जितनी कि सोचते हैं
दुनियां को कुछ लोग
मैंने देखा है लोगों को
अपनी-अपनी ही एक
छोटी सी दुनियां में
सिमटे, जीते, बसर करते
औरों से अनजान से
इनके लिए इन्हीं के हैं
कल, आज और कल भी
बाकी सब से बेख़बर
इतिहास, भूगोल, समाज
देश-परिवेश, अर्थ, विज्ञान
इन्हें सब बौने लगते हैं
इनकी उस छोटी सी
अपनी दुनियां के आगे
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