Sunday, March 29, 2020

करो ना

चहचहा रहे हे हैं अब
विहग शांति राग में
वन्य जीव मस्त हैं
अपनी ही दुनियां में
प्रकृति सामंजस्य में है
समझने लगे हैं शायद
घरों में डरे सिमटे लोग
ज़हर उगलते शोर से
मोटरों के दुश्प्रभाव
अंथाधुंथ विकास की
दौड़ में समाये विनाश
क्षणभंगुर जीवन-राग
अपने स्वरों में जतलाते
खान-पान के व्यवहार
स्वस्थता के वृहत आयाम
और दूरियों में समझातीं
जीवन से नज़दीकियां
अब करने का समय है
करो न वरना कोरोना है!

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