Friday, May 15, 2020

बाक़ी हैं कहानियां

अब भी बाकी हैं कहानियां इस पार की
बंद घर में हैं पर छोड़ो बात ये बेकार की
ये सिर्फ़ चेतावनी है क्या हो व्यवहार की
दुनिया को क्या सिला बात से उस पार की
ज़लज़ले आए मग़र बात रही बस निशां की
कहर भी बरपा बात पर गुलज़ार ज़िंदग़ी की
हौसले हैं तो रोज़ ही ख़ुशबू वसंत बहार की
कोशिश करी जो वो कहूं न कहूं संसार की
हिम्मत कर ली अग़र क्या फि़क़र मंझधार की
आशियाने हों सुक़ूं के ज़रूरत नहीं व्यापार की
इसी पार मेरा जीवन और घड़ियां प्यार की
कैसे कहूं मैं बात इस पार या उस पार की 

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