Sunday, May 10, 2020

मां

सब की तरह मेरी भी मां
सौ जतन कर पालती दुलारती थी
दुख हो सुख हो तकलीफ़ हो
शिक़वे शिक़ायत नहीं करती थी
मां का मन जैसा न भरता
देर रात तक बतियाती धी
बच्चों को आहट  से पहचानती
उनके मन की बात जानती थी
पिता के गुज़र जाने के बाद
मां अकेली किंतु जीवट वाली थी
वयस के साथ सब समझौते करती
मां फिर रुग्ण व कमज़ोर हो गई थी
मां अब सुन नहीं पाती
लेकिन समझ जाती थी
बिना सुने उत्तर देती
लगभग सटीक होता था
मां को बिस्मृति होती
पर पहचान ही जाती थी
वो अब भी दर्द छुपाती
बरबस मुस्कुरा देती थी
मां भजन भी गाती
दुआयें और भी देती थी
अपने सारे ग़म छुपाती
सब ख़ैर बताती रहती थी
मां जो अरमान सजाती
वो हमारी ख़ैर मांगती थी
कृशकाय असहाय सी
पर जीवन-गीत सिखाती थी
बिस्मय हो या कोई परेशानी हो
अब भी बरबस ही पुकार ते हैं
मांsss
मां सब कुछ ठीक कर सकती थी
हर मर्ज़ का एक ही इलाज़ मांsss!
सिर्फ देना ही जानती थी
मांगने में संकोच करती थी
हर हाल में संतोष रखती थी
सब की मां की ही तरह
मुझे हमेशा बच्चा समझती थी मां
अब यूं तो यादें ही शेष हैं
किंतु यहीं आस-पास लगती है मां!

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