Thursday, July 31, 2014

कुछ ऐसी अलख जगाओ

नीरस है चारों तरफ समां
अब गीत कहाँ संगीत कहाँ
तन-मन में मधुरस छा जाए
कुछ ऐसा गीत सुनाओ

अब साज नहीं सजते हैं वो
मन वीणा मौन उदास बसी
मन के सब तार करें झंकार
कुछ ऐसी बीन बजाओ

अब सबको ऐसी जल्दी है
भागी जाती सी दुनियाँ है
बैठो कुछ पल सुस्ता लो
कुछ ठहर के चलते जाओ

अप्रतिम यहाँ सँगीत भरा
लेकिन है जाने कहाँ छुपा
दिल के अंदर तक छा जाए
ऐसा सुर-संगीत सजाओ

चेहरों में अज़ब उदासी है
नज़रें भी प्यासी-प्यासी हैं
स्वच्छंद नाचता हो ज्यों मन
कुछ ऐसे नाचो गाते जाओ

झोली भरने की फिक्र न हो
जीने-मरने की बात न हो
हर ओर ज़िन्दगी हँसती हो
कुछ ऐसी अलख जगाओ


The eternal happiness

I was always told
There are heavens
And I should look
To be there one day
Everyone is equal
And at peace there
No quarrels, issues
No envy or enmity
No greed, no violence
No one competes evil
Compete for compassion
What prevails then is
The eternal happiness
Each one for others
They are one for all
And the all for one
Everything in harmony
Nothing is exclusive
Everything is inclusive
Ever since I look up
Without trying go up
Just wondering about
When will that happen
Here on this Earth!


Tuesday, July 29, 2014

नई मंज़िलें

बड़ी उम्मीद ज़िन्दगी से थी
चाहतें की थीं ज़माने भर की
कोई क़िस्मत के नाम पर
कभी बस हालात के चलते
दामन के क़रीब से गुजर गया
या आकर झोली से निकल गया
कभी राहत के तौर पर इधर
अनचाहा कुछ और मिल गया
कभी हैरतअंगेज़ कर के मुझे
जाने क्या-क्या न देता गया
मुक़द्दर की बात और है यहाँ
जीने की राह भी कई और हैं
हर दुःख भी मेरा अज़ीज़ था
यूँ ख़ुशियाँ लुटाता चला गया
मेरी चाहतों की डगर पर यहाँ
नई मंज़िलें दिखाता चला गया

फ़ितरत बदल न पाओगे

मैं भी तो इसी गगन में हूँ
आज़माने का जतन करना
सूरज बन झुलसाने की
तुम कोशिश करते रहना
मैं ठण्डा कर फैला दूँगा
उसी तुम्हारी रौशनी को
तुम छुप जाओगे कहीं और
देखेंगे लोग तब मेरी ओर
सोचेंगे कितनी शीतलता है
चाँदनी में मेरी बस
उनका क्या, बिसरा देंगे
ये रौशनी तुम्हारी ही है
बस कह देंगे वो तो
सूरज नहीं चाँद बेहतर है
सितारे भी साथ होंगे मेरे
मैं कैसा इतराता फिरूँगा
सारे बाराती होंगे मेरे
तुम जल-जल आ जाओगे
सबको दिन भर झुलसाओगे
अपने ही रूप दिखाओगे
लोग फिर करेंगे याद मुझे
करेंगे मेरा इन्तज़ार
अपनी भी मेरी भी उनकी भी
फ़ितरत तो बदल न पाओगे

Monday, July 28, 2014

अच्छा लगे

शायद नहीं अहसास कोई तुमको
बस अपनी ही सोचते, कहते हो
हमें तो आदत सी हो गई है अब
तुम्हारी सुनने अपनी छुपाने की
फिर भी कभी महसूस होता तो है
हमारी भी सुन लेते कभी तुम भी
यूँ तो हमारी कोई शिकायत नहीं
चुप ही रहना चाहें ऐसा भी है नहीं
कभी समय निकाल लेना तुम भी
इत्मीनान से बातें करे लेंगे हम भी
अपने प्रश्न और जिज्ञासायें तुम
थाम लेना और सुनना हमारी तुम
क्या मालूम अच्छा लगे कुछ भी
तुमको भी हमको भी दोनों को ही


आजमा लो

अभी गुजर जाने दो
तुम इन हवाओं को
मचलती उमंगों को
इन नए ख्यालों को
सारे जज़्बातों को
बहकती बातों को
महकती रुत को
और भी वज़ह होंगी
यूँ महसूस नहीं होंगी
एक वक़्त आएगा
महसूस करायेगा
तुमने अच्छा किया
वक़्त से जान लिया
सब्र का इम्तहान लिया
तब इरादा कर लेना
करना या नहीं करना
क्या फ़र्क़ पड़ता है
कुछ समय आजमा लो
शायद अंज़ाम भला हो!


Friday, July 25, 2014

Beautiful Happening

Your voice sounds musical
Ringing a hundred chimes
Whenever you speak softly
It sounds like music to ears
Even your those outbursts
Do not sound any harsh
I am lost in your charms
As if in some happy arms
I guess it is love knocking
And a beautiful happening
Lovely thoughts rocking
You-me both in tandem
The feeling so romantic
Whole World is forgotten
It’s just you and I to think
Above the World us risen
As if nothing less, beyond
Everything around smitten

Animal Spirit

The uncivil every bit unjust
Spirit of outraging modesty
Unabated and unrestrained
In all nooks and corners here
Belies developed societies
Its stature of being any civil
Trying to misuse manhood
Molesting, raping women
For momentary pleasure
Society must rewrite rights
Separate rights for women
Exhibit macho animal spirit
Bewildering the holocaust
Of crimes against women
Need no lesser punishment
But by all means capital one
In full public view in open
Without a single hesitation

हर तरफ़

शोर-ओ-गुल के बीच
महकती सी बयार हैं
कहीं आहटों के शोर में
चाहतों के खुले द्वार हैं
हर तरफ़ वरना यहाँ
नफरतों के बाजार हैं
आहतों के गुजरे लम्हे
क्या हुआ जो ख़ार हैं
बागवाँ ये क्या जाने
यहाँ कौन गुनहगार हैं
मोहब्बत से जो देखो
ये आज भी गुलज़ार हैं
दिल की नज़र से देखो
हर मौसम ही बहार हैं

Thursday, July 24, 2014

सब अपनी

कुछ उज़ली हैं
कुछ धूमिल सी
स्मृति की रेखायें
मेरे बचपन की
जाने क्यों लेकिन
सब बिसरी सी हैं
प्रायः वो बातें
मेरे यौवन की
बातें कुछ शायद
इस जग की
मेरे कर्तव्यों की
इधर भारी सी हैं
फिर भी जीवंत
सदा कण-कण में
जीवन की गाथा
बस प्यारी सी हैं
अब ढलती वयस्
इसके अपने आयाम
जो भी स्मृति होंगी
सब अपनी ही हैं

फरियाद

अजीब बात है मुल्क़ को लूटने वाले आबाद रहते हैं
मुल्क़ के लिए सब कुछ लुटाने वाले बर्बाद रहते हैं

एक वो हैं जो अपनी खातिर जान लेने को हाज़िर हैं
वो भी हैं जो मुल्क़ की खातिर जान देने को हाज़िर हैं

वो हर मुसीबत में इस मुल्क़ की सिर्फ खड़े नाज़िर हैं
लोग ऐसे भी हैं जो सब कुछ लुटा देने के मुंतज़िर हैं

खुद ख़ुदा आकर करे इस्तक़बाल उन सब का इधर
जो इस क़ौम की हर राह के साथी यहाँ मुसाफ़िर हैं

वतन के बाद कुछ भी और बाक़ी हो हरेक का यहाँ
वतन के साथ सब हमेशा हों यही फरियाद करते हैं


अपने रंग

ज़िन्दगी के भी अपने अपने रंग हैं
कुछ खुद से कुछ हालात से तंग हैं
ज़माने ने बनाया भिखारी तो क्या
हसरतें तो आज भी शहंशाह की हैं
मुफ़लिस भी हैं तो किसी को क्या
शौक़-ओ-शान हमारी अमीरी की हैं
दर-दर की ठोकरें खाने को मज़बूर
लेकिन दिल में सोच बादशाह की हैं
जब जो भी मिला गले लगा लिया
मोहब्बतें कौन सा कहीं और की हैं
चार दिन उधार के हम भी लाए हैं
ख़्वाहिशें होती कब किसी ग़ैर की हैं


Monday, July 21, 2014

पैग़ाम

थोड़ी हो या ज़्यादा हो बस पी लेने दो
ग़म भुलाता कोई उसे रिन्द रहने दो
ख़ुशी से पागल के हाथ जाम रहने दो
जहाँ के मयखाने ये आबाद रहने दो
ग़म छुपते हैं यहाँ इन्हें राज़ रहने दो
टपकता है नूर यहाँ आबाद रहने दो
सरकते हैं कितने नक़ाब सरकने दो
नशाबंदी के पैग़ाम घर-घर जाने दो
बस एक मेरे हाथों में जाम रहने दो
तारीफ़ कोई नहीं गुमनाम रहने दो
बस मेरी हर शाम सुनसान रहने दो


Saturday, July 19, 2014

झोली

आए तो तुम बस खाली हाथ
मगर भरते ही जाते हो झोली
प्यास बुझाते बढ़ी प्यास जब
मद-मय जाने कितनी पी ली
अचरज कोई है नहीं हम को
थाह जगत की तुमने पा ली
क्या-क्या लेकर जाओगे सँग
क्या गिनती है तुमने कर ली
रहो सचेत सम्हालो संचित
फिर न कहना चोरी कर ली
हमने तो बस वक़्त बिताया
खाया कुछ बस उम्र है पी ली

Thursday, July 17, 2014

When Darkness Prevails

I don't look for the lights
When the darkness prevails
For I want to feel and test it
The intensity and effect of
Myself, around me, my thoughts
And me the gullible person
I can vouch myself for it all
I can withstand and sustain
The darkness and its effects
With all the ease around
And when the lights come by
I am doubly reassured of
My tryst with dark moments
And ability to deal with that
The lessons learnt mentally
And my mental toughness


सपनों की दुनियाँ

कहीं दूर से कोई मुझे
दिखाता अंनजाना सा
कोई ख्वाब बेहतरीन
मेरी इच्छा से बड़ा
आकाँक्षाओं से ऊँचा
मैं भी खो जाता हूँ
बस मतिभ्रमित सा
लेता हूँ आनंद सदा
बस क्षणिक ही सही
सत्य से बहुत दूर
फिर भी मनमोहक
कैसी आकर्षक होती है
सपनों की दुनियाँ
कल्पनालोक में सही
कुछ पल के लिए
आनंद की उड़ान


Wednesday, July 16, 2014

Edifice of Life

Beyond horizons of knowledge
Branding things as self-taught
Everyone walking past truth
Pretending to have known it
Even with a mindset of own
Dialectic confusions of mind
Without a known consensus
Serving untruth as the truth
Going around in frenzies
People constantly quoting
Hearsay or unknown premises
The conflicting beliefs on
Edifice of life's beliefs built


Monday, July 14, 2014

मन की मन में

उसके ज़िक्र से मन महकने लगा था
एक नई उमंग आई है मन में
मोहब्बत की सीढ़ियाँ चढ़ने लगूँ
आया है मेरे भी मन में
क्या जानूँ मैं पहली मुलाक़ात में
क्या होगा उसके दिल में
कुछ बातचीत हो तो बने सिलसिला
क्या है क़िस्मत के मन में
सोचता हूँ करूँ गुफ़्तगू थोड़ी सही
डरता हूँ अपनी ही भाषा से मैं
उसके अरमान क्या मिलेंगे मुझसे
क्या है मेरे अपने अरमानों में
कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ पहुँचूँ
जद्दोजहद चलती रही मन में
चलो कुछ समय और करूँ इंतज़ार
बात रह गई मन की मन में

बरसात

बारिश के मौसम आ गए
सब के मन मानो हर्षा गए
वसन्त में खिले-खिले से
ग्रीष्म की गर्मी में झुलसे
दरख्तों की सूखी डाल पर
फिर पल्लवित हो गए हैं
सब हरे-हरे रँग में पत्ते
नवजीवन के प्रतीक से
अब हर तरफ हरियाली है
और कैसी छटा निराली है
सूरज का मिज़ाज़ नरम है
सारा जहाँ नहाया हुआ है
किसानों के मन पुलकित हैं
आशाएँ फिर नई सँजोये हैं
हवायें सरसराती इतराती हैं
खुशियों के नव गीत गाती हैं
प्रकृति की गोद भर गई है
जीवन में ललक बढ़ गई है
भीगे मौसम में सब तरफ
बरसात की अलसाई रुत है


Tuesday, July 8, 2014

प्रतीक्षा है

फिर चुपके से आके
कोई हवा का झोंका
मेरे कानों में कह गया
फुसफुसाते से स्वर में
क्यों बदहवास से
यूँ उदास बैठे हो
बहारें आने वाली हैं
आँख कान खोल रखो
कहीं ऐसा न हो कि
तुम ऊँघते रह जाओ
और वक़्त गुजर जाये
फिर सरसराते हुए
मुझे जग कर चल दी
अब मुझे भी प्रतीक्षा है
बदले हुए मौसम की


शब्दार्थ

बिना किसी अपराध के
यूँ अकारण ही मुझे
तुमने बहुत कुछ कहा
मैं भी बस सुनता रहा
बिना अपराध भाव के
तुम्हारा हक़ समझ कर
लेकिन फिर भी ज़रुर
एक टीस थी दिल में
शायद समझे नहीं तुम
शब्दार्थ को समझते
मेरा मंतव्य एवं
शब्दों का प्रयोग भी
अपेक्षा रखता हूँ
अब मैं तुमसे भी
मेरा हक़ समझ पाओगे
तुम भी कभी-कभी


Sunday, July 6, 2014

चक्रव्यूह

खो गया हूँ यहाँ मैं
और मेरी मासूमियत
तुम्हारे शब्दजाल में
शहर की जगमगाहट में
जाने कहाँ खो गई
मेरी संवेदनशीलता
बिलकुल तुम्हारी तरह
जीवन की चकाचौंध में
अब न वो जुगनू हैं
न चाँदनी के रंग हैं
नदियों की कल-कल
झरनों के सुर
पक्षियों के कलरव
सब गुम से हो गए हैं
तुम्हारे शहर में आकर
बस शोर ही शोर है
तुम्हारे शहर में
और मेरे अंदर
पलायन की ग्लानि है
प्रकृति की गोद में बसे
मेरे छोटे से गाँव से
पीड़ा है अपने लोगों से
अपनी मासूमियत से
बिछुड़ जाने की
एक अकथनीय सत्य की
न चाह कर भी इसी
चक्रव्यूह में फँसने की


तुम्हारे आस-पास

मेरी दुनियाँ तो
बस इतनी छोटी है
तुम्हारे आस-पास
ये रूह भी मेरी
भटकती रहेगी
और कहीं नहीं
बस यहीं कहीं
तुम्हारे आस-पास
शायद तुम्हें न भी हो
इसका एहसास
और कहाँ जाऊँगा
लेकर के मैं अपना
ये भस्मीभूत शरीर
नहीं है मुझे कोई
स्वर्ग की कामना
यहीं है मेरा स्वर्ग
तुम्हारे आस-पास


जब तक उम्मीद

कल उम्मीदें दिलासा देती रहीं कल के लिए
आज़ हम कल की बात कल पर टालते गए

हर बात की अपनी उम्र है हर किसी के लिए
अंदाज़ा करना मुश्क़िल है ये सब किसलिए

हम थे बादलों से बारिश की उम्मीद लगाये
बादल छाये और बिन बरसे यूँ ही चले गए

फिर आसमाँ की तरफ देखेंगे नज़रें गढ़ाए
बादल से होगी उम्मीद टकटकी लगाये हुए

क्या मालूम यूँ कब कौन कहाँ मिल जाए
ज़िन्दगी तभी तक जब तक उम्मीद जिए


Saturday, July 5, 2014

क्यों

क्यों डरावने लगते हैं
कभी कभी ये पल
अँधेरी रात के

जुर्म तो पनपता है
बेख़ौफ़ यहाँ सब तरफ़
उजालों में दिन के

न जाने क्यों आखिर
हम सपने देखते हैं
सब जान कर इंसाफ के

यहाँ जीने को मिल गया
हम कम क्यों आँकते हैं
मायनों को जीवन के


हर हाल में

हम नहीं अंधेरों से डरते हैं
उनका भी अपना काम है
वक़्त से रात ज़रूर आएगी
फिर सुबह खुद ही आएगी
यूँ भी अब कहाँ फ़र्क़ होता है
कब रात है या फिर दिन है
ग़म की घड़ी जब भी आएगी
ख़ुशी भी साथ गुनगुनायेगी
रास्ते ऊबड़-खाबड़ तो क्या
अपना सफ़र तय करना है
क्या कहाँ किसको क्या मिला
हमको नहीं इन बातों से सिला
हम तो ख़ुद को क्या हासिल
ये भी हिसाब नहीं रखते हैं
बस अपने कर्तव्य-पथ पर
हर हाल में चलते जा रहे हैं


Essence

The epitome of real living
With a meaning and purpose
Is living in complete harmony
With everyone around you
Circumstances whatever be
Surroundings as they may be
I and me becoming we and us
Nothing is mine but all is ours
Everyone o share the credits
All of us to share the blames
Love, live not hate or blame
Culmination of your thoughts
Thus harmonize you and all
Illumination of mind and soul
The essence of life and living
In abstract, amorphous World


Friday, July 4, 2014

Unraveling

We all wander around
Through our trajectory
In a mysterious World
Of weird combinations
Unexplained paths here
With or without signposts
Unraveling the mystery
In its various facets
A travail of uniqueness
Of each and everyone
From self to dear ones
Own, known to unknowns
From darkness to light
Old to the new things
Not following a pattern
And the life goes on!


दिलासा

आज बरसात के इस मौसम में भी तो
वो पहले सा सावन नहीं दिखाई दिया
कौन चुरा ले गया है मेरे वो सारे पल
बादलों का नामोनिशान मिटा दिया
किता अरसा गुजर गया देखते देखते
जब सब भीगा भीगा सा दिखाई दिया
कौन लेकर आएगा ठंडक इस गर्मी में
जब मुझे इस सूरज ने झुलसा दिया
कहानियाँ बरसात से इश्क़ की बात की
कोई नहीं इधर नहीं सुनाता दिखाई दिया
मौसम की भी रंगत ज़रूर बदलेगी यहाँ
बस इसी बात ने दिलासा ये दिला दिया

Tuesday, July 1, 2014

चुप था सूरज

चाँद भी है बड़ा ये चाँदनी भी भली
सूरज़ से बड़ा लेकिन कोई भी नहीं
चाँद इतरा के बोला बड़े नाज़ से
बगैर उसके जहाँ ये कुछ भी नहीं
चाँदनी ने कहा जो अगर मैं न हूँ
रौशनी के बिना चाँद कुछ भी नहीं
आसमाँ ने कहा मैं जो चाहूँ अगर
बादलों में छुपा चाँद कुछ भी नहीं
चुप था सूरज बड़ा बोला कुछ नहीं
जानता था कि है चाँद कुछ भी नहीं