Saturday, June 22, 2019

समरसता

तिलमिलाते
उत्तेजित तुम
आवेश पर
मेरे क्षणिक
दोषारोपण
करने लगे तुम
तमाम गहराई
लेकिन
उफन जाता है
कई बार यहां
सागर भी
फिर वही
शांत जल
करने लगता
देख रेख
जीवन की
गरज बरस
आसमान विशाल
ले आता है
फिर सामंजस्य
कब देखोगे
ऐसी समरसता
तुम?

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