Thursday, November 3, 2016

द्वेष लिप्त

अपनी समझ छोड़
अलग मानसिकता में
दौड़ने लगते हैं !
हम क्यों प्रायः यहाँ
उनकी अपेक्षानुसार
बनते प्रतीत होते हैं
कोई सहजीवी से !
जान-बूझ कर भी
कि परोपजीवी होते हैं
राजनीति करने वाले
जन मानस को छल
अपनी रोटी सकते हैं !
कहीं न कहीं शायद
भारी पड़ जाते हैं
हमारी कुछ कुंठाएं
कुछ हीं भावनायें
और हमारे द्वेष लिप्त
ईर्ष्यालु आचरण !


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