Saturday, May 23, 2015

परिणामस्वरूप

चमकता दमकता
था वो रश्मि-पुंज
सघन आवरण में
धूमिल हो चला है
देखते ही देखते
अँधेरे में है अब
वही रश्मि पुंज
परिणामस्वरूप
भाव बन गए हैं
अब नकारात्मक
बनें भी क्यों नहीं
अब यहाँ प्रकाश भी
मुँह छुपा रहा है
व्यव्हार के कारण
अपने दर्पयुक्त
किसी की नहीं मानता
वक़्त यहाँ

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