Sunday, February 18, 2018

हरदिलअज़ीज़

न ये मेरी है न तेरी है
ज़िन्दग़ी शायद हमारी है
जितना जानो बहकाती है
न अपनी सी न बेग़ानी है
उम्मीदों की हमसफर ये है
दो पल की बस कहानी है
कोई इसे कहीं समझा नहीं
हर कहीं ये तो अनजानी है
इसकी हर शै हरदिलअज़ीज़
ये तो बस आनी जानी है
चलती रहे कोई कुछ भी कहे
ठहरी कभी पर इसमें रवानी है
न कोई इसे जाने न पहचाने
ख़्वाबों सी पर ये सुहानी है
उलझी उलझी सी कभी लगे
मानो ये दास्तां एक पुरानी है


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