जी लेते हैं हम
इन लम्हों को
उसी गर्मजोशी से
साथ-साथ चल कर
इस बर्फीले ठण्डे मौसम में
खिली धूप की तरह
एक-दूजे को तसल्ली देकर
सँभाल लेने की
इस फिसलन भरे रास्ते में
बढ़ चलें अब हम
बाँहों में बाँहें डाल
फिर उसी मंज़िल की तरफ़
जो शायद अज़ीज़ है
अब भी दोनों को
कहीं न कहीं शायद
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