Monday, December 28, 2015

हो नया साल खुशियों का So be the Happy New Year

नई पहल हो नई उमंगें
नया जोश जीवन का
खुशियों की हों यूँ बरसातें
ज्यों सब का आँगन महका
अपना भी कुछ जग का भी
हो भला ये इरादा सबका
रहे प्रेम हम सब में जैसा
सागर धरती और गगन का
मनचाही खुशियाँ ले आये
हो नया साल खुशियों का
May there be new enthusiasm
New zeal towards living
Happiness raining around
Spreads fragrance all over
Some to self some of World
Welfare everyone's motto
Our bonding and love be
Like Ocean, Earth and Skies
May all get desired joys
So be the Happy New Year


Friday, December 25, 2015

बंदगी के नुस्खे

वो करते रहें नफ़रत तो कर के देखें
किसी शोलों से भरे ज़लज़ले की तरह
हम क्यों भटकें भला राह से अपनी
वो रहें अपनी तरह हम अपनी तरह
हम नहीं छोड़ेंगे रास्ता कभी अपना
किसी मोहब्बत के गुमाश्ते की तरह
हमें आता है यूँ इंतज़ार करना ज़रूर
किसी ज़िन्दगी के फलसफे की तरह
ग़ौर से देखो हम नज़र आयेंगे तुम्हें
कोई बंदगी के नए नुस्खे की तरह

Open Minds

Wherever the minds are kept open
Common become all your concerns
Isolated any are not the instance
Everything gets viewed in balance
Problems of others are realized
Nothing is taken as personalized
Things do look in almost harmony
Forgotten are bitter moments any
Kindness brings about the sympathy
Envy thus converts in to empathy
Life sounds in a rhythmic pattern
Problems are taken as a concern
Living becomes story of life's ways
Shocks and gains accepted always
Them becomes us in perspective
Their becomes our and respective
Don't view your role in life a self cult
Keeping minds open not so difficult



Bright

Nothing is universal here
It depends how you reach
Each one sees differently
There may be bright spots
There is sunshine they say
Beneath all the dark clouds
Albeit you can not proceed
Towards the sunshine beyond
Nothing could brighten up
When the darkness prevails

Monday, December 14, 2015

ये रूठना हारेगा

खामोशियों में शिकायत भरी है
जो कहते नहीं हैं अब ज़ुबान से
मालूम है हमें वो रूठे हैं हम से
अब नहीं होगा कुछ मनुहार से
कितनी भी सफाईयाँ दे दें हम
बच न पायेंगे शायद तकरार से
कोशिश में लगे हैं हर तरह हम
आसान कहाँ मनाना प्यार से
रूठना तो हमें भी खूब आता है
अब तो डर लगता है इज़हार से
बस इसी इंतज़ार में बैठे हैं हम
ये रूठना हारेगा ज़रूर प्यार से

Sunday, December 13, 2015

गीत मीठा सा

कौन कली कब खिल गई कौन यहाँ पड़ा बेहोश है
उम्र के रहते ही ज़िन्दगी को आज़माना चाहता हूँ
बंद दरवाज़ों में सिमटी रात आज तक खामोश है
खामोशियों में उसकी मैं हर अदा देखना चाहता हूँ
चाँद दस्तक तो देता है आज भी दहलीज पर मेरी
लेकिन इरादे क्या हैं उसके ये समझना चाहता हूँ
बेवज़ह भटकते रहे हैं मैं भी और मेरे अरमान भी
अब सुकून का कोई आशियाँ मैं बनाना चाहता हूँ
भागती-फिरती दुनियाँ का मैं एक तलबगार सा
चार पल बस आराम के मैं भी बिताना चाहता हूँ
पंछियों के सुरों में कैसी मिठास ये बिखरी पड़ी है
कोई गीत मीठा सा इधर मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

Saturday, December 12, 2015

अँधेरे

अब भी अंधेरों से शायद डरते हैं
तभी हम उजालों की राह ताकते है
रात अब यहाँ अँधेरी नहीं होती हैं
उजले दिन भी घुप्प अँधेरे होते हैं
दिन-रात यहाँ फिक्र की बातें तो हैं
इंसान, इंसान की फिक्र से डरते हैं
दिल अब सब तरफ खो से गए हैं
सीनों में यहाँ पत्थर से धड़कते हैं
दिन के हारे लोग परेशान रहते हैं
रात फिर अपनी क़िस्मत पे रोते हैं
ज़मीन भी कहने से गुरेज़ करती हैं
कि अब भी यहाँ इंसान कहीं रहते हैं

Wednesday, December 9, 2015

समझ लेना

हरेक को है हक़ अपनी बात रखने का
हर बात पर अपनी बात न समझ लेना
रौशनी की वज़ह और भी हो सकती है
हर रात दीवाली की रात न समझ लेना
हुजूम लोगों यहाँ का बनता ही रहता है
जुलूस को अपनी बारात न समझ लेना
तुमको भी मिला हुआ है बहुत कुछ यहाँ
सिर्फ औरों की ही इफ़रात न समझ लेना
अँधेरे तो कभी-कभी दिन में भी दिखते हैं
कहीं दिन को आधी रात न समझ लेना
जो तुम्हारा है उस पर औरों का भी हक़ है
सब कुछ अपनी सौगात न समझ लेना
अमल करोगे तो सुधर जायेगी ज़िन्दगी
कहीं कोरे ही ये ज़ज़्बात न समझ लेना

Saturday, November 21, 2015

सियाप्पा

होणा है मग़रूर
यही है कुड़ियों दा दस्तूर
सियाप्पा हो ही गया
अपणे ही नशे विच चूर
मुण्डों दा आप्पइ आप सुरूर
सियाप्पा होणा था
नि कुड़िये अपने अंदर झाँक
खुद को न बेहतर आँक
तेरा दिल दस देगा सब बात
फिट्टे मुँह समझ ले सारी बात
सियाप्पा कैसे हुआ
ओ मुंडे वड्डी वड़ी न फेंक
तू बस अपने फंडे सेंक
ज़रा सा अकल दे परदे खोल
अकल ने दस देणी तैनु बात
सियाप्पा होणा था
ले कुड़िये मैंने मानी बात
मैनु अकल ने मारी लात
मैनु समझ हुई अब बात
क्यों तू दिखती मुझे दिन रात
सियाप्पा खत्म हुआ
ओये मैं बी सुण ली बात
अपणा सात जनम दा साथ
कदी मैं बी थी मगरूर
ऐ मान लुंगी मैं ज़रूर
सियाप्पा खत्म हुआ

Sunday, November 15, 2015

Choice is Crystal Clear

Call it inhuman or heinous
What difference it makes
In the name of revenge
They killed the innocents
What religion they swore by
What excesses complain of
Revenge is just vengeance
That keeps rotating sides
Until both sides perish or think
That revenge is no solution
Pretended or may be real
If you want Earth to be livable
You have to let live and live
Within the civilized behavior
Or fight, kill and get killed
The choice is crystal clear!

Monday, November 9, 2015

मन में वंदनवार सजाकर

स्मरण कराता फिर से
तुम को मुझ को सब को
ये त्यौहार दीवाली का
रोशन कर चहुँओर
जग के कोनों को
अपने घर-घर को
करो उजाले ऐसे तुम
मन-आँगन में अपने
बांटो खुशियां अपनी
औरों के गम बांटो
मुँह मीठे मन मीठे कर
कर लो कोशिश बनने की
प्रेम व करुणा के सागर
अंतरतम को रोशन कर
खूब मनाओ दीवाली तुम
मन में वंदनवार सजाकर

वो दीवाली थी ये क्या है ?

मिल बैठ मनाते थे
परिवार मित्रों संग
दीवे में तेल-बाती थी
रौशनी और पूजा से
पकवान-प्रसाद सरल थे
मुस्कराहट ख़ुशी असली थी
मनों में मेल था
अब सब कुछ उलट है
पटाखों के शोर के बीच
कई रंगों की रौशनी से
आँखें चौंधियाती हैं
लेकिन मन अँधेरे हैं
उपहार लेने-देने की होड़ है
मुस्कुरा रहे हैं लेकिन
मनों में मैल हैं
किसी को परवाह नहीं
प्रदूषण बढ़ने की
बस हर तरफ होड़ है
वो दीवाली थी ये क्या है ?

Saturday, October 31, 2015

गुज़र गया वक़्त


आगे बढ़ गए तुम ये सोचते हो
यूँ बस पीछे न देखो वक़्त को
पीछे मुड़ कर कैसे मिटा लोगे
वक़्त के इंदराज से ज़ख्मों को
दाग धोये न सही धूमिल किए
कब तक उधेड़ोगे तुम वक़्त को
वक़्त हर रोज़ आगे बढ़ता रहा
तुम ठहरा ही देखते हो वक़्त को
तुम आज तक वहीँ ठहरे हुए हो
एक अरसा गुज़र गया वक़्त को
नज़र अपनी कर लो दुरुस्त या
वक़्त के नज़रिये से देखो वक़्त को

Tuesday, October 20, 2015

कुछ नहीं बदला

लोग कहते हैं
बड़ी तरक्क़ी हो गई
ज़माना बदल गया
लेकिन हक़ीक़त में
हमने तो यही देखा
कुछ नहीं बदला यहाँ
औरतें अब भी यहाँ
गुलाम सी हैं आज भी
शोषण के हैं शिकार
बच्चे आज भी
पशु बन जाते हैं लोग
मज़हब के नाम आज भी
रंग, नस्ल के मसले
कमोवेश शायद
वही हैं आज भी
अमीर-ग़रीब के बीच
रिश्ते वही हैं आज भी
दुश्मनी की वज़ह हैं
सरहदें आज भी
दुनियाँ की रीत
बस दिखावे की है
कल जो थी वो आज भी

Monday, October 19, 2015

Wars Inside

At times I'm
Unaware of
My wars within
Keeping my mind
And subconscious
Always beleaguered
Knowingly or unknowingly
Memories and moments
Continue to haunt
Over and above
Adding the skirmishes
Confusing foes
And inquisitive friends
Adding fuel to fire
Reverberating words
Of people so many
In varied pitches
Making noisy music
Without rhythms
Random and weird
Keeping me occupied
Without a strategy
To deal with
Continued wars!

Sunday, September 27, 2015

What Prevails

The truth shall prevail
But the myths remain
Goodness does prevail
But the evil too remains
Love shall always last
But hatred precipitates
Righteousness prevails
But the wrong path sells
Civilization must improve
But aberration spreads
Chivalry the best option
But discourtesy is often
Say all should improve
But self seldom improves
Human nature is weird
Yet humanism prevails!


I Still Await

I can not see anything
And wondering actually
With so much glamour
You have created here
I still await your effort
To brighten the inside
That would allow us
To see and witness
What's going around
Within us and outside
We can all envision
The eclipsed things
Due to the brightness
Brought in artificially



Monday, September 21, 2015

गंतव्य भी इत्तेफ़ाक़

मार्ग की दुर्गमता व कठिनता
मंज़िल का आभास कराते है
गंतव्य की दूरियों का एवं
कभी-कभी मार्ग का अभाव
अपरिभाषित बिडम्बना का
मुसाफिर प्रायः अनिर्णय में
बिस्मय और बिस्मृति में
कौन जाने क्या है मौजूद
भविष्य व भाग्य में किसी के
मनचाही मंज़िल न सही
चलते रहना भी रुख है यहाँ
मंज़िल तक पहुँचने का
हैरान,परेशान, थके, हारे से
मुसाफिर समझ नहीं पाते
हर रास्ते की होती है मंज़िल
ज़रूरी नहीं जानी पहचानी हो
गंतव्य भी इत्तेफ़ाक़ होते हैं

Thursday, September 17, 2015

'पहाड़ सी ज़िन्दगी'

सब कुछ बदल गया
कभी अचम्भा होता है
पहले कितना बड़ा था ये
अब संसार सिमट गया है
यत्र-तत्र-सर्वत्र की खबर
चुटकी भर में मिल जाती है
सन्देश, फोटो, वीडिओ
स्मार्ट फोन के अंदर सब है
इन सब के साथ-साथ
जीवन मूल्य बदल गए हैं
प्रवासी बंधु पहाड़ों के
मानो रास्ते भूल गए हैं
आगंतुकों का स्वागत नहीं
उनसे प्रायः कतराते हैं
पहाड़ का दर्द भी अब
सामाजिक मीडिया तक है
अब महानगरों से निकल
विदेश प्रवास के मन हैं
घरों में लगे तालों में भी
अब जंग लग गए हैं
खंडहर बने गाँव के घर
इतिहास की गवाही देते हैं
बचे खुचे लोग अब भी
जाने कितने आशावान हैं
उनके नाम परियोजनायें
कितनों को समृद्ध बनाती हैं
जीवन-संध्या में असहाय लोग
भाग्य के सहारे गुजर करते हैं
नई पीढ़ी के लोगों के पास
समय व श्रद्धा का अभाव है
दैनिक जीवन इन बुजुर्गों का
एक नए संघर्ष का दिन है
'पहाड़ों में जीवन स्वर्ग' है
लोग कहते हैं ये हँसते हैं
नरक और स्वर्ग में फ़ासला
बहुत ज्यादा नहीं होता है
पहाड़ में 'पहाड़ सी ज़िन्दगी'
अब सब से बड़ा सच है
खुद के अतिरिक्त भरोसा भी
अब उन्हें किसी पर नहीं है
ये चरितार्थ भी कर रहे हैं
कर्म व संघर्ष ही जीवन है

Wednesday, September 16, 2015

Conditioned!

People are forgetful
They forget so easily
That you offered them
Your heart and soul
Without conditions
When it's their turn
They got conditioned
With own interpretation
When I realized this
It was very late for me
Anyways, I guess
I wouldn't fall prey
To anyone's designs
And so I revere myself
Again, no conditions!

Friday, July 24, 2015

बेटियाँ


बेटा-बेटा की रट लगा रहे थे जोर से
जानने लगे घर की हैं रौनक ये बेटियाँ

बेटों के काम से थके हारे जो परेशाँ
माँ-बाप के सब बोझ उठाती हैं बेटियाँ

घर भर का बोझ जो समझ रहे थे बेटियाँ
अब ढूंढते फिरते हैं कहाँ मिलेंगी बेटियाँ

जब छोड़ते मझधार में एक एक करके सब
बस पार लगाती हैं नाव तब ये बेटियाँ

बेटा नहीं बनी ये गनीमत हैं बेटियाँ
मिलती बड़ी किस्मत से हैं ये बेटियाँ

सीख लो कहीं पछताना न पड़े फिर
बेटों से बढ़ के ये बड़ी होती हैं बेटियाँ


Friday, July 17, 2015

कुछ पास कुछ उधार

स्याह रातों के बीच भी
उजालों की रंगीनियाँ हैं
सौ झँझट की ही सही
खुशियाँ हज़ार है यहाँ
कई दुश्मन हैं ज़रूर
पर दोस्त बेशुमार हैं
तंगदिल कुछ एक सही
भरमार दरियादिलों की
चंद रोज़ की बीमारियाँ
सेहत भी इफ़रात में है
वक़्त इधर थोड़ा सही
मगर बहुत है मेरे पास
दोस्ती ज़िन्दगी भर की
अदावत कुछ पलों की
समझो तो सब हैं यार
छाया भी नहीं रक़ीब की
कुछ पास कुछ उधार
ज़िन्दगी चार दिन की


Friday, July 10, 2015

Whither thinking?

Minds are storehouse
All kinds of thinking
Be it negative or positive
In a way a smart thinking
Open minds are logical
Negativity starts shrinking
Even with stressed minds
Nothing like positive thinking
In those vibrant minds
Innocence still prevailing
Serenity of the minds are
Thought process protecting
When minds start stinking
Whither thinking?

Sunday, July 5, 2015

How Similar !

O Raindrops!
How similar are
You and me!
As you leave
The edge of clouds
To be with me
And my World!
Without thinking
About your future!
I too on the edge
Of this seat mine
Unsure of my future
Looking to shower
All my love and care
To someone mine
And My World!


Saturday, June 27, 2015

मुनाफ़िक़त

कभी बड़ी गर्मी कभी सूखा कभी बेमौसम बारिश होने लगी
ये ज़माने की खता है शायद मौसम की रंगत बदलने लगी

कहीं लाचारी कभी ज़ुल्मो सितम से रियाया है परेशान यहाँ
इस मुल्क़ के हाकिमों को सियासत है बड़ी रास आने लगी

शौक़ से घूमते फिरते हैं बेख़ौफ़ इधर गुनाहों के सब ताजिर
सजा नहीं अब तो गुनहगार की इज़्ज़त है यहाँ बढ़ने लगी

दिन ढले या दिन के उजाले में भी अब ये आलम है यहाँ
खवातीनों पे सितम की आग हर तरफ़ यहाँ बरसने लगी

अब तो लगता है ज़ुल्म के हुक्मरान भी सब सज़दार यहाँ
मुनाफ़िक़त की मुश्तरका कोशिशें शायद यहाँ हैं बढ़ने लगी

(मुनाफ़िक़त = Hypocrisy, मुश्तरका = Joint , सज़दार = Prostrater, ताजिर = trader)



Tuesday, June 16, 2015

वक़्त का तकाज़ा

मेरे अरमाँ मेरे सपने न जाने कहाँ खो गए
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
तो क्या हुआ, मैं नए सपने संजो लूंगा
मेरा वादा है, कहानी नई मैं लिख दूँगा
हसरतों की बात है, कहीं तो कुछ खास है
वक़्त बाकी है,आस अब भी पूरी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त लम्हा है, मुड़ मुड़ के फिर देखूँगा
मेरा दावा है तुमसे, ख़्वाब फिर मैं देखूँगा
रुकना न मैंने सीखा, ये तुम भी देख लेना
जो रुक गया यहाँ, बात उसकी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त का तकाज़ा है, कुछ नहीं थमता है
ये ज़िन्दगी और क्या, चलने का बस नाम है
कर गुजरूँगा मैं भी कुछ फिर कहेंगे सब ही
कामयाबी यूँ मिली मजबूरियाँ पीछे रह गईं
कहानी मेरी, बनते बनते, पूरी बन गई
मेरे अरमाँ मेरे सपने हाँ बदल गए हैं कुछ
कहानी मेरी, फिर भी बनते पूरी बन गई

Monday, June 15, 2015

दृष्टिभ्रम

मित्र न सही मैं
मित्रवत अवश्य हूँ
हैरत नहीं होती मुझे
यह जानकर भी कभी
मैं विश्वासपात्र नहीं
शायद तुम्हारे निकट
तुम्हारे नज़रिये से
तुम, तुम्हारे विवेक पर
मुझे भी विश्वास नहीं
कमियां हैं तुम में कई
हावी हो जाती हैं वो
तुम्हारे विवेक पर
मेरे नज़रिये से
लेकिन आभास होगा
किसी दिन अवश्य
तुमको दृष्टिभ्रम का
जब देखोगे तुम कभी
खुले नज़रिये से

Friday, June 12, 2015

मुस्कुराते रहो

कुछ कहो न कहो, मुस्कुराते रहो
कल की कल ही नहीं
आज की सोचेंगे कल
मुस्कराहट की यूँ ही, हद में रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

ज़िन्दगी आज है कल रहे न रहे
आज की खास है बात ही बात है
कोई कुछ भी कहे सोच अपनी रहे
आज आगाज़ है खास अंदाज़ है
सुगबुगाती ख़ुशी इसकी हद में रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

रात बेचैन थी सुबह अब है नई
रौशनी में नहाई नई धूप है
ज़िन्दगी हर तरफ़ ऐसी मशरूफ है
कलियों सी महकती सभी ओर है
फूल के साथ तुम भी यूँ खिलते रहो
मुस्कुराते रहो मुस्कुराते रहो

दास्ताँ ऐसी कोई नई बन रही
देख लो आस पास ये तुम्हारी ही है
मुस्कुराते चमन में कई गुल खिले
मीठी मीठी कहानी है संग चल रही
अपने साये से तुम मिल के चलते रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

Tuesday, June 9, 2015

हालात की मारी

अजीब सी बात है
कभी-कभी यहाँ
औरतों को दबाने में
देती हैं अक्सर
आदमी का साथ
औरतें भी यहाँ
ज़ुल्मों की खातिर
शायद खुद जो सहे
औरों की बारी
झुठलाती हैं औरतें
सच को यहाँ
अंधेरे में अँधेरा बन
उज़ाले के खिलाफ है
औरतें भी यहाँ
हालात की मारी थीं
लड़ नहीं पाती हैं
हालत से
औरतें यहाँ


Saturday, May 23, 2015

परिणामस्वरूप

चमकता दमकता
था वो रश्मि-पुंज
सघन आवरण में
धूमिल हो चला है
देखते ही देखते
अँधेरे में है अब
वही रश्मि पुंज
परिणामस्वरूप
भाव बन गए हैं
अब नकारात्मक
बनें भी क्यों नहीं
अब यहाँ प्रकाश भी
मुँह छुपा रहा है
व्यव्हार के कारण
अपने दर्पयुक्त
किसी की नहीं मानता
वक़्त यहाँ

Tuesday, May 19, 2015

Inhibitions

In the silent ways
Or with the noise
Everyone walking
With the nature
Its natural ways
Without inhibitions
Not often but always
Coming to humans
They always behave
In unnatural ways
Even in silent ways
People albeit
Find their ways
Either ways
With inhibitions


Tuesday, May 12, 2015

कृतज्ञता ज्ञापन

तुम खा लो
सोचो मत मेरी
मैं तो यूँ भी
जीती हूँ
तुम्हारे लिए
शायद
निभाया होगा
कुछ ऐसा ही कर्तव्य
मेरी माँ ने भी
मेरी ख़ातिर
ये रिश्ते ऐसे ही हैं
जन्म-जन्मान्तर से
कल तुम भी
ऐसा ही कर
कर लेना कुछ ऐसा
कृतज्ञता ज्ञापन हेतु !

Monday, May 4, 2015

उम्र भर की उम्मीदें

चन्द लम्हे ही जीने को यहाँ काफ़ी हैं
ज़िन्दगी की साँसें ये कम नहीं होंगी
उम्र भर की उम्मीदें सँजोई हैं अपनी
बस एक पल में ये ख़त्म नहीं होंगी
ज़ज़्बा है तो आजमा लेना तुम भी
ये हिम्मतें हमारी ख़त्म नहीं होंगी
फिर ज़ख़्म कोई ताज़ा दे देना तुम
कोशिशें पुरानी कामयाब नहीं होंगी
हम को आता है हुनर इस सफर का
क़िस्मत को अपनी राहें बदलनी होंगी

Tuesday, April 28, 2015

फिर से


पत्थरों का शहर बनाया था
फूस सा ज़लज़ले ने उड़ाया
सुना न देखा था पहले कभी
क्या कोई अब फरियाद करेंगे
तिनकों का आशियाना था
देखते देखते उजड़ गया है
उजड़ा है चमन भीगे नयन
अब और क्या बर्बाद होंगे
फिर भी जान जब तक बाक़ी
लड़ेंगे सिर्फ शिक़वा न करेंगे
उम्मीद और मेहनत से हम
फिर से गुल-ए-गुलज़ार होंगे


Saturday, April 25, 2015

निराशा के बीच

आज न सही
तो कल होगी
देश की चिंता
फ़िलहाल तो हैं
सभी के यहाँ
घड़ियाली आँसू
अभी तो बस
उसकी अपनी ही है
किसान की चिंता
फसल बर्बाद हुई
तो खायेगा क्या
बेचकर आएगा कुछ
तो ज़रूरी चीजें लाएगा
जीवन यापन को
न बचा अगर
बीज तक को भी
मदद की जगह
नारे लगाने वाले मिले
तो और क्या करेगा
उधर तो चुका नहीं सकता
गुजारा कर नहीं सकता
निराशा के बीच बैठा
आत्महत्या कर बैठेगा
और कर भी क्या सकता है
इससे अधिक
मौसम का मारा !

Monday, April 20, 2015

परिणाम भी तुम्हारा अपना

पाले हैं शौक़ तुमने भी
बस पा लेने के
येन केन प्रकारेण
तुम्हारी तथाकथित
सोने की चिड़िया
मुझे तो संशय है
क्या बहला लेगी मन को
मेरी छोटी गौरैय्या की भाँति
तुम्हारी सोने की चिड़िया
या फिर शायद
तुम्हारी महत्वाकांक्षा
और धनाकांक्षा
अक्षुण्ण प्यास बन
हरे लेगी सब
मानसिक शांति तुम्हारी
निर्णय तुम्हारा है
परिणाम भी होगा
तुम्हारा अपना

कर्म प्रधान

धर्म प्रवर्तक जीते थे अपना जीवन
कर्म महान समझते थे वे फिर भी

ज्ञान-ध्यान का अपना है आलम
कर्म प्रधान होता है यहाँ फिर भी

कर्म-पथ पर भी बाधाएं हैं अनेक
बढ़ते रहना ही तो कर्म है फिर भी

कर्म का फल फलता-मिलता सदा
निष्काम कर्म श्रेष्ठ है यहाँ फिर भी

कर्म ही धर्म यहाँ होता है जिनका
सत्कर्म सद्बुद्धि है देता उनको भी


Friday, April 17, 2015

दूर से आती आवाज़ें

कहीं दूर से आती हैं
रहस्यमयी कभी
कभी खुलासा करती
कुछ जानी सी आवाज़ें
मानो रंगमंच में यहाँ
नेपथ्य से करता मदद
देकर संकेत मुझे
मेरे संवाद सुनाकर
खुसुर पुसुर से अपनी
याद दिला रहा हो
मेरे किरदार का भान
अनजानी नहीं लगतीं
शायद पहचानी सी
ये मेरे अंतर्मन की
या अन्तर्निहित होंगी
किसी से सुन संजोई
जिसकी भी हैं आवाज़ें

Thursday, April 16, 2015

क्रिया-विशेषण मात्र

आशावादी होने से नहीं
यथार्थ से नष्ट हुईं
सारी आशायें मेरी
फिर भी यक़ीनन
ग़म नहीं है मुझे
प्रेरणा देता रहा था
मेरा विश्वास सदा
और मेरा अन्तर्मन
बनाये रहता था
भरोसा मेरा सदा
स्वयं पर भी
और ज़माने पर भी
आशाओं का क्या!
बदलती रहती हैं
देश, काल, समय से
आशा-प्रत्याशा का क्रम
जीवन का सम्बल है
नियति का मतभेद है
नीयत के साथ सदा
नियति यदि कुछ नहीं
तो नीयत भी कुछ नहीं
बस क्रिया-विशेषण मात्र

Tuesday, April 14, 2015

क्या फ़र्क़ पड़ता है!

अब चिंतन और विचार
समसामयिक नहीं रहे
किन्तु फिर भी
इन्हें रोकना असंभव है
इनकी महत्ता लेकिन
बस मस्तिष्क तक है
किसी को फुर्सत नहीं
कहते हैं लोग
क्या फ़र्क़ पड़ता है
आज फिर नया
एक विचार आकर
चुपचाप निकल गया
दस्तक दे रहा है
मन में अब भी
पड़ा रहे किसी कोने में
क्या फ़र्क़ पड़ता है !

Sunday, April 12, 2015

असुंतलन ही क्रम

इन सुरों को समझो
लय, गति, ताल सब है
ज़िन्दगी की यहाँ
चाहो तो कर देख लो
व्यर्थ है कोशिश
तेज भागने की यहाँ
ज्ञात हो जाएगा
अपनी ही रफ़्तार है
ज़िन्दगी की यहाँ
एक समय आता है
ज्ञान, विवेक, दृष्टि
मिथ्या हो जाते हैं यहाँ
लाख कर लो कोशिश
असुंतलन ही क्रम है
संतुलन का यहाँ

Monday, April 6, 2015

With Contempt

Take it sportingly
As you did always
It's not yet over
I still depend on you
My utterances are
In the same spirit
With tease, fun or shun
Presuming as ever
That you understand
As you did always
The large caring heart
And the affection
I know you have
To laugh out loud
In your own ways
On my silly ways
As you always did
You inspired me
To be such witty
And with contempt
Without meaning hurt
And get pardoned
As you always did

Sunday, April 5, 2015

नशा सा

फिर मचलते हैं अरमां आज
हवा के झोंके संग
ऐसी खुशबू अब तक न थी
हवाओं में
जादू सा छाने लगा है
नस-नस में
ये किसने बेकस किया मुझको
कौन है जो तन मन में छाने लगा है
आके कोई मुझे बता भी दो
मैं हूँ इंतज़ार में
फिर मचलते हैं अरमां आज
आज मन भटकने लगा
दिल कहीं बहकने लगा
तन बदन मचलने लगा
जाने कैसा मीठा मीठा
आके कोई ठाम लो मुझे
नशा सा छाया है आज
फिर मचलते हैं अरमां आज

Friday, April 3, 2015

नन्हीं चिड़ियाँ


मुरझाई सी आशायें हैं लेकिन
खिलती हैं जीवन की कलियाँ
खिलती रहती हैं जीवन की कलियाँ
उसके जाते ही ऐसे
सब कुछ खाली खाली है
दिन बीते कट गई जैसे तैसे रतियाँ
पढ़कर बातों को उसकी
सुनकर सन्देश वो सारे
याद आती हैं वो सारी ही बतियाँ
देखो उसके कहने से
फिर आयीं हैं दर पे अपने
चीं चीं करती नन्हीं नन्हीं चिड़ियाँ
कैसा सँसार बनाया है
बस एक संदेशे से ही
मन के आँगन में महकी खुशियाँ

Wednesday, April 1, 2015

मन की बाज़ी

ज़िन्दगी की ही रफ़्तार से 
ज़िन्दगी संग बढ़ते चलो

मुख्तलिफ रंग मिलेंगे यहाँ
इनको इनकी नज़र से देखना
चाबी ख़ुशियों की रख सँग सदा
खोल ताले सारे बढ़ते चलो
कुछ अपने भरोसे कुछ समय के
कामयाबी के पथ पर चलो
मंज़िलें मिलती जाएँगी यहाँ
सुर्खरू यूँ ही होते चलो
जीत कर हार को सबक से
जीत में हार की समझ से
अपने मन की सदा जीत हो
मन की बाज़ी यूँ जीते चलो
ज़िन्दगी के भी सुर ताल हैं
इसकी हर शै अपनी ही है
ज़िन्दगी की ही रफ़्तार से
ज़िन्दगी संग बढ़ते चलो

Thursday, March 19, 2015

दुस्साहस

कर्तव्यनिष्ठा, दया
सहानुभूति और सदाचार
उसे सदा प्रिय थे
उसमें शायद
आत्मविश्वास कम था
बचपन से ही
बड़े होकर
इसका फायदा उठाया
शायद सब ने
उसके परिजन रहे
स्वयं अव्यवस्थित
उनकी चिंता में
अव्यवस्थित रहा
वह भी शायद
उसका ज्ञान असीमित था
पर वो सीमित कहता था
बेमिसाल थी
उसकी विनम्रता
दुस्साहस समझा गया
उसकी ईमानदारी को
फिर भी कमी नहीं रही
उसके प्रशंसकों की
उसका दर्द
सब जानते थे
उसकी व्यथा-कथा
उसे नाखुश रखे रही
और आज, अचानक
असमय जाने की खबर
कुछ को छोड़ सभी को
व्यथित कर गई
उसकीआत्मा हँसती होगी
उपेक्षा पर
साथ न पाकर
जीते जी साथियों का!

Tuesday, March 17, 2015

खैख्वाह नदारद

छोड़ आये थे
वो अपना घर
तलाश में कोई
रोज़गार की
आमदनी इतनी
कि बस गुजर भर
एक आशियाना
सर छुपाने को
बना था किसी तरह
कुछ दे दिला के
वो भी बस
ढहा दिया एक रोज़
देने को कुछ न था
लेने वाले भी
सब्र कहाँ करते
खैख्वाह नदारद थे
अब कौन
चुनाव सिर पर थे!

Saturday, March 14, 2015

हक़दार हैं

कुछ नहीं कहना
सफाई में हमें
उनकी भी अपनी भी
फ़ितरत जानते हैं
हक़ीक़त जानते हैं
इतना मान लेते हैं
बगैर अपराध के
सजा के हक़दार हैं
हम आरोपी हैं
गुनाह क़बूल है
जो भी मिले सजा
भुगत लेने को
हम तैयार हैं

Friday, March 13, 2015

परिहास

हास करता आईना है देख हम पर
झुर्रियाँ यूँ थके चेहरे ज्यों झलकायें
रात-दिन फिक्र में सब एक बन कर
वक़्त खो जाने का एहसास करायें
कर रही परिहास सब अट्टालिकायें
क्या तुम्हारा है ज़रा तुमको दिखायें
बस वही पाँच फुट है वास्ते तुम्हारे
जीते रहो या फिर लोग मर भी जायें
कल से कल की योजनायें ये तुम्हारी
औरों की हैं पर तुम्हारे काम न आयें

उधेड़ बुन

छोटी बड़ी बातें भुला कर
आगे बढ़ जाना भला है
याद रखना हर बात को
अक्सर दर्द बढ़ा देता है
भुला देना व भूल जाना
यूँ तो नहीं होता आसान
लेकिन बमुश्क़िल सही
किया जा सकता है
इसी उधेड़ बुन में लोग
लगे रहते हैं ज़िन्दगी में
कि याद रखना ज़रूरी है
या फिर यहाँ अक्सर
भूल जाना ही बेहतर है
समझ अपनी अपनी !

Tuesday, February 24, 2015

नए मौसम में!

अब के अमराई में
लदालद भरीं बौरें
मैंने भी देखी थीं
सोचा था मिलेंगे
यहाँ आम बेशुमार
लेकिन फल नदारद
जाने क्या हुआ
दाने बनते बनते
सब सूखने लगे
मेरे हिस्से क्या
कुछ न आ पाया
बंदरों के भाग में
पंछियों के हिस्से
आम अब नाम रहा
उम्मीद क़ायम है
दिखेंगे आम फिर
नए मौसम में!

Sunday, February 15, 2015

Within Me

You remain visible to me
Yet so far away from me
Glimpse of you is enough
To internalise Of yours
Images many within me
Be small yet dazzling
As if galaxy within me
Others too find a view
Harmony of you and me
What they find amazing
Matter of comfort to me
It sure is reflection of
Your image through me
I feel the presence
So all over within me


happy again!

He wanted it simple
She wanted her way
They argued, fought
Yelled at each other
They listened the other
Also introspected then
Found a middle path
They laughed out loud
On such a small thing
They had really fought
They sorted it all out
Amicably, respectfully
Became happy again!


Saturday, February 14, 2015

अब आखिरी बार

एक बार आई थी
चिंगारी यहाँ
नए इंक़लाब की
'पुनः मूषको भव'
कर डाला था
पुरातन पंथियों ने
अब वो फिर
आई है यहीं
शोला बनकर
बना कर सभी
'सिंहों' को 'मूषक'
अबकी बार
अग्नि परीक्षा है
सुशासन, सुव्यवस्था
और सदाचार की
इंतज़ार करेंगे
सुर्खरू होने का
इनके ज़िंदा होने का
अब आखिरी बार !