Saturday, October 31, 2015

गुज़र गया वक़्त


आगे बढ़ गए तुम ये सोचते हो
यूँ बस पीछे न देखो वक़्त को
पीछे मुड़ कर कैसे मिटा लोगे
वक़्त के इंदराज से ज़ख्मों को
दाग धोये न सही धूमिल किए
कब तक उधेड़ोगे तुम वक़्त को
वक़्त हर रोज़ आगे बढ़ता रहा
तुम ठहरा ही देखते हो वक़्त को
तुम आज तक वहीँ ठहरे हुए हो
एक अरसा गुज़र गया वक़्त को
नज़र अपनी कर लो दुरुस्त या
वक़्त के नज़रिये से देखो वक़्त को

No comments: