Sunday, July 29, 2012

रात भर

कल बारिश होती रही रात भर बूँदों के टपकने की आवाज़ में छुप गया कोलाहल आस पास पर मन के ख़याल आते ही रहे मुझे तनहा समझ कर रात भर घर बाहर सब तरबतर हो गए मेरे ज़ज्बात भी भीगे थे रात भर सुबह उजली धूप के नए उजाले अच्छा हुआ सब कुछ बदल गए छाये नज़ारे जो भी थे रात भर

Saturday, July 28, 2012

Colors!

रोज़ नए नए रंग ये तुम्हारे लिए नए होंगे हमने इतने रंग देख लिए अब सतरंग भी कम होंगे फिर भी देखा जाये तो ज़िन्दगी में अधिकतर श्वेत-श्याम ही ज्यादा हैं बाक़ी सब पूरक हैं इन्हीं दोनों के! New colors everyday! May be for you to count I have seen so many colors Overtaking the rainbow colors Yes when I think about it In general the life has More of white and black colors About the remaining ones They are only complimentary To these two colors!

Friday, July 27, 2012

ताज़ा/Reminiscences

आज भी ताज़ा है याद उस घर की जहाँ हम बड़े हुए जब भी हँसते खेलते किलकारियां मारते बच्चे देखता हूँ बचपन याद आ जाता है और उससे जुडी सब यादें लोग और परिवेश मन मानो कहीं इतिहास में विचरण करता फिर वापस आने पर एक ठण्डी साँस और सिहरन करने लगती है कल्पना लोक से बीते पल में जाने का असफल प्रयास Reminiscences as if yesterday! Of the home our sweet home We we were raised Whenever I come across Laughing happy children playing around with laughter I visualize my childhood And the people, environment That were associated with My mind wanders in history And when it returns to present Unsuccessfully tries to Reach-out to the dream world With a deep sigh!

Such an Ease!

कितनी आसानी से सुना डाले मेरे अल्फ़ाज़ तुमने मेरे ही सामने अपने से जतलाते हुए मैं मुस्कुरा इसलिए रहा था चलो तुम्हारे माध्यम से सही मेरे अल्फ़ाज़ काम तो आए With such an ease You narrated my own words Even in my presence As if they were your own I was smiling with a reason At least my words helped With you being the medium!

Thursday, July 26, 2012

Contradictions

मुझे मेरी दृष्टि में कोई नहीं देख सकता कई बार मैं भी नहीं इसलिए शायद मान-अपमान पसन्द नापसन्द सब कुछ मात्र मेरे मन का अंतर्द्वंद Me from my perspective No one else can view At times not even me Perhaps that's why Respect, disrespect Liking disliking Everything is merely Contradictions of my mind!

वक़्त/Time

हमें क्या मालूम वक़्त का इरादा क्या है उसे भी नहीं मालूम हमारी मंजिल क्या है हम दोनों में बस यही एक नाता है कि हम वक़्त के और वक़्त हमारे साथ चलता है I haven't got a clue What is stored in time What is my goal around Time doesn't know it too Both of us do share The only common chord I along with the time And time walks with me!

Wednesday, July 25, 2012

Peace

शांत चित्त व्यक्ति ही अनुभव कर सकता है शांति व इसके आयामों का अशांत मन द्योतक है सर्वदा शांति की कामना मात्र का Only those with peaceful mind Could at all experience Peace and it's facets Minds without peace Are manifestation of Mere aspiration for peace!

निजता /Individuality

निज में निज स्थाई नहीं किन्तु निजता का आभास नित्य है और कुछ हो न हो निजता शाश्वत सत्य है! Self in self May not be permanent, yet Feeling of self is continuous Anything else may or may not be Individuality is eternal truth!

Tuesday, July 24, 2012

फ़रियाद/request

ज़िन्दगी में ईमानदारी में कमी न हो हम तो बस यही ज़ियारत करते हैं कभी कोई फ़रियाद की न आए नौबत बस यही एक फ़रियाद हम करते हैं There should never be scarcity of honesty I just continue to consider this pilgrimage Never ever I should be making any request This alone is the request have to ever make

कल की ही बात/ yesterday

कितना स्नेह भाव था मानो कल की ही बात है वक़्त के साथ! अब सब लोग बदल गए ये कल की ही बात है Such an harmonious living As if it was yesterday only With the changed times! Most people have changed Realized this yesterday only!

Monday, July 23, 2012

Ignorance!

कौन क्या कर रहा था किसका क्या इरादा था मैं ये सब समझता था अनजान रहना ठीक था ऐसा मैं ही समझता था मैं अनजान बना रहता था I knew who was doing what Who had what intentions I had known this all about Pretending ignorance was best This was my understanding I hence maintained ignorance

Saturday, July 21, 2012

काफ़ी है

एक क़तरा ही हो सही
रौशनी काफ़ी होती है ज़िन्दगी में
मुट्ठी भर भी हो चाहे धूप सही
काफ़ी है सुनहरी रंगत के लिए
मुस्कराहट एक छोटी ही सही
काफ़ी है खुशनुमा माहौल के लिए
कभी चाँदनी धूमिल ही सही
काफ़ी है अँधेरे में चलने के लिए
अपना न सही बेगाने ही सही
काफ़ी है सफ़र में सहारे के लिए
तुम्हारा साथ लम्बा न सही
काफ़ी है फिर इन्तज़ार के लिए
हासिल हो जो सब चाहा न सही
काफ़ी है ज़िन्दगी जीने के लिए

Monday, July 16, 2012

अपनी नज़र

बियाबान में बागवान तलाशता पतझड़ का कोई आशियाना हूँ मैं नए वक़्त की पुरानी तस्वीर सा गुमशुदा कोई मुसाफ़िर सा हूँ मैं ज़माने के लिए कोई अधलिखी सी एक तल्ख़ सी एक दास्तान हूँ मैं मानो प्यासी रही नदी का कोई बुझ गया सा कोई अरमान हूँ मैं इत्तेहाद की ही गुहार सा लगाता एहतराम का एक मोहाजिर हूँ मैं अकेला ही सही फिर भी इधर अपनी नज़र का तो नूर हूँ मैं

Thursday, July 12, 2012

My random couplets/quatrets -7

लोग तो कुछ भी कह देंगे यहाँ लोगों का क्या
किसी के कह देने भर से ही क्या फर्क पड़ता है
किसी और को बतलाने की ज़रूरत ही है क्या
अपना ज़मीर तो अपनी कहानी ख़ुद कहता है
People can utter anything why to bother
No difference it should make to youself
What is the need of narrating to others
Your conscience sure speaks for itself

तुमने उस रोज़ जो वो सब कहा
अब कहते हो कि वो सब झूठ था
पर हमने तो ये अब भी नहीं कहा
कि जो जो हमने कहा वो झूठ था
What all you had uttered that day
Now you say wasn't the true feeling
But I haven't yet even mentioned
That all I said wasn't my feeling!

तनहाइयों में जब कभी भी मैं घिर जाता हूँ
खुद को अपने आप के बड़ा करीब पाता हूँ
भुला न सका जिनको जो भुला चले हमको
उनकी यादों से मन को बहला लिया करता हूँ
Whenever I got surrounded by my lonely moments
I always discoverd myself very close to my stories
Couldn't forget those who have now forgotten me
I console my sentiments through their memories

दोस्त और पुराने किरदार आस पास नदारद से पाते हैं
शायद मंज़र बदल गया है कहीं और किरदार निभाते हैं
Friends and old characters around me disappeared somewhere
Perhaps the scenario has changed and they now act elsewhere

बड़ा ऐतबार था मुझे तेरे वादे पर अब तक
अब रहा न ऐतबार तो चाहे जितने कर वादे
I have had great belief thus far in all your promises
Now the belief is gone you can make as many promises

जियारत के नाम पर तुम किसका इम्तहान लेना चाहते थे
ख़ुदा के नाम पर तुम खुदाई को ही क्यों आज़माना चाहते थे
In the name of pilgrimage who did you want to be tested
In God's name why did you want Godness itself be tested!

बदलते रंग में ज़माने की ये कैसी हवा है चली
किसको क्या कहें जब वफ़ा ही बेवफ़ा हो चली
In the changing colors of time ways of people are weird
Whom shall we say a word when trust itself is distrusted

मुझे रब ने कहा हर बात पर मेरा नाम क्यों लेता है
क्यों अपनी कमजोरियां बस यूँ ही खुद से छुपा लेता है
I was asked by God why you always take shelter in my name
Why don't you accept your weakness and follies in thy name!


कोई दुश्वारी का नहीं हमें डर है तो बेक़रारी का
होता नहीं इलाज़ नाक़ाम इश्क की बीमारी का
Not hardships but I'm afraid of restlessness
There is no treatment for failed amativeness!

इतनी ख़ता की हमने कि बस दो चार लफ़्ज़ कह दिए
मालूम न था थोड़े से अलफ़ाज़ कुछ ज्यादा कह गए
It was my only fault to utter just a few words
Didn't know so few words will speak so much!

सच है मेरी बस्ती में यहाँ बड़े दिल वाले बसते हैं
फिर भी मुझे बड़े दिल वालों की कमी खलती है
True, there are many people with hearts in my habitat
Yet I always missed the people around with large heart



सारी गर्मी सोचा था धुल जाएगी
जब बरसेगा ख़ूब जम के पानी
पानी पानी हो गए अरमान सारे
बरसात में भी नहीं बरसा पानी
The heat of summer would go
With the heavy rains I thought
With little rains in rainy season
All ambitions facing a drought

सोचा था समझोगे जब फ़र्क कभी
फ़ख्र होगा तुम्हें तब हम पर ज़रूर
जब भी आने लगता है समझ तुमको
न जाने क्यों आगे आ जाता है गुरुर
I though one day you would understand me
It will be day for you to be proud of myself
Somehow whenever you start understanding
You bring about that very arrogance of yourself

ज़िन्दगी के सब हसीन लम्हे एक एक कर सिमटते रह गए
कभी मोहब्बत के नाम पर कभी मोहब्बत के इम्तहान पर
All those precious moments of life kept shrinking
Either in the name of love or being tested for love

हमारी मंशा को समझ नहीं पाए हो तुम अब भी
सिर्फ़ गिरफ़्त में नहीं आगोश में लेना चाहते थे हम
You still haven't understood my true intentions
Not the grip but I wanted to hold you in my arms

सिर्फ़ इतना है मुझे ख़ुद पर गुरुर
कि और कोई नहीं है मुझमें गुरुर
Only this much is my arrogance on self
That no other arrogance exists in myself!


न मालूम हम किस तरह पहचानें उनको
देखा नहीं पहले कोई भी यहाँ उनकी तरह
उनका अन्दाज़ भी अलग उन्हीं की तरह
उनके ज़ज्बात भी ज़ुदा हैं उन्हीं की तरह
I don't know how try understand her
Never before I saw anyone like her
Her ways too are different like her
Emotions too are different like her

वही तमन्ना वही सोच और ज़ज्बा भी वही
फिर भी तौर तरीके कोई भी तो एक से नहीं
गुज़ारिश भी उभयपक्ष की रहेगी इसीलिए
सब एक होते भी यही सच है हम एक नहीं
Same aspirations, thinking; and enthusiasm
Yet all our ways are always so different
Expectations would to be mutual, therefore
Everything similar yet ought to be different

जिनकी उल्फ़त में भी कभी नफ़रत आती थी नज़र मुझको
अब उन्हीं की नफ़रत में भी बस उल्फ़त नज़र आती मुझको
मुझे नहीं मालूम ये कि कहाँ से चलकर कहाँ आ पहुँचा हूँ मैं
बस नज़र नज़र का फेर है इतना तो ज़रूर मालूम है मुझको

ज़िन्दगी ज़िन्दगी के ही कुछ इस तरह पास आने लगी
कि खुदबखुद अपने आप से कुछ गुफ़्तगू वो करने लगी
हरपल इधर वो कुछ अटपटा सा गीत गुनगुनाने लगी राज
दिल के खुद से छुपाकर अपने आप शरमाने लगी
Life around started coming closer to life itself
It was indulging in her conversation with itself
Always was humming few weird tunes by itself
Was blushing hiding secrets of heart from itself

कोलाहल की तलाश

कितनी वीरानी सी है कोई आस पास क्या सुगबुगाहट भी नहीं जीव जंतु सहित आज पवन भी विश्राम में है फिर भी कभी कभी जाने क्यों लगता है बुलाता हो कोई मानो नेपथ्य से आती हुई धूमिल से छवि का बिछुड़ा साथी कोई अपनी उस धीमी सी संगीतमय ध्वनि से मुझे जाना होगा कहीं कोलाहल की तलाश में क्या मालूम असर हो उसका भी कोई आज वर्ना वो तो संग ही है मेरे भावों और मन में

Wednesday, July 11, 2012

किंकर्तव्यविमूढ़

अँधेरी रात तो ख़त्म हुई अब एकाकीपन जायेगा ये सोच कि आँखों में कटी रात का अन्त समीप था सुबह का समय तो था पर मेरा मन अकेला था पक्षी कलरव करते थे अपने दैनन्दिन कार्य में रोज की तरह व्यस्त थे रोशनी अभी नहा रही थी इस भीगे आलम में लाल रंगों के वस्त्रों में सजी कुछ गुनगुना रही थी कुछ अटपटे अस्पष्ट शब्दों में एक अँधेरा ही था इधर जो सुबह होने पर भी मेरा साथ दे रहा था आस पास के लोगों में उत्साह सिर्फ अपने लिए था शायद ये मेरा मार्गदर्शन था मुझे मेरा पुरुषार्थ बुलाता था स्वयं रोशनी के पास आने को मुझे किंकर्तव्यविमूढ़ देख उसने मेरा फैसला भी मुझ पर ही छोड़ दिया था

Tuesday, July 10, 2012

Trust Deficit


When the words were scarce To convey the circumstances No deficit on actions performed Yet efforts not yielding results And to add insult to the injury Expectations were sky rising I chose to prefer stoic silence Whatever was the provocation It did hurt from inside always In search of results and empathy But expressions didn’t convey On the face and outwardly too It wasn’t difficult task seemingly But there wasn’t alternative any Who says I was being introvert? I was always silently extrovert If you can’t read the face of man Can’t empathize with his actions You will always have ‘trust deficit’

Monday, July 9, 2012

Midway!

Whenever I wanted that my words Sound like music to your ears The noise around you had undone Both my effort and our fortune Now the reverse is the course You want to whisper in my ears Words full of love and affection The noise inside my mind and soul Discourages me to focus on these You had reasons and circumstances Of your own in those old times I have reasoning and understanding Of my own now in the new times They say there always is midway But sometimes there are no midways!

Friday, July 6, 2012

गंतव्य

रास्ते का पता पूछते पूछते मुझे जब लगा कि मिल गया रास्ता कुछ ही दूर चलने के बाद फिर वो दाएँ-बाएं कई बार मुड़कर दोरास्तों और चौराहों से गुज़रा हर बार हिचकिचाहट के बाद मैं भी मुड़ता गया साथ-साथ अपना निर्णय व किस्मत लिए अब गंतव्य का तो पता नहीं परन्तु यात्रा जारी है निरंतर हर बार फिर से यहाँ नए नए मोड़ों से गुज़रती जुड़ती ज़िन्दगी विगत और भविष्य के साथ एक अनवरत अंतहीन रास्ते में चलेगी थम जाने तक निरंतर

आलमपनाह/Emperor!

सबकी अपनी सोच और ज़िद है पनाह भी देता है तो बस ख़ुद को ये दिल भी अब मानने लगा है कोई आलमपनाह सा ख़ुद को Everyone is adamant now and has own thinking Even refuge people grant only to themselves My heart too also has a kind of weird thinking Some great Emperor it started thinking of itself

Wednesday, July 4, 2012

हस्तक्षेप

कितनी सर्द रात थी वो
उस रोज़ सिहरन से
हर कोई सिकुड़ रहा था
गर्म बाँहों में सिमटा फिर भी
कोई शख्स सिसक सा रहा था
अपनी फितरत में परेशान होकर
अपनी किस्मत पर रो रहा था
उसे ज़माने से कोई सरोकार नहीं
लगा ज़माने का बोझ ढो रहा था
अपनी मनोदशा में उसे लगता
हर लम्हा उसके साथ रो रहा था
लेकिन बिना हस्तक्षेप किये ही
उसकी सोच पर समय हँस रहा था
ख़ुशी का लम्हा उसके करीब होकर
इसी पल उससे कहीं दूर जा रहा था

सही परिचय

ज़िन्दगी ख़ुशहाल बन रही थी कोई अपनी नज़र ही लगा गया मोहब्बत परवान चढ़ रही थी कि ग़म अपनी दस्तक दे गया जश्न का समय जब सोचा था वीरानियों ने नात्ता जोड़ लिया बात अभी भी बहुत बाकी थी पर सबने बस मुँह मोड़ लिया अभी हम रुख्सत हुए भी न थे पर सभी ने पल्ला झाड़ लिया एक बात मगर ये अच्छी रही सबका सही परिचय मिल गया

आना-जाना/


उनका आना भी कुछ इस तरह था ज्यों बंद खिड़की से आ जाती हवा उनका जाना भी कुछ इस तरह था ज्यों उनके साथ निक़ल जाती हवा Her arrival was something similar like Air piercing through a closed window Her departure too was anything like As if all air left room along with her

फ़लक में आसमान/sky in the space


जानकर उसी जगह न जाने क्यों अपने खोए अरमान ढूंढता था मैं न जाने क्यों लग रहा था उनको फ़लक में आसमान ढूंढता था मैं Knowingly don't know why at the same place I had been trying to find my lost aspirations He was apprehensive about all this effort As if I was searching for sky in the space