Tuesday, October 20, 2015

कुछ नहीं बदला

लोग कहते हैं
बड़ी तरक्क़ी हो गई
ज़माना बदल गया
लेकिन हक़ीक़त में
हमने तो यही देखा
कुछ नहीं बदला यहाँ
औरतें अब भी यहाँ
गुलाम सी हैं आज भी
शोषण के हैं शिकार
बच्चे आज भी
पशु बन जाते हैं लोग
मज़हब के नाम आज भी
रंग, नस्ल के मसले
कमोवेश शायद
वही हैं आज भी
अमीर-ग़रीब के बीच
रिश्ते वही हैं आज भी
दुश्मनी की वज़ह हैं
सरहदें आज भी
दुनियाँ की रीत
बस दिखावे की है
कल जो थी वो आज भी

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