Friday, December 27, 2019

पहाड़ि

भोव जनेर लै आज न्है जानी
पहाड़न में यशि हैरै बल कहानी
कैकि कुड़ि कैक गोंनाक घर
जो न्है गईं फिर नि ऊन भितर
मोबाइल आदि में फसक करनी
मतलब के नै नराई मात्र लगूंनी
मतलबक बखत पहाड़ि बतूंनी
और बखत कभै छोड़ि हालि कूंनी
संस्कृति नाम डबल यश कमूंनी
और बखत अंग्रेजि में गप करनीं
राजनीति में लै हमार पहाड़ि छन
नाम मात्र पहाड़िनक हितैषी छन
जो लै विकास भौ तरक्की भैन
पहाड़ रूनी लोकनाक संघर्ष छन
हम लै पैं अब तस्सै जस है गयां
मन में बात ऐगे सबन छें कै गयां

Friday, December 20, 2019

झूठे आवाहन

निष्पादन कार्य का किया नहीं
बस शब्दों के वाण चलाते हो
जन-जन का तन-मन कष्ट में
बस अपने तुम प्राण बचाते हो
रक्षा के झूठे आवाहन भ्रम से
मरीचिका दृश त्राण स़जाते हो
अपने वचनों की बू के छल से
क्यों वृथा तुम घ्राण बढ़ाते हो
स्वयं प्रस्तर-सम हर ओर बने
हम को क्यों पाषाण बताते हो
जो प्रकट सत्य तुम झुठला देते
औरों को क्यों संज्ञान कराते हो

प्राणवायु

तुम अपार नयनाभिराम
मनमोहक राग वासंती हो
छेड़ राग की धुन ऐसी
जीवंत गीत गाते रहना!
प्राणवायु सदृश हो तुम
सांसों को बल देते रहना
मेरे जीवन में प्रतिपल
थड़कन का त्राण किये रहना!
दिव्य अलौकिक आभा हो
बनकर प्रकाश की झिलमिल
इर्द गिर्द मेरे भी रहकर
आलोकित करते रहना!
आशा भी तुम अभिलाषा भी
इक पल में तुम प्रत्याशा सी
तुम जगदृष्टा हो ज्ञानवान
ज्ञान सरित बन बढ़ते रहना!
मैं मुक्तकंठ से करुं प्रशंसा
तुम करतल ध्वनि करते रहना
तुम ख़ुशी सुहानी जीवन की
विहग से कलरव करते रहना!

नीर-क्षीर

कहना क्यों है?
तुमने जो राह चुनी
विपदा की ओर बढ़े
अब भी न समझ पाए
भटकी इन राहों में
रहना क्यों है?
राही भीड़ का बन
तुमने स्वयं हरा विवेक
जो जहां चला तुम बढ़ चले
मंझधार के प्रवाह में
बहना क्यों है?
भूल गए हो कैसे तुम
नीर-क्षीर के भेद को
सत्य-असत्य के अंतर को
अपने ही हाथों ज़ुल्म
सहना क्यों है?

Tuesday, December 17, 2019

तुम्हारी भी जय हमारी भी

तुम्हारी भी जय हो हमारी भी जय हो
सबको खुशी हो कुछ ऐसी विजय हो

तुम्हें जो भाये हमें क्यों वो भाए
डगर हैं चले संग हम संग ऐसे आए
उठायें कदम संग कुछ ऐसी ही लय हो!

कभी तुम थको तो कदम रोक लेंगे
कभी हम रुके तुम कदम थाम लोगे
मंजिल हो साझा ये सफ़र ऐसे तय हो!

हिल मिल चलेंगे नई लीक रचेंगे
ख़ुशी और ग़म भी बराबर बंटेंगे
सफ़र हो सुहाना मनभावन समय हो!

कुछ तुम सुनो कुछ हम भी सुनेंगे
कोई लाख चाहे हम कभी न बंटेंगे
रफ़िक़ों के प्यालों में ख़ुशियों की मय हो!

तुम्हारी भी जय हो हमारी भी जय हो! 

अजब तमाशा

जन्म-मरण जीवन की गति हैं
निशदिन जीवन नूतन आशा
खेल निराले जगत  विलक्षण
आशा फिर कुछ नई प्रत्याषा
जीर्ण देह पर गुमान करे जन
वह तार तार हो जी भर तरसा
समभाव करे आशा-प्रत्याषा
है सच्चा प्यार उसी पर बरसा
जग का सार है उतना समझा
जिसने जितना स्वयं तराशा
प्रतिदिन सामंजस्य विलोचन
बाजीगर का है अजब तमाशा 

Thursday, December 12, 2019

नहीं मिटेंगे

नहीं जानते
बांटने वाले
क्या सोचेंगे
बंटने वाले
छांट लीजिए
जितने लेकिन
और बचेंगे
छंटने वाले
फांक लीजिए
जितना भी हो
और मिलेंगे
फांकने वाले
फूंक दीजिये
जो जी चाहे
नहीं फुंकेंगे
जीवट वाले
खरीद लीजिए
जी भर भरके
नहीं बिकेंगे
न बिकने वाले
मिटा दीजिये
सब को लेकिन
नहीं मिटेंगे
मर मिटने वाले 

कमोवेश

विवश नहीं मैं
अपने वश में हूं
अपयश में नहीं
चहुं ओर सुयश में हूं
कहूंगा अपनी बात
चाहे कशमकश में हूं
तीर नहीं मैं कोई ऐसा
जो तरकश में रखा हूं
तटस्थ न्याय का पक्षधर
यूं कमोवेश मैं हूं
सहज भाव मैं प्राय:
कोई पशोपेश में नहीं हूं
चुप्पी रख जियूं कैसे
मैं इस परिवेश में जो हूं श

Monday, December 9, 2019

लच्छेदार

लाखों लोग हैं यहां
भ्रमजाल में फंसे
असत्य व अर्धसत्य से
तुम्हारे प्रतिपादित
लच्छेदार शब्दों से
दिग्भ्रमित करती है
तुम्हारी लेखनी प्राय:
पहले बढ़ाती उत्कंठा
फिर कथा-स्वाद से
भरमाती यह लेखनी
सत्य का भान कराती
मरीचिका दिखलाकर
तर्क़ को हेय बता
कुतर्क़ श्रेयस्कर जता
मानो बुद्धि हर लेती
फिर भी कहता हूं
हुनर अद्भुत है तुम्हारा
तुम जीते जग हारा!

Sunday, December 8, 2019

Get Back

When World sleeps
And you are awake
Silence has sounds
Of all and odd types
It's noise within you
That keeps awake
Thoughts distorted
Often of faulty logic
Bugs in your thinking
Confuse you further
On wrong and rights
Its time to switch off
Thoughts or thinking
Refocus on positives
Avoid being weird
Meditate to get back
Calmness of silence
Be at and with peace
Enjoy the silent time 

in Sum

In sum
I can say
Beautiful is
Our World!
In substance
We may agree
We only make
Look beautiful
Our World
Together!
Within or around
All of us
In our thoughts
Through our acts
With our deeds
Individually
And collectively!
Where peace prevails
Love rules
Hatred withers away
Enmity is shunned
Each one works
To mske it better
Greed only breeds
Happiness for all
Divine are thoughts
To make it heaven
Our own World! 

जीवंत जग

अब हेमंत ऋतु है
सूरज़ को चुनौती देगी
उष्ण पर शीत की
विजय की ललकार
फिर पीत हो पत्ते
झड़ने लगेंगे पेड़ों के
कंपकपाते शिशिर में
प्रकृति में फिर होगी
रंगों की भरमार अपार
सरावोर होगा ये जग
वसंत के मद में मस्त
जो जियेगा वह देखेगा
शीत पर उष्ण की जय
प्रकृति का लौकिक क्रम
जीवंत जग हर ओर
फिर एक बार!  

ज़ो बीत गया

जो बीत गया
अच्छा था
पर उसका क्या
जो बीत रहा
वही सत्य है
उस पर रोना क्या
जो भी आयेगा
देखा जाएगा
कयास लगाना क्या
जो भी था, है, होगा
वही है सत्य
इन्हें झुठलाना क्या
सतत है यहां
समय की गति
ठहर कर क्या? 

बस गुनगुनाओ

गीत न गाओ
बस गुनगुनाओ
आज बिन साज
आज जाने क्यों
अच्छा नहीं लगता
न शोर न ख़ामोशी
बड़ी अज़ीब है
दिल में ये उदासी
तुम गुनगुनाओगे तो
अच्छा लगे शायद
जाने कौन से तार
ख़ुशी के छेड़ जाओ
तभी कहता हूं
बस गुनगुनाओ 

Justice

You could say it's unacceptable
Two wrongs don't make a right
But take a clue from mathmatics
Two negatives do make positive
Don't ask for mercy on merciless
Empathy on criminals so henious
What must prevails is the justice
Justice is exemplary punishment
I don't support any state terrorism
But there ought to be exceptions
Gang-ape and murder unpardonable
Howsoever real or fake 'encounters'

ख़ास

सब चलता है
हर दिन हर पल
हर कोई हर चीज
हर बात खास है
जो ग़ुज़र गया
वो इतिहास है
मेरे लिए भी
तुम्हारे लिए भी
अपना वज़ूद ख़ास है
हर तरफ़ ज़िंदग़ी है
सब तरफ़ आस है
जब तक यहां
सांस में सांस ऐ

Tuesday, October 29, 2019

देर-सवेर

बिखरे से अरमान
बिसरा सा समय
बिफरे से अपने
ख़्वाब अनचाहे
हालात से परेशान
फिर भी हो आस
जब तक रहेगी
सांस में सांस
यही तो है जीवन
बदलते रहते हैं
यहां सब कुछ
लोगों के नसीब
चाहे अनचाहे यहां
विरोधाभास भी हैं
अग़र हो इत्मीनान
सामंजस्य आयेगा
देर- सवेर ज़रूर 

Tuesday, October 15, 2019

हार में जीत

तुम हमेशा जीतना चाहते हो
जानते हो इसके तरीक़े भी
इसलिए अक्सर जीत जाते हो
हमें नहीं आते जीतने के गुर
इसलिए हम हार भी जाते हैं
लोग फिर भी मानते हमें जीता
क्यों कि हम हार कर भी
कर लेते हैं जीत का ऐहसास
जानते हैं हालात को अपनाना
और फिर जीत की कोशिश करना
हर बार बस फिर एक बार!

Saturday, October 5, 2019

बिखरे भाव

अब बिस्मृत से कुछ भाव
अन्यमयस्क क्रम के चलते
बिखरे हुए मेरे वो ज़ज्बात
यदा कदा प्रश्न पूछने लगते
मानो मेरी परीक्षा लेने को
प्राय: स्मृतियों को टटोलते
चाहे अनचाहे संस्कार भी
कभी बस बरबस चले आते
कुछ मतिभ्रम की मरीचिका
फिर भी विगत को दोहराते
अब सम-विषम में नहीं भेद
जीवन के प्रति समभाव लाते
कैसे कह दूं इनको मैं बिस्मृत
अब भी स्मृत बन आ हैं जाते 

Wednesday, October 2, 2019

Small Ways

You can do that
If you wish doing
From the others
Why only expect
Doing great things
We don't expect
But you contribute
If do simple things
If each one does
Small things here
Contributes sure
Adding things done
Leaving big things
For institutions to do
To make a beginning
Today is perfect time
Tomorrow you get
Feel of Satisfaction
Having done your bit
Be it in a small way!




Sunday, September 15, 2019

Rhetoric

Those creating
A war hysteria
Ignore history
The miseries
Destructibe side
Wars brought
Anywhere!
Or if they know
They are foolish
About the game
Of names and hype
Politicians play
Without meaning
Rhetoric deliberate
To boost own image
At the expense
Of peace, coexistence
And human values! 

गुंचे

गुल अब भी यहां गुंचों में सजे हैं
देख तितलियां और भंवरे डटे हैं
अपनी-अपनी फ़ितरत है साहब
फिर भी अरमान दोनों के सजे हैं
गुलों को मुस्तकबिल की फ़िक्र है
उनके हिस्से के यही काम बचे हैं
दोनों के ही अपने काम हो रहे हैं
फिर काहे को ये कोहराम मचे हैं 

Tuesday, August 20, 2019

फिर न कहना


फिर न कहना आप आते नहीं
सपने में आकर भी सताते नहीं
तो क्या अग़र आप बुलाते नहीं
हम चले आए तो फिर जाते नहीं
हम कभी आने से कतराते नहीं
मज़बूरी कोई अपनी बताते नहीं
वादा कोई भी अपना  नहीं
अल्फ़ाज़ अपने लड़खड़ाते नहीं
वफ़ा अपनी कभी बिसराते नहीं
हक़ आपका कभी झुठलाते नहीं
यकीं रखते हैं शक़ जतलाते नहीं
फ़िक्र का जिक्र तक करते नहीं
आप वो आदत हम भुलाते नहीं
पर ख़ुद तो कभी आप आते नहीं 

Saturday, August 17, 2019

ग़ैर

हमसफर हो तो कोई ऐसा हो
सब को अपना बना चला गया
हम सोचते रहे अंधेरे हटाने की
वो जल कर उज़ाला कर गया
हमने बस की थी एक इब्तिदा
वो रहनुमाई कर के चला गया
रास्ते कई और होंगे उसके पास
वो रास्ता हमें दिखा चला गया
कोई ग़ैर किसी ग़ैर की ख़ातिर
अपना सब कुछ लुटा चला गया 

Monday, August 12, 2019

सिमटती दुनियां

संसार बदल गया
हम से मैं हो गया
घर अब मकान हैं
सुबह देर से होती है
दिन भर समय नहीं
सब व्यस्त हैं
अपनी अपनी तरह
रातें खामोश नहीं हैं
हर तरह का शोर
हर तरफ है
नियत समय नहीं
नींद का अब कोई
मेल-जोल केवल
मोबाइल व इंटरनैट सै
रिश्तों के नए स्वरूप
सब औपचारिक हैं
बात का समय लेना है
मशीनी युग है
आदमी गौण है
आदमियत लुप्तप्राय है
एकतरफा लगाव है
कहीं वो भी नहीं
सब कहते हैं
बड़ी तरक्क़ी हो गई
लेकिन यथार्थ में
दुनियां सिमट सी गई!






Friday, August 9, 2019

उम्र भर

उम्र तक नहीं सात जन्म साथी
हाथों में हाथ देकर ये कह दिया
बढ़ चला सिलसिला ज़िंदगी का
फ़र्क न कोई हम में था रह गया
थोड़ी नुक्ताचीनी हंसते टाल दी
अपने जेहन से तल्खी निकाल
ख़ुद की ही बस कोई मिसाल दी
रफ़्ता रफ़्ता वक़्त ये कटता गया
हर लम्हा ज़िंदगी हमारे साथ थी
साथ चलते ही अचानक एक दिन
मंज़ूर न अब साथ तेरा कह दिया
खेल क़िस्मत का असर यूं कर गया
उम्र भर का साथ पीछे रह गया  

Thursday, August 8, 2019

Turnaround

The turnaround
Of stakeholders
Makes them take
New turn and side
Trying to justify
When named they
If it were others
Vehemently say
Giving judgement
On those others
With all biases
In each situation
Objectivity is dead
Paving way here for
People's subjectivity 

और बात

तब बात और थी
सामने विरोधी था
जी भर कोसा था
धमकाया भी था
कई तरह से सबने
उसके शायराने पर
अब बात कुछ और
अपने की बात है
कानून करेगा काम
या देर सवेर हम भी
मामला ठंडा हो ले
तब वक्तव्य देंगे
सियासत में हैं हम
कहेंगे भाइयो-बहनो!

झूठे नीर

अब कायर भी वीर बताये जाते हैं
आंखों से झूठे नीर बहाये जाते हैं
बेहूदे लोग गम्भीर बताये जाते हैं
चंचल भी अब धीर बताये जाते हैं
झूठे अपनी तक़रीर बढ़ाये जाते हैं
सच कहो तो शरीर बताये जाते हैं
संजीदा सिर्फ लकीर बताये जाते हैं
छोटे चक्कू शमशीर बताये जाते हैं
बद अब नेकी की तस्वीर हो जाते हैं
अच्छे लकीर के फ़कीर कहलाते हैं
बातों के ही सब तीर चलाये जाते हैं
आंखों से झूठे नीर बहाये जाते हैं 

Thursday, July 11, 2019

विश्वगुरु

हमारी बिडम्बना है
हम पले बढ़े हैं
रूढ़ियों एवं
अंधविश्वासों के साथ
सीख रही है हमारी
मिथक के आस-पास
कपोलकल्पित कहानी भी
हमें सत्य प्रतीत होती हैं
हमारे निर्णय भी
भाग्य के सहारे होते हैं
या भाग्य पर छोड़ते हैं
अवैज्ञानिक रहती है
हमारी तर्कशक्ति
हमारे लिए प्राय:
आलोचना ही विवेचना है
हम माहिर हैं
विकास की नई व्याख्या में
हमारी राजनीतिक समझ
असत्य व लफ़्फा़ज़ी से
अपनी सोच-समझ पर
हमें बड़ा अहंकार है
लेकिन आज भी हमारा
विश्वगुरु होने का विचार है 

Tuesday, July 9, 2019

बेमिसाल

ये ज़मीन है
आसमान नहीं
बेमिसाल नहीं होती
यहां की हर चीज
क़ोशिश से शायद
बनाई जा सकती है
हरदिल अज़ीज़ नहीं
यहां की हर बात
बनाना चाहो तो
बनाई जा सकती है
सपनों सी नहीं
दुनियां की हर चीज
समझने से लेकिन
समझी जा सकती है
उलझी है गुत्थियों में
यहां की हर चीज
तुम अग़र चाहो तो
सुलझाई जा सकती है
आसमान न सही
ज़मीन आसमान सी
बनाई जा सकती है!

Friday, July 5, 2019

ज्ञान और पल्ला

खज़ाना है बड़ा
उनके पास तो
नसीहतों का ऐसा
बड़ा इसलिए हुआ
वो ख़ुद नहीं करते
इस्तेमाल इनका
औरों से अपेक्षा
है कोशिश उनकी
जानते हैं वो
इस्तेमाल लायक नहीं
बस झाड़ देते
अपना ज्ञान
अपना पल्ला 

Friday, June 28, 2019

सुराज

लफ्फाज़ कई हैं
क़सीदे पढ़ते
सुराज व स्वराज के
अपने हित साधन को
कई पराकाष्ठा में
चाटुकारी की
अपनी नाक़ामी छुपाते
पूनम की रात का भ्रम
अमावस में फैलाते
त्रस्त जन यहां
सताये रहते
अगणित दुर्व्यवहार से
आत्ममुग्ध, आत्मोन्मुख
स्वस्थापित हुए
चंद साहूकारों के
समाज व समुदाय के
निजी लाभ के कारण
समर्थक व संगी हैं
व्यापारियों के
ज़मींदारों के
समाज के दलालों के
अब यही लोकतंत्र है
पलता बढ़ता है ये
विपणन व झूठ से
प्रशस्त करता
प्रतिपादित कर
शोषण के नए तरीक़े


Monday, June 24, 2019

Passing Time

Passing time
Is all we do
In uncertain World
But, true!
That's our lifeline
Keeps us going
Making plans
Building strength
Accumulating wealth
To pass time better
Forget the ultimate
Of amorphous lives
Our stories shape up
Evolve and melodrama
Anticlimaxes and climax
Story is over
One day suddenly
Passing time!


Passing Time

सार्थक

निरर्थक कुछ नहीं
दीर्घकालीन न हो
तात्कालिक सही
हर बात का अर्थ है
सापेक्षिक जंरूर है
समझने का तरीक़ा
स्वयं एवं अन्यथा
देश, काल, परिस्थिति में
लेकिन तभी
यदि समझना चाहो
वरना सब वृथा है
संसार की तरह


Saturday, June 22, 2019

समरसता

तिलमिलाते
उत्तेजित तुम
आवेश पर
मेरे क्षणिक
दोषारोपण
करने लगे तुम
तमाम गहराई
लेकिन
उफन जाता है
कई बार यहां
सागर भी
फिर वही
शांत जल
करने लगता
देख रेख
जीवन की
गरज बरस
आसमान विशाल
ले आता है
फिर सामंजस्य
कब देखोगे
ऐसी समरसता
तुम?

Friday, June 21, 2019

Simple is Wonderful

Simplicity is all important pervasive quality in all walks of individual life, systems, organizations and state systems.

One wonders why often we encounter systems that could be simple, are made so complex that the processes overtake the goals. Sure, there have to be internal controls and checks and balances for transparency reasons; but the processes should not have overweight than the intent of the functioning of the systems.

Some controls may be redundant or overlapping. Some may fail in the test of cost and utility comparisons.Exemplary punishments and rule of law work better than detailed sundry attempts to make people follow the prescribed system mandates. Care, however, must be taken that people are well aware of rules, regulations, and violation punishments. At times, the awareness is a serious issue, if the communities and people (the demand side) are not really exposed to the system details; making them heaven for the services providing professionals.

I often found that most complicated problems have simple solutions; provided that we are willing to understand the 'costs' and benefits of the comparative scenario. Too many controls means sovereign lack of integrity of people and systems. Same goes for the individuals, families and society. Make things simple, get the approximate desired results. Small things would get averages out!


Wednesday, June 19, 2019

कथानक बिसरा सा

मेरा नहीं रहा
मेरा आंगन
यूं तो अब
कैसे भुला दूं
लेकिन फिर भी
तुम हो न
भूल जाने के लिए
इधर का रुख
डरावना हो सकता है
याद आ भी जाए
तो मत करना
तुम रुख इधर
आनंद से रहना
दुनियां में
तुम्हारी अपनी
मैं बस रहूं
कोई कथानक
बिसरा सा


Thursday, March 7, 2019

आत्मप्रशंसा

भिज्ञ मानने लगा
हर चीज का
हर कोई स्वयं को
समझते हैं ऐसे लोग
औरों को हेय क्षुद्बुद्धि
अहंकार की कहें क्या
दर्प है उन्हें बुद्धि पर
लेकिन ये सत्य है
ऐसा वे ही समझते हैं
हमें तो लगता है
वे शिकार हैं
हीन भावना के
अपनी कुंठा के चलते
कुछ हासिल न करने पर
ग्रसित हैं मनोरोग से
आत्मप्रशंसा के
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Thursday, February 14, 2019

Arson of Emotions

How different it can be
Nation and nationalism
People are used by a few
In the name of nation own
Sentimental they become
Lured by interests vested
People join the struggles
Even for dark future ahead
Unaware of reason of evil
Plundering their emotions
Violence when abated here
By wrong, selfish leaders
Only cause disaster in mind
But destruction all around
Unaware of consequences
We allow arson of emotions

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Tuesday, January 29, 2019

मन से

चमकते प्रकाश के अंधेरे
रोशन कर सकेंगे
अंतर्मन को चमकाने से
प्रचुरता से लब्ध कमी
क्या बदल सकेगी
पांव पसार चादर में
विनाश बढ़ाते विकास
शायद परिणत हों
चल कर सरल मार्ग से
अज्ञान बढ़ाते ज्ञान
किंचित साधन हों
मिलकर ज्ञान चक्षु से
मन से उपजी व्यथा
सजग कर सकती है
मन की व्यथा से


Gilt

I take no credit for others' work
I don't envy others' achievement
I take no offence to people evil
And seldom market my wisdom
Let anyone play games behind me
I still don't react or even respond
I know how people act as people
But I walk my path the I way I am
They may try be evil I allow them
I just smile at it for I'm like that
They may carry their envy or guilt
I am happy with my persona gilt
I must manifest goodness to all
In own eyes it makes me look tall


Monday, January 28, 2019

पैबन्द

हसरतें यूं तो मोहताज़ न थीं
बस असमंजस के पैबन्द लगे
चंद रूबरू मुलाक़ातों के होते
चाहतों के सिलसिले बनने लगे
न तो हम न वो ही मुस्तैद रहे
ज़िन्दगी के कारवां बढ़ने लगे
फ़ैसले का लेकिन वक्त आया
दिलो-दिमाग में ही उलझे लगे
सूख गए थे जो मचले अरमान
फिर से अब सब्ज़ से होने लगे
दिल-दिमाग़ की जंग तो लेकिन
अब भी वहीं कहीं उलझी लगे

Saturday, January 26, 2019

आशा के दीप

सुख के सागर यहां हैं बिखरे
विवश-विचार के राग न गायें
रहना क्यों धर हाथ पर हाथ
कर्मठ-क्रम परचम लहरायें
यह जग वैसा ही जग होगा
जैसा भी हम-तुम इसे बनायें
छोड़ो व्यर्थ प्रलय के प्रलाप
जीवन की कलियां महकायें
तार -तार जो करे व्यथा को
आओ कुछ ऐसे फ़र्ज़ निभायें
अंधियारे सारे मिट सकते हैं
आओ आशा के दीप जलायें