Thursday, July 11, 2019

विश्वगुरु

हमारी बिडम्बना है
हम पले बढ़े हैं
रूढ़ियों एवं
अंधविश्वासों के साथ
सीख रही है हमारी
मिथक के आस-पास
कपोलकल्पित कहानी भी
हमें सत्य प्रतीत होती हैं
हमारे निर्णय भी
भाग्य के सहारे होते हैं
या भाग्य पर छोड़ते हैं
अवैज्ञानिक रहती है
हमारी तर्कशक्ति
हमारे लिए प्राय:
आलोचना ही विवेचना है
हम माहिर हैं
विकास की नई व्याख्या में
हमारी राजनीतिक समझ
असत्य व लफ़्फा़ज़ी से
अपनी सोच-समझ पर
हमें बड़ा अहंकार है
लेकिन आज भी हमारा
विश्वगुरु होने का विचार है 

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