Saturday, June 27, 2015

मुनाफ़िक़त

कभी बड़ी गर्मी कभी सूखा कभी बेमौसम बारिश होने लगी
ये ज़माने की खता है शायद मौसम की रंगत बदलने लगी

कहीं लाचारी कभी ज़ुल्मो सितम से रियाया है परेशान यहाँ
इस मुल्क़ के हाकिमों को सियासत है बड़ी रास आने लगी

शौक़ से घूमते फिरते हैं बेख़ौफ़ इधर गुनाहों के सब ताजिर
सजा नहीं अब तो गुनहगार की इज़्ज़त है यहाँ बढ़ने लगी

दिन ढले या दिन के उजाले में भी अब ये आलम है यहाँ
खवातीनों पे सितम की आग हर तरफ़ यहाँ बरसने लगी

अब तो लगता है ज़ुल्म के हुक्मरान भी सब सज़दार यहाँ
मुनाफ़िक़त की मुश्तरका कोशिशें शायद यहाँ हैं बढ़ने लगी

(मुनाफ़िक़त = Hypocrisy, मुश्तरका = Joint , सज़दार = Prostrater, ताजिर = trader)



Tuesday, June 16, 2015

वक़्त का तकाज़ा

मेरे अरमाँ मेरे सपने न जाने कहाँ खो गए
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
तो क्या हुआ, मैं नए सपने संजो लूंगा
मेरा वादा है, कहानी नई मैं लिख दूँगा
हसरतों की बात है, कहीं तो कुछ खास है
वक़्त बाकी है,आस अब भी पूरी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त लम्हा है, मुड़ मुड़ के फिर देखूँगा
मेरा दावा है तुमसे, ख़्वाब फिर मैं देखूँगा
रुकना न मैंने सीखा, ये तुम भी देख लेना
जो रुक गया यहाँ, बात उसकी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त का तकाज़ा है, कुछ नहीं थमता है
ये ज़िन्दगी और क्या, चलने का बस नाम है
कर गुजरूँगा मैं भी कुछ फिर कहेंगे सब ही
कामयाबी यूँ मिली मजबूरियाँ पीछे रह गईं
कहानी मेरी, बनते बनते, पूरी बन गई
मेरे अरमाँ मेरे सपने हाँ बदल गए हैं कुछ
कहानी मेरी, फिर भी बनते पूरी बन गई

Monday, June 15, 2015

दृष्टिभ्रम

मित्र न सही मैं
मित्रवत अवश्य हूँ
हैरत नहीं होती मुझे
यह जानकर भी कभी
मैं विश्वासपात्र नहीं
शायद तुम्हारे निकट
तुम्हारे नज़रिये से
तुम, तुम्हारे विवेक पर
मुझे भी विश्वास नहीं
कमियां हैं तुम में कई
हावी हो जाती हैं वो
तुम्हारे विवेक पर
मेरे नज़रिये से
लेकिन आभास होगा
किसी दिन अवश्य
तुमको दृष्टिभ्रम का
जब देखोगे तुम कभी
खुले नज़रिये से

Friday, June 12, 2015

मुस्कुराते रहो

कुछ कहो न कहो, मुस्कुराते रहो
कल की कल ही नहीं
आज की सोचेंगे कल
मुस्कराहट की यूँ ही, हद में रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

ज़िन्दगी आज है कल रहे न रहे
आज की खास है बात ही बात है
कोई कुछ भी कहे सोच अपनी रहे
आज आगाज़ है खास अंदाज़ है
सुगबुगाती ख़ुशी इसकी हद में रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

रात बेचैन थी सुबह अब है नई
रौशनी में नहाई नई धूप है
ज़िन्दगी हर तरफ़ ऐसी मशरूफ है
कलियों सी महकती सभी ओर है
फूल के साथ तुम भी यूँ खिलते रहो
मुस्कुराते रहो मुस्कुराते रहो

दास्ताँ ऐसी कोई नई बन रही
देख लो आस पास ये तुम्हारी ही है
मुस्कुराते चमन में कई गुल खिले
मीठी मीठी कहानी है संग चल रही
अपने साये से तुम मिल के चलते रहो
मुस्कुराते रहो, मुस्कुराते रहो

Tuesday, June 9, 2015

हालात की मारी

अजीब सी बात है
कभी-कभी यहाँ
औरतों को दबाने में
देती हैं अक्सर
आदमी का साथ
औरतें भी यहाँ
ज़ुल्मों की खातिर
शायद खुद जो सहे
औरों की बारी
झुठलाती हैं औरतें
सच को यहाँ
अंधेरे में अँधेरा बन
उज़ाले के खिलाफ है
औरतें भी यहाँ
हालात की मारी थीं
लड़ नहीं पाती हैं
हालत से
औरतें यहाँ