Monday, September 21, 2015

गंतव्य भी इत्तेफ़ाक़

मार्ग की दुर्गमता व कठिनता
मंज़िल का आभास कराते है
गंतव्य की दूरियों का एवं
कभी-कभी मार्ग का अभाव
अपरिभाषित बिडम्बना का
मुसाफिर प्रायः अनिर्णय में
बिस्मय और बिस्मृति में
कौन जाने क्या है मौजूद
भविष्य व भाग्य में किसी के
मनचाही मंज़िल न सही
चलते रहना भी रुख है यहाँ
मंज़िल तक पहुँचने का
हैरान,परेशान, थके, हारे से
मुसाफिर समझ नहीं पाते
हर रास्ते की होती है मंज़िल
ज़रूरी नहीं जानी पहचानी हो
गंतव्य भी इत्तेफ़ाक़ होते हैं

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