तमन्ना पूरी न हुई ये एहसास है हमको
हम अब भी अपनी उम्मीद लगाये बैठे हैं
बड़ा फ़ख्र है मायूसियों पर अपनी हमको
हम आज भी कुछ तो तमन्ना लिए बैठे हैं
Wishes didn’t materialize I’m aware
I’m waiting with my hopes even today
I’m so proud of my sad moments here
I’m retaining some wishes even today
Thursday, January 31, 2013
मजबूर
बस उम्मीद से उम्मीद लगाये रहे
पर नतीजों में कमी से मजबूर हैं
हसरतों ने ही नहीं दिया कभी साथ
कभी कोशिशों में कमी से मजबूर हैं
कल बस हालात से मजबूर थे हम
पर आज तो ज़ज्बात से मजबूर हैं
कई मौके हाथ आए थे एक से एक
क्या करें आदत से भी तो मजबूर हैं
ऐसा कुछ ख़ुदा ने नसीब लिखा है
किसी न किसी बात से मजबूर हैं
पर नतीजों में कमी से मजबूर हैं
हसरतों ने ही नहीं दिया कभी साथ
कभी कोशिशों में कमी से मजबूर हैं
कल बस हालात से मजबूर थे हम
पर आज तो ज़ज्बात से मजबूर हैं
कई मौके हाथ आए थे एक से एक
क्या करें आदत से भी तो मजबूर हैं
ऐसा कुछ ख़ुदा ने नसीब लिखा है
किसी न किसी बात से मजबूर हैं
कल / yesterday
कल चाँद भी नदारद था आसमां से
बस तारे ज़रूर खूब टिमटिमा रहे थे
चन्द लम्हे तनहा थे ज़मीं की हद में
फिर भी ज़ज्बात खूब गुनगुना रहे थे
The moon stayed away from sky yesterday
Yet the stars were twinkling in familiar way
Few moments were of solitude on the Earth
Yet the feelings were humming their own way
बस तारे ज़रूर खूब टिमटिमा रहे थे
चन्द लम्हे तनहा थे ज़मीं की हद में
फिर भी ज़ज्बात खूब गुनगुना रहे थे
The moon stayed away from sky yesterday
Yet the stars were twinkling in familiar way
Few moments were of solitude on the Earth
Yet the feelings were humming their own way
Welcome Lokpal!
I'm happy to know that India's Cabinet has passed the amended Lokpal (OMBUDSMAN) Bill. I know it leaves much to be desired; but a good beginning finally. I hope the hawks will allow this to be passed by the Upper House. Improvements will come by later!
I had also spent few sleepless night on the 1989 Bill that was never passed (was in and out since the 1950's). I know how hard it was to get consensus on this. Those who think that UPA govt will not return in next election, should give the credit to them of being responsible and taking a balanced view. I have no issues on member states of the federation taking their own decision and follow the leader in the timeline (just like FRBM)! Thanks Anna and Arvind Kejriwal for your efforts in making this beginning happen....can't expect miracles...anyways you chose to part ways!
I had also spent few sleepless night on the 1989 Bill that was never passed (was in and out since the 1950's). I know how hard it was to get consensus on this. Those who think that UPA govt will not return in next election, should give the credit to them of being responsible and taking a balanced view. I have no issues on member states of the federation taking their own decision and follow the leader in the timeline (just like FRBM)! Thanks Anna and Arvind Kejriwal for your efforts in making this beginning happen....can't expect miracles...anyways you chose to part ways!
Wednesday, January 30, 2013
कमी
कहीं न कहीं कुछ न कुछ तो यहाँ कमी है
कभी हम में तो कभी अपनों में कमी है
हमारी बात जब न समझ पाया कोई भी
न जाने क्यों लगा हमारी बात में कमी है
पलट कर जो देखना चाहा तो ये भी लगा
कहीं न कहीं ज़ज्बात में भी कुछ कमी है
समग्र में सोचा तो होने लगा ये एहसास
कहीं न कहीं हर ओर ही तो यहाँ कमी है
नतीजन ये समझ में आ गया है हमारी
सुधार का क्रम भी तो आखिरकार कमी है
कभी हम में तो कभी अपनों में कमी है
हमारी बात जब न समझ पाया कोई भी
न जाने क्यों लगा हमारी बात में कमी है
पलट कर जो देखना चाहा तो ये भी लगा
कहीं न कहीं ज़ज्बात में भी कुछ कमी है
समग्र में सोचा तो होने लगा ये एहसास
कहीं न कहीं हर ओर ही तो यहाँ कमी है
नतीजन ये समझ में आ गया है हमारी
सुधार का क्रम भी तो आखिरकार कमी है
Tuesday, January 29, 2013
आज
आज पूछता हूँ मैं भी ये तुमसे
तुम में ऐसी क्या खुसूसियत है
कब से मैं उम्मीद लिए बैठा हूँ
जब से मज़लूम मैं बना बैठा हूँ
सच कहना क्यों बुरा लगता है
मिल्कियत नहीं ये ज़माने की
तुम्हारा हक़ क्या तुम जानो
बात कहता हूँ अपने हक़ की
सारी रोटियाँ जमा कर बैठे हो
बाँट लो या मेरी मुझको दे दो
तुम अपने हिस्से की न सही
मेरे हिस्से की तो मुझे अब दो
तुम में ऐसी क्या खुसूसियत है
कब से मैं उम्मीद लिए बैठा हूँ
जब से मज़लूम मैं बना बैठा हूँ
सच कहना क्यों बुरा लगता है
मिल्कियत नहीं ये ज़माने की
तुम्हारा हक़ क्या तुम जानो
बात कहता हूँ अपने हक़ की
सारी रोटियाँ जमा कर बैठे हो
बाँट लो या मेरी मुझको दे दो
तुम अपने हिस्से की न सही
मेरे हिस्से की तो मुझे अब दो
Sunday, January 27, 2013
दीवा जलाना कब मना है?...Harivansh Rai Bachchan
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
Harivansh Rai Bachchan
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
बादलों के अश्रु से धोया गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुसकराना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
हाय, वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबर-अवनि को मत्तता के गीत गा-गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिए ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
हाय, वे साथी कि चुंबक लौह-से जो पास आए
पास क्या आए, हृदय के बीच ही गोया समाए
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए
वे गए तो सोचकर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
क्या हवाएँ थीं कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरा शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है
Harivansh Rai Bachchan
मेरा साथ
कितना सार्थक होगा
ये नहीं है मालूम मुझे
किन्तु कोशिश जारी है
जो भी करना है मुझे
शायद ये भी संभव है
एक नई मंजिल मिले
गंतव्य से भी बेहतर
ये भी विश्वास है मुझे
जहाँ प्रकाश दिखाई दे
वहीँ चलना ही है मुझे
कोई और दे या न दे
मेरा साथ चाहिए मुझे
ये नहीं है मालूम मुझे
किन्तु कोशिश जारी है
जो भी करना है मुझे
शायद ये भी संभव है
एक नई मंजिल मिले
गंतव्य से भी बेहतर
ये भी विश्वास है मुझे
जहाँ प्रकाश दिखाई दे
वहीँ चलना ही है मुझे
कोई और दे या न दे
मेरा साथ चाहिए मुझे
जो है वही
जानी भी अनजानी भी
बस एक तू ही तो है
जो है वही मेरे लिए
बेगानी भी अपनी भी
बस यही एक ज़िन्दगी
जो है वही मेरे लिए
अज़ीज़ भी खिसियानी भी
तू ही है पहचानी यहाँ
जो है वही मेरे लिए
ज़न्नत भी दोज़ख भी
तू ही है आब-ए- हयात
जो है वही मेरे लिए
बस एक तू ही तो है
जो है वही मेरे लिए
बेगानी भी अपनी भी
बस यही एक ज़िन्दगी
जो है वही मेरे लिए
अज़ीज़ भी खिसियानी भी
तू ही है पहचानी यहाँ
जो है वही मेरे लिए
ज़न्नत भी दोज़ख भी
तू ही है आब-ए- हयात
जो है वही मेरे लिए
Wednesday, January 23, 2013
हर रोज़/Everyday
अंज़ाम का एहतराम जो कर लिया करते हैं
मुक़म्मल न सही फ़ायदे में तो रहा करते हैं
कभी न कभी तो सभी आजमाया करते हैं
हर क़दम पर पग डगमगाया भी करते हैं
यूँ तो हम भी अक़्सर मुस्कुराया करते हैं
फिर भी दर्द के एहसास से ही डरा करते हैं
मुस्कुरा कर जो दर्द से किनारा कर लेते हैं
वही हकीकत से रूबरू हो कामयाब होते हैं
जो एक एक रोज़ ज़िन्दगी जिया करते हैं
वही शख्स हर रोज़ भी जी लिया करते हैं
Those who respect the results any
May not all get benefits too many
Everyone realizes and tests sometime
That their steps will fumble sometime
We do smile often as a matter of habit
Yet get scared of feeling pain a bit
Those stay away smiling with the pains
They are successful facing real times
The ones who live life well day by day
They are the ones who can live everyday
मुक़म्मल न सही फ़ायदे में तो रहा करते हैं
कभी न कभी तो सभी आजमाया करते हैं
हर क़दम पर पग डगमगाया भी करते हैं
यूँ तो हम भी अक़्सर मुस्कुराया करते हैं
फिर भी दर्द के एहसास से ही डरा करते हैं
मुस्कुरा कर जो दर्द से किनारा कर लेते हैं
वही हकीकत से रूबरू हो कामयाब होते हैं
जो एक एक रोज़ ज़िन्दगी जिया करते हैं
वही शख्स हर रोज़ भी जी लिया करते हैं
Those who respect the results any
May not all get benefits too many
Everyone realizes and tests sometime
That their steps will fumble sometime
We do smile often as a matter of habit
Yet get scared of feeling pain a bit
Those stay away smiling with the pains
They are successful facing real times
The ones who live life well day by day
They are the ones who can live everyday
Tuesday, January 22, 2013
यथासंभव
कुछ कहने करने से पूर्व
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए थे
उसके वक़्त और नसीब
देख आंसू बहने लगे थे
इसी को हम लोग क्या
प्रगति का रूप कहते थे
समाज का यह रूप देख
मन मलिन हो चला था
मेरे मन में बसे मैल को
धोना बहुत दूर की बात
आंसू भिगो तक न सके
मेरे मन के ये ज़ज्बात
फिर भी संकल्प तो था
कहेंगे हम अपने बात
अपनी और से हम भी
करते खुद को आश्वस्त
यथासंभव करेंगे प्रयास
चाहे जो भी होंगे हालात
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए थे
उसके वक़्त और नसीब
देख आंसू बहने लगे थे
इसी को हम लोग क्या
प्रगति का रूप कहते थे
समाज का यह रूप देख
मन मलिन हो चला था
मेरे मन में बसे मैल को
धोना बहुत दूर की बात
आंसू भिगो तक न सके
मेरे मन के ये ज़ज्बात
फिर भी संकल्प तो था
कहेंगे हम अपने बात
अपनी और से हम भी
करते खुद को आश्वस्त
यथासंभव करेंगे प्रयास
चाहे जो भी होंगे हालात
Psychological Trans
Too many things in the mind
That it can’t control the logics
Sway of perceptions and experience
Exacerbated by people around me
Now, then, at times; and way back
Visualizing everything everyone
Desertion and assertions of people
The happy days and the sad reasons
Of perception and interpretation
A maze of jumbled events and days
My thoughts come at random
Emotions disappear temporarily
Often to come back at me again
The noise of oblivion and memories
At the same time pondering over
Lost in my own World and realms
It’s the condition something I call
A state of the psychological Trans!
Saturday, January 19, 2013
फिर
एक ही दीदार से उसके फिर से एक बार
ज़िन्दगी ख़ुशी का अफ़साना बनने लगी
वक़्त लम्बा बीतने के बाद अब ही सही
दिलकशी की खुमारी फिर से बढ़ने लगी
हमसफ़र हम न सही हमनशीं खुद से हैं
दिल को धड़कन फिर शरारत करने लगी
उनको ख़बर तब भी न थी अब भी नहीं
दिल के कोने कोने में बेक़रारी बढ़ने लगी
ज़िन्दगी ख़ुशी का अफ़साना बनने लगी
वक़्त लम्बा बीतने के बाद अब ही सही
दिलकशी की खुमारी फिर से बढ़ने लगी
हमसफ़र हम न सही हमनशीं खुद से हैं
दिल को धड़कन फिर शरारत करने लगी
उनको ख़बर तब भी न थी अब भी नहीं
दिल के कोने कोने में बेक़रारी बढ़ने लगी
Thursday, January 17, 2013
कुछ तो
मोहब्बत हो क्या मालूम
दिल की कुछ तो शरारत है
ये तो न कह सकेंगे शायद
कि ये जान तेरी अमानत है
फिर भी इशारा तो करेंगे
हर तरफ तेरी ही ख़ुशबू है
तूने तो सोचा भी नहीं होगा
बदहवासी में भी आलम है
कि बस तेरी ही जुस्तजू है
और तेरी ही सब गुफ्तगू है
दिल की कुछ तो शरारत है
ये तो न कह सकेंगे शायद
कि ये जान तेरी अमानत है
फिर भी इशारा तो करेंगे
हर तरफ तेरी ही ख़ुशबू है
तूने तो सोचा भी नहीं होगा
बदहवासी में भी आलम है
कि बस तेरी ही जुस्तजू है
और तेरी ही सब गुफ्तगू है
Wednesday, January 16, 2013
India and Pakistan are not Two Warring Nations but 'birds from the same flock'
India and Pakistan were two nations separated inspite of common heritage, language and history. The theocratic separation has already cost a lot to the people of the oth sides of the border.Even today, family relations and reunion of families and matrimonial relations continue and thrive.
The frenzy of the war rhetorics perpetrated by sections of the society at the both sides have nothing to do with the people and the nations. As I always maintain, "India and Pakistan are not two warring nations; the wars are fought between the the India's democracy and the the Pakistan Army".The belligerance of the armies are only the depiction of their lust for authority and power.
Pakistan people, I'm sure, want democracy and best of relations with the neighbors and all! Some of my best friends are from Pakistan. I cannot ever consider them as a part of the actions by the politicians, army, hate groups or the terrorists!The concept of 'total war', that envisages people of nations also at war with the other country, should be deleted from the dictionary for all times everywhere.
Unfortunately, the nation of Pakistan thrives on the India bashing stance of the sections of the vested interests in the society.The events on the LOC and the barbaric measures by the Army or the Terrorist groups do not construe the estsarnged relations among the people.
Ideally there should be EU type arrangment in the SAARC region; but the hawks and the vested groups haven't yet allowed that to happen.The concept of geographical boundaries has been overtaken by the economic boundaries long back. Even the economic boundaries have been eroded by the regional and global economic zones and globalization that will remain irreversible.
The P2P contacts should remain unchanged and the problems should not be execerbated by bolstering measures against the P2P measures.At the end of the day, there is no love lost between the people of the two nations; and we are the 'birds from the same flock'.
The frenzy of the war rhetorics perpetrated by sections of the society at the both sides have nothing to do with the people and the nations. As I always maintain, "India and Pakistan are not two warring nations; the wars are fought between the the India's democracy and the the Pakistan Army".The belligerance of the armies are only the depiction of their lust for authority and power.
Pakistan people, I'm sure, want democracy and best of relations with the neighbors and all! Some of my best friends are from Pakistan. I cannot ever consider them as a part of the actions by the politicians, army, hate groups or the terrorists!The concept of 'total war', that envisages people of nations also at war with the other country, should be deleted from the dictionary for all times everywhere.
Unfortunately, the nation of Pakistan thrives on the India bashing stance of the sections of the vested interests in the society.The events on the LOC and the barbaric measures by the Army or the Terrorist groups do not construe the estsarnged relations among the people.
Ideally there should be EU type arrangment in the SAARC region; but the hawks and the vested groups haven't yet allowed that to happen.The concept of geographical boundaries has been overtaken by the economic boundaries long back. Even the economic boundaries have been eroded by the regional and global economic zones and globalization that will remain irreversible.
The P2P contacts should remain unchanged and the problems should not be execerbated by bolstering measures against the P2P measures.At the end of the day, there is no love lost between the people of the two nations; and we are the 'birds from the same flock'.
Monday, January 14, 2013
किसी वक़्त
हम को यूँ न परेशां किया करो तुम हर वक़्त
अब तो हंसने भी लगा है हम पर ये वक़्त बेवक्त
एहसास दिलाते रहते हो हरदम तुम यूँ वक़्त बेवक्त
हक़ीक़त में भी तो मिला करो कभी किसी वक़्त
आ ही जाते हो मेरे ख्वाबों में तो अक्सर हर वक़्त
ख्वाबों से भी निकल आया करो कभी किसी वक़्त
ज़र्रे ज़र्रे में तुम दिखाई देने लगते हो किसी वक़्त
रूबरू भी तो दिखाई दे जाया करो कभी किसी वक़्त
दोपहर की धूप सी तुम न दिखाई दो कभी तो न सही
शबनम की बूंद सी सही आ जाया करो किसी वक़्त
अब तो हंसने भी लगा है हम पर ये वक़्त बेवक्त
एहसास दिलाते रहते हो हरदम तुम यूँ वक़्त बेवक्त
हक़ीक़त में भी तो मिला करो कभी किसी वक़्त
आ ही जाते हो मेरे ख्वाबों में तो अक्सर हर वक़्त
ख्वाबों से भी निकल आया करो कभी किसी वक़्त
ज़र्रे ज़र्रे में तुम दिखाई देने लगते हो किसी वक़्त
रूबरू भी तो दिखाई दे जाया करो कभी किसी वक़्त
दोपहर की धूप सी तुम न दिखाई दो कभी तो न सही
शबनम की बूंद सी सही आ जाया करो किसी वक़्त
Sunday, January 13, 2013
सलीका
बहारों के नज़ारे देखने का हमें भी है बड़ा शौक़
अब कहाँ वो बहारें और रखें काहे का हम शौक़
ज़िन्दगी भी मुतवातिर बदलने लगी है अब तो
इसे जीने का सलीका ही बदल चुका है अब तो
हम हमारी बताने लगे इसे पर ये हमारी है कहाँ
यूँ भी हर शख्स चाहने लगा अब तो सारा जहाँ
कभी कभी मायूसियाँ भी अच्छी लगती थीं यहाँ
अब तो वही बची हैं पास अपने खुशियाँ हैं कहाँ
अब समंदर भी मोहताज़ हैं दरिया के रहम के
दरिया देखती हैं राह बादलों की आसमां तक के
ज़िन्दगी में खो सी गई है ज़िन्दगी ही अब यहाँ
ढूँढ सकते हो तो ढूँढो मिलेगी तो अब भी यहाँ
अब कहाँ वो बहारें और रखें काहे का हम शौक़
ज़िन्दगी भी मुतवातिर बदलने लगी है अब तो
इसे जीने का सलीका ही बदल चुका है अब तो
हम हमारी बताने लगे इसे पर ये हमारी है कहाँ
यूँ भी हर शख्स चाहने लगा अब तो सारा जहाँ
कभी कभी मायूसियाँ भी अच्छी लगती थीं यहाँ
अब तो वही बची हैं पास अपने खुशियाँ हैं कहाँ
अब समंदर भी मोहताज़ हैं दरिया के रहम के
दरिया देखती हैं राह बादलों की आसमां तक के
ज़िन्दगी में खो सी गई है ज़िन्दगी ही अब यहाँ
ढूँढ सकते हो तो ढूँढो मिलेगी तो अब भी यहाँ
Friday, January 11, 2013
Parterre
हवाओं में भी खुशबू है दोस्ती की अमन की
फिर भी शरारत में कमी नहीं एक वतन की
बात महज़ अखलाक़ की नहीं किसी एक की
ये तो तरतीब की है मोहब्बत और चमन की
Even the winds have fragrance of friendship and peace
Yet designs of a nation has decided to set them apiece
It’s not just a matter of exhibiting etiquette of any one
These are the ways to parterre and the commitment of love
फिर भी शरारत में कमी नहीं एक वतन की
बात महज़ अखलाक़ की नहीं किसी एक की
ये तो तरतीब की है मोहब्बत और चमन की
Even the winds have fragrance of friendship and peace
Yet designs of a nation has decided to set them apiece
It’s not just a matter of exhibiting etiquette of any one
These are the ways to parterre and the commitment of love
Wednesday, January 9, 2013
खुद की नज़र
अक़्सर तस्वीरों के रंग यहाँ कुछ ज़ुदा से हैं
हक़ीक़त सिर्फ़ वो ही नहीं जो बताई जाती है
बेशक़ बेहद खूबसुरत हैं इस दुनियाँ के रंग
पर ऐसा नहीं हर ओर हरियाली ही बसती है
किसी और के चश्मे से ये रंगीन सी दुनियाँ
इतनी ख़ूब नहीं जो तुम्हें दिखलाई जाती है
कभी तो उठाके देखो तुम भी अपनी नज़र
कि खुद की नज़र से नई हद दिखाई देती है
इतने मुलम्मे चढ़ा हर चीज़ दिखाई जाती है
कभी कभी खुद की नज़र धोखा खा जाती है
हक़ीक़त सिर्फ़ वो ही नहीं जो बताई जाती है
बेशक़ बेहद खूबसुरत हैं इस दुनियाँ के रंग
पर ऐसा नहीं हर ओर हरियाली ही बसती है
किसी और के चश्मे से ये रंगीन सी दुनियाँ
इतनी ख़ूब नहीं जो तुम्हें दिखलाई जाती है
कभी तो उठाके देखो तुम भी अपनी नज़र
कि खुद की नज़र से नई हद दिखाई देती है
इतने मुलम्मे चढ़ा हर चीज़ दिखाई जाती है
कभी कभी खुद की नज़र धोखा खा जाती है
ख़ैर /Anyways
मेरी रुसवाई के साथी थे चाँद तारे
मैं तो ख़ैर था अकेला वो ढेर सारे
पर हाँ मेरी मायूसी साथ थी मेरे
फिर भी संभाले हूँ मैं अरमान सारे
Moon, stars companions of my ignominiousness
I was anyways alone they were there too many
Nevertheless despairing was with me all around
Yet I have been retaining my aspirations many
मैं तो ख़ैर था अकेला वो ढेर सारे
पर हाँ मेरी मायूसी साथ थी मेरे
फिर भी संभाले हूँ मैं अरमान सारे
Moon, stars companions of my ignominiousness
I was anyways alone they were there too many
Nevertheless despairing was with me all around
Yet I have been retaining my aspirations many
Monday, January 7, 2013
साफगोई / Clearly
बहुत सुन ली अब तुमने
अपने रुखसार की तारीफ
अब वक़्त आ गया है तेरा
बाज़ुओं के दम दिखाने का
घूँघट से निकाल बाहर
मर्दों के दामन झाँकने का
अपने वजूद की क़ीमत
कोई कम न आँकने का
बराबरी जब तक तो सही
वरना हिसाब मांगने का
रसोई से दफ़्तर सब जगह
साफगोई से हक़ माँगने का
You have heard a lot
Praises of your faces
Now the time has come
To show your strength
Coming out of all veils
Peep into doings of men
Rating your existence
No less than others
Fine if equity exists
Else to ask explanation
Kitchen to office anywhere
Clearly to ask for rights!
अपने रुखसार की तारीफ
अब वक़्त आ गया है तेरा
बाज़ुओं के दम दिखाने का
घूँघट से निकाल बाहर
मर्दों के दामन झाँकने का
अपने वजूद की क़ीमत
कोई कम न आँकने का
बराबरी जब तक तो सही
वरना हिसाब मांगने का
रसोई से दफ़्तर सब जगह
साफगोई से हक़ माँगने का
You have heard a lot
Praises of your faces
Now the time has come
To show your strength
Coming out of all veils
Peep into doings of men
Rating your existence
No less than others
Fine if equity exists
Else to ask explanation
Kitchen to office anywhere
Clearly to ask for rights!
Compliment
When I think of the World
Individuality doesn’t matter
But even then it’s always true
That the individuals matter
For the World is nothing else
But the individuals together
The most important part is
That the ‘I’ doesn't matter
If we plan individually it does
When otherwise it doesn't
It may sit at the back-burner
Yet would surely not wither
As a matter of fact I and us
Always complement each other
Saturday, January 5, 2013
लबरेज़
हमारी खामोशियाँ भी आवाज़ देती रहेंगी हमेशा
इन खामोशियों की न कोई भी तुम फिक्र करना
यादों में बसे रहेंगे हम हर वक़्त तुम्हारी शिद्दत से
हमारी यादों को तुम दिल में बहुत महफूज़ रखना
ये यादें बड़ी ही बेशकीमती हैं इन्हें संभाले रखना
हम आस पास ही हैं तुम्हारे ज़रा इत्मीनान रखना
ज़िन्दगी तुम्हारी अब हमारी ही अमानत समझ
इसे खुशियों और क़ह्क़हों से तुम लबरेज़ रखना
इन खामोशियों की न कोई भी तुम फिक्र करना
यादों में बसे रहेंगे हम हर वक़्त तुम्हारी शिद्दत से
हमारी यादों को तुम दिल में बहुत महफूज़ रखना
ये यादें बड़ी ही बेशकीमती हैं इन्हें संभाले रखना
हम आस पास ही हैं तुम्हारे ज़रा इत्मीनान रखना
ज़िन्दगी तुम्हारी अब हमारी ही अमानत समझ
इसे खुशियों और क़ह्क़हों से तुम लबरेज़ रखना
Friday, January 4, 2013
Everyday/हर रोज़
हर रोज़ नया तो है पर पूरा नहीं पड़ता
ज़िन्दगी एक रोज़ नहीं बताया तुमको
सिलसिला है ये एक आज नहीं तो कल
सब्र करो कहीं तो ये ले जायेगा हमको
क्या मिसाल दें हम दास्ताँ की अपनी
भुला दिया है सबको बस एक खुद को
ज़मीन की हो या क्या कहें हम अपनी
आसमान से भी तो शिकायत है तुम को
Everyday is new yet isn't sufficient
Life isn't of one day I had told you
It's an happening if not today tomorrow
Have patience it will take us somewhere
What instance do I give of just myself
You have now forgotten all but just you
Not just about the Earth or about myself
You have complaints about the heavens too!
ज़िन्दगी एक रोज़ नहीं बताया तुमको
सिलसिला है ये एक आज नहीं तो कल
सब्र करो कहीं तो ये ले जायेगा हमको
क्या मिसाल दें हम दास्ताँ की अपनी
भुला दिया है सबको बस एक खुद को
ज़मीन की हो या क्या कहें हम अपनी
आसमान से भी तो शिकायत है तुम को
Everyday is new yet isn't sufficient
Life isn't of one day I had told you
It's an happening if not today tomorrow
Have patience it will take us somewhere
What instance do I give of just myself
You have now forgotten all but just you
Not just about the Earth or about myself
You have complaints about the heavens too!
Thursday, January 3, 2013
case is not concluded/ मुक़द्दमा न निपट पाये
सौ सौ चिराग जला के होगा क्या हासिल
जब सब कुछ ही बुझ चुका हो किसी का
हज़ार क़ानून भी क्या कर लेंगे मिल के
जब मुक़द्दमा न निपट पायेगा किसी का
What will hundreds of candles do
When everything is extinguished
What will the thousand laws do
If case is not concluded in courts!
जब सब कुछ ही बुझ चुका हो किसी का
हज़ार क़ानून भी क्या कर लेंगे मिल के
जब मुक़द्दमा न निपट पायेगा किसी का
What will hundreds of candles do
When everything is extinguished
What will the thousand laws do
If case is not concluded in courts!
Wednesday, January 2, 2013
understanding/ समझ
मेरी बरबादियों के रास्ते खोज कुछ हासिल न होगा
अपनी आबाद ज़िन्दगी में झाँक तो तुझे सब मिलेगा
अपनी फितरत पर तो तुझको शायद यक़ीन न होगा
मेरी क़िस्मत को तू नज़र कर ले तो समझ जायेगा
Looking for my destruction you will get nothing
Peeping into your life you may find everything
You may have no faith in your nature and doings
Look at my good luck for your own understanding
अपनी आबाद ज़िन्दगी में झाँक तो तुझे सब मिलेगा
अपनी फितरत पर तो तुझको शायद यक़ीन न होगा
मेरी क़िस्मत को तू नज़र कर ले तो समझ जायेगा
Looking for my destruction you will get nothing
Peeping into your life you may find everything
You may have no faith in your nature and doings
Look at my good luck for your own understanding
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