Saturday, November 12, 2016

Envy Me

I hate to say things
That I don't want to
But if you force me
To utter those words
Perhaps I might say
Without hard feelings
For I sure always will
Hate the sin not sinner
You have compulsions
Of the mind and matter
To both do not matter
You may have follies
I have all my principles
You chose your paths
I choose right paths
You beget your karma
I get out of my karma
I would seldom envy you
But you might envy me


रखें हिसाब साफ

मन के काले धन के काले
उजले दिखते तन के वे हैं
तन मन में कोलाहल वाले
पर बात बताते अच्छी वे हैं
संजोए काले धन मतवाले
अब बात बताते कच्ची वे हैं
धरे खजाने कितने काले
राह खोजते अब नई वे हैं
रहें काश अब नए उजाले
सब रखें हिसाब साफ वे हैं

Thursday, November 3, 2016

द्वेष लिप्त

अपनी समझ छोड़
अलग मानसिकता में
दौड़ने लगते हैं !
हम क्यों प्रायः यहाँ
उनकी अपेक्षानुसार
बनते प्रतीत होते हैं
कोई सहजीवी से !
जान-बूझ कर भी
कि परोपजीवी होते हैं
राजनीति करने वाले
जन मानस को छल
अपनी रोटी सकते हैं !
कहीं न कहीं शायद
भारी पड़ जाते हैं
हमारी कुछ कुंठाएं
कुछ हीं भावनायें
और हमारे द्वेष लिप्त
ईर्ष्यालु आचरण !


Wednesday, November 2, 2016

हर पल ज़िन्दगी

हँसते हँसते बसर कर लो
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

टेढ़े मेढ़े रास्तों से गुजरती सही
फिर भी सीधी बड़ी है ज़िन्दगी
जहाँ कभी भी ठहरती सी लगे
सोचो आराम कराती है ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

इसकी भी अपनी हैं अदायें
कभी रुला भी देती है ज़िन्दगी
कभी लहराती कभी बलखाती
बस अपनी सी होती है ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

नादानियाँ भी रुसवाइयाँ भी यहाँ
फिर पल में हँसाती है ज़िन्दगी
रोते हँसते इसके संग बढ़ते रहो
हर पल जी लिया करो ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

कभी आगे बढ़ बाँहें फैलाती
कभी सिमटती सी है ज़िन्दगी
दो मुट्ठी आसमाँ है दो ज़मीं
बस इतनी सी होती ये ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

मान्यता

सोचा था चुप रहूँ
कितना समझाया
पर मन कब मानता है
कई कोशिशें कीं
हरेक को समझाया
मगर कौन मानता है
जब मन में हों विकार
पारदर्शिता का हो अभाव
कौन किसकी सुनता है
सब का 'मालिक' एक
अपनी उलझन अपने हित
हरेक एक की सुनता है
मन बोला क्यों सुनूं
मैं क्यों सब के रंग रंगूँ
मेरी अपनी मान्यता है

Saturday, October 1, 2016

अमन के साथ

अमन के साथ आज भी हैं
यहां भी हैं लोग वहां भी हैं
दिलों में दोस्ती आज भो है
अवाम में दोस्ती अब भी है
र॔ग सियासत के भरनै वाले
दिखते सब तरफ आज भी हैं
दिलों में र॔ग-ए-अमन के जुनूनी
कई कोशिश में लगे आज मी हैं


Wednesday, September 28, 2016

दहशतगर्दी ख़त्म करेंगे

बुलंद हुई हैं आवाज़ें
वक़्त की सीख भूल
फिर गूँजते हैं यहाँ
पुरातनपंथी से स्वर
हर हाथ के बदले हाथ
हर सर के बदले सर
ऐसी समझ से शायद
वक़्त भी हँसता होगा
नतीजों की कौन सोचे
नारों के रिवाज़ जो हैं
विकल्प और भी है कई
लेकिन गुस्सा ज़्यादा है
रियाया परेशां है वहां भी
अवाम यहाँ भी परेशां है
'आर-पार' की बात में
आर-पार लोग भ्रमित हैं
कौन नतीजा निकलेगा
इतिहास नहीं लोग देखेंगे
अब अवाम ही मिलकर
दहशतगर्दी ख़त्म करेंगे
सियासत के नाम पर
कहीं जंग नहीं होने देंगे

Sunday, September 18, 2016

Days

Days
So few
They sound
Yet long enough
But why do they get over so soon
The cycle of the life is like that
Initially so many
As they sound
Diminishing
Slowly
Done!

.....another tetractys


जियो

जियो
जीवन ऐसे
ये इश्तेहार है
तुम्हारी ही जिन्दगी का
आज तुम यूँ नहीं जिये तो कल कैसे जी लोगे
देख लो ज़रा हर लम्हा जिन्दगी कैसे बुलाती है तुमको
आज के साये में जियो
कल का पता नहीं
कौन जान पाया
क्या होगा
कल

A 'Tretractys' poem

Saturday, September 17, 2016

आशा प्रबल है

हर परेशानी में साथ मेरे
मेरी आशा प्रबल है
देती है सदैव साथ मेरा
मानो जीवन का आधार है
जब ज़िन्दगी भटकती है
एक अंधकार से निकल
दूसरे अंधकार तक
हाथ को हाथ नहीं सूझता
अपना साथ दिखाती है
जब कोई नहीं साथ मेरे
अपना हाथ बढाती है
मुझे अबोध शिशु समझ
मानो उँगली पकड़ लेती है
मेरी अभिलाषाएँ अपार हैं
आशा ही एक अकेली है
कोई और हो न हो पर ये
हर समय मेरे साथ है

अक्स / Reflection

कहते हैं देख लो अपना अक्स
लेकिन वो नहीं दिखाते जो मैं हूँ
आइना उल्टा दिखता है अक्स
उससे बिलकुल उल्टा जैसा मैं हूँ

You say I must see my reflection
But not's not what exactly I am
It's the opposite of me actually
Juxtaposed to what really I am
Real me is me not my reflexion


ज़िन्दगी ढूंढती रह गई हमारा ही अक्स
सब तरफ लेकिन नहीं हमारे आस-पास
हम खुद भी हर जगह ढूंढते रहे अक्स
कल और आज, मिला नहीं आस-पास

Life kept looking for reflection
All around albeit not around me
I too kept looking for reflection
Then and now never found around me


खैरख्वाह से

वक़्त के साथ आईने देखे मैंने
गुज़रे वक़्त से लगे तुम मुझ को
कैसा आईना दिखाते हो तुम
मैं क्या हूँ एहसास है मुझ को
मुझे हकीकत में रहने दो तुम
गया वक़्त न दिखाओ मुझ को
कहते हैं आइने झूठे नहीं होते
तुम लेकिन और लगे मुझ को
लेकिन इतना मैं ज़रूर कहूँगी
खैरख्वाह से लगते हो मुझ को

Saturday, September 3, 2016

यही श्रेयस्कर

भुला नहीं पाया
अब भी जिसे मैं
इतने अरसे बाद
बुला रहा है मुझे वो
अब मेरी यूँ तो शायद
विवशताये नहीं कोई
लौट नहीं पाता हूँ
फिर भी मैं क्यों?
मन से चाहता भी हूँ
शायद, फिर भी मैं
किंकर्तव्यविमूढ़ सा
अनिश्चय में जकड़ा
असुरक्षा की भावना से
सोचता हूँ कैसे रहूँगा
इतने समय बाद, मैं
भौतिक भोग का आदी
यहाँ वहां हो गए हैं
तब के साथी भी सब
बांटूंगा सुख-दुःख किससे
मन ही मन से हार जाता है
दिलासा देकर कहता है
मैं आता-जाता रहूँगा
यही श्रेयस्कर होगा
मेरे लिए शायद !

Monday, August 29, 2016

सनसनीखेज़

असहायता और अभाव
उनकी मानो संपत्ति थी
जीवन के कष्ट झेलते
उनकी रूह काँपती थी
सहयोग की अपेक्षा करते
वो तुम्हारी ओर देखते
तुम्हें सरोकार तो था
तुम देखते ही रहे थे
तुम अपनी कहानी
और मार्मिक बनाते रहे
शायद इसी आशा में
कि कहानी चटपटी हो
और तुम परोस सको
पाठकों को कोई
दस्तावेज़ सनसनीखेज़


एक खिड़की

बिलकुल मेरी तरह
तुम्हारी आँखें भी
एक खिड़की सी
झाँकने को बनीं
मानो तुम्हारेअंदर
और ऐसी खिड़की
कभी बंद होकर भी
देती हैं अवसर
देख पाने का
एक छोटी झिरी से
मानो आती आवाज़ें
एक नेपथ्य से
मुझे दिशा बतातीं
आगे के संवाद की

समय के हस्ताक्षर

आज भी मौजूद हैं
वक्त के निशान
क्या होता है सिर्फ
मेरे, तुम्हारे या फिर
किसी के कह देने से
जो जानकार हैं
समझ व पढ लेंगे
समय के हस्ताक्षर
सच जान ही लेगी
उनकी पैनी नजर
तुम फिर भी चाहो
झूठ का सहारा लेना
तो ये मात्र दुराग्रह है

Sunday, August 28, 2016

Refreshing Cup of Tea

Sips after drenching in rains
And those cold shivers in hills
After the wind blowing colder
Tea sounds tastier than ever
And the company of friends
Planning to go for pakoras
And another cup strong tea
Feels like out of the World
Small things do give big joys
Refreshing like a cup of tea


Saturday, August 27, 2016

Equal World for Women

I'm inclined to accept
Without pretentions
I would believe you
By the results
Not just in words
But in your deeds
Through your actions
In your behaviour
Sure manifestly
No alone by intentions
Not by any aversion
But; by inclusion
Your long history is
Reason of suspicion
I would be contented
Even in neutral situation
That paves the way of
Equal World for women
I'm confident of
Outsmarting all men
If you are confident
Give equality to women!



Thursday, August 25, 2016

प्रेम सुधा

सर्वस्व भस्म हो सकता है तो
बचा रहा क्या दिखलाना होगा
सपने तुमने भी हमने भी देखे
जीवन का सच बतलाना होगा
जीना तुमने भी हमने भी चाहा
कुछ ज्ञान मार्ग अपनाना होगा
कितने थे मरे हैं कितने घायल
ख़बर को ऐसी भुलाना ही होगा
क्या यही प्रगति का मानक है
राष्ट्र है क्या ज़रा समझना होगा
कितने मानुष शव में हैं बदले
हासिल क्या खुद समझाना होगा
मरघट में अब है जगह नहीं
बस दिल में तुम्हें बसाना होगा
मार्ग शांति का चुन लो अब तुम
आतंकवाद झुठलाना ही होगा
शांति, ज्ञान , मानव स्वभाव है
अब प्रेम सुधा बरसाना होगा


Wednesday, August 24, 2016

यो कसी नराई लागि

यो कसी नराई लागि यो कसो उदास
तन यहाँ मन पहाड़ कस् छू यो निश्वास
मैं पहाड़ जूंलो दाज्यू मैं पहाड़ जूंलो
मैं मुलुक जूंलो भागी मैं पहाड़ जूंलो

गों घरका सब लोगन मैं भेटन जूंलो
आम बड़बाज्यू गों घरकी कुशल मैं लि ऊंलो
बाल अवस्था युवा दगड़िया सबन मिली ऊंलो
नानछाना का खेल माल फेरि खेली ऊंलो
चार दिना शुद्ध हवा मा मैं बिताई ऊंलो
मैं पहाड़ जूंलो दाज्यू मैं पहाड़ जूंलो
मैं मुलुक जूंलो भागी मैं पहाड़ जूंलो

नील आकाश सेत हिमाला मैं निहारी ऊंलो
हरियूँ पाणी गाड़ नदी छपछपाई ऊंलो
शीतल पाणी में डुबुकी मैं लगाई ऊंलो
बनफल बाड़ों का फल चटपटाई ऊंलो
म्यर मन कि बात जसि देखि भाली ऊंलो
मैं पहाड़ जूंलो दाज्यू मैं पहाड़ जूंलो
मैं मुलुक जूंलो भागी मैं पहाड़ जूंलो

डांडा काना रूख बेला आँख बसाई ऊंलो
रोज़गार बिकास कस छू मैं ले देखि ऊंलो
और मैं ले के करि सकूं देखि भालि ऊंलो
नानातिना बुड़ा बूड़ीन के सुजौती द्यऊंलो
आपण मुलुक आपण लोगन भलि बटाईं ऊंलो
मैं पहाड़ जूंलो दाज्यू मैं पहाड़ जूंलो
मैं मुलुक जूंलो भागी मैं पहाड़ जूंलो

Sunday, August 21, 2016

Privileged and Compradors

Hopes of happiness
to the people many
Independence brought
With end of empires
The new rulers came
And they had created
The new privileged one
Internal colonialism
Intra-nation disparities
And the exploitation
In the name of leading
Communities and nations
The have's prospered
Few compradors too
The nexus in many kinds
Made laws as puppets
To subserve privileged
Have-not's their means
Of business, politics
Liberty and equality
Equity and prosperity
Law and good governance
Freedom brought seldom
While still await them
We see them in parts
In most nations around
Suppressing the interests
Of have-not, vulnerables
In so many ways and means
For the privileged ones
And their compradors!



Sunday, August 14, 2016

India's 70th Independence Day!

When the Nation celebrates the 70th Independence Day today, we recall the sacrifices, service and contribution of all those who made this happen for us.Many of them never saw it happen in their lifetimes; yet paved way for benefit of others like us and future generations.

Today we celebrate the Independence Day; but the spirit of Independence we all shall always relish, live and promote for all the paths and ideals to emulate, that our freedom struggle dreamt about!

India in our hearts and independence for all in our deeds, shall be our motto! Freedom from colonial rule makes us the owners of independence; and we now have to onus to strengthen, protect and proliferate it for all!

We see that the true freedom from social exclusion, gender discrimination, vast disparities of income and oppotunities need to be addressed and ensured. We all are stakeholders in achieving the benefits of independence for all!


Wednesday, August 3, 2016

जांबाजी

हँसते-हँसते जान दिया करते थे वो
आज़ादी की राहों में चलते मतवाले
मुल्क़ की ख़ातिर फ़ना होते अब भी
जांबाजी से सरहदों को बचाने वाले
खुदगर्ज़ी की हदों में हैं बाक़ी लोग
ऐशो-आराम का हक़ समझने वाले
अब हर कोई है आज़ाद हर तरफ़
मुल्क़ के नाम पर खुद बिकने वाले
तारीख़ से मिसाल देते हैं भाषण में
मुँह बनाकर पन्ने ही पलट देने वाले
शायद किसी को नहीं होता एहसास
कैसे थे मुल्क़ पर क़ुर्बान होने वाले

Monday, August 1, 2016

बस यही तो है!

यूँ तो होती रही हर रोज़
ज़िन्दगी से मुलाक़ात
लेकिन, शायद कभी
न ज़िन्दगी हमें समझ सकी
न हम ज़िन्दगी को समझे
कोशिश भी नहीं की हमने
वो भी जान-बूझकर
सुना था हमेशा हमने
ज़िन्दगी अपनी सुनती है
अपनी रफ़्तार से चलती हैं
न ये समझती है किसी को
न कोई समझा है इसे
बस जैसे मिले जीते जाओ
कोशिश अपनी करते जाओ
जो मिले खुश हो जाओ
गम हों तो संग-संग भुलाओ
तभी समझ पाओगे इसे
बस यही तो है ज़िन्दगी!


Sunday, July 31, 2016

दहलीज़

उम्र की दहलीज़ पर
सोचता हूँ मैं भी
एक अरसा गुजर गया
लोगों को देखते हुए
सीमाओं को लांघते
यहाँ अक्सर मेरी
फिर सोचता हूँ
कहीं ज़्यादा है
उम्र मुझसे शायद
मेरे घर की दहलीज़ की
जो ज़माने से देखती है
हर किसी को लांघते
खुद को सारी उम्र
तब लगता है
देखता रहूँ मैं भी
यूँ भी चेतन कम
जड़ ही ज़्यादा हूँ
शायद अब मैं भी


Saturday, July 30, 2016

खट्टा मीठा गीत

एक सफर है खट्टा मीठा गीत है
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

मंज़िलें और भी हैं यहाँ
रास्ते बिखरे पड़े हैं यहाँ
हर तरफ रफ़्तार है यहाँ
रास्तों में मंज़िलें ढूंढते रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

कोई साथी फिर बिछुड़ गया
कोई अपना बेगाना सा हो गया
ये ज़िन्दगी की हकीकत है
इसी की हद में बढ़ते रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

हर दिन नई शुरुआत है
ख़ुशी का हर कोई तलबगार है
हर लम्हा ज़िन्दगी बेशुमार है
अपनी ख़ुशी को संजोये रहो
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

एक सफर है खट्टा मीठा गीत है
ज़िन्दगी के गीत गुनगुनाते रहो

Friday, July 29, 2016

प्यार तुम्हारा

प्यार तुम्हारा मेरी, साँसों में बसता है
दिल की हरेक ये,धड़कन में रहता है

जब से मिला है हमको, आँखों में संजोया है
दिल में संभाले हमने, हर पल ये रखा है
कैसा एहसास मन का, दिलकश ही रहता है
और क्या मिसाल दें, रग-रग में रहता है

थोड़ा-थोड़ा पागल सा, हम को ये करता है
तन्हाई में अक्सर कोई, मुस्कुराता रहता है
बेकरार आलम में ये कैसा,चैन ले आता है
खोये-खोये लम्हों में, ये यादें संजोता है

प्यार तुम्हारा मेरी, साँसों में बसता है
दिल की हरेक ये,धड़कन में रहता है

Think but Less

Those who all think
They can think well
Should first introspect
About what they think
If they think logically
Can they be objective
Keeping aside prejudices
If no,reduce thinking
For it can be torturous
To self and others too
They can be unreasonable
Think less and be happy
Unless you are a poet
A writer or philosopher
Remember self as ordinary
Neither a saint nor preacher
Less thinking is simplest
And also to accept nuances
Of live, living, people
Be part of Worldly wisdom!



Sunday, July 24, 2016

अपनापन

क़दमों के निशान हम बनाते रहे
न जाने किस बात का भरोसा था
यूँ लगा लोग हमारे पीछे चलते हैं
पीछे मुड़ के देखा तो कोई न था
नसीहत दें हमारी फितरत नहीं
हमें ख़ुद के क़दमों का इल्म था
हम आज भी अपनी जगह पर हैं
हमें हर किसी पर भरोसा जो था
ये दस्तूर नहीं सब रास्ते वही हों
नया रास्ता तुम्हारा भी हक़ था
हमारे साथ सब का अपनापन हो
सिर्फ इस बात का एहसास था

Saturday, July 23, 2016

Opinion

In your opinion
If you say, nothing works here
I would strongly disagree
In my opinion
Things work, albeit not perfect
But you may have a point
Then, I may ask you too
Where does it work perfect?
If you say, things need improve
I would sure agree
Finally, opinions don't work
People and systems work
And question important is
Will you join to make it work
Whatever way you may
If you agree do that
I would sure agree
And respect your opinion

Friday, July 22, 2016

सुख सागर

दुखी राम यूँ दुःख में डूबे
सब जग लगता डूबा दुःख में
ढूँढें दुःख ही चाहे सुख हो
दुखी तभी ये दुखी राम हैं
सुखी राम है सुख का साथी
दुःख से नहिं घबराता है
जब दुःख हो धीरज से अपनी
नैय्या को पार लगाता है
सुख सागर सुख का सागर है
दुःख-सुख एक समझता है
दोनों में एका सा देखे
समान भाव में रहता है
अपना ही अपना ना सोच
सबके सुख-दुःख का भागी है
सुख सागर सुख का सागर है

Tuesday, July 19, 2016

transcending

Transcending your means
In the hope of few gains
Brings nothing important
But a sense of repentence
That you chose wrong path
For the greedy perceptions
For very trifle reasons
Living with more for more
When less can sound more
Requires more to understand
And not to run after World
Worldly things remain behind
Always owned, used by others
When limiting is the limit
Unlimited is understanding
Life sounds sense of living
Your thought sound amazing
The myth is decoded by you
World is no longer a mystery
And you know your own World
Without worrying about World
Transcending Worldly things!


Sunday, July 17, 2016

छोटी सोच

कल की ही बात है
ताना दिया उन्होंने
छोटी सोच वाला
मेरी दृष्टि में तो
शायद अकारण ही
फिर जाना कारण
छोटी जगह से था
धीरे-धीरे वही सब
मुरीद हो गए थे
काबिलियत के मेरी
उन्हें आश्चर्य होता
मेरे ज्ञान और बुद्धि पर
प्रवीण जो हो गया था
अब में अंग्रेजी में भी
अब वो हल्की बातें
हमारे फूहड़ मित्रो की
प्रायः भा जाती थीं
'बड़ी सोच' वालों को
हमारे बचपन के ज्ञान को
वो आज भी नया समझते
और अब समझ गए थे
मेरा स्तर और बड़ी सोच
जिससे वे अनभिज्ञ ही रहे
अपने छोटी सोच के चलते

Saturday, July 16, 2016

वक़्त की दस्तक

यहाँ हर लम्हा देता है
एक नई कोई दस्तक
कुछ आवाज़ों सहित
बाक़ी कई बेआवाज़
लोग अक्सर रहते हैं
बेपरवाह या लापरवाह
दस्तक सुन नहीं पाते
या समझ नहीं पाते
नतीजतन नाख़ुश रहते हैं
कभी खुद पर रोते हैं
या औरों की तरक़्क़ी पर
असरदार होती है
वक़्त की दस्तक
वक़्त पर समझने पर
या वक़्त पर भरोसे से
नई दस्तक की उम्मीद पर


Friday, July 15, 2016

राहत कार्य

जहाँ सिर्फ बाशिंदे रहते थे
आगन्तुक नदारद रहते
अपने भी कम आते-जाते थे
लोग हैरान थे देख कर
अचानक भीड़ हो गई थी
कई तरह के लोग थे
उनके वर्ताव, वेश-भूषा
कौतूहल सा जगा रहे थे
तहकीकात से पता चला
सभी आपदा-सहायक थे
कोई सरकारी कोई अन्य
मीडिया का भी जमावड़ा
बच्चों को उत्सव सा लगा
कई शोध से प्रेरित थे
कुछ दवाइयां और भोजन
कुछ राहत सामग्री देते
वीडिओ, फोटो और सेल्फी
मानो प्रमुख मंतव्य थे
कुछ शाम तक चले गए
अन्य दो तीन दिन बाद
स्थानीय लोगों को मिले
ढेर सारे भाषण , सलाह
अब नेता जी ने आकर
ढेरों आश्वासन देकर
रही कसर पूरी कर दी
गाँव वाले अचंभित नहीं
ये तो पहाड़ों में होता है
लोगों के जाते ही मानो
कुछ आवश्यक नहीं होता
बिजली, पानी, सड़क
फिर से हैं भी नहीं भी हैं
अख़बार वाले और मीडिया
टिपण्णी, तस्वीरों से
बयां करते हैं सब ठीक है
राहत कार्य संपन्न हुआ

Monday, July 11, 2016

नये प्रवाह

समय की गति भी
बहते पानी की तरह
एक बार जो छू लिया
फिर नहीं हाथ आता
स्पर्श का एहसास भी
बदलने सा लगता है
फिर नये प्रवाह का
अलग एहसास है
अपने पास संजोना
संभव नहीं होता है
दोनों ही गतिमान हैं
ठीक जीवन की तरह

नया कल

सिर्फ तात्कालिक ही नहीं
दीर्घकालीन नज़र रखूँगा
अवश्य एक नाता होता है
आज और कल में शायद
आज और कल सम्बद्ध हैं
कल एक नया आज होगा
आज नहीं जो कल होगा
कोई नया आगाज़ होगा
न भी हुआ किसी कारण
फिर नया कल तो होगा
आज से कल की लय में
मैं सदैव आशावान रहूँगा

Sunday, July 10, 2016

अप्रत्याशित

शरारती नज़र डाल
बिंदास अंदाज़ में
कहे थे अल्फाज़ उसने
अधखुले होंठों से
मैं एकदम अवाक् था
अप्रत्याशित से
इस रंग से उसके
शब्द बन नहीं पाये
खुले के खुले मुँह से
बाँहों में भर लिया उसने
आमंत्रण समझ कर
मेरी उस चुप्पी को
सारी ताक़त जुटाकर
धकेला जो मैंने उसको
नपुंसक का ताना देकर
पैर पटकती चल दी वो

Friday, July 8, 2016

भागीदारी

अब कार्यकर्ता नहीं
हर कोई आलोचक है
कर्म प्रधान नहीं है
मानो सब गलत हैं
हर काम में नुख्स हैं
धैर्य से कोई नाता
किसी को मंज़ूर नहीं
आलोचना की हदें हैं
खुद न करो न सही
कुछ उनको करने दें
जो काम कर रहे हैं
आज़ादी अज़ीज़ है
तो बचानी भी होगी
तरक़्क़ी पसंद है
तो आज़मानी होगी
दूसरों की मात्र नहीं
अपनी भी भागीदारी !

Wednesday, July 6, 2016

कुठाराघात

साँसारिक बातें
हावी होने लगीं
विवेक पर उसके
सभी अर्जित ज्ञान
मानो धूमिल था
ईर्ष्या के चलते
घृणा के समक्ष
नेपथ्य में रख
अन्तर्दृष्टि को
प्रबल हो चली
बदले की भावना
प्रभावित करती
अंतःकरण तक
अनभिज्ञ करती
स्वविवेक को
अपनी ही बुद्धि
अपने स्वभाव
विचार-व्यवहार
मानसिकता पर
कुठाराघात करती
परिचायक थी
एक अनवरत द्वंद की

Monday, July 4, 2016

Morale Booster

The unhappy ones those
Seldom know themselves
Know themself and limits
The happy people almost
Ignorance is double edged
At times good often bad
Individuals make groups
Its never the other way
Additive make better sense
To facilitate inclusive
Exclusive must pave way
They compliment one another
Any conflicts are temporary
Soon comes in equilibrium
Unhappiness is superimposing
Of the imagination on real
Happiness realized than found
It's positive frame of mind
Always a morale booster too!


Monday, June 27, 2016

चंद लम्हे चुरा लायें

ज़िन्दगी से हैं शिकायतें जिनको
कुछ देर सब भूल कर आजमायें
अलग अलग रंग ज़िन्दगी के देखें
थोड़ी सी मुस्कुराहट दिखा जायें
चंद सवालात खुद से भी कर देखें
संजीदगी से खुद जबाब दे जायें
कोई खामोशियाँ गुजरें नाग़वार
खामोशियों के हुनर आजमायें
लोगों का क्या वो ऐसे ही होते हैं
ख़ुद को हम ख़ुद ही समझा जायें
ज़िन्दगी टुकड़ों-क़तरों में होती है
टुकड़ों में यूं शौक से जीते जायें
उम्र का क्या वो तो गुजर जाएगी
आज बस चंद लम्हे चुरा लायें


Sunday, June 12, 2016

दिल की बातें

ना मैं जानूं, ना तू जाने, दिल की बातें दिल ही जाने
इस दिल की धड़कन बस मैं ही जानूँ या तू पहचाने
प्यार हमारा लाख छुपाएँ फिर भी देखो हर कोई जाने
दिल की बातें दिल में होतीं कोई हमारा भेद न जाने


Thursday, June 9, 2016

Soul searching

Soul searching of self
Brings easiest option
In the labyrinth of life
Solves complexities
And several puzzles
Without being puzzled
The zig zag path here
Starts looking straight
Cropping in around us
Half the problems in life
When we overrate self
And underrating at times
Hearing that is unsaid
Reading what was untold
Complicate meaning of life
Making living difficult
Follow the easiest path
Search your own soul
Don't scratch soul of others

Tuesday, June 7, 2016

आबो-हवा हमारी

बरसों से जब बरस रहा है पानी
अब ही क्यों सूखे की मार पड़ी
हाहाकार मचा तो है पर क्यों
धरती की तुमने न पुकार सुनी
इठलाये फिरते थे जब तुम यूँ
अब ये बादल क्यों न इतरायेंगे
कब तक बद्बख्तों की झोली में
वो अपना जल बरसाते जायेंगे
जब धरा बोझ से तुम भर दोगे
ये घन-घमंड क्या कर पाएंगे
तुम हर लोगे ये छटा प्रकृति की
कल बच्चे को क्या दिखलायेंगे
द्रुम, शिखर, नदी, हरियाली अब
बस चित्र बनी बिकती जाती है
हर तरफ अब आबो-हवा हमारी
पल-छिन दूषित होती जाती है
पहचानो क्या-क्या तुमसे छिन
तुमसे तुम से अब रूठा जाता है
भर लो झोली या भर दो झोली
जो भी तुम्हें समझ अब आता है
रिश्ता प्रकृति से जो निभाओगे
उसको भी तभी निभाना आता है !

Thursday, June 2, 2016

My Small World

I don't have many words
I only have experiences
To talk of good things
I got from you all here
My existence was ordinary
My well-wishers made special
My friends showered love
Dear ones were affectionate
Encouraged me to resolve
To come clear on expectations
Of everyone else and my own
In the zeal of doing my duty
With passion and integrity
Commitment came on its own
I am contented and satisfied
I could perhaps do some justice
To expectations of you and me
Life has been good to me here
That's because of you good people
Always encouraged and supported
In all my sojourns in my job
My trajectory has been shared
With everyone around me always
I came from small place here
In your company big things came
Big cities, salary, recognition
But I remain humble small one
Happy that's the way I remain
And ever grateful to everyone!


Wednesday, June 1, 2016

हौसलाअफ़्ज़ाई

एक छोटी जगह से हूँ मैं
जहाँ हर चीज में संघर्ष है
जीवन-यापन, पढ़ना-पढ़ाना
सब सरल सब संघर्ष था
सरल इसलिए भी होता है
क्यों कि विकल्प नहीं होते थे
माता-पिता सब संघर्ष से
पढाते हैं बच्च्चों को फिर भी
मैं थोड़ी बेहतर स्थिति में था
पिता क्षेत्र विकास अधिकारी थे
लेकिन छोटी जगह तैनाती थी
आठवीं में था तो रिटायर हो गए
गाँव में बस गए फिर हम अचानक
कस्बे में स्कूल आठवीं तक ही था
जनता हाई स्कूल खोला गया
टीचर मुश्किल से मिलते थे
हुए तो कुछ भी पढा देते थे
ट्यूशन तब रिवाज़ में नहीं थे
हाई स्कूल के बाद घर से बाहर
कुछ लोग मिलकर डेरा था
पढाई के साथ सब काम खुद
फिर भी खेल-मनोरंजन जारी थे
12वीं के बाद जिला मुख्यालय
डिग्री कॉलेज सरकारी था
पोस्ट ग्रेजुएट के बाद जाना
अब नौकरी भी करनी पड़ेगी
पिता बोले अभी तो बड़े छोटे हो
एक और एम ए क्यों नहीं करते
कर लिया अबके गोल्ड मैडल था
रिसर्च का मन बन जे एन यू आये
कई बारीकियाँ समझने लगे
प्रोफ़ेसर कहते थे छोटी जगह के हो
हमारे स्टूडेंट्स सा कम जानते हो
एक बार में सारे कोर्स कर दिखाये
प्रोफ़ेसर ने अपने शब्द वापस ले लिए
अंग्रेजी बोलने का अभ्यास किया
अब कोई तंज बाक़ी नहीं रहे थे
सरकारी नौकरी में में कुछ यूँ ही था
कोई डी यू कोई स्टीफन्स के थे
कोई पब्लिक स्कूलों के नाम लेते थे
जे एन यू का नाम बड़ा काम आया
हमसे स्कूलों के नाम कोई न पूछ पाया
शायद हमने साबित कर दिखाया
मेहनत और लगन को बड़ा बताया
अंतिम दिन तक ९ बजे दफ्तर थे
खुद अनुशासन खुद पर लागू था
कोताही कभी नहीं की काम में
जितना अपेक्षित था उससे ज़्यादा ही
चपरासी या अफसर व्यव्हार एक सा
आदमी आदमी में फ़र्क़ कैसे करते
वरना अपनी ही नज़र में गिर जाते
दोस्तों की कभी कमी नहीं रही
दुश्मनी तो हमने कभी की ही नहीं
छोटो-बड़ी बातें साथ साथ भुला दीं
किसी को मदद में कमी नहीं की
आज भी नया सीखने का मोहताज हूँ
रिटायर हूँ सन्यास नहीं लिया हूँ
अभी बहुत करने का मन बाक़ी है
आपकी हौसलाअफ़्ज़ाई का प्रार्थी हूँ
आते जाते हमें याद ज़रूर रखना
जहाँ से शुरू किया फितरतन वहीँ हूँ
ज़िन्दगी का आप सब का शुक्रगुज़ार हूँ

Friday, May 27, 2016

मौत का इश्तहार

बड़ेअरमान से देखा था वो सपना
तन का कोना कोना गुलज़ार था
जेहन में तुम्हारा ही रुखसार था
पल पल तुम्हारा ही इंतजार था
तुम नहीं तो तुम्हारे ख़याल साथ
बेक़रारी में भी कैसा वो क़रार था
एक झटके में सब पलट गया था
मानो कोई मौत का इश्तहार था

Saturday, May 7, 2016

उजाले अपने अंदर

उजाले अपने अंदर समाये हैं बहुत
रात के अँधेरे हमको क्या रोकेंगे
हो तुम्हारी दुश्मनी मुबारक बहुत
हमने कल भी जो कहा वही बोलेंगे
उम्र भर इज़्ज़त के मुरीद रहे बहुत
हमको जो कहना होगा ज़रूर कहेंगे
ग़ैरत हम में बाक़ी है अब भी बहुत
तिज़ारत के तराज़ू हमें क्या तोलेंगे
वक़्त ने जो वफ़ा की है हमसे बहुत
बेवक़्त मुसाफिर न हमसफ़र होंगे
दोस्तों की दुआयें साथ रही हैं बहुत
हम तो दुश्मनों को भी दुआ ही देंगे

Tuesday, April 26, 2016

आस्तीन में सांप

हाँ पाले हैं हमने
आस्तीन में सांप
वो भी जान बूझकर
वो होंगे सांप
हम तो नहीं हैं
जब डसेंगे देखेंगे
ज़हर कितना है
ये भी सच है
हर सांप यहाँ
ज़हरीला नहीं होता
तो कैसे माने हम
वो डसेगा ही हम को
हम तो इंसान हैं
सांप नहीं हैं हम
इसलिए पाले हैं हमने
आस्तीन में सांप!


Monday, April 25, 2016

जीवाश्म सा

मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद जीवाश्म सा
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या

Thursday, April 21, 2016

Silent Moments

Silent moments!
How noisy they are
Churning of thoughts
Emotions and relations
Around and associations
Inside, near and far off
Happenings and events
Creating the maze
Cobwebs and whirlwind
Of mind and thoughts
Some music to mind
Some like typhoons
Colliding with each other
Creating such a ruckus
Who says these are
The silent moments!


Mysterious

Nothing more mysterious
When we see people
The way they behave
In different times
Different situations
Taking opposite views
The way of dialectics
Without any synthesis
Their ways are different
The greet and treat
Empathy and apathy
Colored sympathy
Jealousy dipped
compliments
Competitiveness
Unfair practices
Double standards
Eyes meeting the 'I'
Unending desires
Zeal to live prominent
Without letting to live
Nepotism, lose morals
The mysterious smiles
In so many varieties
Emotions in motion
Everything else they do
As a megalomaniac
Is weird and mysterious!


अनअपेक्षित

दूर कहीं नेपथ्य से
सुनसान सी कुछ
आकृतियां यहाँ
आवाज़ें ले आती हैं
स्वर मीठे से हैं
लेकिन बोल अज्ञात
फुसफुसाकर कभी
इन कानों में मेरे
कहने लगती हैं
कर्णप्रिय बातें
ढूंढ़ता हूँ ज्यों ही
ठिठक कर मैं उनको
विलीन हो जाती हैं
इसी परिवेश में वो
सोचता हूँ मैं
कुछ चीज़ें मिलती हैं
अनायास ही यहाँ
अपरिचित, अनअपेक्षित
और सिमट जाती है स्वयं
परिचय खोजने पर!

Tuesday, April 19, 2016

हवा के झोंके

डर लगता है इधर
अब हवा के झोंकों से
लोग भी यहाँ
कुछ यूँ ही बन गए
हवा के झोंकों से
पल के मेहमान
आये और चले गए
अब ये शीतल नहीं
बस सिहरन ले आते हैं
फितरत इनकी ऐसी
सिर्फ हम ही नहीं
खुद भी नहीं जानते
ज़रूरत के वक़्त
उड़नछू हो जाते हैं
ये किसी के नहीं
बस किरदार हैं इनके
वो हवा के झोंके
ये हवा में झोंकें !

Monday, April 18, 2016

आज नहीं तो कल

हैरान बिलकुल नहीं हूँ मैं
तुमने अपनी तरह सोचा
प्रायः सब यही करते हैं
शायद कमोबेश मैं भी
फ़र्क़ तो पड़ता है लेकिन
सिर्फ अपनी सोचे कोई
ये तभी मान्य हो सकता है
अग़र कोई अकेला ही हो
लेकिन तब भी सवाल होगा
अकेला भी अकेला कहाँ है
अनगिनत लोग है शामिल
उसके ज़िंदा रहने के साथ
कल, आज और कल भी
मैं और नहीं समझाऊँगा
इससे ज़्यादा तुमको
शायद इसी उम्मीद में
तुम खुद एहसास कर लोगे
आज नहीं तो कल कभी

Sunday, April 17, 2016

कभी कभार ही

रिश्ता बनने लगा था
बड़ी हसरतों से उनसे
ख़ूब लग रहा था
शायद उनको भी
फिर ये दरारें क्यों
कोताही नहीं की
हमने शायद कभी
फिर कहाँ से आ गई
ऐसी नागवारी!
उनके मन में क्या है
नहीं है मालूम हमको
लेकिन दिखता जो है
वो नफरत से कम नहीं
बनाए थे हमने
मोहब्बत के आशियाने
क्या इसलिए हमने ?
हमारी तो बस रही
एकतरफा मोहब्बत
बेमुरब्बत हम न थे
उनके ही हिस्से रहे हैं
शिकवे-शिकायत भी
कुछ यूँ रहा सफर अपना
कोई कुछ भी कहता रहे
अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कहीं गहराई में दफन है
वो मोहब्बत की दास्ताँ
जिसका पता तक
अब कोई नहीं जानता
बस ज़ख्म याद कराते हैं
कभी कभार ही
जाने अनजाने
कोई नासूर सा एहसास!

Saturday, April 16, 2016

मन तो मनचला

मन तो मनचला है
अभी यहाँ अभी वहां उड़ा है
मन तो मनचला है

कैसे देखो सपनों के पीछे भागे
फिर भी बस अपना ही लागे
बेखुद सा है ये ऐसा
सोया हो या चाहे ये जागे
कैसे बढ़ता ये चला है
मन तो मनचला है

कभी तन की कभी धन की
अक़्सर मन की भी बातें
साया सा लगता कोई है
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ भागे
जाने ये कैसी बला है
मन तो मनचला है

Friday, April 15, 2016

A Just Crime

It was my fault
Though I thought of
Protecting your privacy
In all good earnest
Only to be accused
Of ignoring you
And your company
Even I explained
You never relented
Yes I have repented
For being unconventional
I was emotionally hanged
For a perceived crime
I had never committed
I sulked and argued
Pleaded not gui;ty
But damage was done
I remain the culprit
Of over caring me
No one believed that
Life is sometimes that!



अब के जो बरसे

अब के बादल जो तू बरसे
तो कुछ यूँ ज़रा बरस जाना
मेरी उम्मीदों में सिमटीं
हैं जो खुशियाँ बरसा जाना

सूखे से बन गए हैं
मेरे जो भी अरमान
अपनी फितरत से तू
मेरा तन-मन भिगो जाना
तेज झोंका वो बारिश का
ज़रा हमको दिखा जाना

बड़ी शिद्दत से सब सम्भाला है
तू भी जलवा ज़रा दिखा जाना
कहीं आँधी कहीं गर्मी
अब क़रार आये तो कैसे
नन्हीं-नन्हीं फुहारों से
ज़रा शीतल मन करा जाना

अब के बादल जो तू बरसे
तो कुछ यूँ ज़रा बरस जाना
मेरी उम्मीदों में सिमटीं
हैं जो खुशियाँ बरसा जाना

Thursday, April 14, 2016

एक-एक पीढ़ी जुदा

अब कहाँ वो दिन के उजाले दीखते हैं
दिन में तो अब अंधरों के साये छाये हैं
अंधेरों में ही ये दुनियाँ चलती रहती है
रात के उजाले यहाँ अंधेरों से लगते हैं
मिलकर बोझ उठाना कौन चाहता है
सभी लेकिन अपनी-अपनी कहते हैं
यहाँ उम्मीदों के दायरे सब के अलग
कल भी वही थे आज भी बस वही हैं
कुछ पल की मेहमान पीढ़ियां यहाँ
लोग एक-एक पीढ़ी जुदा समझते है
किसी और की बात पर कोई न समझे
अपनी बात यहाँ सब खूब समझते हैं

एक और सिसकी

अब उमगें हैं यहाँ
शायद हर किसी की
सब दौड़ में शामिल
अनन्त सी यात्रा की
सब कुछ मेरा-अपना
चिंता नहीं किसी की
संवेदनायें मृतप्राय
लगभग सभी की
अपनों की ही हो
या और किसी की
सिसकियाँ भी कोई
नहीं सुनता किसी की
अनसुना करते हैं
एक और सिसकी
समझ कर सोच से
मेरी-तेरी और उसकी
क्या यही बनायेंगे
ये दुनिया सभी की?

छोटी-बड़ी बातें

ज़रूरी हैं छोटी छोटी बातें
हमने तो दिल पर नहीं लीं
तुमने लीं तो ज़रा सोचना
ये थीं सिर्फ छोटी सी बातें
दिल में रख कर क्या करोगे
अपना ही खून जलाओगे
हर वक़्त कौन कहता है यहाँ
दूसरे की मनपसन्द बातें
सब अलग तरह से सोचते हैं
अपनी समझ से बड़ी बातें
हम ने तो तो बुरा नहीं माना
तुम्हारी समझ तुम्हारी बातें
हम कुछ भी कहें या समझें
क्या फ़र्क़ पड़ता है तुमको
तुम सिर्फ अपने तरह के हो
न तो हम कोई जहाँपनाह है
न तो तुम कोई शहंशाह हो
होते तब भी झगडे वही रहते
कभी बड़ी कभी छोटी बातें
हम भी अपनी तरह के हैं
और हमारी छोटी-बड़ी बातें
हम ने हँस कर भुला दिया
तुम भी ठहाका मार कर कहो
कितनी छोटी सी बात है ये
खैर है अब समझ में आई
ये बस बातें हैं छोटी-बड़ी बातें

Saturday, April 9, 2016

Scattered Words

Scattered words
Are like our living
May not mean
Anything substantial
When used well
In sequences
With our intent of
Making those
Sounding meaningful
Be it in own ways
And share the contents
With other people
Mend with time
On suggestions from
Peer or critics
And better they sound
To you and others
You never knew
Transformation was easy
Of scattered words!