विवश-विचार के राग न गायें
रहना क्यों धर हाथ पर हाथ
कर्मठ-क्रम परचम लहरायें
यह जग वैसा ही जग होगा
जैसा भी हम-तुम इसे बनायें
छोड़ो व्यर्थ प्रलय के प्रलाप
जीवन की कलियां महकायें
तार -तार जो करे व्यथा को
आओ कुछ ऐसे फ़र्ज़ निभायें
अंधियारे सारे मिट सकते हैं
आओ आशा के दीप जलायें
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