Saturday, April 30, 2011

भाग्य

मैंने भी भाग्य जानना चाहा था
लोग कहते थे हथेली में बसती हैं
भाग्य निर्धरित करती हैं लकीरें
लाख ढूँढने पर मैंने देखा था
हाथों में ये चन्द धूमिल लकीरें
एक दुष्कर रेखाओं का जाल
कुछ भी कह पाने मैं असमर्थ
चलो अच्छा हुआ एक प्रकार से
मुझे एहसास तो हो ये गया था
भाग्य रेखाओं से निर्धारण नहीं
मेरे कर्म व कौशल से ही होगा
रेखाएं आज भी धूमिल ही हैं
अस्पष्ट भी और कोई आकार नहीं
कर्म-कौशल मेरा भाग्य बनाता है

No comments: