Friday, May 27, 2016

मौत का इश्तहार

बड़ेअरमान से देखा था वो सपना
तन का कोना कोना गुलज़ार था
जेहन में तुम्हारा ही रुखसार था
पल पल तुम्हारा ही इंतजार था
तुम नहीं तो तुम्हारे ख़याल साथ
बेक़रारी में भी कैसा वो क़रार था
एक झटके में सब पलट गया था
मानो कोई मौत का इश्तहार था

Saturday, May 7, 2016

उजाले अपने अंदर

उजाले अपने अंदर समाये हैं बहुत
रात के अँधेरे हमको क्या रोकेंगे
हो तुम्हारी दुश्मनी मुबारक बहुत
हमने कल भी जो कहा वही बोलेंगे
उम्र भर इज़्ज़त के मुरीद रहे बहुत
हमको जो कहना होगा ज़रूर कहेंगे
ग़ैरत हम में बाक़ी है अब भी बहुत
तिज़ारत के तराज़ू हमें क्या तोलेंगे
वक़्त ने जो वफ़ा की है हमसे बहुत
बेवक़्त मुसाफिर न हमसफ़र होंगे
दोस्तों की दुआयें साथ रही हैं बहुत
हम तो दुश्मनों को भी दुआ ही देंगे