भिज्ञ मानने लगा
हर चीज का
हर कोई स्वयं को
समझते हैं ऐसे लोग
औरों को हेय क्षुद्बुद्धि
अहंकार की कहें क्या
दर्प है उन्हें बुद्धि पर
लेकिन ये सत्य है
ऐसा वे ही समझते हैं
हमें तो लगता है
वे शिकार हैं
हीन भावना के
अपनी कुंठा के चलते
कुछ हासिल न करने पर
ग्रसित हैं मनोरोग से
आत्मप्रशंसा के
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