Monday, June 25, 2018

महफिल खयालात की

गुमसुम हैं आज
खयालों में हम
लेकिन सजी है
महफिल अभी
खयालात की
कई तरह के हैं
कभी बनते से
कहीं बिगड़ गए हैं
चलता रहता है
यहां बदलाव भी
इनके अपने ढंग
टकराव भी हैं
तुम नहीं समझोगे
तुम्हारे अलग होंगे
ये मेरे अपने हैं
कोई बज़्म से
इनके अंदाज़ हैं
कभी कुछ कभी और
चलते हर तरफ़
ये मेरे साथ भी
मैं इनके साथ



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