चहचहा रहे हे हैं अब
विहग शांति राग में
वन्य जीव मस्त हैं
अपनी ही दुनियां में
प्रकृति सामंजस्य में है
समझने लगे हैं शायद
घरों में डरे सिमटे लोग
ज़हर उगलते शोर से
मोटरों के दुश्प्रभाव
अंथाधुंथ विकास की
दौड़ में समाये विनाश
क्षणभंगुर जीवन-राग
अपने स्वरों में जतलाते
खान-पान के व्यवहार
स्वस्थता के वृहत आयाम
और दूरियों में समझातीं
जीवन से नज़दीकियां
अब करने का समय है
करो न वरना कोरोना है!
विहग शांति राग में
वन्य जीव मस्त हैं
अपनी ही दुनियां में
प्रकृति सामंजस्य में है
समझने लगे हैं शायद
घरों में डरे सिमटे लोग
ज़हर उगलते शोर से
मोटरों के दुश्प्रभाव
अंथाधुंथ विकास की
दौड़ में समाये विनाश
क्षणभंगुर जीवन-राग
अपने स्वरों में जतलाते
खान-पान के व्यवहार
स्वस्थता के वृहत आयाम
और दूरियों में समझातीं
जीवन से नज़दीकियां
अब करने का समय है
करो न वरना कोरोना है!
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