कितना समझाया
पर मन कब मानता है
कई कोशिशें कीं
हरेक को समझाया
मगर कौन मानता है
जब मन में हों विकार
पारदर्शिता का हो अभाव
कौन किसकी सुनता है
सब का 'मालिक' एक
अपनी उलझन अपने हित
हरेक एक की सुनता है
मन बोला क्यों सुनूं
मैं क्यों सब के रंग रंगूँ
मेरी अपनी मान्यता है
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