Tuesday, April 26, 2016

आस्तीन में सांप

हाँ पाले हैं हमने
आस्तीन में सांप
वो भी जान बूझकर
वो होंगे सांप
हम तो नहीं हैं
जब डसेंगे देखेंगे
ज़हर कितना है
ये भी सच है
हर सांप यहाँ
ज़हरीला नहीं होता
तो कैसे माने हम
वो डसेगा ही हम को
हम तो इंसान हैं
सांप नहीं हैं हम
इसलिए पाले हैं हमने
आस्तीन में सांप!


Monday, April 25, 2016

जीवाश्म सा

मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद मैं नहीं रखता
शायद अपेक्षा
करता नहीं तुम से
दया याचना कोई
तुम्हारी दृष्टि में
मैं इतिहास से इतर
अपरिचित, अविदित
दृष्टिगोचर हुआ
एक दबा हुआ
एक हस्ताक्षर मात्र
कोई समय का
शायद जीवाश्म सा
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या
मैं तो स्वयं यहाँ
विस्मृत हूँ स्वयं से
काल की गर्त में
मुझे तुम से क्या
मुझ से क्या
किसी से भी क्या

Thursday, April 21, 2016

Silent Moments

Silent moments!
How noisy they are
Churning of thoughts
Emotions and relations
Around and associations
Inside, near and far off
Happenings and events
Creating the maze
Cobwebs and whirlwind
Of mind and thoughts
Some music to mind
Some like typhoons
Colliding with each other
Creating such a ruckus
Who says these are
The silent moments!


Mysterious

Nothing more mysterious
When we see people
The way they behave
In different times
Different situations
Taking opposite views
The way of dialectics
Without any synthesis
Their ways are different
The greet and treat
Empathy and apathy
Colored sympathy
Jealousy dipped
compliments
Competitiveness
Unfair practices
Double standards
Eyes meeting the 'I'
Unending desires
Zeal to live prominent
Without letting to live
Nepotism, lose morals
The mysterious smiles
In so many varieties
Emotions in motion
Everything else they do
As a megalomaniac
Is weird and mysterious!


अनअपेक्षित

दूर कहीं नेपथ्य से
सुनसान सी कुछ
आकृतियां यहाँ
आवाज़ें ले आती हैं
स्वर मीठे से हैं
लेकिन बोल अज्ञात
फुसफुसाकर कभी
इन कानों में मेरे
कहने लगती हैं
कर्णप्रिय बातें
ढूंढ़ता हूँ ज्यों ही
ठिठक कर मैं उनको
विलीन हो जाती हैं
इसी परिवेश में वो
सोचता हूँ मैं
कुछ चीज़ें मिलती हैं
अनायास ही यहाँ
अपरिचित, अनअपेक्षित
और सिमट जाती है स्वयं
परिचय खोजने पर!

Tuesday, April 19, 2016

हवा के झोंके

डर लगता है इधर
अब हवा के झोंकों से
लोग भी यहाँ
कुछ यूँ ही बन गए
हवा के झोंकों से
पल के मेहमान
आये और चले गए
अब ये शीतल नहीं
बस सिहरन ले आते हैं
फितरत इनकी ऐसी
सिर्फ हम ही नहीं
खुद भी नहीं जानते
ज़रूरत के वक़्त
उड़नछू हो जाते हैं
ये किसी के नहीं
बस किरदार हैं इनके
वो हवा के झोंके
ये हवा में झोंकें !

Monday, April 18, 2016

आज नहीं तो कल

हैरान बिलकुल नहीं हूँ मैं
तुमने अपनी तरह सोचा
प्रायः सब यही करते हैं
शायद कमोबेश मैं भी
फ़र्क़ तो पड़ता है लेकिन
सिर्फ अपनी सोचे कोई
ये तभी मान्य हो सकता है
अग़र कोई अकेला ही हो
लेकिन तब भी सवाल होगा
अकेला भी अकेला कहाँ है
अनगिनत लोग है शामिल
उसके ज़िंदा रहने के साथ
कल, आज और कल भी
मैं और नहीं समझाऊँगा
इससे ज़्यादा तुमको
शायद इसी उम्मीद में
तुम खुद एहसास कर लोगे
आज नहीं तो कल कभी

Sunday, April 17, 2016

कभी कभार ही

रिश्ता बनने लगा था
बड़ी हसरतों से उनसे
ख़ूब लग रहा था
शायद उनको भी
फिर ये दरारें क्यों
कोताही नहीं की
हमने शायद कभी
फिर कहाँ से आ गई
ऐसी नागवारी!
उनके मन में क्या है
नहीं है मालूम हमको
लेकिन दिखता जो है
वो नफरत से कम नहीं
बनाए थे हमने
मोहब्बत के आशियाने
क्या इसलिए हमने ?
हमारी तो बस रही
एकतरफा मोहब्बत
बेमुरब्बत हम न थे
उनके ही हिस्से रहे हैं
शिकवे-शिकायत भी
कुछ यूँ रहा सफर अपना
कोई कुछ भी कहता रहे
अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कहीं गहराई में दफन है
वो मोहब्बत की दास्ताँ
जिसका पता तक
अब कोई नहीं जानता
बस ज़ख्म याद कराते हैं
कभी कभार ही
जाने अनजाने
कोई नासूर सा एहसास!

Saturday, April 16, 2016

मन तो मनचला

मन तो मनचला है
अभी यहाँ अभी वहां उड़ा है
मन तो मनचला है

कैसे देखो सपनों के पीछे भागे
फिर भी बस अपना ही लागे
बेखुद सा है ये ऐसा
सोया हो या चाहे ये जागे
कैसे बढ़ता ये चला है
मन तो मनचला है

कभी तन की कभी धन की
अक़्सर मन की भी बातें
साया सा लगता कोई है
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ भागे
जाने ये कैसी बला है
मन तो मनचला है

Friday, April 15, 2016

A Just Crime

It was my fault
Though I thought of
Protecting your privacy
In all good earnest
Only to be accused
Of ignoring you
And your company
Even I explained
You never relented
Yes I have repented
For being unconventional
I was emotionally hanged
For a perceived crime
I had never committed
I sulked and argued
Pleaded not gui;ty
But damage was done
I remain the culprit
Of over caring me
No one believed that
Life is sometimes that!



अब के जो बरसे

अब के बादल जो तू बरसे
तो कुछ यूँ ज़रा बरस जाना
मेरी उम्मीदों में सिमटीं
हैं जो खुशियाँ बरसा जाना

सूखे से बन गए हैं
मेरे जो भी अरमान
अपनी फितरत से तू
मेरा तन-मन भिगो जाना
तेज झोंका वो बारिश का
ज़रा हमको दिखा जाना

बड़ी शिद्दत से सब सम्भाला है
तू भी जलवा ज़रा दिखा जाना
कहीं आँधी कहीं गर्मी
अब क़रार आये तो कैसे
नन्हीं-नन्हीं फुहारों से
ज़रा शीतल मन करा जाना

अब के बादल जो तू बरसे
तो कुछ यूँ ज़रा बरस जाना
मेरी उम्मीदों में सिमटीं
हैं जो खुशियाँ बरसा जाना

Thursday, April 14, 2016

एक-एक पीढ़ी जुदा

अब कहाँ वो दिन के उजाले दीखते हैं
दिन में तो अब अंधरों के साये छाये हैं
अंधेरों में ही ये दुनियाँ चलती रहती है
रात के उजाले यहाँ अंधेरों से लगते हैं
मिलकर बोझ उठाना कौन चाहता है
सभी लेकिन अपनी-अपनी कहते हैं
यहाँ उम्मीदों के दायरे सब के अलग
कल भी वही थे आज भी बस वही हैं
कुछ पल की मेहमान पीढ़ियां यहाँ
लोग एक-एक पीढ़ी जुदा समझते है
किसी और की बात पर कोई न समझे
अपनी बात यहाँ सब खूब समझते हैं

एक और सिसकी

अब उमगें हैं यहाँ
शायद हर किसी की
सब दौड़ में शामिल
अनन्त सी यात्रा की
सब कुछ मेरा-अपना
चिंता नहीं किसी की
संवेदनायें मृतप्राय
लगभग सभी की
अपनों की ही हो
या और किसी की
सिसकियाँ भी कोई
नहीं सुनता किसी की
अनसुना करते हैं
एक और सिसकी
समझ कर सोच से
मेरी-तेरी और उसकी
क्या यही बनायेंगे
ये दुनिया सभी की?

छोटी-बड़ी बातें

ज़रूरी हैं छोटी छोटी बातें
हमने तो दिल पर नहीं लीं
तुमने लीं तो ज़रा सोचना
ये थीं सिर्फ छोटी सी बातें
दिल में रख कर क्या करोगे
अपना ही खून जलाओगे
हर वक़्त कौन कहता है यहाँ
दूसरे की मनपसन्द बातें
सब अलग तरह से सोचते हैं
अपनी समझ से बड़ी बातें
हम ने तो तो बुरा नहीं माना
तुम्हारी समझ तुम्हारी बातें
हम कुछ भी कहें या समझें
क्या फ़र्क़ पड़ता है तुमको
तुम सिर्फ अपने तरह के हो
न तो हम कोई जहाँपनाह है
न तो तुम कोई शहंशाह हो
होते तब भी झगडे वही रहते
कभी बड़ी कभी छोटी बातें
हम भी अपनी तरह के हैं
और हमारी छोटी-बड़ी बातें
हम ने हँस कर भुला दिया
तुम भी ठहाका मार कर कहो
कितनी छोटी सी बात है ये
खैर है अब समझ में आई
ये बस बातें हैं छोटी-बड़ी बातें

Saturday, April 9, 2016

Scattered Words

Scattered words
Are like our living
May not mean
Anything substantial
When used well
In sequences
With our intent of
Making those
Sounding meaningful
Be it in own ways
And share the contents
With other people
Mend with time
On suggestions from
Peer or critics
And better they sound
To you and others
You never knew
Transformation was easy
Of scattered words!

कुछ अनजाने से

कौन किसी के लिए रुकता है
कुछ नहीं होता आज़माने से
हर सीने में दिल धड़कता है
फिर भी हैं लोग बेगाने से
जो चाहा मिल भी जाता है
फिर क्यों लगते हो दीवाने से
कभी सब कुछ महकता है
यहाँ सब लोग पहचाने से
हर कोई यहाँ भटकता है
ये रास्ते कुछ अनजाने से
वक़्त तो हमेशा गुजर जाता है
फ़र्क़ पड़ता है हर पल बिताने से

Thursday, April 7, 2016

किसने रीत बनाई?

भाई से लड़ेंगे भाई
किसने ये रीत बनाई
बहनों का कद छोटा होगा
आदमी-आदमी में फ़र्क़ होगा
पैसा, ख़ुदा, रुबाब, ओहदे
बस ख़ास लोगों के होंगे
रंग, जाति, क़ौम, मज़हब
अलग-अलग चश्मों से दीखेंगे
ग़रीब के काम से, नाम से
अमीर और अमीर बनते रहेंगे
ज़म्हूरियत के रंगों को
अमीर और सियासी लोग भरेंगे
क़ानून की बातों की सिर्फ लिखाई
किसने ये रीत बनाई?

Tuesday, April 5, 2016

Prosopopeya

Living moments
Is real thing
Life in general
Is viewed way bigger
Without the moments
Getting their due
At times its a mirage
It's the superfluous
Amorphous in nature
Moments the real ones
Life is often a maze
Of illusion and likes
But not unknown
Sometimes prosopopeya

Sunday, April 3, 2016

मोहब्बत यूँ गुलो गुलज़ार

मोहबत यूँ गुलो गुलज़ार होगी
आहिस्ता आहिस्ता सारी दुनियां देखेगी
बागों सी ख़ुश्बू यहाँ फैलेंगी
उम्मीद की कलियाँ महकेंगी
आहिस्ता आहिस्ता सारी दुनियां देखेगी
तन भी मन भी हरा-भरा होगा
मन के कोनों से खुशियां झाँकेंगी
रौशनी के यूँ नए सिलसिले होंगे
अंधेरों में उजालों सी चमक दीखेगी
आहिस्ता आहिस्ता सारी दुनियां देखेगी
दिल से दिल की नई गुफ़्तगू होंगी
हर तरफ उमंगें फिर से मचलेंगी
आसमां और जमीं पर रंग बरसेंगे
मोहब्बतें फिर नए रंग घोलेंगी
आहिस्ता आहिस्ता सारी दुनियां देखेगी
मोहब्बत यूँ गुलो गुलज़ार होगी
आहिस्ता आहिस्ता सारी दुनियां देखेगी

Saturday, April 2, 2016

Celebrate living

Life goes on
Is universal truth
Not with negativity
Not with hatred
But with positivism
And with love
Not with inertia
But with dynamism
And the enthusiasm
Not on whims and fancies
But its own rhythm
By the wishes and will
Of all, not some
It may be abstract
But has its own meaning
May be amorphous
Has essence of living
May be short or long
It has own timing
Is not weird or absurd
Believe it or not
Always beautiful thing
Celebrate life
Celebrate living






धूमकेतु सी!

जो भी बदला
अधिकतर यहाँ
समय ने बदला
'स्वयं' ने बदला
बदलने के वादे
वादे रह गए
बदलने वाले
करेले थे
अब बन गए
नीम चढ़े
सोच वही
सरकारें नई
शासन तंत्र वही
मुलम्मे चढ़ाकर
दिखाया जाता है
पुराना सामान
निकली चमक
वही पुराना सत्य
सपनों से वादे थे
लोग निहारते हैं
आसमान को
नई चमकती चीजें
गायब होती हुई
धूमकेतु सी!