फिर न कहना आप आते नहीं
सपने में आकर भी सताते नहीं
तो क्या अग़र आप बुलाते नहीं
हम चले आए तो फिर जाते नहीं
हम कभी आने से कतराते नहीं
मज़बूरी कोई अपनी बताते नहीं
वादा कोई भी अपना नहीं
अल्फ़ाज़ अपने लड़खड़ाते नहीं
वफ़ा अपनी कभी बिसराते नहीं
हक़ आपका कभी झुठलाते नहीं
यकीं रखते हैं शक़ जतलाते नहीं
फ़िक्र का जिक्र तक करते नहीं
आप वो आदत हम भुलाते नहीं
पर ख़ुद तो कभी आप आते नहीं
सपने में आकर भी सताते नहीं
तो क्या अग़र आप बुलाते नहीं
हम चले आए तो फिर जाते नहीं
हम कभी आने से कतराते नहीं
मज़बूरी कोई अपनी बताते नहीं
वादा कोई भी अपना नहीं
अल्फ़ाज़ अपने लड़खड़ाते नहीं
वफ़ा अपनी कभी बिसराते नहीं
हक़ आपका कभी झुठलाते नहीं
यकीं रखते हैं शक़ जतलाते नहीं
फ़िक्र का जिक्र तक करते नहीं
आप वो आदत हम भुलाते नहीं
पर ख़ुद तो कभी आप आते नहीं