बड़ी तरक्क़ी हो गई
ज़माना बदल गया
लेकिन हक़ीक़त में
हमने तो यही देखा
कुछ नहीं बदला यहाँ
औरतें अब भी यहाँ
गुलाम सी हैं आज भी
शोषण के हैं शिकार
बच्चे आज भी
पशु बन जाते हैं लोग
मज़हब के नाम आज भी
रंग, नस्ल के मसले
कमोवेश शायद
वही हैं आज भी
अमीर-ग़रीब के बीच
रिश्ते वही हैं आज भी
दुश्मनी की वज़ह हैं
सरहदें आज भी
दुनियाँ की रीत
बस दिखावे की है
कल जो थी वो आज भी
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