
कोई मीठा सा एक सपना हो
जब आँखें शर्माती हैं नज़र से
कोई गुदगुदा सा एहसास हो
एक हसीं लम्हे की तलाश में
जब कोई ख़ुद खो सा जाता हो
या कोई ऐसी उन्मुक्त सी हँसी
कोई शरारत याद दिलाती हो
किसी गहरे दोस्त से कही कोई
अचानक ख़ास याद आ जाती हो
वो ख़ुद भी शरमाकर अक्सर
चुराते हैं अपनी नज़र से नज़र

Tuesday, October 25, 2011

मेरी बात


सुन रहे थे तुम मेरी बात
अपने बंधे हाथों के साथ
शायद अनसुनी कर रहे थे
तुम जानकर ही मेरी बात
किन्तु मेरा मन साफ़ हुआ
अवसर रहते कह दी बात
अनजाने में ही हो सही पर
तुम्हारे समक्ष थी मेरी बात
शायद कभी समझ सको तुम
भविष्य में ही सही मेरी बात
फिर शायद मैं न कह पाऊं
तुमसे या मुझसे मेरी बात

Unmindful

The angels wandered why?
The people are in despair
Birds are chirping in low tone
Forests have shed greens
Water bodies are shrinking
People are experiencing
Their happiness receding
World of friendship is limiting
In this very planet Earth
That witnessed no dearth
Of all these things in the past
They then said to themselves
Machines have taken over man
And man has become machine
Family bonds have diminished
Individuals are self-centric
Living is not cooperative now
Hearts don’t decide anymore
Minds have taken over it all
Everyone plays mind games
Unmindful of consequences!

अटपटा सा

गा रही थी गीत कोई
आज कोयल अटपटा सा
बोल शायद आज उसके
थे नहीं कुछ दिल से निकले
थी सुरों में कुछ मायूसी सी
कंठ भी कुछ था बिह्वल सा
स्वप्नवत लगती थी धरती
आज रस सब लापता था
फिर भी कोयल गा रही थी
अपना ज़िम्मा निभा रही थी
कौन जाने इस गीत के सुर
कुछ तो छोडें कहीं सीख सी
मार्ग के पथिक भी शायद
गीत पाएँ कर्णप्रिय न सही
सुन के सम्हलें अटपटा सा

Monday, October 24, 2011

मतवाली


घर घर होड़ लगी है कैसी
सजावटें और साज निराली
चकाचौंध रौशनी पटाखे
कैसी चमक रही दीवाली
पर आधी से ज्यादा आबादी
आधे भूखे पेट है सो ली
इन्हें न मिलती कोई होली
इनकी है न कोई दीवाली
पर दुनियां अपनी ही धुन में
गाती फिरती है मतवाली

Sunday, October 23, 2011

आज दीवाली

दूर करो सब अंधकार तुम
तन का मन का और आँगन का
हटा मैल सब मलिन मनों से तुम
कर लो स्वागत नव प्रकाश का
अपने ही जीवन में क्यों हो सोचो
बाँटो औरों को भी सब खुशहाली
तुम प्रेम, सद्भाव के दीप जलाकर
मिलकर मनाओ आज दीवाली
जगमग दीप जलें अंतर्मन में भी
अन्दर-बाहर सब आज दीवाली

Friday, October 21, 2011

आशा की किरण

फिर कोई आशा की किरण
दस्तक सी देती मेरे द्वार पर
नवजीवन का सन्देश लाती
उगती धूप का आभास करा
दिन में सुनहरा रंग भरती
मेरे आस पास ही विचरती
मुझे जीवन का पाठ पढ़ाती
नई नई उमंगों को मचलाती
कुछ नूतन कुछ परिचित का
मिश्रित भाव मन में जगाती
संशय भी सकारात्मकता भी
फिर भी खुबसूरत बनाती मेरे
पल पल को फिर से यहाँ
मेरी एक नई आशा की किरण

Tuesday, October 18, 2011

जानबूझकर

हम भुला लेते जिसे तुम्हारी नादानी समझकर
तुम वही करते रहे हमारी कमजोरी समझकर
हम अब भी उसे बस भुला ही देंगे जानबूझकर
इसी को तुममें और हममें एक फर्क समझकर

Monday, October 17, 2011

छोटी सी बात

छोटी सी तो थी बात बस; चन्द अल्फाज़ में ही कह दी
ख़त्म थे अल्फाज़ तो क्या; बात अब बाक़ी ही कब थी
रात कटती गई थी बस इधर; आँखों ही आँखों में सारी
चैन की नींद सोते कहाँ से; रात अब बाक़ी ही कब थी

Wednesday, October 12, 2011

ज़र्ज़र

तिनका तिनका चुन चुन कर
बनाया था आशियाना हमने
हवाओं के झोंके; तपती धूप
बारिश के पानी में भीगे पर
कोई परवाह नहीं की हमने
न मालूम किस किस शत्रु से
बचा कर रखा तुमको हमने
शुरू से तुम्हारे छुटपन तक
दाना तक डाल मुख में तुम्हारे
मैंने तुम्हें जीवन के रंगों से
करवाया था सब परिचित
और तुम! उड़ चले दूर कहीं
पंख निक़लते ही तुम्हारे
मैंने भी इस ज़र्ज़र घोंसले को
त्याग ही दिया था लेकिन
फिर वही याद यहाँ ले आई
सुखी रहो! तुम्हारे नये देश!

नज़ारे

हमने सोचा था ग़मों को आंसुओं में बहा देंगे
टुकड़े टुकड़े में ही सही यूँ ज़िन्दगी जी लेंगे
बड़े सुकून से इनसे हट के नज़ारे कर लेंगे
जी भर के जब हम आसमाँ की ओर देखेंगे

Tuesday, October 11, 2011

ख्वाहिश

बड़ी ख्वाहिश थी कि तुम हमारे साथ साथ चलो
चाहे थोड़ी दूर ही सही हम तुम संग संग तो चलें
मगर हमारी ये हसरत ही बाक़ी रह गई आखिर
तुम हमारे ज़नाजे के संग चले भी तो क्या चले

Monday, October 10, 2011

यथार्थ का यथार्थ

यथार्थ का यथार्थ
औपचारिकता का बोझ ढोते वह
न मालूम कब से तलाश रही थी
सुकून से जीने के अपने दो पल
यथार्थ से अब वह कुढ़ने लगी थी
उसकी नज़रें मानो तलाश में थीं
यथार्थ को अपेक्षित में देखने की
अपेक्षित और यथार्थ का अंतर
औपचारिकताओं में सिमटा था
अब यही अंतर पाटने के लिए ही
उसने प्रयास शुरू कर दिया था
पर यथार्थ का यथार्थ अलग था
इसलिए कर लिया समझौता
उसने अब बस यथार्थ के साथ

ख़ालिस

अब वो ख़ालिस से बदल कर हो गया सब ख़ाली
रस्म-ओ-अंदाज़ तक सब कुछ बन चुके हैं ख़ाली

Stance


Hurrah! Said the Satan
Smelling victory around
In the very Planet Earth
Eluding peace around
Making them all martyrs
Millions of the terrorists
Satan had then faltered!
Not counting goodness
And numbers around
Of all the good people
The followers of Satan
In the very Planet Earth
They sure outnumbered
Gave hopes of goodness
Not just a mere chance
But stance of reassurance!

Sunday, October 9, 2011

दीदार

बात एक बस दीदार की नहीं उम्र भर साथ की है
वक़्त की आँधियों में भी मोहब्बत संवर जाएगी
रफ़्तार चाहे धीमी भी रहे तो भी हमें गम नहीं है
ज़िन्दगी का क्या है वो तो बस गुज़र ही जाएगी

Saturday, October 8, 2011

बड़ी नफ़रत से ही सही; एक बात तो आज़मा के देख
यहाँ भी कोशिश यही होगी; देखें कैसे इन्सान होते हैं

चंचल


खोई खोई आँखों में हैं; मीठे मीठे सपने
प्यारे प्यारे लगते हैं; हर पल अपने
कैसी अनोखी है ये; क्या रुत छाई
बादलों के देश भी; लगते हैं अपने
कभी बल खाके; ज़ुल्फ़ उड़ी जाती
कभी लहरा के ये; उड़ता है आँचल
कभी रुक जाते हैं; ये सारे पल पल
साँस हुई मध्यम; दिल हुआ पागल
दिन हुए अपने; ख्वाब भी हैं अपने
जाने कौन कौन देश; मन चला जाए
कैसे कैसे सपने ये, मन बुने जाए
उनके ख्यालों से ये, मन मुस्कुराए
जैसे कोई पास से; मुझे छुए जाए
कोई एहसास देता; सारे कुछ अपने
मुझे मदहोश करते; चंचल ये सपने

उजागर


सूरज के उदय होते ही देखो तो
रात के अंधियारे हैं कहाँ खो गए
कितने लोगों के हैं तुम देख लो
कई राज इधर उजागर हो गए
लगता है फिर शाम आयेगी यहाँ
कई लोग कई कारण बेसब्र हो गए
दिन भर के शोर के पल फिर सब
रात की तनहाइयों में हैं खो गए
कितने साथी इस रात के हैं पर
फिर भी कई लोग तनहा हो गए
सितारों का नज़ारा करते करते ही
चाँद को ही सब कोई बिसरा गए

Friday, October 7, 2011

Unassuming


Most things do come back to you
The echoes of the words spoken
The hits and trials in your own life
The reverberation of their sound
The benefits and punishments of
Your deeds defining your karma
Unpredictable and apprehensive
Flow and the course of your lives
Through beaten or unbeaten path
All the mystical ways of the living
Making it two way phenomenon
Those who give or pass on things
Sure receive them from unknown
The cycle of giving and receiving
As the most unassuming surprises

Wednesday, October 5, 2011

जय हो!


बड़ा विचित्र है ये जीवन क्रम
और निराले यहाँ के लोग भी
कितने विचित्र इनके रंग प्रसंग
कई तरह के इनके प्रारब्ध भी
प्रकृति के परिवेश में है बसी
निरंतरता व्यस्त पलों में भी
जलचर, नभचर और उभयचर
कृमि, पादप और वनस्पति भी
एक से दीखते हैं सबके क्रम
उनके समान जीवन संघर्ष भी
कभी निराशा में आशा की तलाश
अनायास प्रसन्नता के पल भी
इन सभी विसंगतियों के साथ
जय हो! जीवन की फिर भी

Tuesday, October 4, 2011

Dream Sequence


Yes! Mundane it might sound
Precious it was for me and you
The life like a dream sequence
The life I have spent with you
I could spend many more lives
In my those memories with you
Cherishing moments of my joy
In those days of togetherness
I would try never draw parallels
I would never complain to you
You made my life so beautiful
Short time but happy plentiful
To make life beautiful for you
Be assured I shall pray for you

Monday, October 3, 2011

आते जाते


ऐसी तो धरती प्यासी कभी न थी
कहाँ गए अब वो सब जल प्रपात
सूने आँगन में था जो रंग बिखेरता
पर धूमिल सा क्यों है अब ये प्रभात
बंद कमरों में भी होती है प्रायः क्यों
आज भी चांदनी और तारों की बात
मालूम होकर भी अब प्रतीक्षा क्यों है
भूल गए जब लोग यहाँ हैं तात-मात
मलिन मनों के गहरे दागों को अब
कैसे धो डालोगे तुम इस किस हाथ
बड़ी अनूठी है क्यों ये जग की चर्चा
आते जाते पल की भर है ये ज़मात

Saturday, October 1, 2011

बिंदास रहने का

बिंदास रहने का
कोई भी टेंशन लाइफ में
कैसी भी मुश्किल लाइफ में
बिंदास रहने का
बिंदास में उल्हास; सारी दुनियाँ नाचे तेरे साथ
टेंशन में खल्लास; कोई न तेरे पास आने का
सोच ले बस ये बच्चू तू; जीने का या मरने का
बिंदास रहने का
वाइफ ने कर दी मुश्किल लाइफ, छोड़ परे
ऑफिस में है बौस ख़राब; भूल जा प्यारे
दिल पे मत ले प्यारे, उदास नहीं रहने का
बिंदास रहने का
जो नौकरी नहीं तो, कुछ और बस तू कर ले
गर्ल फ्रेंड या दोस्त नहीं; पोइट्री तू कुछ लिख ले
और कहीं नहीं तो, फेस बुक में ढूँढने का
बिंदास रहने का
कुछ सपने भी तू देख; क्या मस्त लगने का
लाइफ में लेकिन तुम; हकीकत में रहने का
आँखों में नींद नहीं तो, कुछ भी पढने का
बिंदास रहने का