बेटा-बेटा की रट लगा रहे थे जोर से
जानने लगे घर की हैं रौनक ये बेटियाँ
बेटों के काम से थके हारे जो परेशाँ
माँ-बाप के सब बोझ उठाती हैं बेटियाँ
घर भर का बोझ जो समझ रहे थे बेटियाँ
अब ढूंढते फिरते हैं कहाँ मिलेंगी बेटियाँ
जब छोड़ते मझधार में एक एक करके सब
बस पार लगाती हैं नाव तब ये बेटियाँ
बेटा नहीं बनी ये गनीमत हैं बेटियाँ
मिलती बड़ी किस्मत से हैं ये बेटियाँ
सीख लो कहीं पछताना न पड़े फिर
बेटों से बढ़ के ये बड़ी होती हैं बेटियाँ