समंदर के किनारे हवा का झोंका
जब मेरे बालों को छू जाता है
नदी की कल-कल की आवाज़
जब मुझे कर्णप्रिय लगती है
प्रातः पहले पंछी के स्वर की
मिठास जब कानों में गूंजती है
बादलों के बनते बिगड़ते स्वरुप
उनके नए रंग लुभाने लगते हैं
कलियों से झांकते फूलों के वो
मनभावन रंग जब प्रिय लगते हैं
मुझे तुम्हारे प्यार का तब तब
एक मीठा एहसास होने लगता है
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