Monday, September 26, 2011

और कितने!

हम करते रहे कोशिश एक के बाद एक
आशाएं पर धूमिल होती रही फ़सानों से
अब न मालूम कब तक गुज़ारना होगा
और कितने नए नए से इम्तिहानों से

Touching the Hearts


I went up to touch the sky
Then I found that it too far
I went to see depth of ocean
I found it too deep to reach
I wanted to catch the winds
And found them too slippery
I went to scale high peaks
But they were a hard climb
I wanted to catch the time
Oops!It was also so difficult
I went to touch the hearts
It was so simple to make it
And without my expectation
I got the reciprocation too
So many touching my heart

Sunday, September 25, 2011

वही पुरानी


उस तेज़ बारिश में भी
जाना ज़रूरी ही था उसे
पानी जो भर लाना था
फिर कुछ छोटी मोटी
खरीददारी भी बाकी थी
शाम के भोजन का प्रबंध
बस सीधे चल पड़ी थी वह
बिना कोई छतरी लिए ही
तेज़ बारिश में भीगती भीगती
आ गई थी वह ठिठुरती सी
पकौड़े मिलने में देर से खिन्न
उसका पति कुढ़ सा रहा था
देशी शराब पीते पीते ही
सब के भोजन के बाद अब
कुछ बचा हुआ भोजन था
उसके हिस्से यही आया था
बुखार सर्दी से कांपते वह
सोने चली थी वह ज्यों ही
अब पति उसके तन से खेल
अपनी प्यास बुझा सो गया
बुखार बढ़ने लगा था अब
दवा पानी की फ़िक्र छोड़
सुबह सब काम कैसे करेगी
वह अब इसी चिंता में थी
काम सबको था पर किसी को
उसकी फ़िक्र कतई नहीं थी

सोहबत

उनकी सोहबत में चुकाया हमने उल्फ़त का खमियाज़ा
वरना था ही क्या हमारे पास बस एक ज़िन्दगी बेमज़ा

Monday, September 19, 2011

Not Sure!



I was indeed not at all sure
What life had in store for me
What I had looked in for my life
Life perhaps was also not sure
Me and life made a compromise
We shall not bother each other
We take any course on the offer
Our ways may be different; yet
Our approach could be similar
We like what is given anyways
We compliment, not complain
Like each other as companion
We can walk along wherever
Our paths too, we are not sure!

Sunday, September 18, 2011

विगत एहसास


लगता है फिर जम के बरसेंगे बादल आज
फिर बहेगी बयार भी वर्षा की नमी के साथ
बारिश की बूँदों से टपकेगा एक नया संगीत
भीगे भीगे मौसम में फिर कोई गुनगुनाएगा
एक बेहद रूमानी संगीतमय सुरीला सा गीत
कोई राग किसी की यादों में फिर ले जायेगा
पँछी छुपेंगे किसी डाली के बीच बने कोटर में
लोग खिडकियों से झांकेंगे भीगते मंज़र को
किसी गुदगुदाते मीठे विगत एहसास के साथ
वही मस्त अल्हड़पन से महकती यादों के साथ
कौन कहता है ये सिर्फ सावन का नज़ारा है!

Saturday, September 17, 2011

नीयत

हमें उम्मीद है कि वो बदल सकते हैं दुनियाँ
उन्हें मालूम हो या न हो उनकी क़ाबिलियत
ख़ुशी होगी हमें वो करें आबाद सब की दुनियाँ
उन्हें बस एक ठीक रखनी होगी उनकी नीयत

Friday, September 16, 2011

तसल्ली

सोचते ही रह गए थे हम वक़्त निक़ल गया
अब लगता है कि शायद कह ही दिया होता
जो शुरू ही न हुआ उसका सोचते हैं अंज़ाम
कह कर तो बस एक बार हमने देखा होता
कह अगर देते हम अपनी ही ओर से सही
क्या मालूम अंज़ाम कुछ और हुआ होता
कोशिश की होती तो ही होता मालूम हमें
नहीं मालूम हमें इक़रार होता या न होता
उनकी न भी ज़रूर क़बूल ही हुई होती हमें
तसल्ली होती चाहे इनक़ार ही हुआ होता

Thursday, September 15, 2011

कल की ही सी बात

आज क्या होगा नया ये सोचते देखते निकल गया आज
एक बार फिर हो चली है आज की ही बात कल की भी
कल होगा तो एक नया दिन ज़रूर पर इत्तला रहे ये भी
अब क्या मालूम कल की ही सी बात होगी कल की भी

Wednesday, September 14, 2011

मोल तोल

हमें जो करना भी पड़ा इंतज़ार तो कोई गिला नहीं
तुमसे हमें किसी बात का मिला भी कोई सिला नहीं
फिर भी हम अपने हाल में ही रहते हैं खुश अक्सर
हमने मोल तोल नहीं किया कि कुछ मिला या नहीं

Monday, September 12, 2011

ज़िन्दगी

कितनी भी दूर से नज़ारा कर लूं मैं
पर मेरे कितने करीब है ये ज़िन्दगी
सब कुछ सह लेते है इसकी ख़ातिर
है कैसा ये हसीन ज़ज्बात ज़िन्दगी
रोज़ नये नए रंगों में इठलाती सी है
क्या ख़ूबसूरत एहसास है ज़िन्दगी
कब किस करवट बैठे ये मालूम नहीं
चलते रहते भी ठहरी सी है ज़िन्दगी
इस गुज़रते वक़्त के चलते भी मानो
एक थमा हुआ सा वक़्त है ज़िन्दगी
पाने खोने के सिलसिले के बीच भी
कुछ पास होने का एहसास ज़िन्दगी

क्या कहते हो

बहती थीं नदियाँ दूध की ज़रूर शायद
मैंने माना क्यों कि ये भी तुम कहते हो
मैंने तो दूध में पानी की देखी हैं नदियाँ
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
सोने की चिड़िया था कभी ये मेरा देश
औरों के साथ तुम भी तो ये कहते हो
तुम्हें इसे चिड़िया बना उड़ाते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
रही होगी इज्ज़त महिलाओं की कभी
अपनी लिखी किताबों में तुम कहते हो
मैंने तो इसे रोज़ सरेआम लुटते देखा है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो
मैं भी हूँ क़ायल सभ्यता का तुम्हारी
इतिहास में कुछ ख़ास ज़िक्र सा पढ़ा है
मैंने तो तुम्हारी असभ्यता ही देखी है
अब तुम ही कह दो तुम क्या कहते हो

Sunday, September 11, 2011

साथ

यादें भी छोड़ने लगीं साथ अब तो
इन बियाबानों में क्यों आयेगा कोई
कहने को कई नाम कई चेहरे भी हैं
पर शायद ही साथ निभाएगा कोई

शिकवे

मौसम कह रहा है हवा से, आज तुम भी धीरे बहो
कर लेने दो शिकवे औरों को; आज तुम चुप ही रहो
रोक लो उन अल्फ़ाज़ को, जो भी तुम कहना चाहो
फिर सही कभी कह लेना; आज तुम कुछ न कहो

Saturday, September 10, 2011

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी को मनाना तो सीखा नहीं हमने
फिर भी बस कुछ अच्छे से ही गुज़र गई
हम तो थे चलते ही रहे ज़िन्दगी के साथ
कभी रूठी थी ज़िन्दगी तो कभी मान गई

Friday, September 9, 2011

मेहरबान

मेरे मेहरबान मुझे जीने दे सुकून से
अपनी रहमत अब कहीं और कर तू
रात को दिन व दिन को रात न कर
इतनी बड़ी इनायत मुझपे न कर तू
क्यों दिखता है हाहाकार ही सदा अब
मुझे ऐसे उजाले से तो मत डरा तू
मुझे तो बस इस अँधेरे में ही रहने दे
अब कहीं और ये उजाला कर ले तू
या उन अँधेरे के गलियारों में करते
सारे काम गलत बंद करा दे अब तू
उजले वस्त्र पहन करते जो अपराध
उनके कुकर्म उजाले में ले आना तू
फिर चाहे तो जी भर के कर देना
मेरे आस पास भी ख़ूब उजाला तू

Wednesday, September 7, 2011

आत्मा की शांति

मेरा तुम्हारा नाता बस
इसी जहान तक का है
यूँ भी इसके बाद कुछ नहीं
ये आभास है मुझको
मेरे जाने के बाद भी क्या
रखोगे तुम याद मुझको
या 'आत्मा की शांति ' चाहकर
बस भूल जाओगे मुझको
मैं तो चला ही जाऊंगा
तुम्हें ख़ुशी की दुआएँ देकर
खुशियाँ मिलने पर भी तुम
शायद भूल जाओगे मुझको
मेरी आत्मा शांत हो जाएगी
मेरे जाने से पहले ही जब
तुम भूल जाओगे मुझको

ग़लत

वो तरफ़दारी कर रहे थे हमारी
हमने इसे बस हक़ीक़त समझा
वो तो बड़ी दूर की सोच रहे थे
हमने इसे उनकी इनायत समझा
बाद में वो इससे पलट भी गए
हमने इसे उनकी मज़बूरी समझा
हम उनकी बड़ी ही कद्र करते थे
उनने ये हमारी कमजोरी समझा
हम फिर भी देते रहे थे इज्ज़त
उनने इसे हमारी ज़रूरत समझा
हम जान कर अनजान बने रहे
उन्होंने इसे भी नादानी समझा
जो कुछ भी समझ पाए हों वो
उन्होंने हमें कभी नहीं समझा

Monday, September 5, 2011

रुस्वाइयाँ

कभी खुशियाँ कभी मायूसी है यहाँ
मैं अकेला नहीं है पूरी दुनियां मेरी
हर रोज़ ही नए लोग मिलते यहाँ
सच में कितनी बड़ी ये दुनियां मेरी
हर शख्स मुसाफिर की तरह आता है
एक सराय सी इस ज़िन्दगी में मेरी
कैसा कोलाहल है चारों ओर फिर भी
हर तरफ बिखरी हैं ख़ामोशियाँ मेरी
मेरे चाहे अनचाहे भी सफ़र करती
गुज़रते पल सी कटती ज़िन्दगी मेरी
लगता है अब भी वो वक़्त आयेगा
कभी तो होंगी रुख्सत रुस्वाइयाँ मेरी

तनहाइयाँ

कितना सुकून होगा मिलेंगी मुझसे
कभी मेरी भी अपनी ही तनहाइयाँ
मेरी ही बातें मेरी ही रातें होंगी सारी
क्या खूब होंगी वो मेरी तनहाइयाँ
अब मगर बस अलग लगने लगी हैं
न मालूम क्यों ये हमारी तनहाइयाँ
किस किस का जिक्र करने लगी हैं
सोचा था सिर्फ मेरी होंगी तनहाइयाँ
मुझे कई तरह से मुझसे कर रही दूर
चाहे जितनी भी पास हों तनहाइयाँ
कभी कहीं दूर से कभी नजदीक से
मुझे डराने लगती हैं उफ़ ये तनहाइयाँ
अब नहीं गंवारा हैं मुझे कहीं भी ये
बस बहुत देख लीं मैंने ये तनहाइयाँ

Depressing Moments

I shall have to try and overpower
My depressing moments around
In my pitch dark and lonely nights
Instigated by baseless accusations
Of my very own and loved ones
Enhanced by deep silence around
And this huge storm in my mind
I know it might yet be temporary
Soul-mates perceiving me hate-mate
Difficult to understand in the ultimate
I console myself to my very best way
Overpowering thought remain in sway
In my moments of this lonely soul
Yet I do continue to overpower all!

Friday, September 2, 2011

Collectively

They say life is a momentary illusion
No doubt, to say they have a reason
But it's full of tremendous moments
Living these moments is living the life
Make your moments happy enjoyable
Help others make it similar for them
Make yourself, other people dutiful
For you, for them and for the World!
Smile for whatever happiness around
Collective or individual it may sound
We all are living in a fragile existence
Yet life does have for us all an essence
Lonely existence and efforts crumble
Collective efforts multiply and double
Together you sure can make it happen
Life for everyone sounding beautiful
Life starts smiling at you and around
Gives reasons for happiness plentiful

Thursday, September 1, 2011

साहिल

आहें भरने से कुछ न होगा हासिल
आहें भरना छोड़ सब होगा कामिल
आवाज़ देने से नहीं मिलता है साहिल
मझधार में हौसलों से मिलेगा साहिल

दर्द में ही

तुम्हें लगता होगा की बहुत दर्द देती है ज़िन्दगी
पर मुझे ये लगता है दर्द में ही छुपी है ज़िन्दगी
एहसास दर्द का जिस किसी शख्स को होने लगे
उसी ने जाना है कि खुशियों से भरी है ज़िन्दगी