Monday, January 11, 2016

मनो-भ्रान्ति

गरीबी में भी प्रसन्न मन से
अपनी चादर तक सिमटे लोग
जीवन की सादगी और
अपनी सदाशयता के प्रतीक
अर्धनग्न रह कर बसर करते
फिर भी पूरी ईमानदारी से
जीवन यापन व व्यवसायरत
और इनका भी शोषण
उजले-उजले परिधानों में
काले कुकृत्य करते लोग
घृणा का पात्र बन कर
अपनी मानसिकता के
नग्न आयाम दिखाते हैं
इनकी दृष्टि में ये सफल हैं
अपनी बुद्धि का दम्भ भरती
इनके विचारों को बना देती
हास्यास्पद और खोखला
ये नंगी सोच व मानसिकता
स्वयं में लिपटी मनो-भ्रान्ति

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