Saturday, November 12, 2016

Envy Me

I hate to say things
That I don't want to
But if you force me
To utter those words
Perhaps I might say
Without hard feelings
For I sure always will
Hate the sin not sinner
You have compulsions
Of the mind and matter
To both do not matter
You may have follies
I have all my principles
You chose your paths
I choose right paths
You beget your karma
I get out of my karma
I would seldom envy you
But you might envy me


रखें हिसाब साफ

मन के काले धन के काले
उजले दिखते तन के वे हैं
तन मन में कोलाहल वाले
पर बात बताते अच्छी वे हैं
संजोए काले धन मतवाले
अब बात बताते कच्ची वे हैं
धरे खजाने कितने काले
राह खोजते अब नई वे हैं
रहें काश अब नए उजाले
सब रखें हिसाब साफ वे हैं

Thursday, November 3, 2016

द्वेष लिप्त

अपनी समझ छोड़
अलग मानसिकता में
दौड़ने लगते हैं !
हम क्यों प्रायः यहाँ
उनकी अपेक्षानुसार
बनते प्रतीत होते हैं
कोई सहजीवी से !
जान-बूझ कर भी
कि परोपजीवी होते हैं
राजनीति करने वाले
जन मानस को छल
अपनी रोटी सकते हैं !
कहीं न कहीं शायद
भारी पड़ जाते हैं
हमारी कुछ कुंठाएं
कुछ हीं भावनायें
और हमारे द्वेष लिप्त
ईर्ष्यालु आचरण !


Wednesday, November 2, 2016

हर पल ज़िन्दगी

हँसते हँसते बसर कर लो
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

टेढ़े मेढ़े रास्तों से गुजरती सही
फिर भी सीधी बड़ी है ज़िन्दगी
जहाँ कभी भी ठहरती सी लगे
सोचो आराम कराती है ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

इसकी भी अपनी हैं अदायें
कभी रुला भी देती है ज़िन्दगी
कभी लहराती कभी बलखाती
बस अपनी सी होती है ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

नादानियाँ भी रुसवाइयाँ भी यहाँ
फिर पल में हँसाती है ज़िन्दगी
रोते हँसते इसके संग बढ़ते रहो
हर पल जी लिया करो ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

कभी आगे बढ़ बाँहें फैलाती
कभी सिमटती सी है ज़िन्दगी
दो मुट्ठी आसमाँ है दो ज़मीं
बस इतनी सी होती ये ज़िन्दगी
बड़ी खूबसूरत है ये ज़िन्दगी

मान्यता

सोचा था चुप रहूँ
कितना समझाया
पर मन कब मानता है
कई कोशिशें कीं
हरेक को समझाया
मगर कौन मानता है
जब मन में हों विकार
पारदर्शिता का हो अभाव
कौन किसकी सुनता है
सब का 'मालिक' एक
अपनी उलझन अपने हित
हरेक एक की सुनता है
मन बोला क्यों सुनूं
मैं क्यों सब के रंग रंगूँ
मेरी अपनी मान्यता है