Friday, November 30, 2012

Exacerbate

The failures must exacerbate
Resolve to persevere always
To achieve excellence aspired
It would bolster your efforts
Nudging bad consequences
Keeping the negativity aside
Learning the innovative ways
So temporary are the failures
And integral part of process
If the current effort does not
The renewed one succeeds
Choosing from assorted paths
Redundant are the singulars
Life is always full of options
So are the goals and targets
Move on in path of success

Thursday, November 29, 2012

माद्दा

समन्दर न सही दरिया का पानी से बहते हैं हम
अपना रास्ता ख़ुद बनाने का माद्दा रखते हैं हम
हवाओं के रुख बदलने का हौसला रखते हैं हम
क़ामयाबी न भी मिले तो कोशिश करते हैं हम

जो कहा नहीं गया -- अज्ञेय

है, अभी कुछ और जो कहा नहीं गया।

उठी एक किरण, धाई, क्षितिज को नाप गई,
सुख की स्मिति कसक-भरी, निर्धन की नैन-कोरों में काँप गई,
बच्चे ने किलक भरी, माँ की वह नस-नस में व्याप गई।
अधूरी हो, पर सहज थी अनुभूति :
मेरी लाज मुझे साज बन ढाँप गई-
फिर मुझ बेसबरे से रहा नहीं गया।
पर कुछ और रहा जो कहा नहीं गया।

निर्विकार मरु तक को सींचा है
तो क्या? नदी-नाले ताल-कुएँ से पानी उलीचा है
तो क्या? उड़ा दूँ, दौड़ा दूँ, तेरा हूँ, पारंगत हूँ,
इसी अहंकार के मारे
अंधकार में सागर के किनारे ठिठक गया : नत हूँ
उस विशाल में मुझ से बहा नहीं गया।
इसलिए जो और रहा, वह कहा नहीं गया।

शब्द, यह सही है, सब व्यर्थ हैं
पर इसीलिए कि शब्दातीत कुछ अर्थ हैं।
शायद केवल इतना ही : जो दर्द है
वह बड़ा है, मुझ से ही सहा नहीं गया।
तभी तो, जो अभी और रहा, वह कहा नहीं गया।

--अज्ञेय

सिफ़र / Zero

जो पाया है वो बहुत कुछ खो कर
जो जीते हैं तो बहुत कुछ हार कर
पा कर याद आता है जो खो चुका
जीत कर याद आता है हारा हुआ
कुल मिला कर जोड़ घटा बराबर
आखिर में सब को सिफ़र मिला है
बस इसी उधेड़बुन में सिमटा हुआ
ज़िन्दगी का हर फ़लसफ़ा ठहरा है

Whatever gained is by losing a lot
Whatever found by many things lost
Once found we remember what is lost
Victories too remind us battles lost
Everything comes by scores evened out
At the end everyone adds to a naught
Thus is a maze of our confused thought
All philosophies of our life have taught

Wednesday, November 28, 2012

ज़बाब

जब भी मैं ज़बाब ढूँढता हूँ
बस प्रश्नों में उलझ जाता हूँ
हर बार पूछना चाहता हूँ
मग़र खामोश रह जाता हूँ
और भी अनजान लगता हूँ
जितना नज़दीक़ आता हूँ
जितना मैं दूर जाता हूँ
उतना ही करीब पाता हूँ
कुछ प्रश्नों के ज़बाब नहीं होते
यही मानकर चुप हो जाता हूँ

Tuesday, November 27, 2012

नज़दीकियाँ

जाने क्यों तुमसे मेरे रिश्ते यूँ कम हैं
शायद इसीलिए तो हम दोनों ही हम हैं
लोग बैठे हैं रिश्तों की क़तार में लम्बी
कुछ से ज्यादा कई से दूरियाँ कम हैं
फिर भी जाने क्यों सभी से अपनी
दिल की थोड़ी सी नज़दीकियाँ कम हैं
किसने क्या लिया यहाँ से क्या लेना
अपना चलता रहा सफ़र ये क्या कम है
न नसीब हो इस ज़हाँ में और कुछ भी
वक़्त अपने साथ वक़्त के साथ हम हैं

Monday, November 26, 2012

Moments

Problems will come by
Not stay forever around
I have to deal with them
Chase them away ever

New ones may come too
I shall chase away again
Solutions are always there
I will make them balance

Moments of sadness too
I will deal with them too
My all happy moments
Will sure outweigh them

Negative thoughts come
Only to test my resolve
I have my own thoughts
They will overpower them

Criticisms will be there
I will learn from them
I know I am not perfect
Also no perfect world

Will thank my all critics
For their prompting me
To introspect and mend
My ways or my methods

I will be learning from all
Without ego or prejudices
Whatever the provocation
I will retain my happiness

Saturday, November 24, 2012

Humane

या मोहब्बत कुछ यूँ बसा अपनी बस्तियों को
साहिल तक ले आयें लोग अपनी क़श्तियों को
तेरी आरजू ने इन्सान बना डाला है कईयों को
ऐ ख़ुदा कुछ अक्ल से तू यूँ नवाज़ बाकियों को
O Love! Try and make your habitat at such places
People bring their boats to banks not midstream's
Thy desire has made many people act like humans
O Lord! You bestow some wisdom on to the others

Love Evolves and Perishes


Story of love in lives of people
Has some trends of evolution
Starting with the innocent love
Love becomes possessive then
Younger days love can be crush
Now the love for the individuals
Initially it’s a mysterious feeling
The new kind of emotion coming
Lost in sweet thoughts visualizing
Feeling of love and the fantasizing
Wonderful counting of moments
Unaware of times and the people
Living without time dimensions
Then comes the new kind of love
Passion and lust redefining love
A phase of more self centralism
Having passed this phase again
Meanings of love get broadened
Encompassing the surroundings
The people in your lives around
The evolution doesn't stop here
Next phase of 50’s and beyond
Loving companion is the thought
The reciprocation is also imminent
The spiritual love is also enhanced
And finally love and body perishes
But the story of love sure repeats!

Friday, November 23, 2012

Expose

जब हट चुका है चेहरे से तुम्हारे यह मुखौटा
कहते हो तुम कि हमें अब कर दोगे बेनक़ाब
हमने तो की ही नहीं कभी इस्तेमाल नक़ाब
इसलिए तुम जैसे क्या हमें करेंगे बेनक़ाब
Now when you have been unmasked comprehensively
You dare to say that you will now expose myself
You know I never used any veils, mask or covers
People like you can find nothing to expose myself

Thursday, November 22, 2012

गूँज

सुनता रहा हूँ मैं कोलाहल हर वक़्त
इन मोहब्बत से लबरेज़ ज़ज्बातों का
फ़िर भी अंतर्मुखी ही रहता हूँ शायद
तुम्हें एहसास तो होगा इन बातों का
जाने क्यों नहीं आता मुझे पीटते रहना
हर किसी की तरह ढोल उल्फत का
सैलाब तो बसा रखा है अपने अन्दर
अपने ही ढंग से बेपनाह मोहब्बत का
मेरी अपनी दुनियाँ बड़ी छोटी तो नहीं
पर सिमटा हुआ है संसार हकीकत का
मेरा मेरे पास बस एक बड़ा खज़ाना है
बस तुम और तुम्हीं से मोहब्बत का
मेरे अनकहे अल्फाज़ गूँजते तो होंगे
तुम्हें एहसास तो होगा इन बातों का

लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा चलते चलते
कभी रोते और कभी हँसते
हम इतनी दूर आ पहुँचे
अनजाने में दिल दुखाते
तो जानबूझ कर सहलाते
खट्टे मीठे अनुभव लिए
हम इतनी दूर आ पहुँचे
शिकवे कभी शिक़ायतें
झगडे भी और झिड़कियाँ
फिर भी प्रेम भाव लिए
हम इतनी दूर आ पहुँचे
अब ढलती उम्र में दोनों
अब यही है बस ख्वाहिश
बस गिले शिकवे करते
पर बढ़ते प्रेम भाव से हम
जितनी भी दूर हो संभव
हम उतनी दूर जा पहुँचें

Tuesday, November 20, 2012

तलाश

बिना सोचे समझे मैं चलता जा रहा हूँ
न जाने किन गलियों में भटक रहा हूँ
दिशा का भान है मुझको ये भी सच है
लेकिन दिशाहीन सा चलता जा रहा हूँ
मेरा कोई लक्ष्य नहीं कोई गंतव्य नहीं
बस जहाँ क़दम मुड़ गए चला जा रहा हूँ
रास्ते मेरे लम्बे या छोटे बनते जा रहे हैं
अंतहीन सफ़र में कहीं बढ़ता जा रहा हूँ
दुनियाँ की हक़ीक़तों से मैं उलझ रहा हूँ
मुझे नहीं मालूम किस ओर जा रहा हूँ
लोग सोचते हैं सब कुछ पा लिया मैंने
मैं आज भी कहीं ख़ुद को तलाश रहा हूँ
अपने ही भीतर अनजाना तलाश रहा हूँ
अब ज़िन्दगी का मतलब तलाश रहा हूँ

Monday, November 19, 2012

अपना साथ काफ़ी है

दिन तो ढलेगा इसका क्या
चाँद की रौशनी ही काफी है
अमावस की रात है तो क्या
जुगनुओं की तो आपाधापी है
रात अगर अँधेरी है तो क्या
सितारों की चमक बाकी है
सफ़र अकेला सही तो क्या
हमसफ़र की तलाश बाकी है
हमसफ़र न हो तो न ही सही
हमारा सफ़र अब भी बाकी है
कोई भी साथी न हो तो क्या
हमारे लिए अपना साथ काफ़ी है
वक़्त या शरीर दगा दे तो क्या
हौसलों का असर तो बाकी है

आत्मसम्मान

ये भली भाँति मालूम था मुझे
वो तसल्ली दे तो रहे थे मुझे
किन्तु मंतव्य कुछ अलग था
और उनकी दृष्टि में कदाचित
मेरी वह पीड़ा उचित ही थी
स्वाभिमान व आत्मसम्मान
उनके स्वयं के लिए बेमानी थे
औरों को व्यावहारिक होने के
पाठ पढ़ाना उनको प्रिय था
अपनी ही दृष्टि में उन्हें अवश्य
इससे इतर आचरण का दंड
स्वाभाविक एवं न्यायोचित था
मानता हूँ उनका एक दृष्टिकोण था
किन्तु औरों के दृष्टिकोण के प्रति
उन्हें भी संवेदनशील होना ठीक होता

Sunday, November 18, 2012

झाँसी वाली रानी: सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित अविस्मरणीय वीर गाथा.........

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

Dreamz

How beautiful they feel
And important to all
If they do come true
It's always fascinating
If they don’t become real
No harm done whatsoever
They are just random sequences
Yet they are rejuvenating
Thought provoking too
And bring around hopes
To people and their enthusiasm
To improve or excel
If not in the longer term
At least momentarily!

only smiles

रात गई बात गई इत्मीनान बनाये रखिये
देखिये तो आज की सुबह कितनी हसीन है
ये तेवर किसी और के लिए संभाले रखिये
हमें तो आपकी बस मुस्कराहट अज़ीज़ है
The dark night is over be rest assured
Wow! See that fantastic morning it is
Preserve frowning mood for someone
I for one like to witness your smiles

Friday, November 16, 2012

Words from China's new leader Xi Jinping's first message

Words from China's new leader Xi Jinping's first message

"Our people have an ardent love for life. They wish to have better education, more stable jobs, more income, greater social security, better medical and health care, improved housing conditions, and a better environment. They want their children to have sound growth, have good jobs and lead a more enjoyable life. To meet their desire for a happy life is our mission."

"just as China needs to learn more about the world, so does the world need to learn more about China."

China has excelled in many fields; but the biggest challenge for them now would be the bridging the gap between the income levels of the people. Just like in capitalist systems the disparities of income of people will pose a challenge to deal with. They may have good examples to learn from the British and some European nations on the social security systems (something that Gorbachev got impressed with; but went too fast in perestroika that gave other ideas to politicians like Yeltsin to oust him and grab the power)!

Of course now there is nothing called capitalist or Socialist regimes; all have matched and mixed the blend of both.Once the bread and shelter is available, human beings like to look for the liberty and more rights. Can the 'socialistic, China look for the wider answers to the aspirations of the people?

reward

तुमसे मिलकर दिया ख़ुद को ईनाम
अपनी वजूदगी ही गुमनाम कर दी है
और क्या तवज़्ज़ो देते हम तुम पर
अपनी उम्र जो तुम्हारे नाम कर दी है
On meeting you I rewarded myself
Of losing all my very own 'existence'
What more could I have given focus
I transferred my whole age in your name

Tuesday, November 13, 2012

दीवाली

पटाखों की धूम धड़ाम में
मानो कहीं खो रहा सा था
दीप प्रकाश उत्सव दीवाली
हर तरफ प्रतिद्वंदिता सी थी
और ज्यादा शोर मचाने की
ये कैसी विचित्र है ख़ुशहाली
मिलने मिलाने में बस उपहार
आदान प्रदान का क्रम बढ़ा है
देखा-देखी हुई बहुत खर्चीली
बहुतों को अब नया शौक़ है
चकाचौंध में भूल जाने का
किसी की अँधेरे में दीवाली

Sunday, November 11, 2012

This Diwali


This Diwali; the festival of lights
I’m looking for within more lights
Without prejudice to the others
Just looking for contributing bits
In this wonderful World’s people
Of no dislikes and only the likes
Things and happening around me
I need to work on first, who else
Without bothering if others join
I shall perceive this path chosen
To brighten my inner-self around
And sharing path of enlightening
Wish me the luck I presume that
Same! I want you to presume that

Thursday, November 8, 2012

अलग सा क्यों


आज भी वही सफ़र वही संग है
फिर सब कुछ अलग सा क्यों है
वही साज और आवाज़ वही है
संगीत का सुर अलग क्यों है
कागज़ वही रोशनाई वही है
लिखने का ढंग अलग क्यों है
महबूब वही राजदान वही है
मोहब्बत का रंग अलग क्यों है
देश वही और परिवेश वही है
फिजां का रंग अलग क्यों है
मेरे अल्फाज़ आज भी वही हैं
समझने का ढंग अलग क्यों है
कहीं कुछ बदले हुए अंदाज़ हैं
शायद तभी ये हौसला बुलंद है

Tuesday, November 6, 2012

आश्वस्त

समझ नहीं पाया हूँ मैं
ये तुम्हारा दृष्टि-दोष है
या अनधिकार चेष्टा है
मुझे आहत कर देने की
अपने इन दृष्टि-वाणों से
अकस्मात् पर सप्रयास
मैं चकित नहीं भ्रमित हूँ
किंकर्तव्यविमूढ़ भी हूँ
मेरी समझ से जाऊं क्या
या सोच का करूँ भरोसा
ये भी नहीं कह सकता हूँ
तुम्हीं बता तो हकीकत
फिर भी न मालूम क्यों
बिलकुल आश्वस्त भी हूँ

Monday, November 5, 2012

ग़लतफ़हमी/ misunderstanding

मेरा शौक राह चलतों से पहचान बना लेना
तुम मुझे अपनी पहचान यूँ ही बता मत देना
तुम कहीं कोई ग़लतफ़हमी मत पाल लेना
मुझसे मिलने से पहले पता तो जान लेना
It's my hobby to make friends with passers by
You don't reveal identity to me just like that
Please don't be under any misunderstanding
Before meeting me up do ask for the address

Sunday, November 4, 2012

चेतावनी

आज हर नए अंदाज़ में नज़र आ रहे हो
लगता कोई पुरानी याद से उलझ रहे हो
आज बाखूब तारीफों के पुल बाँध रहे हो
लगता है तुम बहुत दूर की सोच रहे हो
मेरी हर बात पर तुम यूँ मुस्कुरा रहे हो
लगता है मुझे कोई चेतावनी दे रहे हो
तुम्हें लगा होगा अहसास नहीं मुझको
तभी कुछ दिल की दिल में छुपा रहे हो
मेरे यूँ इतने क़रीब जो अब आ रहे हो
शायद मुझसे कहीं बहुत दूर जा रहे हो

Thursday, November 1, 2012

million times!

चाहे लाख कोशिश कर लो चिलमन से मुंह छुपाने की
लेकिन ढूंढने वाले भी तो क़यामत की नज़र रखते हैं
नज़रें झुकेंगी जो की कोशिश हमसे आँख मिलाने की
हम तो चेहरे की रंगत से पहचानने का हुनर रखते हैं
Try a million times to hide behind the curtain
But those who can find have the great eyes too
Pupils will fall if you try facing me eye to eye
I have all the expertise of knowing through face