Saturday, November 21, 2015

सियाप्पा

होणा है मग़रूर
यही है कुड़ियों दा दस्तूर
सियाप्पा हो ही गया
अपणे ही नशे विच चूर
मुण्डों दा आप्पइ आप सुरूर
सियाप्पा होणा था
नि कुड़िये अपने अंदर झाँक
खुद को न बेहतर आँक
तेरा दिल दस देगा सब बात
फिट्टे मुँह समझ ले सारी बात
सियाप्पा कैसे हुआ
ओ मुंडे वड्डी वड़ी न फेंक
तू बस अपने फंडे सेंक
ज़रा सा अकल दे परदे खोल
अकल ने दस देणी तैनु बात
सियाप्पा होणा था
ले कुड़िये मैंने मानी बात
मैनु अकल ने मारी लात
मैनु समझ हुई अब बात
क्यों तू दिखती मुझे दिन रात
सियाप्पा खत्म हुआ
ओये मैं बी सुण ली बात
अपणा सात जनम दा साथ
कदी मैं बी थी मगरूर
ऐ मान लुंगी मैं ज़रूर
सियाप्पा खत्म हुआ

Sunday, November 15, 2015

Choice is Crystal Clear

Call it inhuman or heinous
What difference it makes
In the name of revenge
They killed the innocents
What religion they swore by
What excesses complain of
Revenge is just vengeance
That keeps rotating sides
Until both sides perish or think
That revenge is no solution
Pretended or may be real
If you want Earth to be livable
You have to let live and live
Within the civilized behavior
Or fight, kill and get killed
The choice is crystal clear!

Monday, November 9, 2015

मन में वंदनवार सजाकर

स्मरण कराता फिर से
तुम को मुझ को सब को
ये त्यौहार दीवाली का
रोशन कर चहुँओर
जग के कोनों को
अपने घर-घर को
करो उजाले ऐसे तुम
मन-आँगन में अपने
बांटो खुशियां अपनी
औरों के गम बांटो
मुँह मीठे मन मीठे कर
कर लो कोशिश बनने की
प्रेम व करुणा के सागर
अंतरतम को रोशन कर
खूब मनाओ दीवाली तुम
मन में वंदनवार सजाकर

वो दीवाली थी ये क्या है ?

मिल बैठ मनाते थे
परिवार मित्रों संग
दीवे में तेल-बाती थी
रौशनी और पूजा से
पकवान-प्रसाद सरल थे
मुस्कराहट ख़ुशी असली थी
मनों में मेल था
अब सब कुछ उलट है
पटाखों के शोर के बीच
कई रंगों की रौशनी से
आँखें चौंधियाती हैं
लेकिन मन अँधेरे हैं
उपहार लेने-देने की होड़ है
मुस्कुरा रहे हैं लेकिन
मनों में मैल हैं
किसी को परवाह नहीं
प्रदूषण बढ़ने की
बस हर तरफ होड़ है
वो दीवाली थी ये क्या है ?