Sunday, September 15, 2019

Rhetoric

Those creating
A war hysteria
Ignore history
The miseries
Destructibe side
Wars brought
Anywhere!
Or if they know
They are foolish
About the game
Of names and hype
Politicians play
Without meaning
Rhetoric deliberate
To boost own image
At the expense
Of peace, coexistence
And human values! 

गुंचे

गुल अब भी यहां गुंचों में सजे हैं
देख तितलियां और भंवरे डटे हैं
अपनी-अपनी फ़ितरत है साहब
फिर भी अरमान दोनों के सजे हैं
गुलों को मुस्तकबिल की फ़िक्र है
उनके हिस्से के यही काम बचे हैं
दोनों के ही अपने काम हो रहे हैं
फिर काहे को ये कोहराम मचे हैं