Friday, July 24, 2015

बेटियाँ


बेटा-बेटा की रट लगा रहे थे जोर से
जानने लगे घर की हैं रौनक ये बेटियाँ

बेटों के काम से थके हारे जो परेशाँ
माँ-बाप के सब बोझ उठाती हैं बेटियाँ

घर भर का बोझ जो समझ रहे थे बेटियाँ
अब ढूंढते फिरते हैं कहाँ मिलेंगी बेटियाँ

जब छोड़ते मझधार में एक एक करके सब
बस पार लगाती हैं नाव तब ये बेटियाँ

बेटा नहीं बनी ये गनीमत हैं बेटियाँ
मिलती बड़ी किस्मत से हैं ये बेटियाँ

सीख लो कहीं पछताना न पड़े फिर
बेटों से बढ़ के ये बड़ी होती हैं बेटियाँ


Friday, July 17, 2015

कुछ पास कुछ उधार

स्याह रातों के बीच भी
उजालों की रंगीनियाँ हैं
सौ झँझट की ही सही
खुशियाँ हज़ार है यहाँ
कई दुश्मन हैं ज़रूर
पर दोस्त बेशुमार हैं
तंगदिल कुछ एक सही
भरमार दरियादिलों की
चंद रोज़ की बीमारियाँ
सेहत भी इफ़रात में है
वक़्त इधर थोड़ा सही
मगर बहुत है मेरे पास
दोस्ती ज़िन्दगी भर की
अदावत कुछ पलों की
समझो तो सब हैं यार
छाया भी नहीं रक़ीब की
कुछ पास कुछ उधार
ज़िन्दगी चार दिन की


Friday, July 10, 2015

Whither thinking?

Minds are storehouse
All kinds of thinking
Be it negative or positive
In a way a smart thinking
Open minds are logical
Negativity starts shrinking
Even with stressed minds
Nothing like positive thinking
In those vibrant minds
Innocence still prevailing
Serenity of the minds are
Thought process protecting
When minds start stinking
Whither thinking?

Sunday, July 5, 2015

How Similar !

O Raindrops!
How similar are
You and me!
As you leave
The edge of clouds
To be with me
And my World!
Without thinking
About your future!
I too on the edge
Of this seat mine
Unsure of my future
Looking to shower
All my love and care
To someone mine
And My World!