Saturday, June 30, 2012
अपलक
बस तुम्हारी पलकों को ही
अपलक सा देख रहा था मैं
तुम पलकों को झपकते ही
उन्हें खोल देखना चाहती थी
शायद तुम मेरे दृष्टि का ही
परीक्षण करना चाह रही थी
किन्तु खुलती पलकों को फिर
झपक भी लेती थीं तुम प्रायः
शायद कुछ प्रश्नों के बोझ से
या फिर किसी अपराध भाव से
तुम्हारी आँखें कतरा रही थीं
मेरा प्रत्यक्ष सामना करने से
मैं फिर भी देखे जा रहा था
अपलक तुमारी पलकों को
इनमें बसे जीवन की लय को
प्रश्नहीन एवं गवेषणाहीन
अपनी ही एक किसी धुन में
अपने ही अनजाने सुरूर में
मैं निरंतर देखता जा रहा था
अपलक तुमारी पलकों को
ममत्व
मेरा मेरे ममत्व से ऐसा परिचय
कुछ सादा और कुछ अटपटा सा
जो भी महसूस हो रहा था मुझे
उसमें सत्य का एक अंश मात्र था
मुझे जब जब भी लगा था कि
मैं कुछ स्वयं के लिए करता था
वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं था
मैं तो एक मरीचिका में जीता था
जन्म, ज़रा, मृत्यु के बंधन में था
इन पर मेरा जोर कभी नहीं था
फिर अब ये कैसा ममत्व था?
मैं भी हम सब की भाँति ही एक
समय की शतरंज का मोहरा था
बादशाहों और वजीरों सा ही मैं भी
किसी और के निशाने पर भी था
मेरी चाल भी जीत के लिए ही थी
शाह और मात भी छलावा ही था
अब मुझे अहसास होने लगा था मैं
निरंतर बन्धनों बांधवों से घिरा था
यहाँ से निकल पाना भी असंभव था
और यहाँ कुछ भी मेरे लिए नहीं था
मुझमें कोई ममत्व कहीं भी नहीं था
समय चक्र
उस दिन मैंने खेला था खेल
स्वयं को मृत सा मान कर
स्वतः क्रियाहीन बन कर
परिणाम मुझे चौंका रहा था
सा कुछ सुचारू रूप में चला था
मेरी अपेक्षा के ठीक विपरीत
मेरा अस्तित्व व उपस्थिति
लोग भूल से रहे थे धीरे धीरे
मेरी कहीं कमी नहीं खलती थी
बल्कि दिनचर्या में ही नहीं थी
किसी को मेरी ज़रूरत नहीं थी
तब मैं कतई निराश नहीं था
स्वयं का यह परिचय देख कर
मेरे लिए ही अब मेरा समय
अब मेरे ही पास दीखता था
अब मैं भी नई जिजीविषा से
भरपूर जीना भी चाह रहा था
समय चक्र में फंसा हुआ सा मैं
समय पर विजय पा चुका था
Sunday, June 24, 2012
WOW!
He kept irritating me somehow
One way or other his own way
I had said a big no to him
Yet he continued insisting
Don't know if he was aware
What and how I was feeling
I thought it was his mistake
He thought was for my sake
How often do we make opinions
Even with our own companions
Take the chill pill and do allow
Even if you cann't say wow!
अपने ही लिए
लोग न जाने कितना कुछ कर गए
खुद संघर्ष कर कर भी तुम्हारे लिए
तुम भी कुछ करोगे औरों के भी लिए
जियो तो कुछ ऐसे ही ख़याल लिए
आँखों में आशाओं का समन्दर लिए
कुछ करने का थोड़ा अहंकार लिए
अंधेरों में दिये जलाने का साहस लिए
दूर न सही अपने ही पास के लिए
औरों की ख़ातिर भी अपने ही लिए
वरना ये ज़िन्दगी है किसके लिए?
Wednesday, June 13, 2012
कभी / someday
अब मेरे साज से परेशां है धुन भी
अब मेरी रहबर नहीं रही धूल भी
तो क्या कोई गम नहीं मुझको भी
चलते हो पर गिरोगे कभी तुम भी
Music too is aloof from my instrument
Even the tiny dust not by my side now
Yet I will never have major complaints
Walk on you too shall fall down someday !
Sunday, June 10, 2012
अनज़ाने में
वो क्या मिल बैठे लगा सब पा लिया था मैंने
लगा था क़िस्मत को तलाश लिया था मैंने
उसके मन में क्या था ये न कभी जाना मैंने
एकतरफा ही बस दिल लगा लिया था मैंने
वो तो भूल गए पर कभी न भुलाया था मैंने
उसकी तस्वीर से से ही दिल लगा लिया मैंने
अपना मुक़द्दर ख़ुद ही संवार लिया था मैंने
उसकी आँखों में अपनी रौशनी खोकर मैंने
कभी लगा ख़ुद से अनज़ान कर लिया मैंने
फिर भी अनज़ाने में ख़ुद को पा लिया मैंने
Proud
He always sounded like great help
Seldom he would try and offend me
I became natural admirer of him
He too seemingly very fond of me
Our paths never crossed against
We did have common path of journey
When the test came he was otherwise
He sounded jealous and destructive
Unmindful of his sinister designs
I trusted for everything he did
His designs don't deter me still
He can't but I'm proud of I did
Friday, June 8, 2012
रौशनी दिखाओ
अब सुबह कहाँ है
शाम कब हुई
कोई तो मुझको यह बतलाओ
स्वप्न बिना ही नींद हैं आते
अब जागे से ही इन्हें जगाओ
ये चाँदनी अब फीकी सी क्यों है
इसे कोई उजले वस्त्र पहनाओ
अब ये तारे सिर्फ चमकते हैं
तारों को टिमटिमाना सिखाओ
अब वक़्त भी आ गया है ऐसा
तुम सूरज को रौशनी दिखाओ
अब कर भी लो जो वश में है
या फिर सारी उम्र पछताओ
शाम कब हुई
कोई तो मुझको यह बतलाओ
स्वप्न बिना ही नींद हैं आते
अब जागे से ही इन्हें जगाओ
ये चाँदनी अब फीकी सी क्यों है
इसे कोई उजले वस्त्र पहनाओ
अब ये तारे सिर्फ चमकते हैं
तारों को टिमटिमाना सिखाओ
अब वक़्त भी आ गया है ऐसा
तुम सूरज को रौशनी दिखाओ
अब कर भी लो जो वश में है
या फिर सारी उम्र पछताओ
Wednesday, June 6, 2012
कुछ और
कई बार मन चाहता कुछ और है
लेकिन फिर करता कुछ और है
अक्सर कहना चाहता कुछ और है
पर हर बार कहता कुछ और है
मन मानता नहीं लाख मना लो
मन नहीं पर करता कोई और है
लेकिन मन भटकाता कई ओर है
पर जीवन अटकता कहीं और है
मन कुछ कहे होता कुछ और है
जो नसीब में लिखा कुछ और है
something else
कहना तो हम कुछ चाहते थे पर कुछ और कह गए
कुछ और कहने की कोशिश में कुछ और ही कह गए
I was wanting to something but said something else
While trying say something else said something else
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