क़सीदे पढ़ते
सुराज व स्वराज के
अपने हित साधन को
कई पराकाष्ठा में
चाटुकारी की
अपनी नाक़ामी छुपाते
पूनम की रात का भ्रम
अमावस में फैलाते
त्रस्त जन यहां
सताये रहते
अगणित दुर्व्यवहार से
आत्ममुग्ध, आत्मोन्मुख
स्वस्थापित हुए
चंद साहूकारों के
समाज व समुदाय के
निजी लाभ के कारण
समर्थक व संगी हैं
व्यापारियों के
ज़मींदारों के
समाज के दलालों के
अब यही लोकतंत्र है
पलता बढ़ता है ये
विपणन व झूठ से
प्रशस्त करता
प्रतिपादित कर
शोषण के नए तरीक़े
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