आपदायें तो यहां आती जाती रहती हैं
दीगर बात ये है हम सीख क्या लेते हैं
कुछ आगे बढ़ कर हम भूलने लगते हैं
कि हम अब भी इसी समाज में रहते हैं
श्रम का महत्व भी हम तभी समझते हैं
जब झख़ मार के ख़ुद भी श्रम करते हैं
धनी होते ही हम धन पर दंभ करते हैं
कठिन समय में उपयोग सीमित पाते हैं
स्टेटस की मरीचिका रिश्ते भटकाती हैं
ज़रूरत पर रिश्ते नाते ही काम आते हैं
हम लेना तो जानते हैं देना कम चाहते हैं
ज़रूरतें औरों की अक़्सर कम मानते हैं
हम अपने काम से काम रखना चाहते हैं
औरों की फटी में टांग अड़ाना कम चाहते हैं
हम सिर्फ़ अपनी ही चिंता करना जानते हैं
हमारा भी ख़याल हो ये दूसरों से चाहते हैं
हम अपना व बाल-बच्चों का हक़ मांगते हैं
समाज, देश की चिंता औरों पर छोड़ते हैं
आपदा में भी हम ख़ुद की परवाह करते हैं
नहीं देखते दूसरे क्या हमारी ख़ातिर करते हैं
इस बार आपदा पहले से बड़ी हम मानते हैं
दीगर बात ये कि अब हम सीख क्या लेते हैं
दीगर बात ये है हम सीख क्या लेते हैं
कुछ आगे बढ़ कर हम भूलने लगते हैं
कि हम अब भी इसी समाज में रहते हैं
श्रम का महत्व भी हम तभी समझते हैं
जब झख़ मार के ख़ुद भी श्रम करते हैं
धनी होते ही हम धन पर दंभ करते हैं
कठिन समय में उपयोग सीमित पाते हैं
स्टेटस की मरीचिका रिश्ते भटकाती हैं
ज़रूरत पर रिश्ते नाते ही काम आते हैं
हम लेना तो जानते हैं देना कम चाहते हैं
ज़रूरतें औरों की अक़्सर कम मानते हैं
हम अपने काम से काम रखना चाहते हैं
औरों की फटी में टांग अड़ाना कम चाहते हैं
हम सिर्फ़ अपनी ही चिंता करना जानते हैं
हमारा भी ख़याल हो ये दूसरों से चाहते हैं
हम अपना व बाल-बच्चों का हक़ मांगते हैं
समाज, देश की चिंता औरों पर छोड़ते हैं
आपदा में भी हम ख़ुद की परवाह करते हैं
नहीं देखते दूसरे क्या हमारी ख़ातिर करते हैं
इस बार आपदा पहले से बड़ी हम मानते हैं
दीगर बात ये कि अब हम सीख क्या लेते हैं
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