अपने हित, सुख
नहीं है एकमात्र
प्रयास और साधन
हमारी नज़र में
सामाजिक प्रगति के
हम समष्टिवादी हैं
हरेक का हित-साधन
वष में न सही हमारे
प्रेरक और माध्यम
हम बन सकते हैं
यक़ीन है हमको
यूँ भी हमारी नज़र में
अनेक के आगे
सिर्फ एक का विकास
गौण, अनअपेक्षित है
इसी पर सँसार टिका है
हमारे प्रयास हों
कम से कम
औरों के लिए भी
आस-पास अपने
चाहिए सँसार को
आज और ज़्यादा
सरफिरे हम से