खयालों में हम
लेकिन सजी है
महफिल अभी
खयालात की
कई तरह के हैं
कभी बनते से
कहीं बिगड़ गए हैं
चलता रहता है
यहां बदलाव भी
इनके अपने ढंग
टकराव भी हैं
तुम नहीं समझोगे
तुम्हारे अलग होंगे
ये मेरे अपने हैं
कोई बज़्म से
इनके अंदाज़ हैं
कभी कुछ कभी और
चलते हर तरफ़
ये मेरे साथ भी
मैं इनके साथ
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